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Tuesday, June 29, 2010

एक ताज़ा ग़ज़ल मसूरी से ......!

एक ग़ज़ल पेश कर रही हूँ मुलाहिजा फरमाएं ओर अपनी टिप्पणियों से नवाजें !

हवाओं का दरख्तों से मुसलसल राब्ता है,
कि उसकी याद का खुश्बू से जैसे वास्ता है !!

हसीं मंज़र है वो नज़रों में उसको कैद कर लो,
इन्ही लम्हों से सदियों का निकलता रास्ता है !!

तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं,
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !!

हरे पत्तों पे ठहरी बारिशों कि चाँद बूँदें,
इन्ही आँखों से उन अश्कों का गहरा रास्ता है !!

किसी भी हाल में 'गेसू' कभी तन्हा कहाँ है,
कि गोया साथ उसके चल रहा एक रास्ता है !!


*****अंजू

4 comments:

VOICE OF MAINPURI said...

तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं,
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !!
वास्ता है रब दा ''भाभी'' जबाव नहीं तेनु ग़ज़ल दा....

Pushpendra Singh "Pushp" said...

bhabhi kathin bahar par sundar gajal likhi apne..... badhai

pankaj said...

dear bhabhi...
such a nice ghazal. every word is worthwhile.well done. keep it up .

ShyamKant said...

अत्यंत उम्दा ग़ज़ल ............
हमजाद 'गेसू' के लिए
धन्यवाद