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Tuesday, June 22, 2010

यशस्वी भवः पवन ........

मेरे प्यारे बच्चों, मैं अपनी भावनाओ के द्वारा आप लोगों की प्रतिभा के लिए कुछ शब्द लिख रहीं हूँ । मेरे चार बेटे हैंचारों बेटे प्रखर बुद्धि के धनी हैं । मैं कौशल्या तो नहीं हूँ पर अपने बेटों में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन जैसा रूप और गुण देखती हूँ


मेरे बड़े बेटे पवन कुमार हैं , जिनमे श्री राम जैसी मर्यादा है तो कृष्ण जैसी कर्म करने कि
क्षमता है और विवेकानंद जैसे विवेकशील पुरुष हैंपवन ने मुझे बहुत ही सुख दिए हैंउनके बारे में जितना लिखा जाए उतना कम हैलिखते - लिखते कलम छोटी पड़ जाएगी पर उनकी प्रतिभाओं का मैं उल्लेख नहीं कर पाऊँगीउन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में कई नौकरियों से RESIGN दियायथा मिलिटरी CDS , कानपूर खाद फेक्ट्री में मेनेजर पद , आगरा LIC से मेनेजर पद , वकालत , लेखाधिकारी PCS , डिप्टी SP और SDMवर्तमान में वे IAS हैं


लेखाधिकारी के पद को ज्वाइन करने के बाद, जब वे पहली बार छुट्टी पर आये थे, तो मैं सोचती थी कि मेरा बेटा मेरी आँखों के सामने से हटेलेकिन इनको कई मित्रों से मिलना थाये बोले कि माँ मै अभी अपने मित्र से मिलकर आता हूँइनको काफी समय लग गया , मेरे अन्दर घबराहट होने लगीमै सोचने लगी कि इनको इतनी देर कैसे लगीइतने में ही पवन वापस गए और बोले माँ मै गयामै गुस्से में बोली कि मै तुमसे नहीं बोलतीपवन ने मुझे पकड़कर अपने पास बिठा लिया और बोले ये बताओ आज कौन सा दिन है , मैंने कहा इतवारपवन बोले नो माँ ! आज सनडे है । मै बोली इसमें क्या अंतर है ? माँ सन माने क्या होता है ? मै बोली पुत्र होता हैफिर क्या था पवन हंस पड़े और बोले आज तुम्हारे बेटे का ही तो दिन हैआज भी जब इस बात को याद करती हूँ तो लगता है कि मुझे किसी ने गुदगुदा दिया हो



एक बार मैं उनके पास गयी थी , अचानक मेरे दांत में दर्द होने लगाचार बजे जब पवन ऑफिस से आये तो बहू बोलीं कि माँ को जल्दी डॉक्टर के पास ले जाइये और ये मुझे लेकर डॉक्टर के पास पहुंचेइतने में इनके पास फ़ोनआया कि - "सर मीटिंग शुरू हो चुकी है, आप कितनी देर में पहुँच रहे हैं ?" मैं बोली बेटा तुम मीटिंग छोडके मुझे क्यों दिखाने आये ? ये तपाक से बोले माँ, ये मीटिंगे तो जब तक मैं नौकरी करूँगा चलती रहेंगी पर तुम्हारे दर्द से बड़ी कोई मीटिंग होगीवो शब्द मेरी आत्मा को छू गएऔर मेरी आँखों से खुशी के मोती टपक गएमेरी आत्मा से ये ही आवाज निकली कि बेटे तेरी ऊचाईयों के लिए आसमां भी छोटा पड़ जायेगा



अभी चार साल पहले मैं जीने से गिर गयी, मेरे पैर में फ्रेक्चर हो गयामेरे बचने के चांस कम थेजैसे ही इन्हें खबर मिली ये मेरे पास गएडॉक्टर ने ओपरेशन बता दियामुझे तो होश ही नहीं था, और किसी का भी खून मैच नहीं कर रहा थापवन ने तीन बोतल खून दियाजब मुझे होश आया तो मैंने कहा कि मुझे मर जाने देते, तुमने इतना खून क्यों निकलवायामेरे पवन मुस्कुरा कर बोले माँ इस शरीर में सारा खून तो तुम्हारा ही है, मैंने थोडा सा दे दिया तो क्या हुआ ? उनके इन शब्दों के लिए मेरे सारे आशीर्वाद मुझे छोटे लग रहे थेमै रुंधे हुए गले से इतना ही कह पाई कि बेटा तुमने मेरे दूध का क़र्ज़ अदा कर दिया



पिछली साल मंसूरी अकेडमी में सभी चयनित IAS के आखरी प्रोग्राम्स हुए तो, पवन मुझे मंसूरी ले गएसभी के अभिभावक आये हुए थे । जब हमारे पवन को गोल्ड मेडल और प्रमाण पत्र मिला तो उन्होंने वो गोल्ड मेडल मेरे गले में डाल दिया और वहीँ मेरे पैर छुए और कहा कि माँ ये सब तुम्हारे ही आशीर्वाद का फल हैमुझे उस वक़्त जो सुख हुआउसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती केवल दुआएं दे सकती हूँ कि मेरे बच्चे तुम सदैव अच्छे काम करते रहो , उंचाइयां तुम्हारे कदम चूमें


मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है

यशस्वी
भवः .................

तुम्हारी
माँ शीला देवी


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7 comments:

शिवम् मिश्रा said...

आंटी को प्रणाम ! पावन भाई को बहुत बहुत शुभकामनाएं !

pankaj said...

अंततः माता श्री की भी लेखनी चल ही गयी ... सुन्दर एवं सटीक वर्णन ! आपकी संतानों पर यह दायित्व है कि वे आपके कष्टों ,त्याग और बलिदान का मोल चुकाएं ... यद्यपि माँ के एहसानों और दूध का क़र्ज़ कोई नहीं चुका सकता ... पर उन्हें हमसे दुःख और निराशा न हो ..इतना धर्म तो निभाना ही होगा .. अन्यथा हम मनुष्यता के लिए भारी शर्मिंदगी का कारण बन जायेंगे ... और इतिहास .. आने वाली नस्लें हम पर हसेंगी

VOICE OF MAINPURI said...

ekdam stik likha.

ShyamKant said...

कितना सुन्दर लिखा है ................
यथा बड़े भाई की कोई भी बराबरी नहीं कर सकता है ........
वो महान हैं .......जोरदार हैं............गजब हैं ...........अतुलनीय हैं.............
वो हमारे बड़े भाई हैं ये हमारे लिए किसी हीरे .....मोती....... प्लेटीनम.........
कांसा........जस्ता.......से कम नहीं ............
माँ तुमने भी क्या खूब लिखा .................

Pushpendra Singh "Pushp" said...

जिजी
वहुत ही सुन्दर लिखा आपने सरे पॉइंट इतने सटीक है की सभी पर
आंसू निकल पड़े दिल भर आया |
मन और आत्मा दोनों ही तृप्त हो गए बड़े भैया के बारे में क्या कहूँ
वे तो मेरे आराध्य है में उनमे कृष्ण को देखता हूँ |
वे अवतारी पुरुष है.............. और धन्य है आप ये सौभग्य आपको प्राप्त हुआ है
भैया और आप को सत सत नमन .................

Neha (Bitiya) said...

आंटी जी मै तो आपके पास कितने समय से हूँ ........
मै जानती हूँ की आप बहुत अच्छा लिखती हो ;;;;;;;
बड़े भाई के लिए ये पोस्ट शानदार है /////////////
आप दोनों ही मेरे लिए आदर्श हैं..............

SINGHSADAN said...

"माँ की इनायतें रहीं ता उम्र इस कदर,
मैं तीरगी से जब भी डरा नूर हो गया.....!!"
और
" कभी दर्जी कभी आया कभी हाकिम बनी है माँ,
नहीं है उज्र उसको कोई भी किरदार जीने में !!"

ये दोनों शेर मेरी ग़ज़ल के कत'ए हैं....बस एक बहाव आया और एक झटके में ये शेर लिख गए....अब लगता है कि यह शेर ऐसे ही नहीं लिख गए......!
मम्मी का साया बचपन से महसूस किया है मैंने...आज भी उतनी ही शिद्दत से महसूस करता हूँ....! मेरे लिए आदर्श हैं वे....न्योछावर यह जान है उनके लिए.....!
बहुत रिश्ते ऐसे भी होते जो अलफ़ाज़ पीछे छोड़ देते हैं.....मेरा और मम्मी का रिश्ता भी कमोबेश वैसा ही है.....!
जावेद साहब का शेर बरबस ही ध्यान आ गया....
"मुझको यकीं है जो कहती थीं सच ही अम्मी कहती थीं
वो मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियां रहती थीं "

*****पकु