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Tuesday, February 28, 2012


राग दरबार – vol -5
प्रिय पाठकों
आप सभी रहनुमाओ के लिए संजीदगी के साथ पेश है ये नज़म उम्मीद है अप सभी को पसंद आयेगी |


कभी किसी रोज़ आकार देखो
मेरे उस कमरे का आलम
सारा सामान बिखरा पड़ा है
और कॉफ़ी का वो कप जो
तुम्हारे दुप्पटे के झोके से
गिर कर टूट गया था
आज भी उस में से सोंधी सोंधी
सी खुशबू आती है
उस किताब के पन्ने
जिस पर तुम्हारी मखमली उँगलियों
शरारत कर रहीं थी
उस दिन से बदले नहीं है
और तुमने जो खिड़की खोल कर
शर्द हवा को आमंत्रण दिया था
तुम्हारी जुल्फों से उलझती
अटखेलियाँ करती हुई वो हवा  
आज  भी आ रही है
वो ख़त जो तुम लौटा गए थे
उस रोज मुझे
उड़ कर मेरे जिस्म से
चिपक जाते है
और तुम्हारी मजबूरियों की
कहानी सुनाते है
जो तुम जाते वक्त नहीं कह सके थे
कभी किसी रोज़ आकार देखो
मै कितना तन्हा हूँ ............|
Pushpendra singh (pushp)

आज के इस कॉलम में पंकज के . सिंह एक नयी शुरुआत के रूप में पेश कर रहे हैं अपने काव्य संग्रह " मेरे प्रभु'' से चुनी हुयी कुछ ख़ास कवितायें ! इसी क्रम में आज दूसरी कविता पेश है ! इन कविताओं का काव्य तकनीक से बहुत कुछ लेना - देना नहीं है ! ये कवितायें शुद्ध रूप से एक आत्मा का संवाद मात्र हैं और एक विशेष आध्यात्मिक मनोदशा में लिखी गयी हैं ! ...... EDITOR


स्ट्रेट ड्राइव

VOLUME  --- 13

मेरे प्रभु ...

कर ऐसा उपकार ..

मेरे प्रभु ...
मेरा ही मन ... बाधक मेरे उत्थान में ..
मेरा ही मनन .. धकेले मुझे अन्धकार में ..
मेरा ही कर्म ... बनाये मुझे अपयश का भागी ..
मेरा ही मर्म ...    बनाये मुझे निष्ठुर ..!

मेरे प्रभु ...
कैसे मुक्त हो सकूँ "स्व" से ..  मानसिक संताप से ...
कैसे निकल सकूं इस कलुष से ... व्यर्थ के संघर्ष से ... साध्य के भटकाव से .. !

मेरे प्रभु ...
होता जा रहा हूँ ..नित दूर तुझसे ...
मेरे ही पाप कर्म ...चिपटे हैं मुझसे ...
क्रंदन और विलाप ... बन गए हैं जीवन के अंश ..
तामस और कलुष बन गए हैं आत्मा के दंश ...!

मेरे प्रभु ...
मिल जाए मुक्ति... इस अहंकार और लोभ के घातक मिश्रण से ...
हो सकूं ..निर्विकार , निश्छल और निष्पाप ..
दूर हो जीवन का संताप ..
कर ऐसा उपकार ...कर ऐसा उपकार ...कर ऐसा उपकार ...!!

***** PANKAJ K. SINGH
 

Sunday, February 26, 2012

HAPPY HOLI --2012


आओ झूमें गायें ... मिल के धूम मचाएं 
                                      
                                                  प्रिय जनों होली का पावन पर्व निकट है ! आप सभी जानते हैं की सिंह सदन में कई दशकों से होली का पावन पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है ! सिंह सदन में यूँ तो सभी पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं परन्तु होली की तो बात और ही  है  -- गज़ब के रंग गुलाल,  ढोल बताशे , गुझियाँ- चिप्स- मिठाइयाँ और सगे सम्बन्धियों से मिलना जुलना ! सब कुछ बेहद  शानदार और मजेदार !

सिंह सदन होम ब्लॉग की तैयारियां भी कुछ ख़ास....

                                                  होली का पावन पर्व जब सामने है तो सिंह सदन होम ब्लॉग की तैयारियां भी कुछ ख़ास हैं ! इस अवसर पर सभी दिग्गज लेखकों के नियमित कॉलम होली के ही रंगों से रंगीन नज़र आयेंगे ! 
                                                      इस अवसर पर भैया श्री पवन कुमार , पुष्पेन्द्र सिंह  "पुष्प ", श्याम कान्त , ह्रदेश कुमार सिंह , नेहा सिंह बिटिया , दिलीप कुमार , निक्की "आस्था ", टिंकू , अमित चिंटू , संदीप कुमार , अजित जोनी , प्रिया सिंह अपनी विशेष रचनाएं पेश करेंगे !
                                                       इन रचनाओं में कई मजेदार रंग होंगे मसलन -- सिंह सदन में होली का पावन पर्व , हास्य कवितायें , व्यंग्य , नाम करण, पुरस्कार , फोटो फीचर , कार्टून , होली समाचार , होली गीत , सांस्कृतिक लेख आदि ... और बहुत कुछ ..!

                                                        तो भरपूर आनंद उठाये होली का और इस रंग बिरंगे माहौल में खुद को डुबो दें ... बधाइयों के साथ आपका अपना .. 


***** PANKAJ K. SINGH ( EDITOR )

Thursday, February 23, 2012

आज के इस कॉलम में पंकज के . सिंह एक नयी शुरुआत के रूप में पेश कर रहे हैं अपने काव्य संग्रह " मेरे प्रभु'' से चुनी हुयी कुछ ख़ास कवितायें ! इसी क्रम में आज पहली कविता पेश है ! इन कविताओं का काव्य तकनीक से बहुत कुछ लेना - देना नहीं है ! ये कवितायें शुद्ध रूप से एक आत्मा का संवाद मात्र हैं और एक विशेष आध्यात्मिक मनोदशा में वर्ष 1999- 2000 के मध्य लिखी गयी थीं ! ...... EDITOR



स्ट्रेट ड्राइव- ---

VOLUME-- 12

                         मेरे प्रभु .... 



मेरे प्रभु .... 
अहंकार हो तो भी आकांक्षा है .. ''बुद्ध'' बनने की !
अज्ञान हो तो भी  उत्सुकता है ... कृष्ण बनने की !
भ्रम हो तो भी चाहत है .... भीष्म बनने की !



मेरे प्रभु .... 
दिखा मार्ग ... हरण कर मेरे कलुष का ,
मिले ''हर्ष'' सा आचरण , ''राम'' सा गौरव , ''यीशु'' सा त्याग , ''महावीर'' सा ध्यान !


मेरे प्रभु ....
तेरी कृपा की एक बूँद भी... जो गिरे इस बंजर  जीवन में , 
तो मैं - मैं ना रहूँ .... तेरा ही अंश हो जाऊं .. तुझ में ही समा जाऊं ,
मुक्ति मिले व्यर्थ के संघर्ष से ... अहंकार के गर्जन से ... कोरे स्वार्थ के सिंघनाद से !


मेरे प्रभु ....
मिले जो तेरे प्रेम की एक बूँद .....  आशीष का तेरा एक स्पर्श ,
तो मिटे जीवन की श्री हीनता ... अज्ञान का अन्धकार ... काम - क्रोध का झंझावात ! 



मेरे प्रभु ....
चित्त हो स्थिर तुझमे ... दूर हो बाधाएं तेरे -मेरे मध्य की !
दे ऐसी मुक्ति ... जिससे जीवन मिले !
दे ऐसी समाधि ...जिससे जीवन मिले !! 


***** PANKAJ K. SINGH 

Wednesday, February 22, 2012

SINGH SADAN ...HALL OF FAME ! VOLUME --5














हमें क्या पता था .. आप भी खिलोनों की शौकीन हैं .. तो आप दो लीजिये ..!
तो  ठीक  है... कुछ काम की बात कर लेते हैं ! 
        हाल ही में सिंह सदन होम
ब्लॉग एडिटर पंकज के . सिंह सिंह सदन के चश्मों चिराग और उत्तराधिकारी युवराज के दर्शन करने के लिए आगरा - मैनपुरी यात्रा पर थे ! शुभ मौके पर सभी से सुखद मेल मुलाकातें हुयीं ! इस भ्रमण की कहानी ... द्रश्यों की जुबानी ..

प्रभु ... तेरा ही सहारा है .. तुझ से मिला जीवन का किनारा है !
भैया .. खाना -खिलाना तो अच्छा है .. पर वर्क आउट बहुत जरुरी  है ..हुंह ! 


 डिप्टी कमिश्नर शशि भूषण सिंह के साथ ... फुर्सत के लम्हे और पुराना साथ .. वह क्या बात  !

MAN IN BLACK ...   

एडिटर और टेक्नीकल एडिटर ..खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे ... दो यार ... !

मैं कहीं रहूँ .. या कहीं भी हूँ ... तेरी याद साथ है  !

ऐ माँ ..तेरी सूरत से बढ़कर .. भगवान् की मूरत क्या होगी ..!

कुटुंब की शान .. आप दो स्त्रियाँ महान !

द्रोण रूपी माता श्री और उनकी अर्जुन रूपी शिष्या का सानिध्य ... 


अरे वो क्या है .. मेरी नज़र का '' मेमना ''लग रहा है .. है ना !

हे बहना ... मैं भूखा हूँ .. भोजन लाओ ...!

एक रास्ता है ज़िन्दगी ... जो थम गए तो कुछ नहीं ..

मैं खुश हूँ ..मेरे आंसुओं पे न जाना .. मैं तो दीवाना ..दीवाना ..दीवाना !
******PRESENTED BY  SINGH SADAN  PHOTO FEATURE  DIVISION 

Sunday, February 19, 2012

सच को हराना झूठ के बस में नहीं ....


मेरे शऊर पे छाना तुम्हारे  बस में नहीं
यकी वफ़ा का दिलाना तुम्हारे बस में नहीं,

माँ की दुआओं  का उजाला है  हर तरफ 
इसे मिटाने की  औकात अँधेरे के बस में नहीं ,

जाकर जहाँ  से कोई  बापस नहीं है आता 
वह कौन सी जगह है यह जानना किसी के बस में नहीं ,

यह बात तल्ख़ सही,फिर भी हकीकत है 
सच को हराना झूठ के बस में नहीं,

उजाड़ देते है पलक झपकते ही सारी बस्तियां 
एक आशियाना बसाना भी जिनके बस में नहीं ,

जो है हिम्मत  तो क्या नहीं प्राप्त कर  ले तू 
ऐसा कुछ भी नहीं जो "सचिन" तेरे बस में नहीं ....

सचिन सिंह 

[मेरे गजल गुरु वसीम बरेलवी और पूज्य पवन चाचा को समर्पित ...!!]

Saturday, February 18, 2012

आधुनिक मतदाता

आज हम बात  करते है मतदाता की कि वह कैसे दिन प्रतिदिन बदलता जा रहा है इसका कारण है शिक्षा का चहु ओर विकास, जैसे जैसे मतदाता शिक्षित होता गया है वैसे उसने अपने अधिकारों का उचित प्रयोग करना सीख लिया है यदि हम अतीत में झांकें तो मतदाता अपने अधिकारों को नहीं पहचानता था वह अपना वोट पार्टी के दवाव में आकर या जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर या फिर प्रत्यासी द्वारा दीये गए लालच में आकर देता था मतदाता सोचता था की मुझे मात्र एक वोट ही तो देना है उसके बदले में मुझे आवास,हेंडपम्प,पेंसन आदि मिल ही जाएँगे क्योकि प्रत्यासी उसे पूर्ण आस्वासन दे चुके है लेकिन मतदाता बेचारा यह नहीं जनता था कि यह एक मात्र आस्वासन ही रह जाएगा हकीकत में नही बदल सकता क्योकि सत्ता में आने के बाद प्रत्यासी मतदाता को ही भूल गया तो अपना वायदा कैसे याद रखेगा, फिर जैसे जैसे शिक्षा का विकास होता गया मतदाता शिक्षित होता गया और प्रत्यासियों की चाल फरेवी को पहचानने लगा, आधुनिक मतदाता एक शिक्षित वर्ग है जो कि अपने मत का महत्व समझता है वह अपना वोट एक ऐसे प्रत्यासी को देना चाहता है जो की ईमानदार,कर्मठ एवं लगनशील एवं अपने भले के वारे में नहीं वल्कि देश के सर्वांगीण विकास के वारे में सोचे, शिक्षित वर्ग प्रत्यासी को अपना वोट धर्म के आधार पर,जाति के आधार पर,ख्याति के आधार पर या लिंग के आधार पर नहीं वल्कि वह उसके व्यक्तित्व एवं चरित्र के आधार पर देता है ,यदि मतदाता के विचार प्रत्यासी से नहीं मिलते है तो वह उसे वोट नही देगा चाहे वह प्रत्यासी उसके परिवार का ही क्यों न हो, इस तरह मतदाता तो बदल रहे है मगर प्रत्यासी उनकी उमीद की कसौटी पर खरा नहीं उतर पा रहे है   


****MANISH KUMAR 

राग दरबार – vol-5

ऊँचे ओहदे दुनियां पीछे |
ऑंखें मीचे  आँखे मीचे ||

पैसे में है सारी ताकत ||
कौन है ऊपर कौन है नीचे ||

फर्क अमीरी और गरीबी |
एक चांदनी एक गलीचे ||

फूटी कौड़ी पास नहीं है |
जीवन काटा मुटठी भीचे ||

अपनी किस्मत में है बंजर |
तुम्हे मुबारक बाग बगीचे ||

Friday, February 17, 2012

नजर न लगे हमारे लेखकों को

बधाई हो  सिंह सदन ब्लॉग की 300 पोस्ट के बाद आंकड़े कुछ यूँ रहे नजर डालिए
      
Presented by -Pushpendra singh "pushp"

Thursday, February 16, 2012

SINGH SADAN BLOG--- A GREAT ACHIEVEMENT...

 300 NOT OUT....

                                                      सिंह सदन ब्लॉग ने आज सफलता के एक नए क्षितिज को छू लिया है !आज ''युवराज'' पर आयी दिलीप कुमार की बेहद आकर्षक कविता के साथ ही सिंह सदन ब्लॉग ने  300 पोस्ट का एतिहासिक आंकड़ा छू लिया !

                                                     सिंह सदन चांसलर श्री पवन कुमार  ने 9 अप्रैल 2010 को  एक विशुद्ध पारिवारिक ब्लॉग के रूप में सिंह सदन ब्लॉग की शुरुआत की थी ! इस होम ब्लॉग को सिंह सदन  के सभी सदस्यों ने हाथों हाथ लिया और लेखन और रचनात्मकता के नए नए प्रतिमान इस होम ब्लॉग ने छू डाले !

                                                     आज यह सम्पूर्ण विश्व में अपने किस्म का अकेला होम ब्लॉग है जिस पर इतनी निरंतरता के साथ लगातार 22 महीनो से काम चल रहा है !बेहतरीन स्ट्राइक रेट के साथ प्रतिदिन अपडेट होने वाले सिंह सदन ब्लॉग ने आज 300 पोस्ट का एतिहासिक आंकड़ा  छू कर वाकई ब्लॉग जगत में हलचल मचा दी है !
                 
                                                       मीडिया ग्रुप्स के ब्लोग्स को छोड़कर आज तक अन्य कोई ब्लॉग  इस तेज़ रफ़्तार से आगे नहीं बढ़ा है ! इस नायाब सफलता पर सिंह सदन में चहुँ ओर हर्ष की लहर दौड़ गयी है !


सिंह सदन होम ब्लॉग के अब तक के लेखक --- 

श्रीमती शीला देवी , श्री पवन कुमार , श्रीमती अंजू सिंह , पंकज के.सिंह , पुष्पेन्द्र सिंह ''पुष्प '', ह्रदेश कुमार सिंह,श्याम कान्त , दिलीप कुमार ,नेहा ''बिटिया '', सचिन सिंह ,अमित कुमार ''चिंटू'', संदीप कुमार , अजित ''जोनी '',टिंकू ,बिट्टू ( टेक्नीकल एडिटर ), प्रिया सिंह 

इस प्रकार अब तक कुल मिलाकर 16 सदस्यों ने अपना सक्रीय सहयोग सिंह सदन होम ब्लॉग को प्रदान किया है ! 

लेखकों का प्रदर्शन ----
    
  • श्रीमती शीला देवी-- 3 
  • श्री पवन कुमार -- 61
  •  श्रीमती अंजू सिंह-- 1  
  • पंकज के.सिंह --- 107
  •  पुष्पेन्द्र सिंह ''पुष्प ''-- 53
  •  ह्रदेश कुमार सिंह--- 31
  • श्याम कान्त---30 
  • दिलीप कुमार---11 
  • नेहा ''बिटिया '' --10
  • सचिन सिंह ---7
  • अमित कुमार ''चिंटू''--2
  •  संदीप कुमार -- 1
  •  अजित ''जोनी ''-- 1
  • टिंकू ------1
  • बिट्टू ( टेक्नीकल एडिटर )-- 1
  •  प्रिया सिंह --- 1



                                                                हमें पूर्ण विश्वास है की लिखने -पढने का यह कारवाँ यूँ ही आगे बढ़ता रहेगा और संस्कृति और सभ्यता के लिए भविष्य में सिंह सदन होम ब्लॉग एक एतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में सदैव के लिए  दर्ज हो जायेगा ! 

****** PANKAJ K. SINGH  




छोटा सा युवराज

एक नन्ही सी जान है तू , 
बहुतों के अरमान है तू , 
ममता की चादर में लिपटा,
सिंह सदन की शान है तू ,
 दुनिया की आपा- धांपी  से 
अभी बिलकुल अनजान है तू ,
आने बाली पीढ़ी की  ,
एक नयी पहचान है तू , 

दादी,बुआ,नाना,नानी
सबका बस अब यही है कहना,
तू  है मेरा  राज  दुलारा  
नित मेरी आँखों में रहना 

उठो युवराज अब आँखें खोलो
एक हमारा हिस्सा है तू     
छोटे से इस प्यारे घर का एक नया मेहमान है तू 

युवराज की आवाज़ से ......


माँ मुझे कपडे पहना दो 
जल्दी मुझे घर जाना है 
कितना सुन्दर है मेरा परिवार
अब मैंने ये जाना है


******दिलीप कुमार   


SINGH SADAN ...HALL OF FAME ! VOLUME --4


                     सिंह सदन की बगिया में छाई बहार ...

लग रही हूँ न मैं ... कूल एंड क्यूट .. वाकई !   
सुनिए ...मैंने कुछ नहीं किया ... मैं तो तैयार हो रही थी ...

मैंने सुना है ऐसी चीज़ों को मुहं में नहीं डालते .. चलो जीभ ही बाहर कर लेते हैं  !

थकान और गर्मी से बुरा हाल है ... चाचा कोल्ड ड्रिंक पिलाओ ना ... जी जरुर ..मेरी डॉल्स

प्लीज़ .. मेरे सामने बहस मत करिए ... मुझे मंदिर जाना है !

डरना जरुरी है ...

फिल्म अच्छी है ...क्या गज़ब की कॉमेडी है !

माँ बदौलत को तंग मत करो ..तखलिया ....

तू कल चला जायेगा तो मैं क्या करूँगा ... तू याद बहुत आएगा तो मैं क्या करूँगा ..

******* PRESENTED BY PANKAJ K. SINGH 


Wednesday, February 15, 2012

उपाम!उपाम!उपाम!

कुछ फोटो देखिये
श्यामकांत

सुनो सुनो सुनो ............!

राग दरबार – vol-4

खुशियाँ मनाओ बधाइयाँ गाओ सिंह सदन में राज दुलारा आया है

आज सुबह एक, ईश्वर का उपहार मिला है |
सिंह सदन में नन्हां सा एक फूल खिला है ||

अब खुशियों से सारा आंगन झूम उठा है |
दादी जी के तप जप का फल आज मिला है |

बाबा की खुशियों का तो  अनुमान नहीं है|
पुलिस की ड्यूटी है, कोई दुकान नहीं है

बड़े ताऊ जी इलेक्शन में  जुटे हुए है  |
घर आने की मन ही मन में चाह लिए है  ||

"अंजू "ताई जी , ममता का सागर है |
घर आने को वे तो बिल्कुल आतुर है ||

छोटे ताऊ की खुशियों का पार नहीं है |
उनके लिए इससे बढ़कर उपहार नहीं है || 

रत्न" ताऊ जी घर का भार संभाले है |
दौड़ रहे है खुशियाँ में मतवाले है ||

श्यामू चाचा की क्या व्यथा तुम्हें बताएं |
ट्रेनिंग की मज़बूरी है वरना आजाएँ ||

बुआ तुम्हारी खुशियों में नाच रहीं है |
चलने को मुहताज है लेकिन दौड़ रहीं है ||

नीलम ताई की अभिलाषा पूर्ण हुई है |
सिंह सदन में खुशियों की बौछार हुई है ||

ह्रदेश प्रिया भी को है सौ सौ बार बधाई |
शेरू को भी जिसने भाई को आवाज लगाई ||

परनानी की खुशियों को महसूस करोगे |
नन्हें हाथों से जब उनके गाल छुओगे ||

जिया पिताजी तो खुशियों में ऐसे दोडे |
सचिन सहित सब सिंघम के है सीने चौड़े ||

इशिका लीची अक्षत के तुम भाई प्यारे |
दिलीप और संदीप के तुम आँखों के तारे ||

नेहा बिटिया चिंटू बिट्टू झूमे गाएँ |
गौरी अंशू निक्की कौशल दौड़े आएँ ||

उषा गीता बाला भारती लें बलाएँ |
बबलू रिंकू रवि सुजाता सब मिलकर त्यौहार मनाएं ||

राकेश विमलेश ज्ञान सिंह जी फूफा आएँ |
कोई ठण्ड में पड़े हुए है कोई बसंत की मौज मनाएं ||

नानी नाना मन ही मन हर्षाये  है |
मौसी मौसा खेल खिलोने लाए है ||


आने जाने वालों के, घर लगे है तांते |
गहरे रंगे है सिंह सदन के रिश्ते नाते ||

हम सब भेज रहे  है आशीर्वाद ये प्यारे |
इतने ऊँचे उठो क़ि छूलो चाँद सितारे ||

Pushp

आ गया है युवराज ................


आ गया है  युवराज ................
सिंह सदन परिवार के मुकुट में एक और नायब हीरा जुड़ गया है
हाँ एक इंतज़ार के बाद युवराज आ गया है
भाई जोनी और भाभी प्रिया ने हमें ये तोहफा  पेश किया है
हर जगह हर्ष उल्लास का माहौल है
अति आनंद दायी दिन है ये हमारे लिए
अब हम उसकी चर्चा कर लें की युवा होने पर  वो किस होगा
नाम -------------------युवराज (बदलाव संभावित )
कद --------------------६"१"इंच
रंग---------------------गोरा
सीना ------ -----------९२ बिना फुलाए
                               १०० फूलने पर
 फिटनेस कोच ------ ताऊ(पंकज सिंह )
                               संदीप सिंह ( भाई )
 वाक्ची विधा (मार्सल आर्ट ) कोच ----पुष्पेन्द्र (पुष्प )ताऊ
प्रसासनिक कोच -----------ताऊ पवन कुमार
मास .कॉम.कोच ---------- हिर्देश कुमार
धार्मिक कोच ------------दादी
रंगबाजी कोच -----------दादा
ब्यवहारिक कोच ------ ताऊ (प्रमोद रत्न )
जासूसी कोच ----------चाचा (श्यामकांत)
वाहन कोच ------------अमित कुमार
आर्ट कोच -------------बिटिया
योग्यता ------------- बी.कॉम
                               सी.ऐ .एवं मास कॉम .
                               फिल्म क्षेत्र से जुड़े
 सेवा ----------------- भारतीय प्रशासनिक सेवा  वर्ष २०३४ -३५
अन्य रचनात्मक योग्यता ---पेंटिंग
                              ----------संगीत
                              --------- गायन
                              ---------फाइटिंग                              
जीवन का नारा ----मै हिन्दू बनूँगा न मुसलमान बनूँगा !
                             सिंह सदन का हिस्सा हूँ इंसान बनूँगा !!
श्यामकांत
बिटटू

AN YUVRAJ BORN....

सिंह सदन को उत्तराधिकारी मिला ...

आज का दिन शानदार है .. सुबह ६ बजे जोनी .. माँ और ताराचंद अंकल के फोन ने जगाया और यह शुभ खबर मिली की सिंह सदन को नया वारिस मिल गया है .. वर्षों की तमन्ना पूरी हो गयी ... सभी खुश है और सभी को बधाई ... और सबसे बढ़कर उस परम पिता परमेश्वर को धन्यवाद की उसने  सिंह सदन को नया वारिस दिया ...

तो आइये जश्न की शुरुआत करते हैं ...

***** PANKAJ K. SINGH

HAPPY VALENTINE ... SINGH SADAN

DEAR  MAA , PAPA ,BHAIYA , BHAABHI ,JONY, SHYAMU, PINTU, PRIYA, ISHI ,LICHI , SHERU , YUVRAJ , NIKKI , DILIP & ALL MY LOVING SISTERS & BROTHERS , MAAMA & MAAMI , NEHA BITIYA & ALL THE SINGH SADAN LOVING MEMBERS..

I REALLY LOVE YOU ALL ..... YOU ARE THE PEOPLE... WHO MADE MY LIFE ...

आप से ही रौशन ये मेरी जिंदगी है ... वर्ना ये दिये कब के बुझ चुके थे .....

आपका दिल से अहसान मंद ...

****** PANKAJ K. SINGH 

Tuesday, February 14, 2012

आंगनबाड़ी

  Vol-3 

बिटिया की गैलरी से ...









स्ट्रेट ड्राइव !

VOLUME -9 
   
एक दुर्लभ एवं महान युग पुरुष - भीष्म  


                       मेरी सार्वाधिक प्रिय पौराणिक कथा है - महाभारत !   महाभारत से अधिक  दिलचस्प स्क्रिप्ट इस दुनिया में न तो कभी बनी है और संभवतः न ही कभी बन पाए ! ऊँचे जीवन मूल्यों की शिक्षा देने वाली ये अमर कहानी भारत वर्ष की गौरव शाली जीवन पद्यति की अमूल्य धरोहर है !

  न भूतो न भविष्यते....
                           वैसे तो महाभारत युग में एक से एक विलक्षण और महान पात्र हुए हैं परन्तु मेरे सर्वकालिक  प्रिय पौराणिक पात्र तो यक़ीनन देवव्रत ही हैं जो समय के एक ही विलक्षण और अभूतपूर्व न भूतो न भविष्यते क्षण में देखते ही देखते भीष्म बन गए ! क्या मनुष्य रूप में एक व्यक्ति गौरव और महानता के ऐसे दुर्लभ शिखर को भी छू सकता है यह अहसास सम्पूर्ण मानव जाति सदैव आश्चर्य से करती रहेगी !          


देवव्रत .....
                        देवव्रत कुरु सम्राट शांतनु और गंगा के आठवें पुत्र थे ! पूर्व जन्म के श्राप के रूप में देवव्रत ने प्रथ्वी लोक पर जन्म लिया था ! माता गंगा के साथ रहते हुए देवव्रत ने उस युग के सार्वाधिक महान गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की !  देवव्रत ने देवताओं के गुरु ब्रहस्पति से राजनीति शास्त्र ऋषि वशिष्ठ से वेद और वेदांग और गुरु परशुराम से शस्त्र शिक्षा प्राप्त की !

भीष्म प्रतिज्ञा .....
                        इस युग में देवव्रत से अधिक नैतिक और शब्दों का धनी व्यक्ति शायद ही कोई पैदा हुआ हो ! अपने पिता कुरु सम्राट शांतनु  की इच्छाओं और सुखों के लिए उन्होंने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की घोषणा की और माता सत्यवती के पिता को संतुष्ट करने के लिए अपना राज सिंहासन भी त्याग दिया !इस भीष्म प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म पड़ गया!


बात को अपनी जान से भी ज्यादा मान दिया....
                                                  बहुत से मोड़ जिंदगी में आये .......जब उन्हें अपनी आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की भीष्म प्रतिज्ञा को तोड़ने  का  दबाव कभी  माता सत्यवती तो कभी गुरु व्यास की और से.... कभी काशी राजकुमारी अम्बा तो कभी स्वयं गुरु परशुराम ने उन्हें अपनी आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की भीष्म प्रतिज्ञा को तोड़ने के लिए कहा..... पर अडिग भीष्म ने अपनी बात को अपनी जान से भी ज्यादा मान दिया.... और कह दिया की....... यदि उनकी प्रतिज्ञा टूटी तो साथ में उनकी साँसे भी टूट जायेंगी !
                                                उनकी माता सत्यवती ने भी  भीष्म  के चरण स्पर्श करने चाहे थे जिसे भीष्म  ने प्रेम पूर्ण आग्रह से स्वयं नकारते हुए उन्हें माता कहा था !


 भीष्म प्रतिज्ञा का मान .......
                                                     अपनी आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की भीष्म प्रतिज्ञा का मान रखने के लिए उन्होंने अपने  गुरु परशुराम से भी युद्ध करना स्वीकार कर लिया ! भीष्म और गुरु परशुराम  के मध्य २३ दिनों तक भीषण युद्ध चला और अंत में गुरु परशुराम ने भी स्वयं उनकी वीरता और आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की भीष्म प्रतिज्ञा का सम्मान किया !


महान शूरवीर ..... 
                           भीष्म  अपने युग के महान शूरवीर  थे ! ज्ञान ,दर्शन, प्रतिभा ,साहस ,संवेदना, नैतिकता, दूर द्रष्टि, कर्त्तव्य परायणता  और महानता जैसे समस्त दुर्लभ गुणों  के एकलौते संगम थे ! उनके वीरता के कितने ही किस्सों से महाभारत की कथा भरी पड़ी है !ऐसे महान युग पुरुष का जन्म जिस देश की धरती पर हुआ हो वहां जन्म लेना भी किसी गौरव से कम नहीं है !


महान राज भक्त .....
                                         अपने पिता कुरु सम्राट शांतनु से इच्छा म्रत्यु का वरदान पाने के बाद उन्होंने तब तक अपना जीवन नहीं त्यागा जब तक उन्होंने यह नहीं देख लिया की अब उनके राज्य हस्तिनापुर की सीमायें पूरी तरह सुरक्षित हैं ! धन्य हैं ऐसे  दुर्लभ महान युग पुरुष ! 

दुर्लभ - महान युग पुरुष ...
                                         भीष्म  के जीवन ने मुझे सदैव बेहद प्रभावित किया है ! ऐसे दुर्लभ महान युग पुरुष  को मैं सादर प्रणाम करता हूँ .....और उनसे आशीर्वाद मांगता हूँ की मुझ पर अपने आशीष की वर्षा करें ....ताकि हम भी अपने इस तुच्छ जीवन को धन्य कर सकें !

****** PANKAJ K. SINGH          

Monday, February 13, 2012

प्रेम प्रार्थना है ....प्रेम मुक्ति है, बंधन नहीं ...
प्रेम सदा बेशर्त होता है....प्रत्येक चीज़ की
शुरुआत प्रेम से ही होती है....प्रेम ही वह चट्टान है
जिस पर हम जीवन की ईमारत खड़ी कर सकते है ..
जीवन प्रेम की कला सीखने का एक स्कूल है.. .
प्रेम ही वह साधन है जिससे हम परमात्मा के समीप
पहुच सकते है...जब दिल में प्रेम होता है तब आप एक
प्रकाश पुंज बन जाते है जिसकी रोशनी में सभी प्रकार के
अँधेरे मिट जाते है  और प्रेम में न सिर्फ आप दिव्य बन जाते है 
बल्कि  वह भी जिससे आप प्रेम करते है ....!!

प्रेम ही है जिसके कारण माँ के गर्भ में एक नन्ही सी जान
नौ माह तक सलामत रहती है...वर्ना आप यदि एक छोटे से
डिब्बे में भी किसी को  कुछ दिनों के लिए
बंद कर दे तो उसकी जान चली जाती है.... प्रेम में  ही
चमत्कार घटित होते है.... जहाँ प्रेम, वहां  परमात्मा !!

तो सिर्फ किसी खास दिन ही प्रेम क्यों ...??
हर पल एक दूसरे से प्रेम करे और जीवन को
एक उत्सव की तरह जिए...!!

[पूज्य गुरू- पवन चाचा जी के पावन चरणों में  समर्पित ...]

सचिन सिंह

Sunday, February 12, 2012

स्ट्रेट ड्राइव !

VOLUME--8

 मधु मुस्कान ...  

याद न जाए ...बीते दिनों की .. !




                  .......बातें जब मनपसंद चीज़ों की हो रही हो ....तो मेरी फेवरेट लिस्ट में  सबसे ऊपर है -कोमिक्स ! .. बचपन से लेकर अब तक कोमिक्स के खुबसूरत संसार में हम सभी डूबे से रहे हैं !

हसीन यादों के सफ़र पर...
                           मधु मुस्कान एक ऐसी कोमिक मैगजीन रही है जिसके हर अंक के साथ मानो हमारा बचपन और रंगीन होता गया ! मधु मुस्कान की हसीन यादों के सफ़र पर चलने के लिए आज ये दिल एक बार फिर बेज़ार हुआ जा रहा है ... तो आइये मेरे साथ ..

सर्कुलेशन एक लाख पार....
                             मधु मुस्कान का प्रकाशन फिल्म पत्रिका मायापुरी के ही प्रकाशन द्वारा शुरू  किया गया था १९७० के दशक में  मधु मुस्कान का सर्कुलेशन एक लाख को भी पार कर गया था ! इसमें कई पात्रों की चित्रकथाएं नियमित रूप से प्रकाशित होती थी !

मधु मुस्कान के लोकप्रिय पात्र ...
                                मधु मुस्कान के लोकप्रिय पात्रों में डैडी जी ,डाकू पान सिंह ,बबलू , पोपट -चौपट,सुस्तराम -चुस्तराम ,भूत नाथ और जादुई तूलिका, फ़िल्मी रिपोर्टर कलम दास,चंद्रू , जासूस चक्रम ,मिनी , आकाश पुत्र शक्तिमान ,मंगलू मदारी और बन्दर बिहारी ने सफलता के नए कीर्तिमान रच दिए !

मधु मुस्कान कोमिक मैगजीन से... मधु मुस्कान कोमिक्स.. 
                                  इनकी सफलता से प्रभावित होकर प्रकाशकों ने इन्ही लोकप्रिय पात्रों को लेकर  मधु मुस्कान कोमिक्स शुरू कर दी !इन्ही प्रकाशकों ने बाद में ''त्रिशूल कोमिक्स'' शुरू कर दी !''गोवेर्संस कोमिक्स'' भी इन्ही प्रकाशकों ने बाद में शुरू की जिसने ''एस्टेरिक्स'' ,फेमस फाइव,लकी ल्युक  जैसे मशहूर विदेशी कोमिक पात्रों को हिंदी में पेश किया ! 

तेज़ी से बदल रहा वक्त ...
                                                            बहरहाल वक्त तेज़ी से बदल रहा था और नए जमाने के तेजी से विकसित होते सूचना तकनीक और मनोरंजन के नए नए उपकरणों के आगे कोमिक्स जैसे माध्यम मुकाबला नहीं कर पा रहे थे ! धीरे धीरे यह सभी प्रकाशन वित्तीय घाटों की वज़ह से बंद हो गए पर ये सारे हर दिल अज़ीज़   लोकप्रिय पात्रों ने हमारे दिलों में एक ऐसी जगह बना रखी है जो रहती दुनिया तक कायम रहेगी ! 

काश.. हम कभी बड़े ही न होते...
                                   काश... हम कभी बड़े ही न होते बच्चे ही बने रहते तो शायद कितना अच्छा होता .बस हम होते और हमारी प्यारी कोमिक्सें होतीं .क्या आप भी मुझसे इत्तफाक रखते हैं ..!  

***** PANKAJ K. SINGH