अब जबकि यारों के नाम की महफिल सजी हो तो भला सत्येन्द्र सागर को कैसे भूला जा सकता है.....। सत्येन्द्र सागर जिन्हें मैं प्यार से ‘सागर‘ नाम से सम्बोधित करता हूँ।
सागर से मेरा याराना 12-13 साल पुराना है। सामान्यतः ऐसा होता है कि जब उम्र बढने लगती है तो बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिनसे दिली-लगाव हो पाता है। नौकरी में आने के बाद तो भावनात्मक किस्म की मित्रता हो पाना तो और भी असंभव होता है......किन्तु इस मिथक को मेरी और सागर की मित्रता ने तोडा है। हमारी मित्रता नौकरी में आने के बाद शुरू हई। 1999 में जब मेरी पहली पोस्टिंग कानपुर एच0बी0टी0आई0 हुई तो सागर की पोस्टिंग तकनीकी शिक्षा निदेशालय में हुई। एक ही सेवा में होने के कारण मेल-जोल स्वाभाविक था। यह मेल-जोल बहुत जल्दी ही परवान चढ गया। एक महत्वपूर्ण समानता तो यह थी कि सागर और हमने एक ही साथ सेण्ट जॉंस कालेज आगरा से ग्रेजुएसन किया था, इसके अलावा और भी कई समानताएँ हमारे बीच थीं......सो मित्रता बहुत जल्दी भ्रातृत्व में परिवर्तित हो गई। सुबह-शाम साथ रहने लगे.....स्थिति यह थी कि वित्त सेवा में हम 'सागर-पवन' की जोडी के रूप में प्रसिद्ध हो गए। सागर की भी नयी-नयी शादी हुई थी, मैं भी जल्दी ही परिणय सूत्र में बंधा था सो अंजू और सागर की धर्मपत्नी श्रीमती भावना के बीच भी ननद-भौजाई वाला ऐसा रिश्ता कायम हो गया। ये रिश्ता तब से आज तक बदस्तूर कायम है।
दरअसल नौकरी में आने के पूर्व से ही मैं सागर से परिचित था, हालांकि मुलाकात नहीं हुई थी। दरअसल 1997 में ग्रेजुएसन के दौरान भारतीय जीवन बीमा निगम में सहायक विकास अधिकारी के लिए जब परीक्षा हुई तो इत्तफाक से हम-दोनों ने क्वालीफाई किया, सागर ने तो ये नौकरी ज्वाइन भी कर ली और वहीं से तैयारी कर पीस0सी0एस0 परीक्षा में सफलता हासिल की और वित्त सेवा में आ गए। सम्प्रति वे अलीगढ में जिला ग्राम्य विकास प्राधिकरण में वरिष्ठ वित्त अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।
सागर के व्यक्तिगत जीवन के विषय में रोशनी डालना ज़रूरी समझता हूँ .....सत्येन्द्र सागर मूलतः आगरा के निवासी है। दसवीं कक्षा एम0एम0 शैरी से और बारहवीं कक्षा नारायण दास छज्जूमल वैदिक इन्टर कॉलेज से करने के बाद सागर ने सेण्ट जॉस कॉलेज से स्नातक किया। अर्थशास्त्र में रूचि होने के कारण परास्नातक आगरा कॉलेज से अर्थशास्त्र से किया। तीन भाई व एक बहन वाले परिवार में वे सबसे बडे हैं। उनका परिवार पूर्व में संयुक्त परिवार रहा है, सो सागर का खानदान भी ‘सिंह सदन‘ की तरह काफी फैला हुआ है। ‘सिंह-सदन‘ के युवा ब्रिग्रेड के भांति सागर के परिवार में भी युवाओं की बडी संख्या है।
सागर की सबसे अनोखी विशेषता उनका हंसमुख-विनोदी स्वभाव है। हमेशा ‘कूल‘ दिखने वाले सागर को शायद ही कभी गुस्सा आता हो। मैंने अपने जीवन में बहुत कम ऐसे लोग देखे हैं जो इतने जागरूक व अपडेट हों। दुनिया के किसी भी विशय पर उनसे वार्तालाप किया जा सकता है। धर्म- साहित्य- संगीत- कला- राजनीति- अर्थषास्त्र- समाजशास्त्र में जो भी अद्यावधिक होता है, सागर उससे अछूते नहीं रहते। मुझे बौद्धिक बहस-विमर्श करने का जो आनन्द उनके साथ आता है, वह आनन्द मुझे बहुत कम लोगों के साथ आता है। मुझे याद है कि जब मैं सिविल सेवा की परीक्षा दे रहा था तो मैं और सागर दिन-रात एक किये हुए थे.....सागर भी परीक्षा दे रहे थे। हम दोनों के बीच जबरदस्त बौद्धिक विमर्श हुआ करते थे......यह विमर्श परीक्षा में काफी लाभप्रद सिद्ध हुए। मैं उस परीक्षा को उत्तीर्ण कर आई ए एस बना, दुर्भाग्य से सागर उस परीक्षा में सफल नहीं हो सके, लेकिन मेरी इस सफलतामें सागर का योगदान अतुलनीय रहा। सागर ने ‘इन्टरव्यू‘ के दौरान गाजियाबाद में एक सप्ताह रूक कर मुझे मॉक इन्टरव्यू कराने में जो सहयोग किया वह तो अविस्मरणीय है।
सागर के बौद्धिक व्यक्तित्व का तो मैं फैन हूँ ही, उनके विनोदी स्वभाव का मैं उससे भी बडा प्रशंसक हूँ । हरेक बात में ‘हंसी‘ के तत्व खोज लेना और उस पर ठहाका मार कर न केवल स्वयं हंसना बल्कि पूरी महफिल को हंसने पर विवश कर देना, उनके व्यक्तित्व को सहज आकर्षक बनाता है। उम्र को भूलकर बच्चों में बच्चों सी और बुजुर्गो में परिपक्वता की बातें करना सागर की सबसे बडी सहजता है। सागर भले ही दो प्यारे से बच्चों ‘कुणाल-शोभित‘ के पिता हों, किन्तु वे स्वभावतः स्वयं भी बच्चों से कम नहीं। ‘सिंह-सदन‘ के हरेक सदस्य के वे प्यारे हैं.....श्यामू के तो वे पसंदीदा व्यक्ति है। श्यामू की बौद्धिकता और अल्हडपन, सागर के साथ मिलकर दुगुनी हो जाती है।
हमारी दस-बारह साल की मित्रता का ये सफर बहुत भावनात्मक रहा है.......मुझे याद है जब भारत-दर्शन में अंजू को लक्षद्वीप आना था तो सागर ही अंजू को लेकर मेरे पास केरल पहुंचे थे। वैसे भी सागर के साथ मैंने बहुत से ‘विण्टर वैकेसन‘ गुजारे हैं। उनके साथ पर्यटन पर निकलना हमेशा ही मजेदार होता है। लक्षद्वीप, एर्नाकुलम , कौसानी, नैनीताल, गोवा.....इन स्थानों पर सागर के साथ मैंने जो मजा किया है वह मैं कभी भूल नहीं सकता। सागर और मेरी मित्रता की डोर ‘पद-प्रतिष्ठा -अहम‘ आदि से बहुत ऊपर उठी हुई है।
मैं शुक्रगुजार हूँ ईश्वर का जिसने मेरी जिन्दगी में सागर जैसा मित्र दिया जो बहुत सारी खूबियों का मालिक है। ‘सिंह सदन‘ की तरफ से उनका मान सम्मान रखते हुए मैं उनके लिये कहना चाहूँगा .....
वो कौन है क्या है कैसे कोई नजर जाने,