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Wednesday, April 27, 2011

दे घुमा के ..........

क्रिकेट का मौसम जोरों पर है तो सिंह सदन भला इससे कैसे दूर रह सकता है..........................

जबकि सिंह सदन एक क्रिकेट क्रेजी फेमिली है.......................................................................

आज हम एक नए अभियान की शुरुआत कर रहे.....................................................................

सिंह सदन एक आल टाइम ग्रेटेस्ट वर्ल्ड इलेवन का चयन कर रहा है........................................

सभी सदस्यों को अपनी अपनी आल टाइम ग्रेटेस्ट वर्ल्ड इलेवन का चयन करना है....................

सभी की टीमों को मिलाकर एक फ़ाइनल आल टाइम ग्रेटेस्ट वर्ल्ड इलेवन का चयन किया जायेगा ..............

आखिर में चुनी गयी आल टाइम ग्रेटेस्ट वर्ल्ड इलेवन में जिस सदस्य की टीम से सार्वाधिक खिलाडी होंगे वही विजेता होगा............
और उसे पुरस्कार में मिलेगी एक शानदार क्रिकेट किट !!!!!!!!!!!!!!!
यहाँ पेश है मेरी आल टाइम ग्रेटेस्ट वर्ल्ड इलेवन -


१. ग्राहम गूच
२. मेथ्यु हेडेन
३.कुमार संगकारा (विकेट कीपर )
४. विव रिचर्ड्सअ
५. सचिन तेंदुलकर
६.जेक कालिस
७. इयान बोथम
८. इमरान खान(कप्तान )
९. कपिल देव
१०. रिचर्ड हेडली
११. शेन वार्न

_________________
पंकज के सिंह

Tuesday, April 26, 2011

jony pyara..........

जोनी को हृदेश बनाने में काफी पापड़ बेलने पड़े यानि जब अचलगंज में एक स्कूल में
हृदेश का दाखिला हुआ तो इन्होने वहां बहुत उत्पात मचाया और टीचर को जोर से काट भी लिया .........
फिर शिकायत जब घर आई तो मैंने जोनी को ३-४ दिनों तक स्कूल ही नहीं भेजा ..................................
फिर क्या था शरारती जोनी ने स्कूल न जाने की कसम खा ली ................................................
मैंने,पवन,पंकज ने उसे बहुत समझाया पर वो न माना .............
फिर पापा के कहने पर दो होमगार्ड के साथ उसे स्कूल भेजा गया ....................
एक ने उसके हाँथ पकडे एक ने पकडे पैर !
फिर दोनों ने उसको स्कूल की करायी सैर !!
लेकिन मामला यहाँ ख़त्म नहीं हुआ था शायरी के शरारे से
बहादुर जोनी ने किसी सओलिन के सीखे हुआ सैनिक की भांति,
एक को मारी लात और दूसरे को लिया काट
फिर क्या था फिन्फिना के बे दोनों जो भागे हैं तो सीधे जा के
मिले दरोगा जी (पापा)से ........................................................
पिता जी ने बजाय समझने के उल्टा उनकी लताड़ लगते हुए कहा :
की जब तेरे बस का नहीं था तो क्यों चल दिया था मुह उठा के
और अब कहता है अंकिल अंकिल ($%%$%$%$%$%$%$%$%)
घबराय नहीं ऊपर फॉण्ट नहीं बदला है ये तो गालियां ($%$%$%$)हैं,
जो पापा ने उन दोनों को दी थीं !
अभी सब कुछ सही नहीं था मैंने जोनी को कमरे में बंद कर दिया
तो उसने अन्दर से कुंडी लगा ली और अन्दर का सारा सामान अस्त-व्यस्त कर दिया
जोनी ने जब कुण्डी नहीं खोली तो मजबूरी बस मिस्त्री को बुलवाना पड़ा ..............
ये घटना तब की है जब वो ६ साल का था .................................
जोनी वास्तव में मन का राजा है जब उसने स्कूल जाना तय किया तो फिर कभी
छुट्टी नहीं मारी पूरे साल स्कूल जाता इसी बीच उन्होंने एन. सी. सी . भी कर ली
निशानेबाजी में पूरे शहर(मैनपुरी) में उसे दूसरा स्थान मिला ............................
खुशमिजाज ,सुंदर ,कपड़ों और लजीज खाने के सौकीन जोनी
तुम जियो हजारों साल
तुम्हारे स्वास्थय की सभी को बहुत चिंता हो रही है .........
तुम जल्दी अच्छे हो जाओ हम सब यही चाहते हैं
तुम्हारी माँ

Thursday, April 14, 2011

मैनपुरी मुशायरा रिपोर्टिंग-२

............ मुशायरा परवान चढ़ चुका था अब उस्ताद शायरों की बारी थी. नाज़िम मुशायरा ने माइक पर अकील नोमानी को दावत दी. इधर बीते कुछ बरसों में अकील नोमानी, मंच मुशायरों के चर्चित नाम रहे हैं. अकील नोमानी ने ’’ अपने काबू से निकल जाने को जी चाहता है, गिरते गिरते भी संभल जाने को जी चाहता है. लाख मालूम हों झूठे हैं दिलासे लेकिन, बाज़ औकात बहल जाने को जी चाहता है. ’’ कलाम सुनाया तो सामयीन की आखिरी हद तक वाह-वाह का शोर गूंज उठा. पहले तहत और फिर तरन्नुम............................ दोनों तरीके से अपनी गजलों को अकील नोमानी ने सुनाया. सामयीन की मांग पर उन्होंने अपनी गजल ’’महाजे-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है, किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है. खुशी गम से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती, मुसलसल हँसने वालों को भी आखिर रोना पड़ता है. मैं जिन लोगों से खुद को मुख्तलिफ महसूस करता हूँ, मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है .’’ सुनायी तो मंच उनकी जिन्दाबाद की आवाजों से गूंज उठा.


अब तक मेहमान शायरों का तआर्रूफ कराते हऐ उन्हें माइक पर दावत देने में मसगूल नाजिम मंसूर उस्मानी को अपना कलाम सुनाने के लिये जब डा0कलीम कैसर ने दावत दी तो माहौल और भी खास हो उठा. एक मुददत से मंसूर उस्मानी मुशायरों के खास नाजिम (संचालक) रहें हैं. देश से लेकर विदेशों में चाहे सऊदी अरब हो ,बहरीन हो,कनाडा हो या अमेरिका...........हरेक जगह मुशायरों में उनकी निजामत ने अपनी कामयाबी का परचम फहराया है. वास्तव में निजामत मुशायरे की कामयाबी -नाकामयाबी बहुत बड़ी वज़ह होती है....................... मंसूर साहब ने यह जिम्मेदारी अपने कन्धों पर जब जब उठायी है, मुशायरों में कामयाबी की नई इबारत गढ़ी है. बहरहाल मंसूर साहब ने ’’चाहे दिल ही जले रोशनी के लिये , हम सफर चाहिये जिन्दगी के लिये. दुश्मनी के लिये सोचना है गलत, देर तक सोचिये दोस्ती के लिये." और " कभी कभी तो हमें दिल ने ये मलाल दिया , तुम्हारी याद भी आई तो उसको टाल दिया. दिलों की बात में दिल्ली को जोड़कर यारों, गजल को हमने बड़ी कशमकश में डाल दिया. " गजल पढ़कर अपने हुनर का सबूत पेश किया.


मुशायरा अपने अन्तिम पड़ाव में था ........... आवाज़ दी गयी मेहमान शायरा इशरत आफरीन को . मैनपुरी मुशायरे के लिए मोहतरमा इशरत आफरीन अमेरिका से आयी थीं. टेक्सास यूनीवर्सिटी की हेड ऑफ़ उर्दू डिपार्टमेंट और शायरी की एक बड़ी शख्सियत मोहतरमा इशरत आफरीन ने संयोजक हृदेश सिंह के महज़ एक अनुरोध पर उन्होंने हैदराबाद का मुशायरा छोड़कर मैनपुरी आना मन्जूर किया था. उपस्थिति सामयीन ने उनकी भारत आमद का खड़े होकर इस्तकवाल किया . खुद मोहतरमा इशरत आफरीन ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुये शानदार शेर सुनाये. उनकी गजल ’’भूख की कड़वाहट से सर्द कसीले होंठ खून उगलते, सूखे, चटखे, पीले होंठ. टूटी चूड़ी ठंडी लड़की बागी उम्र, सब्ज़ बदन पथराई आँखें नीले होंठ. सूना आँगन तनहा औरत लंबी उम्र,ख़ाली आँखें भीगा आँचल गीले होंठ’’ ने बैठी हुयी महिला श्रोताओं को खास तौर पर आकर्षित किया. ग़ज़ल में फेमिनिस्ट मूवमेंट की बड़ी लम्बरदार के रूप में पहचानी जाने वाली मोहतरमा इशरत आफरीन ने " लड़कियां माँओं जैसा मुकद्दर क्यों रखती हैं, तन सहरा और आँख समंदर क्यों रखती हैं. माँए अपने दुःख की विरासत किसको देंगी, संदूकों में बंद ये जेवर क्यों रखती हैं." सुनकर सामईन को दीवाना बना दिया। उन्हें सुनकर लगा कि गजल पढ़ने का शऊर तो कोई मोहतरमा इशरत आफरीन से सीखे। अगर महान गजल गायक जगजीत सिंह ने उनकी गजल गाई हैं, तो उनका चुनाव कहीं से गलत नहीं है. उन्होंने मैनपुरी के इस मंच के माध्यम से पूरे आवाम को अपनी मेहमान नवाजी का शुक्रिया कहा.


अब बारी थी मुशायरे की शान, हिन्दुस्तान के अजीम शायर और इस मुशायरे के सदर-ए-मोहतरम ज़नाब वसीम बरेलवी साहब का. नाजिम ने ज़नाब वसीम बरेलवी को माइक पर आने की दावत दी तो सुबह के तीन बजे चुके थे। मगर सामयीन की बड़ी तादाद उन्हें सुनने के लिये अभी तक जमी हुयी थी. वसीम साहब ने मंच पर आते ही मैनपुरी की जनता को सलाम करते हुये एक से बढ़कर एक शेर पढ़े " शाम तक सुबह की नजरों से तर जाते हैं, इतने समझौंतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं. इक जुदाई का वह लम्हा कि जो मरता ही नहीं, लोग कहते थे कि सब वक्त गुजर जाते हैं" जैसे शेरों से आगाज़ कर उन्होंने जनता की मांग पर " उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है, जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है. नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये, कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है. थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे , सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है. बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता, मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है. सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का, जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है." सुनाया. अगले एक घन्टे तक वे बिना रूके एक से बढ़कर एक शेर से भीड़ को नवाजते रहे. "कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है, ये सलीक़ा हो तो हर बात सुनी जाती है. जैसा चाहा था तुझे देख न पाये दुनिया, दिल में बस एक ये हसरत ही रही जाती है. अपनी पहचान मिटा देना हो जैसे सब कुछ , जो नदी है वो समंदर से मिली जाती है " जैसे लोकप्रिय शेर कभी तहत तो कभी तरन्नुम में पढ़कर वसीम साहब अपनी मकबूलियत का एहसास करा गए.


आखिर में सुबह चार-सवा चार बजे संयोजक हृदेश सिंह ने अपनी संयोजक समिति और आयोजक समिति के साथ-साथ हाजरीन, मेहमान शायर और मोहतरम मेहमानों का शुक्रिया अदा किया तथा मुशायरे के बेहतरीन इन्जामात और सह- संयोजन के लिए स्थानीय कवि दीन मोहम्मद दीन और फ़साहत अनवर को बधाईयाँ दीं तो मैनपुरी की जनता ने भी संयोजक हृदेश सिंह का तालियाँ बजाकर सम्मान व धन्यवाद ज्ञापित किया
इस प्रकार एक अदबी मुशायरा मैनपुरी की इस प्रदर्शनी के इतिहास में सोने के अक्षरों में कैद हो गया. सच तो यह है कि यह एक ऐसा मुशायरा था , जिसे लोग लम्बे समय तक भुला नहीं पायेंगे.

लाइव मैनपुरी मुशायरा (पार्ट-2)

............ मुशायरा परवान चढ़ चुका था अब उस्ताद शायरों की बारी थी. नाज़िम मुशायरा ने माइक पर अकील नोमानी को दावत दी. इधर बीते कुछ बरसों में अकील नोमानी, मंच मुशायरों के चर्चित नाम रहे हैं. अकील नोमानी ने ’’ अपने काबू से निकल जाने को जी चाहता है, गिरते गिरते भी संभल जाने को जी चाहता है. लाख मालूम हों झूठे हैं दिलासे लेकिन, बाज़ औकात बहल जाने को जी चाहता है. ’’ कलाम सुनाया तो सामयीन की आखिरी हद तक वाह-वाह का शोर गूंज उठा. पहले तहत और फिर तरन्नुम............................ दोनों तरीके से अपनी गजलों को अकील नोमानी ने सुनाया. सामयीन की मांग पर उन्होंने अपनी गजल ’’महाजे-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है, किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है. खुशी गम से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती, मुसलसल हँसने वालों को भी आखिर रोना पड़ता है. मैं जिन लोगों से खुद को मुख्तलिफ महसूस करता हूँ, मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है .’’ सुनायी तो मंच उनकी जिन्दाबाद की आवाजों से गूंज उठा।


अब तक मेहमान शायरों का तआर्रूफ कराते हऐ उन्हें माइक पर दावत देने में मसगूल नाजिम मंसूर उस्मानी को अपना कलाम सुनाने के लिये जब डा0कलीम कैसर ने दावत दी तो माहौल और भी खास हो उठा. एक मुददत से मंसूर उस्मानी मुशायरों के खास नाजिम (संचालक) रहें हैं. देश से लेकर विदेशों में चाहे सऊदी अरब हो ,बहरीन हो,कनाडा हो या अमेरिका...........हरेक जगह मुशायरों में उनकी निजामत ने अपनी कामयाबी का परचम फहराया है. वास्तव में निजामत मुशायरे की कामयाबी -नाकामयाबी बहुत बड़ी वज़ह होती है....................... मंसूर साहब ने यह जिम्मेदारी अपने कन्धों पर जब जब उठायी है, मुशायरों में कामयाबी की नई इबारत गढ़ी है. बहरहाल मंसूर साहब ने ’’चाहे दिल ही जले रोशनी के लिये , हम सफर चाहिये जिन्दगी के लिये. दुश्मनी के लिये सोचना है गलत, देर तक सोचिये दोस्ती के लिये." और " कभी कभी तो हमें दिल ने ये मलाल दिया , तुम्हारी याद भी आई तो उसको टाल दिया. दिलों की बात में दिल्ली को जोड़कर यारों, गजल को हमने बड़ी कशमकश में डाल दिया. " गजल पढ़कर अपने हुनर का सबूत पेश किया।


मुशायरा अपने अन्तिम पड़ाव में था ........... आवाज़ दी गयी मेहमान शायरा इशरत आफरीन को . मैनपुरी मुशायरे के लिए मोहतरमा इशरत आफरीन अमेरिका से आयी थीं. टेक्सास यूनीवर्सिटी की हेड ऑफ़ उर्दू डिपार्टमेंट और शायरी की एक बड़ी शख्सियत मोहतरमा इशरत आफरीन ने संयोजक हृदेश सिंह के महज़ एक अनुरोध पर उन्होंने हैदराबाद का मुशायरा छोड़कर मैनपुरी आना मन्जूर किया था. उपस्थिति सामयीन ने उनकी भारत आमद का खड़े होकर इस्तकवाल किया . खुद मोहतरमा इशरत आफरीन ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुये शानदार शेर सुनाये. उनकी गजल ’’भूख की कड़वाहट से सर्द कसीले होंठ खून उगलते, सूखे, चटखे, पीले होंठ. टूटी चूड़ी ठंडी लड़की बागी उम्र, सब्ज़ बदन पथराई आँखें नीले होंठ. सूना आँगन तनहा औरत लंबी उम्र,ख़ाली आँखें भीगा आँचल गीले होंठ’’ ने बैठी हुयी महिला श्रोताओं को खास तौर पर आकर्षित किया. ग़ज़ल में फेमिनिस्ट मूवमेंट की बड़ी लम्बरदार के रूप में पहचानी जाने वाली मोहतरमा इशरत आफरीन ने " लड़कियां माँओं जैसा मुकद्दर क्यों रखती हैं, तन सहरा और आँख समंदर क्यों रखती हैं. माँए अपने दुःख की विरासत किसको देंगी, संदूकों में बंद ये जेवर क्यों रखती हैं." सुनकर सामईन को दीवाना बना दिया. उन्हें सुनकर लगा कि गजल पढ़ने का शऊर तो कोई मोहतरमा इशरत आफरीन से सीखे. अगर महान गजल गायक जगजीत सिंह ने उनकी गजल गाई हैं, तो उनका चुनाव कहीं से गलत नहीं है। उन्होंने मैनपुरी के इस मंच के माध्यम से पूरे आवाम को अपनी मेहमान नवाजी का शुक्रिया कहा.


अब बारी थी मुशायरे की शान, हिन्दुस्तान के अजीम शायर और इस मुशायरे के सदर-ए-मोहतरम ज़नाब वसीम बरेलवी साहब का. नाजिम ने ज़नाब वसीम बरेलवी को माइक पर आने की दावत दी तो सुबह के तीन बजे चुके थे. मगर सामयीन की बड़ी तादाद उन्हें सुनने के लिये अभी तक जमी हुयी थी. वसीम साहब ने मंच पर आते ही मैनपुरी की जनता को सलाम करते हुये एक से बढ़कर एक शेर पढ़े " शाम तक सुबह की नजरों से तर जाते हैं, इतने समझौंतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं. इक जुदाई का वह लम्हा कि जो मरता ही नहीं, लोग कहते थे कि सब वक्त गुजर जाते हैं" जैसे शेरों से आगाज़ कर उन्होंने जनता की मांग पर " उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है, जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है. नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये, कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है. थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे , सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है. बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता, मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है. सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का, जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है." सुनाया. अगले एक घन्टे तक वे बिना रूके एक से बढ़कर एक शेर से भीड़ को नवाजते रहे. "कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है, ये सलीक़ा होए तो हर बात सुनी जाती है. जैसा चाहा था तुझेए देख न पाये दुनिया, दिल में बस एक ये हसरत ही रही जाती है. अपनी पहचान मिटा देना हो जैसे सब कुछ , जो नदी है वो समंदर से मिली जाती है " जैसे लोकप्रिय शेर कभी तहत तो कभी तरन्नुम में पढ़कर वसीम साहब अपनी मकबूलियत का एहसास करा गए।


आखिर में सुबह चार-सवा चार बजे संयोजक हृदेश सिंह ने अपनी संयोजक समिति और आयोजक समिति के साथ-साथ हाजरीन, मेहमान शायर और मोहतरम मेहमानों का शुक्रिया अदा किया तथा मुशायरे के बेहतरीन इन्जामात और सह- संयोजन के लिए स्थानीय कवि दीन मोहम्मद दीन और फ़साहत अनवर को बधाईयाँ दीं तो मैनपुरी की जनता ने भी संयोजक हृदेश सिंह का तालियाँ बजाकर सम्मान व धन्यवाद ज्ञापित किया.
इस प्रकार एक अदबी मुशायरा मैनपुरी की इस प्रदर्शनी के इतिहास में सोने के अक्षरों में कैद हो गया. सच तो यह है कि यह एक ऐसा मुशायरा था , जिसे लोग लम्बे समय तक भुला नहीं पायेंगे.

Wednesday, April 13, 2011

लाइव मैनपुरी मुशायरा...पार्ट 1


09 अप्रेल 2011, शनिवार स्थान कादम्बरी मंच श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी मैनपुरी समय रात 9 बजे....... जी हां यही देश -काल परिस्थितियां थीं जब इस ऐतिहासिक मंच व प्रदर्शनी में अखिल भारतीय मुशायरे का आगाज हुआ. यूँ तो मुशायरे की शमा अपने नियत समय से लगभग एक घण्टे देर से रोशन हुई........ लेकिन सामयीन की अपने शायरों को सुनने-देखने की इन्तजारी न तो गैर अनुशासित हुई, न ही उनकी आवाज शोर-शराबे में में तब्दील हुई. बहरहाल फीता काटने और शमा रोशन करने की जरूरी रस्मों के बाद निजामत जनाब मंसूर उस्मानी और सदर-ए-मुशायरे की कमान जनाब प्रो0 वसीम बरेलवी ने संभाली तो मुशायरे का माहौल एक दम से भव्य हो उठा. निजाम ने ’नात‘ को पढ़ने के लिये जब तरन्नुम के उस्ताद शायर जनाब अकील नोमानी को पुकारा तो जनता सीधे उस रूहानी ताकत से जुड़ा हुआ महसूस करने लगी, जिसके दम पर पूरी कायनात रोशन है......."नवी का दीन यहाँ भी बहुत फल फूला, अकील इसलिए हिन्दोस्तान को भी सलाम" जैसा कलाम पेश कर अकील नोमानी ने मुशायरे का आगाज किया.इसके बाद मेघा कसक ने अपने कलाम से पण्डाल मे उपस्थित तीन हजार की भीड़ को अपना दीवाना बना दिया. खूबसूरत आवाज और-अपने पुरकशिश अन्दाज में मेघा ने "ये हकीकत है के हम चाहें न चाहें लेकिन ज़िन्दगी मौत की आगोश में सर रखती है, भूल बैठे हो अमीरी के नशे में साहिब मुफलिसी अब भी दुआओं में असर रखती है '' सुनाकर भीड़ को दीवाना बना दिया. मेघा की तरन्नुमी लहर हालांकि ठहरने का नाम नही ले रही थी, लेकिन शायरों की लम्बी फेहरिस्त को देखते हुये इसे रोका जाना भी जरूरी था सो अगले शायर सर्वत जमाल को आवाज दी गयी. सर्वत ने आते ही अपनी ‘फिक्र की शायरी' के हवाले से जनता को मानसिक रूप से झिंझोड़ दिया. "आराम की सभी को है आदत करेंगे क्या, ये सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या. मज़हब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब, हम खून से नहाके इबादत करेंगे क्या. तक़रीर करने वालों से मेरा सवाल है,जब सामने कड़ी हो मुसीबत करेंगे क्या. " काफिये के नये प्रयोगों से सर्वत ने मंच को मुशायरे को ‘अदबी मुशायरे ‘ के रूप में तब्दील करने का काम किया जो मुशायरे के आखिर तक मुसलसल जारी रहा. सर्बत ने अपने कलाम से जनता को जेहनी तौर पर खुद से और अवाम की माजूदा परिस्थितियों से जोड़ लिया. इसके बाद लखनऊ से आये युवा शायर मनीष शुक्ल ने बड़े ही प्यारे अन्दाज में "बात करने का हसीं तौर तरीका सीखा, हमने उर्दू के बहाने से सलीका सीखा" और "हमने तो पास ए अदब में बंदापरवर कह दिया, और वो समझे कि सच में बंदापरवर हो गए ", जैसे शेर पढ़कर अपने कद का एहसास दिलाया. प्रांतीय सिविल सेवा के अधिकारी मनीष शुक्ल को मैनपुरी की जनता ने हर शेर पर दाद दी. उनके हरेक शेर पर मैनपुरी की जनता ने खड़े होकर तालियां बजाकर उनका इस्तकबाल किया. जनता ने उनके शेर "आँखों देखी बात है कोई झूठ नहीं, चोट लगाकर कहते हैं कि रूठ नहीं. खुद ही भरते जाते हैं गुब्बारे को , फिर कहते हैं ए गुब्बारे फूट नहीं " को बार बार पढने की ताकीद की. म0प्र0 उर्दू अकादमी की सचिव मोहतरमा नुसरत मेहदी ने अपना कलाम सुनाने की जैसे ही भूमिका तैयार की, उपस्थित श्रोताओं ने उनकी आमद पर देर तक तालियां बजाई. मोहतरमा मेंहदी ने भी श्रोताओं की अपेक्षाओं और मिजाज के मुताबिक कलाम पेश किया. उनकी गजल " आप शायद भूल बैठे हैं यहाँ मैं भी तो हूँ, इस ज़मीं और आसमान के दरमियाँ मैं भी तो हूँ. आज इस अंदाज़ से तुमने मुझे आवाज़ दी, यक ब यक मुझको ख्याल आया कि हाँ मैं मैं भी तो हूँ. तेरे शेरों से मुझे मंसूब कर देते हैं लोग, नाज़ है मुझको जहां तू है वहां मैं भी तो हूँ." को जनता की भरपूर दाद मिली. पहली बार मैनपुरी आई मोहतरमा मेंहदी मैनपुरी बार-बार आने का वायदा करके जनता की वाह-वाही लूट ले गयीं. अब तक साढ़े ग्यारह बज चुके थे, माहौल में शेरो शायरी का जुनून हावी हो चुका था......... माहौल को देखते हुये ‘आमीन' के शायर आलोक श्रीवास्तव को आवाज दी गयी. उनकी निहायत सीधे-सादे अल्फाज वाली शायरी ने जनता से उन्हे ऐसे जोड़ा की गजल-दर-गजल उनकी वाह-वाही बढ़ती गयी. इंसानी रिश्तों ओर उनके नाज़ुक एहसासात की रचनाओं को सुनाकर आलोक श्रीवास्तव ने महफ़िल लूट ली. उनकी ग़ज़ल "तुम्हारे पास आता हूँ तो साँसें भीग जाती हैं, मुहब्बत इतनी मिलती है की आँखें भीग जाती हैं.तबस्सुम इत्र जैसा है हंसी बरसात जैसी है, वो जब भी बात करता है तो बातें भीग जाती हैं. ज़मीं की गोद भरती है तो कुदरत मुस्कुराती है, नए पत्तों की आमद से ही शाखें भीग जाती हैं" बहुत पसंद की गयी. इसके बाद मुशायरा ख्यातिलब्ध और सीनियर शायरों की तरफ मुखातिब हुआ. मंचासीन डा0 कलीम कैसर ने सामयीन के मिजाज और उनकी नब्ज को पकड़ते हुये अपना कलाम “ चाहतों की ज़रा सी दस्तक पर दिल का राज़ खोल सकता है,इश्क ऐसी ज़बान है प्यारे जिसको गूंगा भी बोल सकता है “ और “ज़रूरी है सफ़र लेकिन सफ़र अच्छा नहीं लगता , बहुत दिन घर पे रह जाओ तो घर अच्छा नहीं लगता” पेश किया. डा0 कैसर मंच के बड़े शायर हैं, .................उन्होने मैनपुरी की जनता को उनके ‘अदबी टेस्ट‘ के लिये बार-बार बधाई दी और कहा कि यह मुशायरा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मुशायरे ने यह साबित कर दिया है कि यदि अदबी मुशायरे आयोजित किया जाएं तो जनता उसे आंखो-आंख लेती है.माहौल में पसरी गंभीरता को हंसी-मंजाक के रंगों से भिगोने के लिये स्थानीय कवि जयेन्द्र पाण्डेय ‘लल्ला‘ और हजल उस्ताद शरीफ भारती को बुलाया गया. शरीफ भारती ने आधे-पौन घण्टे तक अपने अन्दाज से मौजूद तादाद को पेट पकड़ने पर मजबूर कर दिया. किसी चोर के घर के घर में घुसने पर नामचीन शायरों की प्रतिक्रिया का अन्दाज करने वाले उनकी प्रस्तुति ने सामयीन को हंसते-हंसते लोट-पोट कर दिया. " छत पे हम समझे तुझे वो तेरी अम्मी निकली, इश्क क्या ख़ाक करें दूर का दिखता ही नहीं " अपने गजब के ‘सेंस आफॅ ह्यूमर‘ और 'चालू जुमलों' से जनता को गुदगुदा कर जब वे वापस हुये तो जनता ने उन्हे एक बार और बुला लिया. इस मजाहिया मंजर के बाद मदन मोहन दानिश को माइक पर दावत दी गयी. दानिश मौजूदा दौर के सर्वाधिक ‘फिक्रमंद शायर' के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं। दानिश ने “ डूबने की जिद पे कश्ती आ गयी, बस यहीं मजबूर दरिया हो गया. गम अँधेरे का नहीं दानिश मगर वक्त से पहले अँधेरा हो गया “और “ गुज़रता ही नहीं वो एक लम्हा, इधर मैं हूँ कि बीता जा रहा हूँ “ पढ़कर जनता की तालियां लूटीं.

*अगली किस्त में मंसूर उस्मानी, इशरत अफरीन और वसीम साहब के कलाम के बारे में रिपोर्टिंग....!

एतिहासिक मुशायरा.............!





एतिहासिक मुशायरा

९अप्रेल को मैनपुरी के श्री देवी मेला में एक एतिहासिक मुशायरे का आयोजन बहुत ही भव्य तरीके से हुआ मैनपुरी जैसे शहर में एक सफल मुशायरे का आयोजन एक बहुत बड़ा काम है|

मुशायरे की शौक़ीन पूरी सिंह सदन फेमिली शुरू से ही रही है लेकिन मुशायरा कराने का निश्चय पिछली साल इसी देवी मेला में जब युवा महोत्सव का सफल आयोजन कराया था

कर लिया गया था माननीय बड़े भैया(पवन जी ) का ये सपना था की वे एसा सफल आयोजन कराएँ और जब उन्होंने ठान लिया तो सफल तो होना ही था ......भइया का फोन मेरे पास होली से पहले आया और उन्हों ने बताया कि इस बार हम लोगों को नुमाइश में मुशायरा कराने को दिया गया है जैसे भी हो इसे सफल बनाना है मैंने कहा भइया दुनिया में एसा कौनसा काम है जो आप के करें और सफल हो ......फिर क्या था मेरी ख़ुशी का ठिकाना था बड़े भैया सारा प्रारूप तैयार कर चुके थे |सिंह सदन ब्रिगेड को अपने अपने काम सोंप दिए गए और सभीने उस काम को अपने खुश किश्मती समझा महज १५ दिनों में हृदेश जी ने पूरी टीम को लगा कर सारी तैयारियां कर डालीं |

हरदेश जी के बारे में जितना भी कहा जाये काम है वे इसे महान इन्सान है जो कुछ भी करने कि हिम्मत रखते है| और एक सफल मुशायरा करा कर उन्हों ने प्रूफ भी कर दिया

इंतजार कि घड़ियाँ ख़त्म हुईं और ९अप्रेल का बो शुभ दिन ही गया जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था बड़े भइया तो की शाम को पहुँच गये थे उनको सारी व्यवस्थाएं देखनीं थी उन्हों ने मैनपुरी पहुंचकर सारी कमान संभाल ली पूरी टीम उनके साथ इसे जुटी कि कुछ वाकी रहा |

भइया ने सभी को जिम्मेदारियां सौंप दीं श्यामू ,टिंकू ,चिंटू , दिलीप संदीप जोनी का काम सभी आने वाले गेस्ट का स्वागत कर उन्हें गेस्ट हाउस तक पहुँचना था इन सभी को कमांड

सिंह सदन के दुलारे श्याम कान्त जी स्वेंम कर रहे थे तो त्रुटी होने की तो बात ही पैदा नहीं होती |

ऊपर से बड़े भैया की देख रेख भी थी |

दूसरी तरफ मोर्चा हृदेश सिंह जी सम्हाले हुए थे पुरे मंच की साज सज्जा से लेकर हर चीज को बारीकी से देख रहे थे ताकि कहीं कोई कमी रह जाये |

खाने पीने का इंतजाम बड़े भइया और भाभी स्वेंम ही देख रहे थे हर पकवान को बनने के बाद भाभी द्वारा टेस्ट किया गया था क्यों की वे पाक कला में निपुण है |

सतीश कुमार गेस्ट हॉउस की व्यवस्था देख रहे थे और उन्हों ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया | सारी तैयारियां हो चुकी थी बस मेहमानों के आने का इंतजार बेसब्री से था उधर श्री देवी मेला के पंडाल में भीड़ उमड़ रही थी

सब से पहले गेस्ट हॉउस में आगमन हुआ जनाब मनीष शुक्ला जी का उसके बाद सभी लोग एक एक कर के आने लगे |

और फिर आए जनाब वसीम बरेलबी साहब जिनका बेसब्री से इंतजार हो राह था जब वे गाड़ी से उतरे तो मैंने उनका स्वागत किया उनका तो अंदाज ही निराला था इतने महान शायर में इतनी शालीनता और तहजीब देख कर में गद गद हो गया मेने उनके पैर छू कर अपने अप को धन्य समझा वाकई वसीम साहब जितने अछे शायर है उससे कहीं ज्यादा अच्छे इन्सान है मै उन्हें फिर से एक बार प्रणाम करता हूँ |अपने इतने व्यस्त कार्यक्रमों के दौरान भी बे नमाज पढना करना नहीं भूलते | चाय कोफ़ी के बाद सभी लोग तैयार होने लगे उधर पंडाल खाचा खच भर गया था लोग मुशायरा शुरू करने की मांग कर रहे थे क्यों की मंच की व्यवस्था संभाल रहे हरदेश जी और श्री पंकज जी बार बार फोन कर रहे थे | मै बार बार एक महानुभाव को देख रहा था और पहचान ने की कोशिश कर रहा था फिर मेने हिम्मत जुटा कर बोला और सर्वत साहब कैसे है ये में खुश किश्मती थी की बे सर्वत साहब ही निकले मेने जब उन्हें बताया की मै पी सिंह हूँ तो उन्हों ने मुझे गले लगा लिया वाकई सर्वत साहब एक अच्छे शायर और नेक दिल इन्सान है उनसे काफी गुफ्तगू हुई बहुत मजा आया | सर्वत साहब ने मुझे एक इसे शख्स से मिलाया जिनका नाम है हादी जावेद जो आप में निराले व्यक्ति है वे हर मुशायरे को सुनते है और और उसको यू टूयूब पर पब्लिश करते है उन्हों ने एक शायर क्लब भी बना रखा है जिसमे सभी उभरते शायर जुड़े है | नए शयरों को मंच देने का उनका ये प्रयाश निश्चित ही सराहनीय है | इधर सभी लोग खाना खा रहे थे उधर भइया के पास हरदेश जी का बार बार फोन आ रहा था की पब्लिक हंगामा काट रही है कृपया आप सभी शायर को लेकर जल्दी आजाइए भैया बार बार फोन मुझे दे दे रहे थे क्योंकि वे कभी झूठ नहीं बोलते | खैर सभी लोग लगभग १०बजे मंच पर पहुँच गए |

इसके आगे की पोस्ट बड़े भैया माननीय श्री पवन कुमार जी लिखेंगे आप को निश्चित ही एसा महसूस होगा कि आप लाइव मुशायरा देख रहे है तो फिर तैयार रहिये मुशयरा पढने के लिए |

dhnyavad

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