...आने से उनके आये बहार...
वे ठीक अपने नाम की तरह हैं .... वे आशा और विश्वास की प्रतीक हैं .... '' सिंह सदन '' में '' नवोदय '' की किरण वे ही लेकर आयीं .... वे और कोई नहीं ..... हमारी प्रिय बड़ी बहन ... श्रीमती उषा जी हैं !
उषा दी की '' खूबियों '' की बड़ी लम्बी फेहरिस्त है ! वे ''सिंह सदन'' की महिलाओं की वास्तविक ''रोल मॉडल'' हैं ! १९७० में जन्मी ...उषा दी की पढाई - लिखाई में बचपन से ही बेहद रूचि थी ! वे ही ''सिंह सदन'' की '' प्रथम महिला '' हैं .... जिन्होंने '' सरकारी सेवा '' में प्रवेश किया ! एक '' शिक्षिका '' के रूप में उन्होंने सरकारी सेवा में बहुत उत्कृष्ट कार्य किया है !
वे वाकई शानदार हैं ! उन्होंने एक स्त्री के रूप में कई भूमिकाओं को जिया है .... और हर भूमिका के साथ न्याय किया है ! वे जहाँ एक बेहतरीन माँ हैं वहीँ एक संवेदन शील बहन भी हैं ... वे जीजा श्री राकेश चंद के लिए एक आदर्श अर्धांगिनी हैं ... और घर परिवार का बढ़िया संचालन करने वाली एक हुनरमंद सुघड़ स्त्री भी हैं ... मानो इतनी खूबियाँ भी कम पड़ रहीं थी... सो वे एक कर्मठ कर्तव्यनिष्ठ काम काजी महिला भी बन गयीं ! उन्होंने ही ''सिंह सदन'' परिवार की महिलाओं को शिक्षा और रोज़गार की ''नयी रौशनी'' से परिचित कराया !
उषा दी की जीवन चर्या स्वयं उनके अनथक कर्मठ जीवन का प्रमाण है ! वे प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में सुबह ४ बजे उठती हैं .....स्वयं पूरे घर की साफ़- सफाई करती हैं... भोजन तैयार करती हैं... और सभी परिजनों को खिलाकर विद्यालय के लिए रवाना होती हैं ! उनका विद्यालय घर से ३० किलो मीटर दूर है... और बस द्वारा वे प्रतिदिन सरकारी विद्यालय जाती हैं ! सम्प्रति वे इसी विद्यालय में '' प्राचार्य '' के पद पर कार्यरत हैं ! शाम को विद्यालय से वापस आने के बाद वे पुन: घर- द्वार में मगन हो जाती हैं !
...मेरा मानना है .. उषा दी एक ''कर्मयोगी '' सरीखी हैं ! मैंने आज तक अपने जीवन में कभी भी उषा दी को ''विश्राम'' की मुद्रा में नहीं देखा ! मुझे तो वे वे हर समय पूरे उत्साह और भरपूर ऊर्जा के साथ किसी न किसी ''रचनात्मक'' कार्य में संलग्न ही मिली हैं !
.... पारिवारिक समारोहों और त्योहारों में तो वे अपनी पूरी लय में होती हैं ! उनका हर अंदाज़ देखने लायक होता है ! ''पाक कला'' में तो वे सिद्धस्त हैं ही... इन ख़ास अवसरों पर उनके बनाये व्यंजन लाजवाब होते हैं ! लगभग सभी मिठाइयाँ वे स्वयं बना लेती हैं ! उनकी बनाई हुयी बर्फी ... रसगुल्ले ... गुझिया ...एस्से ... कई किस्म के पापड़ ...दही- बड़े.. कचौड़ियाँ... खिचड़ी तो पूरे '' सिंह सदन '' में बहुत मशहूर है ! हम सभी भाई उनके बनाये इन ख़ास व्यंजनों के दीवाने हैं ! जब भी हम ''नगला रते'' स्थित उनके घर पर जाते हैं ... तो इधर हमारी गाडी उनके दरवाज़े पर रुकी ..और उधर उनकी कढ़ाई चूल्हे पर चढ़ी ...... बस फिर तो हम लोग बैठक में बतियाते रहते हैं ....... उनकी आवाजें ...प्रतिक्रियाएं रसोई से ही आती रहती हैं... और भांति भांति के पकवान हमारे पेशे नज़र होते रहते हैं !
उषा दी एक बेहद सह्रदय... एवं ममत्व से समृद्ध स्त्री हैं ! वे हम सभी भाइयों को बहुत प्रेम करती हैं ...हमारा बड़ा ख्याल रखती हैं ! हमारी खुशियों और सफलताओं के लिए वे सदैव दुआ करती हैं !
उषा दी के पास एक और जबरदस्त हुनर है..... उनका गायन और संगीत ! वे एक प्रभावशाली गायिका हैं ! हर ख़ास अवसर के लिए उनके '' म्युज़िक बैंक '' में ढेरों गीत होते हैं ... इनमे से कुछ की रचना भी उन्होंने ही की है ! उन्हें सिंह सदन की ''शमशाद बेगम'' होने का ख़िताब प्राप्त है ! उनके गीत ''हाई नोट्स'' वाले होते हैं ...और वे बहुत ''ऊँची पिच'' पर गाने वाली गायिका हैं ! उनके गीतों से ही कार्यक्रमों में माहौल बनता है !
उषा दी वास्तव में ''सिंह सदन'' की शान हैं ! उनका दुनियावी ज्ञान बहुत परिष्कृत है ...और पर्यटन की भी वे बड़ी शौक़ीन हैं ! वे किसी भी मौके और मंच से असहज नहीं होती ! उनमे नैसर्गिक आत्मविश्वास है... और हर स्तर के वातावरण में वे आसानी से घुल मिल जाती हैं ! वे बड़ों का बहुत मान सम्मान करती हैं ...और छोटों में बहुत प्रिय हैं ! वे कर्मठ भी हैं... और गंभीर सोच रखने वाली दूरदर्शी एवं समझदार स्त्री भी हैं ! ''सिंह सदन'' में ''नयी रौशनी'' लाने वाली ... उषा दी को हमारा सादर नमन ! !
* * * * * PANKAJ K. SINGH
3 comments:
पंकज.......भाई
तुम्हारी लेखनी ने फिर एक अद्भुत शख्सियत पर अद्भुत लेख लिखा है......उषा दीदी पर पोस्ट वैसे तो बहुत पहले आ जानी चाहिए थी......मगर देर से ही सही अब जो लेख आया है वो अविस्मर्णीय और अन्पैरेलल है...........हैरान इस बात पर हूँ कि तुमने जरा से लेख में उस विराट विभूति पर कितनी खूबसूरती से सारे आयामों को समेत दिया है.........! लेखक और लेखन दोनों का दिल से आभार........!
PK
सार्थक आलेख।
shandaaar
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