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Thursday, August 26, 2010

'दबंग 'का म्यूजिक रिव्यू



मीडिया मंच पर हर हफ्ते 'सौरभ की समीक्षा ' साप्ताहिक कॉलम में टेलीविज़न पत्रकार सौरभ कुमार गुप्ता द्वारा किये जा रहे फ़िल्म रिव्यू को मिले शानदार रेस्पांस के बाद हम आज से फ़िल्म संगीत और निजी एल्बम की भी रिव्यू की शुरुआत कर रहे हैं .
मीडिया मंच के लिए यह रिव्यू उत्तर प्रदेश के एक स्थानीय न्यूज़ चैनल में संपादक के पद पर कार्यरत हृदेश सिंह करेगें .


आज सबसे पहले पढ़ें फिल्म ' दबंग ' के म्यूजिक का रिव्यू


(बुधवार /25 अगस्त 2010 / हृदेश सिंह /मीडिया मंच )
''दबंग'' फिल्म का म्यूजिक बाज़ार में आ चुका है....इस फिल्म के कई गाने लोगों की जुबान पर हैं। फिल्म में कुल पांच गाने हैं। गीत जलीस शेरवानी, फैज़ अनवर और ललित पंडित की कलम से निकले हैं और सुर ''साजिद-वाजिद'' ने पिरोये हैं। पहला गाना ''तेरे मस्त मस्त दो नैन' राहत फ़तेह अली खान की सुरीली आवाज़ में है। इस पुरे एल्बम का यह एक मात्र गाना है जो कई बार सुना जा सकता है...इस गाने को सूफी रंग दिया गया है। फैज़ अनवर ने इस गाने को लिखा भी खूबसूरत है और राहत ने इस गाने को गाया भी शिद्दत से है। रूहानी सुकून और दिमाग को रोशन करने वाले इस गीत के बोल और सुर दोनों ही लाजवाब बन पड़े हैं। गाने के बोल के मुताबिक राहत ने शानदार गायकी पेश की है...फिलहाल ये गाना लोगों की जुबान से जल्द उतरता नहीं दिख रहा है।

एल्बम का बेहद अलग मिजाज़ का दूसरा गाना ''मुन्नी बदनाम हुई'' की तो धूम मच चुकी है। इस गाने को न केवल यूपी और बिहार में ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई है बल्कि इसे लिखा और कम्पोज इस तरह किया गया है कि डिस्को और पब में भी यह नंबर वन है। हिंदी भाषी खास तौर पर भोजपुरी बेल्ट में इस गाने को लोग पसंद कर रहे हैं। गीत में संगीत को देसी टच दिया गया है। कई जगह आप को लगेगा ये ठेठ भोजपुरी स्टायल का गीत है..गाने को ''ममता'' और ''ऐश्वारिया'' ने पूरे मन से गया है।
तीसरा गाना इस अलबम का है 'चोरी किया रे जिया रे'..सोनू निगम और श्रेया घोषाल ने इस गीत को गाया है। पहले और दुसरे के मुकाबले ये गाना कम असर रखता है। गाने के बोल में दम है लेकिन साजिद-वाजिद के सुर थोड़े से मद्धम पड़ जाते है। इस अल्बम की खासियत है कि इसमें हर मूड के गाने शामिल किये गए है। आज के श्रोताओं का पूरा ध्यान रखेने की कोशिश की गई है। चौथा गाना इस फिल्म का टाइटल गीत है. उड़ उड़.दबंग...ये गीत सुखविंदर सिंह और वाजिद ने गाया है। सुखविंदर ने मांग के मुताबिक इस गाने को गया है। इस तरह के गाने वही गा सकते है, एक बार फिर ये सुखविंदर ने साबित कर दिया है। ''ओमकारा'' और ''दस'' फिल्म के टाइटल गीत के तरह ही ये गाना है जिसे दोनों गायकों ने बखूबी गया है। इस अल्बम का अंतिम और पांचवां गाना क़व्वाली तर्ज़ पर पेश किया गया है। गाने के बोल खासे चलताऊ है और समझने में आसान भी है। पहला अन्तरा खुबसूरत बन गया है. इसलिए कुछ समय के लिए ये गीत गुनगुनाया जा सकता है. इस पुरे अलबम की खासियत है कि गाने के बोल कुछ गानों में लाज़बाव है। "जलीस शेरवानी" की कलम से निकले गीत असर रखते है.पहला और आखिरी गीत ''त्रिवेणी छंद विधा'' की तकनीक से लिखा गया है. लफ्जों का सुंदर इस्तेमाल भी है इन गीतों में.
संगीत की बात करें, तो मामूली खामियों आलावा दबंग की दबंगई का असर कुछ समय के लिए संगीत प्रेमियों पर दिखाई दे सकता है।

www.mediamanch.com
यहाँ पर भी इस समीक्षा को पढ़ सकते है.

Tuesday, August 24, 2010

RETRO PARADE --- 1989


हारे ना इंसान...


वर्ष १९८९ एक नयी शुरुआत लेकर आया... इस वर्ष सिंह सदन परिवार ने कई वर्षों के अंतराल के बाद अपनी मात्रभूमि मैनपुरी की ओर रुख किया !

...यहाँ भी सीमित संसाधनों के साथ हमारे परिवार का संघर्ष जारी रहा ! हम चारो भाई शिक्षा प्राप्त कर रहे थे ...और पिता जी की सीमित तनख्वाह में बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पाता था ! माँ और भैया ही थे जो इन विषम परिस्थितियों में भी हमारा मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ाये रखते थे ! यही दोनों परिवार को दिशा दे रहे थे ...बाकी हम तीन छोटे भाई मूकदर्शक ही थे !

किराये के मकान में कठोर समय भी हम सभी एक बेहतर भविष्य की आस में गुजार रहे थे ! भैया ने इस वर्ष ''हाई स्कूल'' बोर्ड परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी प्राप्त की ! यही वह समय था जब मेरे भीतर एक बेचैनी ने जन्म लेना प्रारंभ किया... मैं अक्सर सोचता कि क्यों हमने जन्म लिया है ...इसका मकसद क्या है ...
क्या साधारण जीवन जीकर,औपचारिकता निभाकर हम मर जायेंगे ? मैं एकांत में प्रार्थना करता.. कि मेरे और मेरे भाइयों के जीवन को मकसद दे.. सार्थकता दे.. हमारे द्वारा जनकल्याण के कार्य हो सके... इस लायक ईश्वर हमें बनाये ! यह प्रार्थना मैं आज भी करता हूँ ..और कदाचित म्रत्यु पर्यंत करता ही रहूँगा ! यह भी पूर्ण विश्वास है कि यह प्रार्थना सफल होगी !

* * * * * PANKAJ K. SINGH

रक्षा बंधन ..मुबारक !


आज का दिन बड़ा ही शुभ और मंगलकारी है ...आज पूरा मानव समाज भाई- बहन के प्रेम के प्रतीक पर्व ''रक्षा बंधन'' को हर्षोल्लास पूर्वक मना रहा है !

रक्षा बंधन के इस पावन अवसर पर ''सिंह सदन'' परिवार की सभी बहनों.... उषा दी, गीता ,प्रिया, नेहा, ममता, नीलम, सुजाता, भारती, ब्रिजबाला ,गौरी ,आस्था ,लक्ष्मी आदि और उनके सभी प्रिय भाइयों को हार्दिक शुभकामनाएं !

''सिंह सदन'' में मर्यादाओं ,संस्कारों और स्नेह की डोर अटूट हो ...यही मेरी परमेश्वर से प्रार्थना है !

* * * * * PANKAJ K. SINGH

Monday, August 23, 2010

सावन आयो रे ......


सावन आयो रे ......
गाओ रे सखी री झूम झूम के
दूर दूर से आईं सहेलियां
दिल के राज सुनावें
ढूंढ़ रहीं है बिछड़े प्रेमी
मन ही मन हर्षावें ...........
सावन आयो रे .......
गाओ रे सखी री झूम झूम के
हाथों पर मेहदी है सज गयी
होठों पर है लाली
महक रहीं है फिजा घटायें
झूमे डाली डाली
सावन आयो रे ......
गाओ रे सखी री झूम झूम के
घिर घिर आवें कारे बदरा
जिअरा को डर पावें
नाचत मोर मयूर झूम कर
कोयल गीत सुनावें
सावन आयो रे ......
गाओ रे सखी री झूम झूम के
खेतों में लहलाती फसलें
दिल के तार बजावें
चूल्हे पर है चढ़ीं सेंवैयाँ
मनवा को तरसावें........
सावन आयो रे ......
गाओ रे सखी री झूम झूम के
डाल डाल पर पड़े है झूले
झूलें सखियाँ सारी
हरी हरी चूड़ी है खनकी
शोभा है अति प्यारी
सावन आयो रे ......
गाओ रे सखी री झूम झूम के
Psingh

Tuesday, August 17, 2010

singapur se ......!
















नमस्कार
इस समय सिंगापुर में हूँ..... . 13 अगस्त को सिंगापुर के चांगी एयर पोर्ट पर सुबह 7.30 बजे ज्यों ही उतरे तो लगा कि सपनों के किसी देश/शहर में आ गए हैं.....चांगी एयर पोर्ट से फ्यूरोमा रिवर फ्रंट होटल तक पहुँचने में ही इस देश के बारे में सुखद राय बनने लगी थी. यहं कुछ भारतीयों से मिलना , सिविल सर्विसेज कोलेज जाना और पोर्ट सिंगापुर में स्वतंत्रता दिवस हाईकमिश्नर ऑफिस में मनाना निश्चित ही सुखद एहसास था..... ! यहं हमने ट्रेनिंग के दौरान यह जाना कि भारतीय प्रशासन और सिंगापुर के प्रशासन में क्या बुनियादी फर्क है.....! पब्लिक डेलिवरी सिस्टम में सिंगापुर का स्थान दुनिया के उत्कृष्टतम देशों में एक है.....! अपने बुनियादी स्वरुप को बनाये रखते हुए कैसे एक छोटा सा देश अपने बलबूते पर सिरमौर सिद्ध हो सकता है.....सिंगापुर इसकी मिसाल है. मेट्रो ट्रेन, टूरिज्म, जल संरक्षण, सड़क, बुनियादी सुविधाओं के प्रदाता देश के रूप में सिंगापुर की तारीफ़ जितनी की जाये उतनी कम विस्तार से फिर लिखूंगा.....फिलहाल कुछ तस्वीरें लगा रहा हूँ.... !

Tuesday, August 10, 2010

एक अभूतपूर्व यात्रा


...मुझे चलते जाना है !!

यह बताते हुए मुझे अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है ... कि ''सिंह सदन'' शिरोमणि भैया... श्री पवन कुमार विदेश यात्रा पर जा रहे हैं ! उनकी यह यात्रा निश्चय ही एक मील का पत्थर सिद्ध होगी ! उनकी इस यात्रा को लेकर सिंह सदन परिवार में बेहद उत्साह का वातावरण देखा जा रहा है !

यह यात्रा सिंह सदन परिवार के प्रशासनिक अनुभव को और बढ़ाएगी... इसमें कोई संदेह नहीं है ! कदाचित हमारे स्मरण एवं ज्ञान के अनुसार सिंह सदन परिवार के वे पहले शख्स होंगे... जो विदेश में प्रशासनिक दौरे पर जा रहे हैं ! इस गौरव शाली क्षण को हम सदैव अपनी पलकों पर संजो कर रखना चाहते है !

प्रिय भैया आपकी यात्रा सुखद ,स्वास्थ्यवर्धक ,कल्याणकारी एवं शोधपूर्ण हो ...ऐसी ही हमारी कामना है !

* * * * * PANKAJ K. SINGH

Sunday, August 8, 2010

HAPPY BIRTHDAY PRIYA



१० अगस्त को एक और ख़ास अवसर आ रहा है ! इस दिन हमारी प्रिय अनुज वधु प्रिया का बर्थ डे है ! सिंह सदन में उनका यह पहला जन्मदिन है .... इस लिए यह वाकई बेहद ख़ास दिन बन गया है !

सभी प्रिय स्वजन बेसब्री से इस ख़ास दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! प्रिया ''सिंह सदन'' की गृह लक्ष्मी ...अन्नपूर्णा सिद्ध हो ....यही मेरी आकांक्षा और विश्वास है !

* * * * * PANKAJ K. SINGH

शिखर पुरुष को नमन ...



अगस्त का दिन अदभुत है ... इस दिन महान कर्मयोगी... मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरुप... बड़े भैया श्री पवन कुमार '' सिंह सदन'' में अवतरित हुए !

आज सिंह सदन में सर्वत्र हर्षोल्लास का वातावरण है ! इस पावन अवसर पर मैनपुरी और गाजीपुर में जहां आनंद पूर्वक आयोजन आयोजित किये जा रहे हैं... वहीँ मसूरी में भी हर्षोल्लास पूर्वक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं! माता श्री ने इस अवसर पर विशेष खीर मालपुए और पकवान बनाये हैं !

जन्मदिवस के अवसर पर सभी परिजनों और सिंह सदन सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं !

* * * * *PANKAJ K. SINGH

Saturday, August 7, 2010

A DARK NIGHT...................

उस रात रात को मैं कभी नही भूल सकता क्योंकि उस रात ने हमसे क्या कुछ नही कराया मुझे कभी भूत- प्रेत का डर नही लगा पर उस काली रात ने हमे उस डर से भी नही बख्शा .................

जब श्याम कान्त की आई..एस. की प्रारंभिक परीक्षा अलीगढ मे थी , उनके पेपर के बाद मुझे अपने दोस्त की शादी मे जलेसर के पास एक गाँव में जाना था हालाकि शादी मे जाने का प्रोग्राम मैंने अकेले ही तय किया था पर थोड़ी बहुत नाराजगी के बाद सभी लोग तैयार हो गये

शाम के :३० बजे हम चारों वहां से रवाना हुए ( मैं,श्यामू, सुभाष, और जोनी ) करीब सवा छः बजे हाथरस पार करते ही हमारी समस्यायों का दौर शुरू हो गया रास्ते पर १० कि .मी. तक पत्थर पड़े हुए थे, जिसमे कुछ दूरी पैदल चल कर तय करनी पड़ी और कहीं कहीं गाडी में धक्का भी लगाना पड़ा १५ कि.मी. की दूरी हम करीब :३० बजे तक पूरी कर सके फिर गलत मार्गदर्शन की वजह से हम सही लोकेशन से १० कि.मी. आगे निकल गये । उबड़ खाबड़ सडको पर चलकर जैसे तैसे 9 बजे हम लोग दोस्त के घर पहुचे ,वो लोग हमारा ही इंतजार कर रहे थे फिर क्या था शादी के खुशनुमा माहौल में हम बारात के साथ वहां से निकल पड़े हमारी मंजिल 12 कि.मी. दूर थी जब हम ५०० मीटर दूर रह गये तभी बदकिस्मती से एक बड़े पत्थर ने हमारी गाडी के डीजल टैंक को फाड़ दिया और हमें गाडी वही रोकनी पड़ी डीज़ल लगातार निकलता जा रहा था और आग भी लग सकती थी अंततः ३७ लीटर मे से मात्र लीटर डीज़ल हम बचा सके। रात के करीब साढ़े ग्यारह हो चुके थे। हमने शादी में जाने का प्रोग्राम स्थगित कर दिया और वापसी की चिंता करने लगे।

अब जो भी करना था हम चारो को ही करना था गाडी के पास जोनी, सुभाष को छोडकर मैं और श्यामू पूरे गाँव की दुकानों में एम् सील खोज रहे थे। काफी मशक्कत करने के बाद एक दुकान से हमें एक एम् सील और दो डॉक्टर साबुन मिल गये पर हम इसे प्रयोग में कैसे लायें यह समस्या सामने थी तभी हमें वहाँ एक आदमी मिला जो अपने आप को बड़ा बुद्धिमान समझता था, उसके आत्मविश्वास को देखकर हमने ये काम उसे सौंप दिया लेकिन परिस्थितियाँ एकदम प्रतिकूल हो रही थी उस अव्वल दर्जे के मूर्ख ने एम् सील को जहां लगाना था वहाँ नहीं लगाया और बर्बाद कर दिया हम सभी एक दूसरे को असहाय सा देख रहे थे, फिर सोचा क्यूँ ना टाटा हेल्पलाइन पर फ़ोन किया जाए उनसे भी निराशा ही हाथ लगी वो सुबह ही सर्विस दे सकते थे उस वीराने में हम चारों अकेले थे ..................

फिर हमने साबुन का पेस्ट बनाया और गाडी के टेंक पर लगाया. और गाडी स्टार्ट की . हमने फिर से अपने सफ़र की शुरुआत की ही थी कि पता चला कि गाडी की हेडलाईट टूटी हुई है. ये अविश्वसनीय था पर सच था.

जहाँ तक नजर जा रही थी सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा था. घडी की सुइयां एक से ज्यादा बजा रही थीं. पर सुबह हमसे काफी दूर थी. ऐसे में किसी भी अनहोनी की आशंका को साथ लेकर हमने आगे चलते रहने का फैसला लिया. हमने सारी खिडकियों को बंद कर लिया और गाने सुनकर मन बहलाने लगे. करीब आधे घंटे बाद एक बार फिर गाडी बंद हो गयी. श्यामू और मैंने उतर कर देखा कि डीजल ख़त्म हो गया था. सुभाष बाबू तपाक से बोले "जहाँ जाये भूखा तहां पड़े सूखा !"जहाँ हम रुके सिर्फ पेड़ ही पेड़ थे. तभी जोनी ने बताया की हमारे पास एक बोतल में डीजल है. मैं डीजल डालने लगा. तभी पेड़ो की सरसराहट अचानक से बढ़ गयी. हमने पीछे नजर डाली एक बूढ़ा आदमी हमारी ओर रहा था. चारो तरफ अँधेरा, पेड़ों के डरावने स्वर, और अब ये बूढ़ा आदमी इतनी रात को .............

हम हैरान थे ऐसा लग रहा था की जैसे हम किसी भूतिया फिल्म की कहानी पर अभिनय कर रहे हैं. जोनी ने हनुमान चालीसा पढना शुरू किया और सुभाष गाडी में दुबक गए.

वो हमसे बोला की रात में यहाँ से कोई नहीं निकलता. तुम सबने इतना बड़ा खतरा क्यों उठाया !

तब तक मैं गाडी में डीजल डाल चुका था.और श्यामू ने ड्राइविंग की जिम्मेदारी सम्हाल ली. हमने पीछे मुडके देखा तो वो आदमी वहां से नदारद था.

पर हमारी मुश्किलें अभी कम नहीं हुई थीं. इस रात के दो दिन बाद हम घर पहुंचे !

दो दिन तक हम कहाँ रहे ?

वो बूढ़ा आदमी कौन था ?

पेड़ों की सरसराहट में क्या छिपा था ?

हमारी गाडी की हेडलाईट कैसे टूट गयी थी ?

हम सकुशल घर कैसे पहुचे ?

जानने के लिए इन्तजार करिए अगले अंक का..........

******CHINTOO *******