हमने जब ब्लॉग की शुरुआत की थी तो यह भी प्रावधान रखा था कि इस ब्लॉग में उन लोगों पर भी लिखा जायेगा जो सिंह सदन से बहुत आत्मीय रूप से जुड़े रहे हैं...! इस फेहरिस्त में कई नाम हो सकते हैं.....मगर इस श्रृंखला की शुरुआत हम ऐसे शख्स से कर रहे हैं जो सिंह सदन के प्रति अपनी आस्था और बेपनाह मुहब्बत के लिए जाना जाता है.....! उनकी पहचान यह है कि उनके जीवन के लगभग चालीस साल उम्मीद के सहारे कट गए हैं कि आने वाला कल बहुत सुहाना होगा....वैसे उम्मीद की भी ये इंतिहा है और खासकर तब जब कि अच्छे कल के लिए आप कोई प्रयास भी न करना चाह रहे हों....! "अजगर करै न चाकरी" के सिद्धांत में जीने वाले इस शख्स का नाम है- सुभाष.
सुभाष से हमारे घर का रिश्ता आज से लगभग बीस सालों से है......1992 में जब हम लोग राजा बाग़ में ही शर्मा जी के मकान में किराए पर रह रहे थे तो उसी मकान में गोयल परिवार व कुछ कोलेज के छात्र रहा करते थे जो चित्रगुप्त डिग्री कोलेज से ग्रेजुएसन कर रहे थे .....उनमे से एक 'अरविन्द' भी थे , सुभाष उन्ही से मिलने वहां आया करते थे. सुभाष उसे अपना जिगरी दोस्त मानते थे, और इस हद तक दोस्त पर न्योछावर थे कि उसका खाना बनाना- कपडे धोना -कमरा साफ़ करना जैसे काम भी कर डालते थे......हम सब सुभाष की इस आदत पर हैरान रहते थे कि कोई आदमी अपने दोस्त पर इस हद तक कुर्बान कैसे रह सकता है......बहरहाल अरविन्द तो दो साल के बाद अपने घर एटा चला गया....इधर सुभाष से हमारे सम्बन्ध बनते चले गए.......साल दर साल मजबूत होते चले गए.....!
सुभाष का पैत्रिक गाँव कपूरपुर है जो मैनपुरी- आगरा मार्ग पर 10 किमी आगे है....अपने तीन भाईओं में वे सबसे बड़े हैं.....उनके दोनों छोटे तो अपने हिसाब से कम खा रहे हैं....मगर सुभाष अभी भी बेरोजगार हैं, मगर बेहतर 'कल की आस' के ख्वाब आँखों में सजाये हैं. दरअसल सुभाष ने अपनी प्रारंभिक पढ़ी क्रिश्चियन कोलेज में की.....बाद में उनका सेलेक्सन पोलिटेक्निक लखनऊ में हो गया जहाँ से उन्होंने सिविल इंजीनियर होने का ख्वाब पाल लिया.....महज एक साल डिप्लोमा करने के बाद उनकी तबियत ऐसी ख़राब हुयी कि वे वापस पोलिटेक्निक लखनऊ नहीं जा पाए......इंजिनीयर बनने का सपना टूट गया....! सुभाष आज भी उन पलों को याद करते हैं.....इंजीनियर बनने की निराशा उनके अन्दर इतनी घर कर गयी है की उनका मन कहीं किसी काम में नहीं लगता ......मैंने उनकी नौकरी कई जगह लगवाई मगर अपनी आदत से मजबूर सुभाष ज्यादा देर कहीं टिक न सके....! आज भी वे सुखद कल का सपना संजोये हुए हैं......!
सुभाष को सिंह सदन के किसी भी कार्यक्रम में पूरे जोश-खरोश के साथ देखा जा सकता है......सीधेपन और अपने निश्चल व्यवहार के कारण वे सिंह सदन के सारे सदस्यों के प्यारे हैं.......!
उनकी कुछ विशेषताएं भी हैं........अपनी जवानी में ही वे भरे पूरे 'डोकर' की शक्ल अख्तियार कर चुके हैं.......बात करते समय उनकी मुखाकृतियाँ पल- पल बदलती हैं......उनकी बातों का मज़ा उनकी भाव -भंगिमाओं के साथ लिया जा सकता है.......अपने अनुभवों का खज़ाना उनके पास है.....हर स्थिति का अनुभव उनके पास है. चलते फिरते "जातक कथाओं" के संकलन हैं वे....! हिंदी फिल्म संगीत के वे अच्छे खासे जानकार हैं. '80 के दशक के संगीत के बेहद शौक़ीन हैं........धर्मेन्द्र की फिल्मों के दीवाने हैं....अमिताभ और राजेश खन्ना भी उनके पसंदीदा कलाकार हैं.......रफ़ी साहब के गीतों को बहुत ही तरन्नुम से गाते उन्हें देखा सुना जा सकता है.....!
श्यामू के साथ आजकल उनकी सांगत खूब जम रही है......अजब भी श्यामू कहीं बहार जाते हैं तो सुभाष को साथ ले जाना नहीं भूलते. अगर सुभाष साथ रहें तो मुश्किल से मुश्किल सफ़र भी आसन दिखता है......!
निश्चल मन और पवित्र ह्रदय वाले सुभाष को सिंह सदन के समस्त सदस्यों की तरफ से शुभकामनाएं......इश्वर करे की उनका कल "सुखद" हो......!
सुभाष से हमारे घर का रिश्ता आज से लगभग बीस सालों से है......1992 में जब हम लोग राजा बाग़ में ही शर्मा जी के मकान में किराए पर रह रहे थे तो उसी मकान में गोयल परिवार व कुछ कोलेज के छात्र रहा करते थे जो चित्रगुप्त डिग्री कोलेज से ग्रेजुएसन कर रहे थे .....उनमे से एक 'अरविन्द' भी थे , सुभाष उन्ही से मिलने वहां आया करते थे. सुभाष उसे अपना जिगरी दोस्त मानते थे, और इस हद तक दोस्त पर न्योछावर थे कि उसका खाना बनाना- कपडे धोना -कमरा साफ़ करना जैसे काम भी कर डालते थे......हम सब सुभाष की इस आदत पर हैरान रहते थे कि कोई आदमी अपने दोस्त पर इस हद तक कुर्बान कैसे रह सकता है......बहरहाल अरविन्द तो दो साल के बाद अपने घर एटा चला गया....इधर सुभाष से हमारे सम्बन्ध बनते चले गए.......साल दर साल मजबूत होते चले गए.....!
सुभाष का पैत्रिक गाँव कपूरपुर है जो मैनपुरी- आगरा मार्ग पर 10 किमी आगे है....अपने तीन भाईओं में वे सबसे बड़े हैं.....उनके दोनों छोटे तो अपने हिसाब से कम खा रहे हैं....मगर सुभाष अभी भी बेरोजगार हैं, मगर बेहतर 'कल की आस' के ख्वाब आँखों में सजाये हैं. दरअसल सुभाष ने अपनी प्रारंभिक पढ़ी क्रिश्चियन कोलेज में की.....बाद में उनका सेलेक्सन पोलिटेक्निक लखनऊ में हो गया जहाँ से उन्होंने सिविल इंजीनियर होने का ख्वाब पाल लिया.....महज एक साल डिप्लोमा करने के बाद उनकी तबियत ऐसी ख़राब हुयी कि वे वापस पोलिटेक्निक लखनऊ नहीं जा पाए......इंजिनीयर बनने का सपना टूट गया....! सुभाष आज भी उन पलों को याद करते हैं.....इंजीनियर बनने की निराशा उनके अन्दर इतनी घर कर गयी है की उनका मन कहीं किसी काम में नहीं लगता ......मैंने उनकी नौकरी कई जगह लगवाई मगर अपनी आदत से मजबूर सुभाष ज्यादा देर कहीं टिक न सके....! आज भी वे सुखद कल का सपना संजोये हुए हैं......!
सुभाष को सिंह सदन के किसी भी कार्यक्रम में पूरे जोश-खरोश के साथ देखा जा सकता है......सीधेपन और अपने निश्चल व्यवहार के कारण वे सिंह सदन के सारे सदस्यों के प्यारे हैं.......!
उनकी कुछ विशेषताएं भी हैं........अपनी जवानी में ही वे भरे पूरे 'डोकर' की शक्ल अख्तियार कर चुके हैं.......बात करते समय उनकी मुखाकृतियाँ पल- पल बदलती हैं......उनकी बातों का मज़ा उनकी भाव -भंगिमाओं के साथ लिया जा सकता है.......अपने अनुभवों का खज़ाना उनके पास है.....हर स्थिति का अनुभव उनके पास है. चलते फिरते "जातक कथाओं" के संकलन हैं वे....! हिंदी फिल्म संगीत के वे अच्छे खासे जानकार हैं. '80 के दशक के संगीत के बेहद शौक़ीन हैं........धर्मेन्द्र की फिल्मों के दीवाने हैं....अमिताभ और राजेश खन्ना भी उनके पसंदीदा कलाकार हैं.......रफ़ी साहब के गीतों को बहुत ही तरन्नुम से गाते उन्हें देखा सुना जा सकता है.....!
श्यामू के साथ आजकल उनकी सांगत खूब जम रही है......अजब भी श्यामू कहीं बहार जाते हैं तो सुभाष को साथ ले जाना नहीं भूलते. अगर सुभाष साथ रहें तो मुश्किल से मुश्किल सफ़र भी आसन दिखता है......!
निश्चल मन और पवित्र ह्रदय वाले सुभाष को सिंह सदन के समस्त सदस्यों की तरफ से शुभकामनाएं......इश्वर करे की उनका कल "सुखद" हो......!
******PK
5 comments:
shandaar likha bhaiya aapne.
subhash bhaiya singhsadan ke bahut karib hain ye to main janti thi par kaise hain, ye aaj pata chala.
meri or se bhi unko kaamyab bhavishya ki shubh kamnayen.
this is really a much awaited post. this was suppose to do by shyamu.. but bhaiya wrote beautifully about a well known well wisher of singh sadan . now shyamu.. come on.. write some thing about subhash's ''DARSHAN''& LIFE STYLE and also his great body language in your own style .
thanks to bhaiya for a sweet writing.
सुभाष पर लिखी पोस्ट पोस्ट बहुत जानदार है मज़ा आ गया ............
पर ये बताइए की ये हैं कहाँ ........
कहीं आपके यहाँ तो नहीं पहुच गए ?
भइया सुभाष के बारे में पढ़ कर मजा आया
मेरा प्रणाम स्वीकारें ................
मजा आगया भैया...सुभाष आपने मैं एक ही कॉपी है....जिसके बाद प्रकाशन ही बंद कर दिया गया..सिंह सदन के हिमायती को सलाम.
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