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Tuesday, July 31, 2012

हाथ आपका काँधे पर ........


हाथ आपका काँधे पर 
महसूस हमेशा होता है 
इसीलिए  ये जर-जर मन
हर बारिश तूफान सहता है  
तुम हो शक्ति पुंज सूरज का 
मै अंधकार का कतरा हूँ 
ऊँगली पकड के बड़ा हुआ हूँ 
साये में अब जीता हूँ 
आपके अहसानों का अमृत 
सर से बहता रहता है 
हाथ आपका काँधे पर 
महसूस हमेशा होता है 
जब भी गिरा कहीं धरती पर 
तुमने आकार थामा हाथ 
नाम तुम्हारा लेने भर से 
बन जाती है बिगड़ी बात 
सदा आप है साथ हमारे 
दिल ये कहता रहता है 
हाथ आपका काँधे पर 
महसूस हमेशा होता है |

Monday, July 30, 2012

हैदराबाद सेमिनार




हैदराबाद के NIRD में आयोजित एक सेमीनार में LWE Districts के  जिला अधिकारियों  के साथ एक कार्यशाला. इस कार्यशाला में इन जनपदों के विकास के बारे में गहन विचार विमर्श हुआ.

Wednesday, July 25, 2012

'धान का कटोरा'....!


चंदौली को पूर्वी उत्तर प्रदेश का 'धान का कटोरा' (Bowl of Rice)  कहा जाता है. इस क्षेत्र में धान की पैदावार काफी होती है. जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा कृषि कार्यों से जुड़ा हुआ  है, ज़ाहिर है इसमें महिला श्रम शक्ति का बहुत बड़ा योगदान है. इसी  योगदान की कहानी कहती हैं यह तस्वीरें .....!

Monday, July 23, 2012

राग दरबार vol-13


पुरवा आवत देखि के अकुलावें जे खेत |
जैसे रेगिस्तान में पवन उड़ावे रेत ||

पछुआ है मनभावनी मन मीठा कर जाय |
फसलें सब लहला उठें शीतलता पहुंचाय ||

चढ बसंत की बेल पर फूल सभी खिल जाय |
ज्यों त्योहारी मिलन से दिल से दिल मिल जाय ||

ग्रीष्म ऋतु मायूस सी हाथ पैर झुलसाय |
झिलमिल करती धूप में चित्त नहीं टिक पाय ||

रिमझिम बरसे मेघ रस धरती को नहलाय |
स्वाति नक्षत्र की बूंद पी पपीहा प्यास बुझाय ||

धनवानों की शरद ऋतु निर्धन की है ग्रीष्म |
करते सब है प्रतिज्ञा बना कोई भीष्म ||

ऋतुओं में ऋतुराज है निर्मल ऋतु बसंत |
मानुष मौज मानत है ध्यान लगावत संत ||


                                                पुष्पेन्द्र “पुष्प”

Sunday, July 22, 2012

नया ठिकाना

प्रियजनों.....
अमिताभ बच्चन के  "टंबलर" पर जाने के बाद मैंने उनका नया ठिकाने को तलाशा.... वाकई अच्छा ठिकाना है....! मैंने भी इस पर नया अकाउंट बनाकर अपनी तस्वीरें लगा कर एक प्रयोग किया है ज़रा गौर फरमाएं. 

******PK 

Friday, July 20, 2012

राग दरबार vol-12

रिश्तों में दरार आयी


रिश्तों में दरार आयी
याद वो दिन जब हाथ मिले थे
तुम भी खुश थे हम भी खुश
फिर लुलाकात का दौर चला
घर आना जाना शुरू हुआ
तुम अलग लगे कुछ खास लगे
विश्वास के पालन हार लगे
सब कुछ कितना मनभावन था
फिर दिलों के प्यार की छाँव तले
खुशियों में रिश्ते फूले फले
कुछ वक्त की एसी हवा चली
एक दूजे से उम्मीद बढी
फिर तेरा मेरा शुरू हुआ
लालच सर चढ कर बोल उठा
एक दूजे की कमियां दिखने लगीं
पैसे का काला रंग दिखा
नजरों से नजरें दूर हुई
उम्मीदें टूट के बिखर गयी
अब वो भी नजर नही आते
हम खुद भी वक्त नहीं पाते
खुशियों की फसल है मुरझाई
रिश्तों में दरार आयी |

                                                            पुष्पेन्द्र “पुष्प”