पोस्ट की शुरुआत करने से पहले पुष्पेन्द्र सिंह को उनके पोस्ट (संतो के संत ज्ञानियो के ज्ञानी -ज्ञान सिंह ....) पर धन्यवाद देना जरुरी है, जिन्होंने ज्ञान सिंह जैसी महान विभूति को शब्दों में उकेरने में सफलता प्राप्त की। किन्तु यह भी सर्व विदित है की इतनी बड़ी हस्ती के लिए इतने शब्द पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए मैंने पुष्पेन्द्र सिंह की पोस्ट का और विस्तार करने का कठिन फैसला कर डाला...... इस क्रम में उनकी अनुमति ले ली गयी है । इस प्रकार यह पोस्ट ज्ञान सिंह पर लिखी पूर्व पोस्ट का शेषांश मात्र है................. ।
जैसा कि पुष्पेन्द्र सिंह बता चुके हैं कि "ज्ञान सिंह" प्रतिभा के अत्यधिक धनी है । अतः उनकी प्रतिभा की पुनरावृत्ति करना यहाँ आवश्यक नहीं है, किन्तु उनके दर्शन के ऊपर प्रकाश डालना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि जीने के लिए सांस लेना.................। ज्ञान सिंह का दर्शन ज्ञान का दर्शन है जिसके लिए उन्होंने वेद, योग, मीमांशा इत्यादि का अध्ययन किया है । उन्होंने कबीरदास जी की भांति वैवाहिक जीवन को ज्ञान एवं दर्शन में बाधा नहीं माना । उनके दर्शन का मूल आधार आशावादिता होने के साथ-साथ कर्म व परिणाम में अंतर्संबंध न होना है । उनके दर्शन की मूल व्याख्या इस संदर्भ में की जा सकती है कि वे सदैव पुलिस पद प्राप्ति की आशा करते रहे जिसके लिए उन्होंने कभी भी उचित कर्म नहीं किये । फलतः परिणाम उनकी आशाओं के विपरीत ही आता रहा। एक प्रसंग यहाँ छेड़ना अतिआवश्यक है ----- 2001 की पुलिस भर्ती में ज्ञान सिंह का स्थान पीछे से प्रथम आया जिसपर उन्होंने तनिक भी घमंड नहीं किया। हालांकि अपनी असफलता उन्होंने स्वीकारी और कहा कि एक प्रश्न मुझे आता था, गलत हो गया । यदि सही हो जाता तो मैं पुलिस की नौकरी प्राप्त कर लेता । प्रश्न था ---- "प्राचीन समय में डाक का काम कौन सा पक्षी करता था ?" ज्ञान सिंह ने अपने दर्शन का प्रयोग किया और "काउआ (कौवा) " को प्राथमिकता देते हुए उत्तर स्वीकारा । इसी तरह ज्ञान सिंह .ने परीक्षा में पूछे गए समस्त प्रश्नों के उटपटांग उत्तर देते हुए चालीस में से मात्र एक अंक प्राप्त किया ।
उनके दर्शन को गेय पद ( शायरी ) के रूप में संजोया गया है । उनकी एक शायरी गागर में सागर की तरह है -
सत्तर के फूल इकहत्तर की माला।
बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला ॥
इस शायरी में उन्होंने दोहे, छंद, सोरठे की समस्त विशेषताओं को शामिल किया है इसलिए यह अनूठी बन पड़ी है । उन्होंने दर्शन में विलासिता युक्त सामिग्री (सिगरेट, गुटखा, ठर्रा ) को भी स्वीकारा और माना कि भगवान् से प्रत्यक्ष दर्शन का यह शॉर्टकट है। ज्ञान सिंह के दर्शन का एक और सबल पक्ष उनकी शारीरिक भाव - भंगिमाएं भी हैं जो अनायास ही आपको आकर्षित कर लेंगी .......... यथा -- एक भोएं को चलाना, मूंछो में ठहराव लाकर होठों को गतिमान करते हुए "सासुके " शब्द का प्रयोग करना इत्यादि । पान खाने के उपरान्त कांतिमय चेहरे पर चार चाँद लग जाते हैं, और उनके गाल अर्ध्गुम्बदाकार हो जाते हैं । लाल रंग के दांत "मेहराब" (मुग़ल कालीन ईमारत को सुन्दर बनाने की युक्ति ) का कार्य करते हें जिसके मध्य उनकी जिह्वा माहौल में मखौल घोलने के लिए स्वतंत्रता से संवाद बोलती है........ इसलिए उनकी भाषा शैली मनोरंजक बन पड़ती है उन्होंने कभी भी बड़े "आ" और बड़ी "ई " का प्रयोग नहीं किया यथा शराबी को वे शरबि बोलते हैं । इस शैली से उनके शिष्यों कि संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई ---- पिंटू, टिंकू, चिंटू, संदीप, दिलीप एवं लेखक भी उनके परम शिष्य है।
इस प्रकार ज्ञान कि प्रतिमूर्ति परम पूज्यनीय ज्ञान सिंह जी अपने समकालीन ज्ञानियो, संतों से कहीं आगे निकल गए हैं ........ ऐसे ज्ञान सिंह (जीजटा , प्यारा जीजा) ज्ञानी की पूरे समाज में जय हो जय हो जय हो .................................... ।
----श्यामकांत
Wednesday, June 16, 2010
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6 comments:
श्यामू
ए.....मईया जू तुमने कहा लिख डारो....! ऐसें तो जीजटा मतबल गियान सिंह पे पहलेऊं पोस्ट आई हथी लेकिन जा पोस्ट ने तो रिकोट तोर दये......तुमऊ आईअय जा ब्लॉग पे.....भली करी .
PK
dear shyamu..
what a great piece of writing . not even a single grammatical or linguistic error in whole article . every one should have a lesson from you . a grand ..mega opening in blog's world . hat's off to you my dear .
श्यामू मेरे भाई.......................मेरे यार
मेरे दिल ...........मेरी जान
क्या लिख दिया तुमने ......... लाजबाब इस ब्लॉग की
अबतक की सबसे बेहतरीन पोस्ट यार मजा आगया
मेरी सारी पोस्ट इस एक पोस्ट पर कुर्बान .........
पहली ही पोस्ट में दिल जीत लिया यारा ......
अब आयेगा असली मजा..............................
"तुम आए इस सफ़र में तेरा अहतराम होगा |
हर बुलंदी पर ऐ दोस्त सिर्फ तेरा नाम होगा ||"
मेरा दिल से सलाम...............!
बहुत बेहतरीन लिखा आपने ............
परिपक्व भाषा और व्यंगात्मक शैली का अद्भुत मिश्रण आपने प्रस्तुत किया है .
ब्लॉग पर शुरुआत करने के लिए शुभकामनाएं
ha...ha...ha...maja aagya.
वाह ! भैया क्या लिखा है आपने ..........
आपने तो अपने लेख में ऐसे बयान किया जीजा के बारे जिससे उन्हें कोई बिन देखे भी पहचान सकता है ................
इसमें जो आपने गागर में सागर लिखा है उसे पढ़कर मज़ा आ गया !!!!
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