उपनाम, जैसा कि शब्द मात्र से स्पष्ट होता है कि किसी व्यक्ति विशेष के मूल नाम के अतिरिक्त अन्य नाम का होना ।
ये उपनाम किसी व्यक्ति विशेष के चरित्र , विशेषता, पेशा, भाव - भंगिमाओं से जुड़े हैं । इस बाबत ये उपनाम उस व्यक्ति की संपूर्ण विशेषताओं को उजागर करने का भी काम करते हैं । ये उपनाम देने कि व्यवस्था ऐसी है कि यदि किसी व्यक्ति को उपनाम प्रदान कर दिया तो बस फिर ये उपनाम देने का सिलसिला एक दो नाम देने से नहीं ठहरता है । यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक उस व्यक्ति को कई नाम नहीं दे दिए जाते । इस क्रम में कभी तो व्यक्ति स्वेच्छा से तो कभी मजबूरीवश इन्हें स्वीकार करता है ।
उपनाम देने की यह परंपरा सिंह सदन में खासी मशहूर है । ख़ास तथ्य यह है कि सिंह सदन के अधिकांश सदस्यों को सिंह सदन के ही सदस्यों द्वारा उपनाम प्रदान किये जाते रहे हैं । सिंह सदन में उपनामों की लम्बी फेहरिश्त है जिसमें सिंह सदन की बड़ी - बड़ी हस्तियाँ भी शामिल हैं । यथा पवन भैया, पंकज भैया , जोनी भैया, पिंटू भैया , प्रमोद भैया, बड़े मामा , जीजा, चिंटू, संदीप, दिलीप, भूरेलाल, सतीश, और यहाँ तक कि सिंह सदन के बॉस पापा (डी. पी . सिंह) भी उपनामों के वार से स्वयं को नहीं बचा पाए ।
शुरुआत करते हैं ब्लॉग की नींव रखने वाले पवन भैया से ................ वे सदैव ही उपनामों से घिरे रहे । बचपन में उन्हें कुल्ल्ड़ और बैगन नाम दिए गए । बड़े होने पर वे सबके पौनअइया बन गए । कुल्ल्ड़ और बैगन जैसे उपनामों की प्रासंगिकता समय के साथ समाप्त हो गयी । हाल में वे बिग बी , सुप्रीमो और बड़े लला के नाम से प्रसिद्धि पा रहे हैं ।
अब बात पंकज भैया की .................. उनके बचपन के पेड़ा, घंटा- घोटालाल और हीरो जैसे उपनाम काफी चर्चा में रहे । चूँकि पेड़ा उन्हें अत्यधिक प्रिय था इसलिए उनका नाम पेड़ा पड़ा, जबकि घंटा- घोटालाल व हीरो उपनाम उन्हें, उनकी स्टाइल के चलते मिले । जबकि शान्ति आंटी और सरला बुआ उन्हें डीलू कहकर बुलाती थीं ।
इसी क्रम में हमारे होनहार पुष्पेन्द्र सिंह को भी नहीं बख्शा गया । उन्हें बहादुरी के चलते शेरा , सुन्दरता के चलते फूलों के राजा जैसे उपनामों से नवाजा गया किन्तु उनकी प्रसिद्धि मूलतः मौहफूला, इमोशनलिया , और सियाराम जैसे उपनामों से है । इमोशनलिया नाम फिल्म देखते समय उनकी भावुकता का नतीजा था । जबकि सियाराम का स्लोगन "एक छोटा सा रोटा दे दे " उनपर खूब फवा ।
और हमारे जोनी भैया का तो कहना ही क्या ! उनके तो इतने उपनाम हैं की उनका मूलनाम वास्तव में उनकी शादी के उपरान्त ही जुवान पर आया है । बचपन के पड़ाव को वे पार भी न कर सके थे कि उन्हें हवेली , सिंघाड़ा , पेटू के उपनामों से नवाजा गया । युवावस्था में वे भगतिया , निराला, के नाम से सिंह सदन के सदस्यों को गुदगुदाते रहे ।
सिंह सदन के अन्य सदस्यों में सिंह सदन के बॉस पापा डी पी सिंह- कामरेड कहलाये जबकि प्रमोद भैया को सुस्त कुमार , बुदबुद , छह' चार (6' 4") नाम दिए गए, तो संदीप - डिगे, और दिलीप कालिया और भड़भड़िया के उपनाम से पुकारे गए । चिंटू -चिमटा, फुन्सालाल, मलय्या के नाम से जाने गए ।
घर के अन्य बड़े सदस्यों में बड़े मामा -लम्बरदार, शादीलाल घरजोड़े , छोटे मामा - चच्चू, राकेश जीजा - फौजी , भूरेलाल - बण्डल , बबलू भैया - वाइक , टशनी और शबरी , सतीश - गुल्लू, हजारी जैसे उपनामों से पुकारे गए ।
लेखक स्वयं भी उपनामों के जाल से नहीं बच सका है उसे ऍफ़ एन सी ( फर्जी न्यूज़ चैनल ), श्याम्लो पिकासो और चौटाला नाम दिए गए ।
कुछ सदस्य अपने संवादों के चलते भी प्रसिद्धि पा चुके हैं यथा पापा -"फिर क्या सिपुल्ली और दरोगी को जो हडकाया है, निकल के लम्बे हो लिए ।" बड़े मामा - "हम आपकी भी कहेंगे और आपको भी बूझेंगे ।" जालंधर वाले मौसा -" पवने तुम कब आयेंगे ?" बबलू भैया - " बाबरी हो री है क्या ?"
कुल मिलाकर उपनामों का ये सिलसिला प्यार और विश्वास को और बढाता है हमें एक दूसरे के और करीब लाता है, मै चाहता हूँ ये सिलसिला थमे नहीं । सिंह सदन की यह परंपरा निर्वाध रूप से आगे भी चलती रहे ................
धन्यवाद
श्यामकांत
Friday, June 18, 2010
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6 comments:
dear shyamu...
very joyfull article. a classic satire.. but you missed some ... like KASTURI, JONJY(JONY), ENTHILA(PINTU),PINKAJ, TITTAD PITTI,KAPALFOD, helmit(CHINTU),SANDIPAN,BITOLA,MAMOLA(AMMA) etc..
श्यामू
मजा आ गया यार कमाल कर दिया इस बार भी सिक्स जड़ दिया
वो गुगली पर ....................
मुझे मालूम था कि जब तुम्हरी कलम चलेगी तो हम लोगों के लिए
कुछ रह नहीं जायेगा .........
और ऊपर से ये फोटो ग्राफ................
दिल गार्डन गार्डन हो गया
दिल खुश कर दिया यारा ...........लगे रहो
दिल से बधाइयाँ................
Very Very nice line about Pawan Sir.
"कारू का खज़ाना".....ये जुमला बहुत सुना था हमने......अभी तक तो यह अप्राप्य था मगर तुम्हारे लेखों से लग रहा है कि वो तुम्हारे ही हाथ लगा है....! नए नए जुमले उछाल रहे हो....नयी नयी बातें कर रहे हो.......लोगों की बखियां उधेड़ रहे हो......! वैसे लेख बहुत जोरदार था .....हँसते हँसते हाल बुरा हो रहा है.......ऐसा लगा कि उपनामों का इन्साइक्लोपीडिया पढ़ रहा हूँ....क्या मैं, क्या पंकज, क्या गुरुदेव, जोनी,पिंटू..........पुरे कुनबे का हाल -बेहाल कर दिया तुमने......ज्ज्ज्जजजीयो......!
ब्लॉग पर तूफानी उपस्थिति के लिए बहुत बहुत बधाई......! अगले पोस्ट का बेसब्री से इन्तिज़ार रहेगा.....!तस्वीरें भी अनमोल हैं.....
*****PK
वह ! श्यामू मामा क्या बात है !
आपने जिस तरह से ब्लॉग पर एंट्री मारी वो वास्तव में काबिलेतारीफ है मैं जानता हूँ आप हर क्षेत्र में आगे हैं ..........
और ब्लॉग पर आकर आपने साबित कर दिया है ..
No one like you
बस मैं भगवान् से ये ही प्रार्थना करता हूँ की आपको आपका aim जल्दी मिले !!!!!!!!!!!
यार श्यामू मेरा एक नाम भूल गए..बचपन में नवासी(८९) नहीं जनता था...सो काफी दिनों तक मेरा नाम नवासी भी रहा.लाज़बाब पोस्ट.
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