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Thursday, May 24, 2012

Happy Birthday .......ISHIKA


प्यारी “इशिका” के जन्म दिवस पर “अक्षत“
पंकज चाचा ,पिंटू ,जोनी श्यामू ,प्रमोद ताऊ जी, दादी ,बाबा ,रिंकू प्रिया चाची, नीलम चाची, दिलीप, संदीप ,गौरी निक्की अंशू कौशल अदिती, शेरा ,देवव्रत, बिटिया , बिट्टू  सभी की तरफ से
बहुत बहुत ..............................बधाइयाँ |

“हो वर्ष हजारों आयु तुम्हारी
हैप्पी बर्थडे इशिका प्यारी “
प्यारी इशिका तुम्हारे लिए 

हर सुबह फूलों से सजी हो
खुशियों से हर शाम
इन्द्रधनुष के रंगों से  
लिखा हो “इशिका” नाम |     

नींद के झूले तुम्हें झुलाने 
घर आयें परियों की रानी
तुम्हे दुलारें
चाचा, दादा, दादी, नानी |      

हर ख्वाहिश पूरी हो
उम्मीदों से पहले  
इस जग में हर ओर
कीर्ति तुम्हारी फैले |           

पुष्पेन्द्र "पुष्प" 

Wednesday, May 23, 2012

माता श्री की कलम से ........



              जतन बिन मिरगन खेत  उजारो , 


जतन बिन मिरगन खेत उजारो , 
पांच मृग पच्चीस मिरगनी , तामें एक रखवारो !

अपने अपने रस के भोगी , चुग रहे न्यारे न्यारे !
 जतन बिन मिरगन खेत  उजारो !

टारे तरे मरें नहीं मारें, बिद्रत नहीं बिडारें !
हो हो करत बालि लै भागे ,

मुहं बाये रखबारो !
जतन बिन मिरगन खेत  उजारो !

                                                      उक्त कविता कबीर दास की है जिसे मैंने अपने  स्वयं के जीवन में चरितार्थ महसूस कर रही हूँ ! मैं स्वयं को नयी पीढ़ी के मुल्यरहित और संस्कार रहित होने से निराश महसूस कर रही हूँ ! आश  यही है  कि  शायद कल और बेहतर हो ! मेरे देखते -देखते दुनिया बहुत बदल गयी है  ! इस बदली दुनिया ने तरक्की तो बहुत की है पर शांति और सत्संग कहीं नज़र नहीं आता ! अपनी संतानों से यही आशा है की वे मूल्यों ,संस्कारों , शांति और सत्संग की राह पर आगे बढ़ेंगे और अपने जीवन को सही मायनों में सार्थक बनायेंगे  !                                                 

****** शीला देवी 


Monday, May 21, 2012

हर दिल की आवाज..............“वाबस्ता ”


"वाबस्ता" को मैंने पढ़ा कई बार पढ़ा जब भी पढता हूँ कुछ नया मिल जाता है हर एक शेर पर दाद निकलती है और दिल करता है जनाब पवन सहब के वो हाथ चूम लूँ जिनसे इतने गहरे शेर मखमली  अंदाज में लिखे गए है | हर शेर लफ्जों  से गुजर कर जहन में समा जाता है और रोम रोम पुलकित हो उठता है फिर दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाता है की क्या ऐसा भी करिश्माई कोई लिख सकता है | बाबस्ता को पढ़ने से पूर्व मैंने कई दिग्गज शयरों को पढ़ा मगर वो रूहानी अहसास बो जिंदादिली कहीं नजर नहीं आयी | मै ऐसा इस लिए नहीं कह रहा कि महान शायर जनाब ”पवन कुमार” जी मेरे बड़े भाई है अपितु मैंने उनको यहाँ सिर्फ और सिर्फ एक लेखक के तौर प्रस्तुत किया है |
और मै ये बात पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि वे देश के चुनिन्दा शयरों में से एक है| 
"बशीर बद्र" साहब का शेर जनाब "पवन" साहब पर चरितार्थ होता है ......
"हम भी दरिया है हमें अपना हुनर मालूम है 
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा " 
बाकई  वे दरिया ही नहीं अथाह गहरा सागर है
जो खुद तो शांत रहते है पर उनके कारनामे बोलते है। 
वे जितने अच्छे शायर है उतने ही विख्यात प्रशासक भी है उनकी प्रतिभाएं असीमित है ।
और चलते चलते बाबस्ता की  नज्र चन्द शेर ......

"वाबस्ता” हर रोज नया अहसास है |
कितनी बार पढ़ी है लेकिन बाकी अब तक प्यास है ||

वाबस्ता” या जादूगरनी हर एक शेर छलावा है |
इसको पढ़ के कुछ भी पढ़ना, पढ़ना एक दिखावा है ||

वाबस्ता” की बाबस्तगी यूँ सर चढ़ कर बोल उठी |
हर एक “शेर” तराशा हीरा, हर एक “नज्म” है खोज नयी ||

वाबस्ता” का पी कर प्याला |
हमने महाग्रंथ पढ़ डाला || 

"वाबस्ता" के हीरे-पन्ने चमक रहे बाजारों में |
पुस्तक पुस्तक चर्चा इसका किस्से है अख़बारों में ||

पुष्पेन्द्र "पुष्प"  

Saturday, May 19, 2012

एक नई कविता की खोज

एक नई कविता की खोज
हर दिन हर पल
तुम्हें समर्पित
नदिया सागर पवन घटाएँ
जुगनू हो या तितली,पंक्षी
हरियाली या पेड़ की ओट
बातों में हालातों में
सावन की बरसातों में
दूर निकल जाता हूँ
अक्सर यादों के बाजारों में
सूरज चाँद सितारे देखे
इंसानों में शैतानों  में
राहों में चौबारों में
फूलों की खुशबु हो या
भंवरों की गुन गुन
हाथों की चूड़ी हो या
पायल की छन छन
ईश्वर तेरे घर में खोजा
होली दिवाली या हो रोजा
सहरा की भी छान के मिटटी
घर को थक कर आता रोज
एक नई कविता की खोज
पुष्पेन्द्र "पुष्प" 

Friday, May 18, 2012

SINGH SADAN SUPRIMO'S NOIDA VISIT ....


माता श्री का नॉएडा आगमन 

माता श्री का नॉएडा आगमन बेहद शानदार रहा है !उनके आने से जैसे सारा नज़ारा ही बदल गया है ,, सब तरफ हर्ष और उल्लास का वातावरण है ! मिलने जुलने के लिए लोगों की भारी आवा - जाही जारी है ! दिलीप , चिंटू , जे के , अशोक , मंशा राम आदि सभी प्रसन्न हैं ! 
                            नीचे के कुछ चित्र सिंह सदन के नॉएडा एक्सटेंसन का दिलचस्प नज़ारा पेश कर रहे हैं तो आप भी इनका मज़ा लीजिये .....   
-------पंकज के .सिंह ( संपादक )
















****** PRESENTED BY PANKAJ K. SINGH 

Wednesday, May 16, 2012

WHS vol - 1

 what happened series




                                      साथियों आज से होम ब्लॉग की दिग्गज जोड़ी जिसमें स्वयं सम्पादक पंकज सिंह और उपसम्पादक दिलीप कुमार शामिल हैं के द्वारा एक नई रोचक श्रंखला शुरू की जा रही है 
                                          इस दिलचस्प श्रंखला को ( what happened series ) का नाम दिया गया, इस श्रंखला में कुछ चित्रों के द्वारा पूरे घटनाक्रम का एक ऐसा तानाबना बुना जाएगा जिससे आप रोमांचित हो उठेंगे! 
                                        ....... उम्मीद है कि आपको  PD स्पेशल नई श्रंखला वेहद पसंद आएगी,
                                                 ......... तो लीजिये पेश है ... 
WHS  vol - 1 
                                     नीचे प्रकाशित 5 चित्रों को देखिये और बताइये कि आखिर क्या हो गया कि  हवा बदल गई , माहौल पलट गया और आसमान धरती पर आ गया .......... 
(1)

(2)

(3)

(4)

(5)
****** PD SPECIAL PRESENTATION 

Tuesday, May 15, 2012

माता श्री की कलम से ..........

 मदर्स डे स्पेशल 



                                                              ब्लॉग पर उपस्थित सभी सदस्यों को मेरा प्यार, आज मदर्स डे के उपलक्ष में में अपने विचार  व्यक्त कर रही हूँ,
                                                                आज में अपने इस लेख से सभी माओं को ये सन्देश देना चाहती हूँ की जीवन बहुत अनमोल है , हमें अपने जीवन में धैर्य रखना चाहिए और समय के महत्व को समझना चाहिए, आज चार सुपुत्रों की माँ बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है !
                                                                  मेरा बड़े    - पवन सिंह (डीएम चदौली) है , मेरा दुसरे  बेटे  पंकज सिंह (डिप्टी कमिशनर ) है !मेरा तीसरे  बेटे  ह्रदेश सिंह (हिन्दुस्तान पेपर के व्यूरो चीफ) है
!

बेटे


 और मेरा सबसे छोटे बेटे  श्याम  कान्त   सिंह (डिप्टी एस पी  मुरादाबाद) है और में गर्व से कह सकती हूँ की मेरे बेटों जैसा कोई नहीं ,में अपने जिगर के टुकड़ों को बहुत प्यार करती हूँ , सारी दुनिया का सुख में अपने बेटों में देखती हूँ , सच बात तो ये है की मेरे चारों बेटों ने माँ के महत्व को समझा है , उन्होंने हमेशा मेरा ध्यान रखा है , मेरे सुख और सम्मान का हमेशा  ख्याल रखा है , मेरे प्यारे सुपुत्रों मैं  तुम्हारे लिए  ईश्वर से ये दुआ करती हूँ , की दुनिया भर के सुख तुम्हारे  हिस्से में आ जाएँ , कोई परेशानी तुम्हारी तरफ नजर उठाकर भी न देखे , तुम्हारा हर कदम उन्नती  के पथ पर हो , मेरे सभी बेटों को मेरा बहुत बहुत प्यार , अंत में में देश की सभी माताओं से यह कहना चाहती हूँ की अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि वे जीवन और समय के महत्व को समझ सकें, !

****** MRS. SHEELA DEVI 

Monday, May 14, 2012

महफ़िल में संदीप सिंह......!

महफ़िल की इस श्रृंखला में आज हाज़िर हैं सिंह सदन के युवा सदस्य संदीप सिंह......! संदीप यूँ तो बहुत ही मेहनतकश इंसान हैं. उन्होंने बीते पांच सालों में अपनी मेहनत और परिवार के प्रति जिम्मेदारी निभाकर अपने होने का एहसास दिलाया  है. उनकी सबसे ख़ास बात यह है कि वे हरेक काम को बड़ी मेहनत और ईमानदारी से करते हैं.....! उनके संगीत प्रेम की बात चली तो उन्होंने बताया कि वे अपने मामा यानी श्यामकांत से काफी प्रभावित हैं..... वे यह भी कहते हैं कि चूँकि हम दोनों की उम्र में बहुत  अंतर नहीं है सो हमारी आपस में  बहुत पटती है. उनके संगीत प्रेम में भी इसी बात की गवाही मिलती है....... संदीप ने अपने प्रिय गीत को अपने मामा श्यामू को ही समर्पित किया है.....!
संदीप को कालजयी फिल्म शोले का गीत "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" बहुत पसंद है....शोले 15 अगस्त 1975में रिलीज़ हुयी थी. शुरुआत में इस फिल्म को ठंडा रेस्पोंस मिला था मगर एक हफ्ते के बाद इस फिल्म की लोकप्रियता ऐसी हुयी कि यह फिल्म हिंदी सिनेमा में एक मील का पत्थर साबित  हुयी. संदीप के इस पसंदीदा गीत को किशोर कुमार और मन्ना डे ने गया था जबकि संगीत था आर डी बर्मन का. यह गीत 1976 की सिबाका संगीत माला में नवें पायदान पर रहा था.  
"इस गीत में मैं खुद को वीरू और श्यामू मामा को जय महसूस करता हूँ" - संदीप
वे बताते हैं कि जब भी हम दोनों (श्यामू और वे) साथ होते हैं तो यही गीत गाते हैं. बता दें कि यह गीत अमिताभ और धर्मेन्द्र पर फिल्माया गया था.... वीरू और जय की यह जोड़ी आज भी हर जुबां पर है..... ! सिंह सदन की जय वीरू की इस जोड़ी को सलाम करते हुए हाज़िर है यह गीत---
                       

राग दरबार –vol-10

मात्र दिवस विशेषांक 

तू है जन्नत इस धरती पर माँ

जब मैं आया इस दुनियां में
तुने दिया सहारा
स्वागत में तूने पलकें बिछाई
थामा हाथ हमारा
आंचल से तेरे पी कर अमृत
स्वाद को जाना माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

रातों की तेरी नींद उजाड़ी
तूने कभी न सिकवा किया
जब भी चाहा जो भी चाहा
तूने हमें दिया
तेरी ममता पर बलिहारी
दुनियां के सब सुख माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया
हर एक चीज का बोध कराया
रोना तो इश्वर से लाया
हंसना लेकिन तूने सिखाया
तू ही गुरु, तू भाग्य विधाता
तू है ईश्वर  इस धरती पर माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

इस अनमोल त्याग के बदले
कुछ न तेरी चाहत है
बस देना सीखा है तूने  
देख के दिल ये आहत है
तू है प्यार दया का सागर
तेरे कर्ज चुकाना पाऊँ माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

तेरी करुणा, का कोई पार नहीं है
तुझसा कुछ भी और नहीं है
खुद तो भूखी रह लेती है
बच्चों को रोटी देती है
तेरे आगे, हर रिश्ता छोटा
तू है सबसे - सबसे बढ़कर मेरी माँ
तू है जन्नत इस धरती की माँ |

पुष्पेन्द्र "पुष्प" 

मुरादाबाद स्थित पुलिस ट्रेनिंग एकेडेमी में.....

एक दिन श्यामू के साथ 

इस रविवार को अपने प्रिय श्यामू से मिलने हम लोग पहुँच गए उनके मुरादाबाद स्थित पुलिस ट्रेनिंग एकेडेमी में ! मेरे साथ माता श्री के अलावा चिंटू और हमारे सहयोगी गुड्डू भी थे ! एक दिन के इस छोटे से मिलन में सभी को बेहद ख़ुशी मिली !प्रिय श्यामू  ने हमें  मुरादाबाद स्थित पुलिस ट्रेनिंग एकेडेमी का एक एक कोना दिखा डाला और यहाँ के रूटीन और वातावरण से भी अवगत कराया यहाँ का वातावरण बेहद अनुशाषित दिखा और युवा अधिकारी खासे  परिश्रमी दिखे !लौटते समय अहसास हुआ की हमारा प्यारा बच्चा श्यामू अब एक समज्ग्दार और संवेदनशील युवक हो गया है उसे प्यार कर नाम आँखों के साथ हम विदा हुए !आप भी एक नज़र डालिए मुरादाबाद स्थित पुलिस ट्रेनिंग एकेडेमी के रंग ढंग पर ---














***** PRESENTED BY PANKAJ K. SINGH

Friday, May 4, 2012

महफ़िल......!


हफ़िल की इस कड़ी में आज स्वागत कीजिये हृदेश  जी का...... हृदेश जी को संगीत की समझ काफी गहरी है. पत्रकारिता के दौरान  वे कई इन्टरनेट चैनलों के लिए भी  संगीत समीक्षा करते रहे हैं. उनका संगीत प्रेम सिंह सदन के अन्य  सदस्यों की पसंद से काफी भिन्न है. वे संगीत की सूफियाना धारा से ताल्लुक रखते है. रहस्यवादी (मिस्टिक ) संगीत को वे काफी पसंद करते हैं. क्लासिकल संगीत में भी उनकी रूचि है. उनके पसंदीदा गायक सुखविंदर, नुसरत फ़तेह अली खान, वडाली बन्धु, कैलाश खेर, रेखा भारद्वाज, उस्ताद सुलतान खान और राहत फ़तेह अली खान हैं. उनकी पसंद की बात करें तो वो नुसरत  फ़तेह अली खान का वो गीत है जिसके बोल हैं " तू इक गोरख धंधा है.....,    ". यानी खुदा तुम एक पहेली हो......!  यह गीत रहस्यवाद की परतें खोलता है. यह गीत नाज़ ख्यालवी (1947-2010)  ने लिखा है. यूँ तो नाज़ ख्यालवी एक रेडियो ब्रोडकास्टर थे मगर इस एक गीत को नुसरत ने कुछ इस तरह गाया कि नाज़ ख्यालवी दुनिया भर में लोकप्रिय हो गए.......  गीतकार ने लिखा है कि ----

हर ज़ुल्म की तौफीक है ज़ालिम की विरासत
मजबूर के हिस्से में तसल्ली न दिलासा
कल ताज सजा देखा था जिस शख्स के सर पर
है आज उसी के हाथों में ही कासा 
ये क्या है अगर पूछूं तो कहते हो जवाबन
इस राज़ से हो सकता नहीं कोई 
.............तुम ही अपना पर्दा हो
.............तुम इक गोरखधंदा हो. 
*** कासा (भिक्षा पात्र) 
     शनासा ( समबन्धित) 
"खुदा को महसूस करना है तो इस गीत को ज़रूर सुनें...."

नुसरत ने इसे जिस तरह गया है उससे साबित होता है की दुनिया में उनसे बड़ा और महान कव्वाल कोई नही..... आइये डूबिये -इतराइए नुसरत के सुरों में  और महसूस करिए खुदा के रंग! आईये सुनते हैं इस गीत को जिसमें ख़ुदा के अस्तित्व की पहचान को नए रंगों में रंग   गया है......! 

Wednesday, May 2, 2012

समस्या हल ----18


प्रिय मित्रों ....
इस बेमिसाल चित्र को ध्यान से देखिये ... क्यों हैरत में पड गए ना .. वाकई समझ में नहीं आ रहा की आखिर ऐसा क्या है इस दरख्वास्त में की उसे देखकर यह दिग्गज जोड़ी भी अवाक रह गयी है ... तो जरा दिमाग पर जोर डालिए और बताइए की आखिर क्या छुपा है इस पत्र में .. बेहतरीन जवाबों को पुरस्कृत किया जायेगा ! 






****** PRESENTED BY  SINGH SADAN  KNOWLEDGE COMMISSION 

तेरे आने की जब खबर महके....!

नॉएडा से जब चंदौली चला था तो इस शहर की तस्वीर बहुत साफ़ नहीं थी ......! मगर नयी चुनौतियों से घबराना कभी मेरे मिजाज़ का हिस्सा नहीं रहा, सो यहाँ  एकदम नवीन और अपरिचित परिस्थितयां  होने के बावजूद मुझे चंदौली में कुछ कर गुजरने का हौसला मिलता रहा. 

अकेलेपन से कहीं बोर न हो जाऊं इसलिए साथ में बोबी लाला नोयडा से  मेरे साथ ही यहाँ आये थे . शुरूआती दो तीन दिन गेस्ट हॉउस में गुज़ारने  के बाद हम अपने बंगले में शिफ्ट हो गए . जब चंदौली आया तो लगा कि बहुत दूर आ गया हूँ, यह भी लगा कि दूरी के कारण अब घर के लोग यहाँ शायद ही आयेंगे ..... मगर इस भरम को टूटने में बहुत वक्त नहीं लगा. महज दो सप्ताह के इस अंतराल में ही बदायूं से मित्र कौशल नीरज का आगमन हुआ, फ़िलहाल चुनार में तैनात राजकुमार भाईसाहब भी एक दिन रुक कर गए......  बालसखा संजीव गोयल भी इलाहबाद से आये और एक रविवार खर्च कर वापस हुए. इन सबके साथ बड़ा अच्छा वक्त गुज़रा. 

सबसे आनन्द  तो तब आया जब तीन दिन पहले नोयडा से पंकज यहाँ आये और उनके साथ पिंटू भी कानपुर से चले आये . इन दोनों के साथ तीन चार दिन कब फुर्र हो गए पता ही नहीं चला..... कमी तो तब खली जब पिंटू  को रेलवे स्टेशन  पर और पंकज को एयर पोर्ट से विदा करके लौटा. वाकई अच्छे पल कितनी जल्दी गुज़र जाते हैं..... पंकज और पिंटू के साथ देर रात तक गप-शप करना, तमाम पहलुओं पर कभी गंभीर तो कभी  मजाकिया लहजे में बात करने का अपना ही मज़ा होता है. उनके वापस जाने के बाद शिद्दत से उन्हें मिस कर रहा हूँ. उनके साथ बिताये पलों को अब तक याद कर रहा हूँ.  



अभी तक अंजू ईशी लीची नहीं आये हैं.... इस सप्ताह वो भी आ जायेंगे.....! आगे उम्मीद करूँगा कि सिंह सदन के सभी सदस्य गाहे बगाहे यहाँ आते रहें और अपने प्यार की शम्मा से इस घर को जगमगाते रहें....!

***** PK