इस माह्ज़बी कायनात के हैं करम मुझ पर,
जो उसकी नायाब अमानत में मुझे उल्फत मिली ।
मैं तो इस काबिल नहीं जो आपसे निसवत कर सकूँ,
फिर भी मुझे आपके नग्मों कि जन्नत मिली ।
यूँ तो आप फलक की मलिकाओं की नजीर हैं,
कैसे मुझे खुद में आपके सपनो कि नाज़नीं मिली।
शामो सहर हर सोखियाँ आप में ही खोयी रहती हैं ,
मेरी धड़कन अब आपकी सबाहत पर मिटीं।
अब तो तमन्ना है मेरी, मैं आपकी हो जाऊं ।
क्यों आपके इंतज़ार को मेरी पलकें हर पल बिछीं ॥
* * * * * NEHA SINGH '' BITIYA ''
Wednesday, June 16, 2010
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6 comments:
अच्छा तो मोहतरमा ग़ज़ल में भी अपने हुनर का बखूबी इस्तेमाल कर रही हैं.....उम्दा और कामयाब कोशिश है. हमें तो आपका यह नजराना खूब- खूबतर भाया. आगे भी ये सिलसिला बनाये रखें...!अल्फाज़ अदायगी बहुत संजीदा है....!
पकु
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी है बिटिया !ये शेर तो बड़ा ही सार्थक है
इस माह्ज़बी कायनात के हैं करम मुझ पर,
जो उसकी नायाब अमानत में मुझे उल्फत मिली ।
तुम्हारी अंजू भाभी
बिटिया
बहुत ही उम्दा रचना
बढ़िया ख़यालात से सजी पोस्ट
लिखती रहो .............
आभार
बहुत सुन्दर पोस्ट .......
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए मेरी ओर से शुभकामनायें .
प्रिय बिटिया ...
तुम्हारी रचना पढ़ी .. यह उतनी ही सुन्दर है जितनी कि स्वयं तुम और तुम्हारे अच्छे विचार ...वास्तव में लेखनी व्यक्तित्व का ही विस्तार होती है ..उसका आईना होती है ! यह रचना तुम्हारी नेकदिली और दूसरों को ख़ुशी देने की तुम्हारी शिद्दत को बयान करती है ...
khubsurat jazbaat ko sundar dhang se pesh kiya...photo to kamal lagya.ab bitiya nahi...khrbuje wali bolunga.
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