Tuesday, December 25, 2012
Friday, December 21, 2012
SINGH SADAN HALL OF FAME ...
VOLUME--- 31
SINGH SADAN ROCKS......
......सिंह सदन ने बीती 14 दिसंबर को अपनी दो प्यारी प्यारी गुडिया ...... लीची और श्रेया का बर्थ डे सेलिब्रेट किया ... 500 से ज्यादा मेहमानों के साथ कार्यक्रम परवान चढ़ा ..गीत संगीत हुआ ... बेहतरीन डिनर हुआ और खूब सारा खेल कूद और मस्ती ... तो आप भी मज़ा लीजिये उन खूबसूरत लम्हों का ... इन बोलती तस्वीरों की जुबानी ...
शानदार लज़ीज़ केक |
केक नंबर -2 |
आओ झूमें गायें .... |
मिलके धूम -2 मचाएं ... |
मुझे देखने दो ... |
I M PRINCESS.. |
THE ONE & ONLY ... PRINCESS SHREYA |
दीपों सा जगमग हो इनका जीवन ... |
HAVE A HUGE ROUND OF APPLAUSE ... |
HAVE A BITE SWEET HEART ... |
EDITORIAL ...
SINGH SADAN ... STARTS ROCKING .... |
मित्रों .......
काफी समय बाद आपसे मुखातिब हो रहा हूँ .. इधर व्यस्तताओं के कारण आपसे बातें न हो सकीं इसलिए माफ़ी चाहता हूँ .. अन्य सदस्यों से भी आवाहन करता हूँ की वो भी ब्लॉग पर सक्रिय हो जाएँ ... कुछ रचनाधर्मिता आवश्यक है .. जिन सदस्यों को जो कोलम्स दिए गए थे बेहतर होगा की वे तत्काल उस पर काम शुरू कर दे .. ब्लॉग की श्रेष्ठता और लोकप्रियता बनाये रखने के लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है !
मैं आज से प्रतिदिन अपने सम्पादकीय और कोलम के साथ स्वयं आपकी सेवा में उपस्थित होऊंगा ऐसा मेरा संकल्प है .. यह शरद ऋतु आपको और नयी प्रसन्नता और बौधिक सम्रद्धि दे ऐसी मेरी प्रभु से प्रार्थना है .. आपका अपना ......
पंकज के . सिंह
( संपादक )
Wednesday, December 12, 2012
शिष्टाचार
सिंह सदन से शीला देवी लिखती हैं कि शिष्टाचार का महत्व क्या है!
शिष्टाचार मनुष्यता की सबसे बड़ी पहचान है। मनुष्य को मनुष्य की तरह ही रहना ही शोभा देता है। परमात्मा ने मनुष्य को विशेष रूप से बुद्धि विवेक का बल दिया है ताकि वह अपनी जड़ता का परिष्कार करके सुन्दर एवं सभ्य बन सकें। शिष्टाचार जीवन का वह दर्पण है जिसमे हमारे व्यक्तित्व का स्वरुप दिखाई देता है। इसके माध्यम से ही मनुष्य का प्रथम परिचय समाप्त होता है। अच्छा हो या बुरा इसका दूसरों पर कैसा प्रभाव पड़ता है यह हमारे व्यव्हार पर निर्भर करता है। जो हम दूसरों से करते हैं वह व्यव्हार की रीति है, जिसमे व्यक्ति स्वयं समाज की आंतरिक सभ्यता एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं। परस्पर बातचीत से लेकर दूसरों की सेवा, त्याग, सम्मान , भावनाएं आदि तक शिष्टाचार में आ जाते हैं। शिष्टाचार व्यवहार का नैतिक मापदंड है। जिस पर सभ्यता एवं संस्कृति का भवन निर्माण होता है। एक दूसरे के प्रति सद्भावना सुहानुभूति सहयोग आदि शिष्टाचार के मूल आधार हैं। इन मूल भावनाओं से प्रेरित होकर दूसरों के प्रति नर्म, विनयशील, उदार आचरण ही शिष्टाचार है।
शिष्टाचार का क्षेत्र उतना ही व्यापक है जितना हमारे जीवन व्यवहार का समाज में! जहाँ - जहाँ भी हमारा दूसरे व्यक्तिओं से संपर्क होता है वहां शिष्टाचार की जरूरत की जरूरत पड़ती है। घर में छोटे से लेकर बड़े सदस्यों के साथ सभी जगह हमें शिष्टाचार की आवश्यकता पड़ती है। आज कल समाज में अशिष्टता की व्यापक रूप से वृद्धि होती जा रही है। जोकि हमारे देश और समाज के लिए एक अभिशाप। आज समाज और परिवारों में व्यक्ति एक दूसरे के प्रति सम्मान आदि का कोई ध्यान नहीं रखता। अधिकाँश व्यक्ति अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर दूसरों के साथ मनमाना व्यवहार करते हैं। जो कि अशिष्टता की श्रेणी में आता है। अशिष्ट आचरण लोगों में सहज ही देखा जा सकता है। गुरुजनों तथा परिवार में वृद्धिजनों का सम्मान आदर करने और पैर छूने की परम्पराएँ समाप्त होती जा रही हैं। आज के शिक्षित और सभ्य कहे जाने वाले लोग इसमें अपना अपमान समझते हैं। भौतिकता की चकाचौंध में स्वयं को आधुनिक कहलाने वाली पीढ़ी में यह सब देखने को मिल जाता है। यदि प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चों में तथा स्वयं में शिष्टाचार लायें और शिष्टाचार के महत्व को समझे तो निश्चित रूप से समाज एवं परिवार का निर्माण हो सकेगा।
Tuesday, September 4, 2012
Wednesday, August 15, 2012
चंदौली में स्वतंत्रता दिवस !
66 वें स्वतंत्रता दिवस पर जिलाधिकारी के रूप में चंदौली कलेक्ट्रेट में ध्वजारोहण करने का अवसर मिला. इस अवसर पर जिलाधिकारी आवास पर रात में रोशनी की गयी और दिन में विचार विनिमय और सेनानियों के साथ समय गुजरने का अवसर मिला. चंदौली जिला स्वतंत्रता संग्राम में इसलिए जाना जाता है कि इस जिले के एक कस्बे धानापुर में कुछ दिनों के लिए स्वतंत्र सरकार स्थापित हुयी थी जिसके एवज में कई लोगों को तत्कालीन अंग्रेजी बर्बरता का शिकार होना पड़ा था.
*****PK
Monday, August 6, 2012
दोहे ................!
नजरों से नजरें मिलीं गढा प्रेम का गीत |
कोटि जन्म जब पुण्य हों, मिलता मनका मीत ||
जिन पाया इस स्वाद को स्वाद न जाना कोई ||
हंसी ठिठोली दिल्लगी करते हों जब लोग |
समझो दस्तक दे रहा दिल पर प्यार का रोग ||
माया बड़ी न जग बड़ा सबसे बढ़ कर प्यार |
इसके डूबे पार है, बाकी सब मजधार ||
पिया गए परदेश को नैना है अभिराम |
जोगन बाट निहारती सुबह से लेकर शाम ||
जुल्फों में काली घटा दिल मे है तूफान |
खुशबु में जिसकी मदहोशी क्या है उसका नाम ||
सर ऊपर आकाश है आँखों में पाताल |
अधरों पर है मयकशी लट उलझी बेहाल ||
प्रेम प्याला जिन पिया पीवत होवत ज्ञान |
मिट जाता मन का तिमिर, दूर होत अभिमान ||
प्रेमपत्र पढ़ कर हुआ हम को यह अहसास |
इससे बढ़कर जगत में और नहीं कुछ खास ||
प्रेम सुधा बरसात है भीगत मानुष, संत |
प्रेम का ना प्रारब्ध है नहीं है कोई अंत ||
प्रेम का रस तो एक है, अलग अलग है रूप |
प्रेम राग पर थिरकते, बड़े बड़े सुर भूप ||
अपने हित को त्याग कर, जब ले निर्णय कोई |
गलती की सम्भावना रह जाती नहिं कोई ||
पुष्पेन्द्र “पुष्प”
Thursday, August 2, 2012
बधाई.....!
रक्षा बंधन की सिंह सदन के सदस्यों को बहुत बहुत शुभकामनाये. आज बहुत याद आ रही है उषा दी, गीता दी, भारती और सभी बहनों की जो रक्षा बंधन पर कलाई पर राखी बांधती थीं . सरकारी व्यस्तताओं के चलते अब मिलना जुलना कम हो गया है.... मगर स्नेह और प्यार की डोरी अभी भी उतनी ही मज़बूत है. आज भी गीता दी का प्यार, उषा दी की रंगीन मिठाईयां याद आती हैं.
रक्षा बंधन की सबको बहुत बहुत प्यार, बधाई.....!
Tuesday, July 31, 2012
हाथ आपका काँधे पर ........
महसूस हमेशा होता है
इसीलिए ये जर-जर मन
हर बारिश तूफान सहता है
तुम हो शक्ति पुंज सूरज का
मै अंधकार का कतरा हूँ
ऊँगली पकड के बड़ा हुआ हूँ
साये में अब जीता हूँ
आपके अहसानों का अमृत
सर से बहता रहता है
हाथ आपका काँधे पर
महसूस हमेशा होता है
जब भी गिरा कहीं धरती पर
तुमने आकार थामा हाथ
नाम तुम्हारा लेने भर से
बन जाती है बिगड़ी बात
सदा आप है साथ हमारे
दिल ये कहता रहता है
हाथ आपका काँधे पर
महसूस हमेशा होता है |
Monday, July 30, 2012
Wednesday, July 25, 2012
Monday, July 23, 2012
राग दरबार vol-13
पुरवा आवत देखि के अकुलावें जे खेत |
जैसे रेगिस्तान में पवन उड़ावे रेत ||पछुआ है मनभावनी मन मीठा कर जाय |
फसलें सब लहला उठें शीतलता पहुंचाय ||
चढ बसंत की बेल पर फूल सभी खिल जाय |
ज्यों त्योहारी मिलन से दिल से दिल मिल जाय ||
ग्रीष्म ऋतु मायूस सी हाथ पैर झुलसाय |
झिलमिल करती धूप में चित्त नहीं टिक पाय ||
रिमझिम बरसे मेघ रस धरती को नहलाय |
स्वाति नक्षत्र की बूंद पी पपीहा प्यास बुझाय ||
धनवानों की शरद ऋतु निर्धन की है ग्रीष्म |
करते सब है प्रतिज्ञा बना न कोई भीष्म ||
ऋतुओं में ऋतुराज है निर्मल ऋतु बसंत |
मानुष मौज मानत है ध्यान लगावत संत ||
पुष्पेन्द्र “पुष्प”
Sunday, July 22, 2012
नया ठिकाना
प्रियजनों.....
अमिताभ बच्चन के "टंबलर" पर जाने के बाद मैंने उनका नया ठिकाने को तलाशा.... वाकई अच्छा ठिकाना है....! मैंने भी इस पर नया अकाउंट बनाकर अपनी तस्वीरें लगा कर एक प्रयोग किया है ज़रा गौर फरमाएं.
******PK
Friday, July 20, 2012
राग दरबार vol-12
रिश्तों में दरार आयी
रिश्तों में दरार आयी
याद वो दिन जब हाथ मिले थे
तुम भी खुश थे हम भी खुश
फिर लुलाकात का दौर चला
घर आना जाना शुरू हुआ
तुम अलग लगे कुछ खास लगे
विश्वास के पालन हार लगे
सब कुछ कितना मनभावन था
फिर दिलों के प्यार की छाँव
तले
खुशियों में रिश्ते फूले
फले
कुछ वक्त की एसी हवा चली
एक दूजे से उम्मीद बढी
फिर तेरा मेरा शुरू हुआ
लालच सर चढ कर बोल उठा
एक दूजे की कमियां दिखने
लगीं
पैसे का काला रंग दिखा
नजरों से नजरें दूर हुई
उम्मीदें टूट के बिखर गयी
अब वो भी नजर नही आते
हम खुद भी वक्त नहीं पाते
खुशियों की फसल है मुरझाई
रिश्तों में दरार आयी |
पुष्पेन्द्र “पुष्प”
Saturday, June 16, 2012
राग दरबार vol-11
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन
जहाँ मानवता का त्रास न हो
किसी राम को फिर वनवास न हो
हो दिव्य जहाँ का वातावरण
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |
हर दिल में प्यार की ज्योति जले
भंवरे मुस्काएं फूल खिले
हर आंगन में किलकारी हो
महफूज जहाँ की नारी हो
जहाँ आखें हों दिल दर्पण
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |
जहाँ समता का अधिकार मिले
हर दिल में प्यार ही प्यार पले
फूलों से सजी हर डाली हो
कोयल कूके मतवाली हो
पपीहा छेड़े मीठी सरगम
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |
छल दम्भ का कोई नाम न हो
बस सच के सिवा कोई काम न हो
जहाँ जाति धर्म का बैर न हो
कोई अपना कोई गैर न हो
दिल निर्मल हो मन अति पावन
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |
पुष्पेन्द्र “पुष्प”
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