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Saturday, November 13, 2010

साप्ताहिक कॉलम


दिल की बातें .. दिल ही जाने
दिल से...
...आज एक लम्बे अरसे के बाद ब्लॉग पर अपने प्रियजनों का हाल जाना ! यूँ तो सभी से बात -मुलाकात होती ही रहती है पर ब्लॉग पर पढने से एक अलग किस्म की आत्मीयता और खुशी महसूस होती है ! पिछले तीन महीनो में हम सभी भाइयों की अलग- अलग व्यस्तताओं की वज़ह से ब्लॉग पर लेखन एकदम से रुक सा गया था ! ब्लॉग पर लिखना - पढना एक उम्दा एहसास है जिसे हम सदैव जारी रखना चाहते हैं ! होम ब्लॉग को शुरू हुए सात माह का समय भी सफलता पूर्वक पूरा हो गया है ...हाँ यह अवश्य है कि स्ट्राइक रेट विगत तीन माह में ३० पोस्ट प्रतिमाह के शानदार औसत से गिर कर २१ पोस्ट प्रति माह पर आ खड़ा हुआ है ! बहरहाल यह चिंता का बड़ा विषय नहीं है ...आशा है कि सिंह सदन के दिग्गज लेखक शीघ्र ही कुछ बेहतरीन रचनाएँ पेश करेंगे !

अत्त दीपो भव:

वैसे मुझे सिंह सदन की यूथ ब्रिगेड से वाकई निराशा हुयी है.. नए खून से मुझे कुछ शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी जिससे हम वरिष्ठों के कंधे कुछ हल्के होते और सिंह सदन के गौरव में अविवृद्धी होती ! खैर भाग्य से अधिक किसी को कुछ मिलता नहीं है ! कठोर समय ही व्यक्ति का सही इम्तहान लेता है ! निष्काम कर्म ही हमारी थाती है परिणाम हमारी सामर्थ्य में नहीं है ! जीवन बहुत छोटा है ...कीमती है ! इस दिवाली विशेष रूप से प्रिय शम्मी से मिलना और बात करना चाहता था ...पर संयोग ही ना बन सका!

प्रिय श्यामू ध्यान रखो ..मृत्यु शास्वत है ..निष्काम योगी अपने दोषरहित आचरण के कारण सदैव स्मरणीय होते हैं ! वे ही सही मायनों में जीवन को जीते और जीवनोंपरांत अमरत्व को प्राप्त होते हैं ...अतः पूर्ण आनंद के साथ कर्म करो और जीवन में कभी उन्हें कष्ट मत पहुँचाओ जो तुम्हे स्नेह करते हैं ! मिथ्या आचरण ,भ्रष्ट वार्तालाप, दोषारोपण कायरों के अस्त्र होते हैं ! गुजरा हुआ एक भी क्षण लौट कर नहीं आ सकता और आत्मा से बढ़ कर कोई आइना नहीं होता ! व्यक्ति के हर भाग्य और दुर्भाग्य का उत्तरदायी सिर्फ और सिर्फ वही व्यक्ति होता है ! दुर्भाग्य भी एक प्रकार का वरदान ही है ..क्योंकि इससे संचित कर्मो का प्रायश्चित होता है जो जाने- अनजाने हमसे होते ही रहते हैं! इस छोटी सी जिंदगी को क्या हमें मिथ्या आचरण, दोषारोपण में गंवाना है या कुछ रचनात्मक- सकारात्मक करना है ...इसका फैसला हमें ही करना है ... और सही विकल्प भी बस एक ही है !

आप सभी का जीवन दीपों की तरह उज्जवल और प्रकाशवान हो.. यही मेरी प्रार्थना है !!

***** PANKAJ K. SINGH

Monday, November 8, 2010

खुशियों के दीप जल उठे.....!!!!

दीपावली का त्योहार......... यानी -पटाखे -खील-बतासे का त्योहार.......!


इस त्योहार को मैनपुरी अपने घर पर मनाने का अपना एक अलग ही अनुभव होता है ,लेकिन सरकारी मजबूरियॉ जब आड़े आ जाती हैं तो यह त्योहार घर पर नहीं मना पाते हैं। इस दीपावली पर भी ऐसा ही हुआ, दीपावली की रात बदायूं में ही रहे, मगर दीपावली का अगले दिन हम बदायूं से मैंनपुरी चले गए, मैनपुरी जाने का उत्साह दिला-दिमाग पर इस कदर हावी था कि दीपावली की देर रात्रि तक जगने के बावजूद हम सुबह 5.00 बजे ही बदायूं से मैनपुरी चल दिए. तीन घण्टे की यात्रा के बाद मैंनपुरी पहुँचते ही हम पर ‘‘ सिह - सदन‘‘ वाला रंग चढ़ गया.




दस बजे मैंनपुरी पहुँचने के बाद हम सब अर्थात इशी -लीची -प्रिंसी- अंजू- पंकज-मम्मी- प्रिया-जोनी के साथ के साथ बैठे, खूब जमकर खील-मिठाई खाई गई. इसके बाद मैं अपने दोस्तों से मिलने-बैंठने निकल गया. मित्रों में विक्रान्त-गोयल -नन्दू से मिलना -बैठना हमेशा की तरह मजेदार रहा .


सांय हम लोग प्रिया के घर और जोनी की ससुराल में ‘ डिनर‘ पर आमंत्रित थे, सो वहॉ जमकर दिवाली के व्यंजनों का स्वाद लिया गया . देर रात्रि जब प्रिया के पापा बाबू ताराचंद जी के घर से लौटे तो सीधे गाड़ियों का रूख नगला रते की ओर किया गया जहॉ फौजी राकेश चन्द्र "जीजा" हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे , ऊषा दीदी और राकेश जीजा के घर जाकर दीपावली का जश्न मनाना और और उनके घर पर बैठकर स्वादिष्ट मिठाईयों को जमकर खाने का आनन्द ही कुछ और था, पंकज ने और हमने यहॉ देशी-घरेलू मिठाईयों का जायका लिया तो अंजू ने दही- बड़े का स्वाद लिया . रात्रि में फिर एक बार यार दोस्तों के साथ दीवाली का माहौल बना.....देर तक हम लोग दीवाली मानते रहे.

अगले दिन मेदेपुर जाने का कार्यक्रम था। सुबह से ही हर्षोल्लास का माहौल था...... वज़ह स्पष्ट थी मेदेपुर भ्रमण कार्यक्रम हमेशा ही बहुत मजेदार होता है....इस बार तो ये कार्यक्रम और भी मजेदार होने की उम्मीद थी क्योंकि पिंटू, रिंकू,भारती, बाला अपने अपने परिवारों के साथ एक दिन पहले ही गाँव पहुँच गए थे......मैनपुरी से राकेश जीजा, उषा दीदी, गीता दीदी, राजेश प्रकाश जी ........ कानपुर से दामोदर भाई, मेरठ से मलखान सिंह परिवार भी पहुँच रहे थे. गाँव में लवली मामा, प्रमोद भैया, डॉ रमण , अम्मा, वैद्य जी और बड़े के साथ साथ भाभियाँ-मामियां तो पहले से ही हमारी आगवानी के लिए तैयार बैठे थे.......! जब हम नियत समय 11 बजे गाँव पहुंचे तो न केवल परिजनों बल्कि ग्रामवासियों में भी अपूर्व उत्साह था. मैं ,पंकज, अंजू, जोनी, मम्मी और सभी छोटे-बड़े बच्चे जब हम गाँव पहुंचे तो यहाँ हमारे घर पर उत्सव जैसा माहौल था.........! अम्मा दौड़ दौड़ कर अपनी बहुओं को आवश्यक निर्देश दे रही थीं कि क्या खाना बनना है..... क्या तैयारी होनी है.....इत्यादि इत्यादि!!!



भैया दूज की आवश्यक रस्में निभाने के बाद हंसी ठहाकों के बीच खाना खाने- खिलने का कार्यक्रम शुरू हुआ तो लगा कि कोई "लंगर" चल रहा है......कई चूल्हों पर खाना बन रहा था.......मगर खाना एक साथ खाया और परोसा जा रहा था.......कहीं से हाथ की बनी पानी की रोटियां सर्व हो रही थीं तो कहीं से गरम गरम पूरियां भेजी जा रहीं थी.... राजमा, देसी आचार, सलाद, पके आलू,पुलाव,दही,दूध .........और न जाने क्या क्या....!!!! हम लोग जब छककर खा लिए तो एहसास हुआ कि हंसी-ठहाकों के बीच हम लोग सीमा से ज्यादा ही खा चुके थे......देर शाम तक इस माहौल में बेहतरीन पल गुजरने के बाद विदाई के क्षण बहुत भारी लगे मगर वापस तो आना ही था.........!

धीरे-धीरे करके मेहमान विदा हुए। पिन्टू सीधे कानपुर और हम लोग भारी मन से बदायूं विदा हुए। दो दिन का उल्लासमय त्योहार बिताने के बाद हमारा मन कभी बापस होने को नहीं करता मगर विवशताएँ ऐसी होती हैं कि वापसी के अलावा कोई और विकल्प भी तो नहीं होता. बहरहाल एक और शानदार-दीपावली की स्मृतियॉ सहेजे हुए हम मैनपुरी-मेदेपुर से रवाना हुए........!!!



इस बार की दीपावली दो घटनाओं के कारन से भी सदैव स्मृतियों में बनी रहेगी, एक प्रिंसी को खोने-पाने के कारण और दूसरे श्यामू की इस यादगार माहौल में अनुपस्थिति।



प्रिंसी का यह पहला मैनपुरी दौरा था। मैनपुरी में समस्त परिजनों को प्रिंसी का खासा इन्तजार था. प्रिंसी भी जाते ही ‘सिंह सदन‘ में घुल मिल गई, किन्तु दोपहर में ही प्रिंसी का अपहरण हो गया. मोहल्ले का कोई बच्चा प्रिंसी को अकेला खेलता देखकर उठा ले गया जब ईशी-लीची को होश आया कि प्रिंसी कहा है, तो प्रिंसी को गायब हुए लगभग एक घण्टा बीत चुका था. प्रिंसी की खोजबीन शुरू हुई.....देर तक कोई सुराग नहीं लगा...मगर हम सब प्रिंसी को लेकर लगातार प्रयास करते रहे. प्रिंसी के खोने के बाद बरामद करने में जोनी का स्थानीय 'नेटवर्क' ऐसे में बहुत कारगर साबित हुआ. एक घण्टे के अन्दर ही ‘प्रिंसी‘ पुरानी मैंनपुरी से बरामद हो गयी. यद्यपि हम लोग प्रिंसी की बापसी की उम्मीद लगभग छोड़ चुके थे..... ऐसे में जैसे ही प्रिंसी वापस आई तो ‘सिंह सदन‘ में सारे चेहरे खिल उठे. ईशी-लीची-पंकज की नम आखों में खुशी की चमक बापस आ गई. इस पूरे आपरेशन में जिस तरह ‘सिंह सदन‘ के परिजनों ने जुटता दिखाई वह प्रशंसनीय रही.




श्यामू की इस मौंके पर अनुपस्थिति लगातार खलती रही.... इन मौंकों पर श्यामू का अल्हड़पन और चुलबुलापन हमेशा मजा देता है. ज्ञान सिंह,राकेश जीजा से श्यामू का मजाक करना उनके भाव- भंगिमाओं की नकल करना माहौल को और भी आनंदित कर देते हैं,मगर श्यामू की इस बार की अनुपस्थिति ने ज्ञान सिंह- राकेश जीजा की मौजूदगी को भी बेअसर कर दिया. हम सबने श्यामू को मिस किया.....???? सबका प्यारे दुलारे श्यामू की अनुपस्थित इसलिए भी खली क्योंकि अगले साल जब वे ‘प्रशिक्षण‘ पर होंगें तो वैसे भी इन त्योहारों पर नहीं आ पायेगें.....! बहरहाल हम सबने दीपावली को जिस एकता के साथ मनाया वह ‘सिंह सदन‘ की आपसी बंधन को सशक्त बनाने के लिये एक साँझा प्रयास रहा जिसके लिए प्रमोद-भैया,डा0रमन, जोनी,भारती,प्रिया की भूमिका को नहीं भुलाया जा सकता.