वक़्त से बढकर भी क्या कोई हो पाया है ,
रेत पकड़ने से भी हासिल क्या होगा !
दिल के दरवाजे पर तो पड़ा हुआ ताला है ,
रोज इबादत से भी हासिल क्या होगा !
दौलत की गठरी से भारी ये ज़मीर है ,
गद्दारी करने से हासिल क्या होगा !
इधर बेरुखी है तो उधर भी छाई खामोशी ,
ईमान बदलने से भी हासिल क्या होगा !
छोटा सा दिल है वो भी वीरान पडा है ,
दुनिया पा लेने से हासिल क्या होगा !
करीब खुदा के यही फकीरी तो लाई है ,
ग़ुरबत से लड़कर भी हासिल क्या होगा !
दुश्मन से भी ज्यादा खौफ़ सताता जिसका ,
ऐसी यारी से भी हासिल क्या होगा !
वक़्त की बेरहमी ने असर दिखाया है ,
अब नीम हकीमों से भी हासिल क्या होगा !
रोज़ टूटते हैं हर पल आंसू देते हैं ,
ख्वाब संजोने से भी हासिल क्या होगा !
अपने कर्मों से छुटकारा नामुमकिन है ,
छुरा घोंपने से भी हासिल क्या होगा !
अपने साए से भी कब पीछा छूटा है ,
रिश्ते ठुकराने से हासिल क्या होगा !
वक़्त से पहले नहीं यहाँ कुछ भी मिलता है ,
पैर पटकने से भी हासिल क्या होगा !
जिधर भी जाऊं एक खौफ़ सा छा जाता है ,
ऐसी शोहरत से भी हासिल क्या होगा !
सिक्कों जैसी चमक बसी उनकी आँखों में ,
दीवानेपन से भी हासिल क्या होगा !
आँचल में न दूध बचा है आँखों में न पानी ,
ऐसी औरत से भी हासिल क्या होगा ! !
* * * * * PANKAJ K. SINGH
5 comments:
बेहद सटीक अभिव्यक्ति...........आभार !
वह ! भैया .........
बेहतरीन लिखा आपने
"हासिल क्या होगा " रचना जीवन की वास्तविकता से रूबरू कराती है ......
हमें समर्पित करना आपकी महानता है !!!!!!
धन्यवाद
अजीमो शान शहंशाह के चरित्र में इतनी विविधता हैं कि ऐसा लगता है कि वे सिंह सदन में सर्वाधिक प्रेरणादायी हस्ती हैं .......
अपनी उपस्थिति ब्लॉग पर यूँ ही बनायें रखें आपकी महान कृपा होगी ...........
धन्यवाद !!!!!!
अद्भुत कविता.....सचमुच कविता जीवन दर्शन से ओत प्रोत है......! चूँकि यह कविता मैं पहले पढ़ चूका हूँ मगर कविता दुबारा पढने पर नया एहसास दे गयी.....!
*****पकु
करीब खुदा के यही फकीरी तो लाई है ,
ग़ुरबत से लड़कर भी हासिल क्या होगा
इतना अगर समझ लें तो सब कुछ हासिल हो जाएगा...सुंदर और दिल से लिखा.
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