वो मुझे बहुत प्यार करते हैं..........मेरा बहुत ख्याल रखते हैं ...........मैं जब भी किसी तकलीफ में होती हूँ, मेरा दर्द वो भी महसूस करते हैं..........। वो मेरे वजूद का अहम् हिस्सा हैं और उसका कारण भी............. वो मुझे कामयाबी की ऊँचाइयों पर देखना चाहते हैं और इसके लिए पूर्ण रूप से समर्पित भी हैं..............
ऐसे हैं मेरे पापा ...............
हम तीनो बच्चों में पापा मुझसे बहुत लगाव रखते हैं, शायद सबसे ज्यादा। मेरी जरूरतों का वो पूरा ध्यान रखते हैं। मेरी ख़ुशी के लिए वो सब कुछ करते हैं । मुझे याद हैं मेरे बचपन के वो दिन जब मैं अपने स्कूल में संगीत शिक्षिका को तबला बजाते देखती थी, तो उन्हें देखते देखते मेरे मन में कब तबला सीखने का जुनून पैदा हो गया मुझे पता ही नहीं चला। अब सोते जागते -उठते बैठते, हर वक़्त मुझे सिर्फ तबला ही दिखाई देता। पता नहीं पापा ने मेरे मन को कैसे पढ़ लिया। और एक दिन सुबह जब मैं सोकर उठी तो मेरे बिस्तर पर एक बैग रखा था जिसमे तबला रखा था। उस समय मुझे कितनी ख़ुशी हुई इसे शब्दों में बयां करना मेरे लिए असंभव है। मैं उस अनमोल उपहार को सबको दिखाती फिर रही थी, अपनी किस्मत पर इतराती फिर रही थी।
फिर मेरे अबोध मन की स्वभाविक प्रवत्ति थी कि इस बार मेरा मन कैशियो( वाद्य यन्त्र) पर आ गया। पापा ने फिर मेरे कहे बिना मेरी पसंद, मेरी ख़ुशी मुझे भेंट की।
ऐसी न जाने मेरी कितनी ख्वाहिशों को पापा ने पूरा किया है. मेरे जीवन को सुख सुविधा संपन्न बनाया है । लेकिन पापा स्वयं मजबूत आर्थिक प्रष्ठभूमि से नहीं थे। अध्ययन के माहौल और संसाधनों के अभाव के बाबजूद वे लगन और वचनवद्धता से पढते रहे। आई ई आर टी इलाहाबाद से ८२% अंकों( फर्स्ट क्लास ऑनर्स) से डिप्लोमा करके जल्द सरकारी सेवा में आ गए। वे अपने परिवार ही नहीं बल्कि पूरे गाँव के लिए नई रौशनी प्रेरणा बने।आज भी मैं जब अपने गाँव जाती हूँ तो लोग मुझे बाबूजी की बिटिया, इन्जीनियर साहब की बिटिया बुलाते हैं तो मुझे खुद पर फख्र होता ।
पापा का अपने परिवार के प्रति समर्पन भाव अनूठा है। शायद इसलिए वे अपनी माँ, भाई बहनों के लिए आदर्श हैं। वे सभी को भावनात्मक और आर्थिक सहयोग देते हैं। लेकिन इसका उनके मन में लेशमात्र भी घमंड नहीं है। वे आत्मनिर्भर हैं और स्वाभिमानी भी। आत्मविश्वाश उनमें कूट कूट कर भरा है। दूसरों को सम्मान देने में वे कभी संकोच नहीं करते। और उनकी मेहमाननवाजी की तो मैं खुद कायल हूँ। तो उनकी सीखने की ललक हम बच्चों को भी शर्मिंदा कर देती है। हर किसी के प्रति दया भाव मैंने अपने पापा से ही पाया है। मैंने कभी उन्हें व्यर्थ में समय बर्बाद करते नहीं देखा। उनकी जीवनशैली बहुत ही सकारात्मक है।
पर मैंने बचपन से ही अपने माँ पापा को स्वास्थ्य से संघर्ष करते देखा है। उन्हें असहनीय पीड़ा को सहते देखा है। लेकिन फिर भी वे अपने जीवन को ख़ुशी से जीते हैं, जिन्दादिली से जीते हैं।
पापा वास्तव में अपने जीवन की सभी भूमिकाओं को परिपक्वता से जीते हैं। हर रिश्ते को संजीदगी से जीते हैं। लेकिन मैं उनके प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कई बार असफल हुयी हूँ। अपने बेबाक बोलने की आदत के चलते मुझसे कई बार उनकी उपेक्षा हुयी है। लेकिन उन्होंने हमेशा मुझे माफ़ कर दिया । उनका स्नेह आज भी मेरे लिए पहले की तरह है ........ निस्वार्थ .......पवित्र........ अविरल.........आदर्श ।
हालाँकि ये बातें काफी पुरानी हैं । तब मै छोटी थी और नासमझ भी । पर गलतियाँ तो मैंने की हीं. इसके लिए मै उम्र या अवस्था का बहाना नहीं ले सकती। मै ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ की वो मुझसे अब कोई अपराध न होने दें। मुझे सत्कर्म ,सदाचार ,सदभावना की ओर प्रेरित करे । मेरे मम्मी पापा को दीर्घायु करे और उनके सभी शारीरिक कष्टों को हर ले । मुझे इस काबिल बनाये कि मै उन्हें जीवन के सभी सुख दे सकूँ ........संतुष्टी दे सकूँ ................. वास्तव में पापा मैं आपके प्रति अपने लगाव को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती .............................
***BITIYA***
ऐसे हैं मेरे पापा ...............
हम तीनो बच्चों में पापा मुझसे बहुत लगाव रखते हैं, शायद सबसे ज्यादा। मेरी जरूरतों का वो पूरा ध्यान रखते हैं। मेरी ख़ुशी के लिए वो सब कुछ करते हैं । मुझे याद हैं मेरे बचपन के वो दिन जब मैं अपने स्कूल में संगीत शिक्षिका को तबला बजाते देखती थी, तो उन्हें देखते देखते मेरे मन में कब तबला सीखने का जुनून पैदा हो गया मुझे पता ही नहीं चला। अब सोते जागते -उठते बैठते, हर वक़्त मुझे सिर्फ तबला ही दिखाई देता। पता नहीं पापा ने मेरे मन को कैसे पढ़ लिया। और एक दिन सुबह जब मैं सोकर उठी तो मेरे बिस्तर पर एक बैग रखा था जिसमे तबला रखा था। उस समय मुझे कितनी ख़ुशी हुई इसे शब्दों में बयां करना मेरे लिए असंभव है। मैं उस अनमोल उपहार को सबको दिखाती फिर रही थी, अपनी किस्मत पर इतराती फिर रही थी।
फिर मेरे अबोध मन की स्वभाविक प्रवत्ति थी कि इस बार मेरा मन कैशियो( वाद्य यन्त्र) पर आ गया। पापा ने फिर मेरे कहे बिना मेरी पसंद, मेरी ख़ुशी मुझे भेंट की।
ऐसी न जाने मेरी कितनी ख्वाहिशों को पापा ने पूरा किया है. मेरे जीवन को सुख सुविधा संपन्न बनाया है । लेकिन पापा स्वयं मजबूत आर्थिक प्रष्ठभूमि से नहीं थे। अध्ययन के माहौल और संसाधनों के अभाव के बाबजूद वे लगन और वचनवद्धता से पढते रहे। आई ई आर टी इलाहाबाद से ८२% अंकों( फर्स्ट क्लास ऑनर्स) से डिप्लोमा करके जल्द सरकारी सेवा में आ गए। वे अपने परिवार ही नहीं बल्कि पूरे गाँव के लिए नई रौशनी प्रेरणा बने।आज भी मैं जब अपने गाँव जाती हूँ तो लोग मुझे बाबूजी की बिटिया, इन्जीनियर साहब की बिटिया बुलाते हैं तो मुझे खुद पर फख्र होता ।
पापा का अपने परिवार के प्रति समर्पन भाव अनूठा है। शायद इसलिए वे अपनी माँ, भाई बहनों के लिए आदर्श हैं। वे सभी को भावनात्मक और आर्थिक सहयोग देते हैं। लेकिन इसका उनके मन में लेशमात्र भी घमंड नहीं है। वे आत्मनिर्भर हैं और स्वाभिमानी भी। आत्मविश्वाश उनमें कूट कूट कर भरा है। दूसरों को सम्मान देने में वे कभी संकोच नहीं करते। और उनकी मेहमाननवाजी की तो मैं खुद कायल हूँ। तो उनकी सीखने की ललक हम बच्चों को भी शर्मिंदा कर देती है। हर किसी के प्रति दया भाव मैंने अपने पापा से ही पाया है। मैंने कभी उन्हें व्यर्थ में समय बर्बाद करते नहीं देखा। उनकी जीवनशैली बहुत ही सकारात्मक है।
पर मैंने बचपन से ही अपने माँ पापा को स्वास्थ्य से संघर्ष करते देखा है। उन्हें असहनीय पीड़ा को सहते देखा है। लेकिन फिर भी वे अपने जीवन को ख़ुशी से जीते हैं, जिन्दादिली से जीते हैं।
पापा वास्तव में अपने जीवन की सभी भूमिकाओं को परिपक्वता से जीते हैं। हर रिश्ते को संजीदगी से जीते हैं। लेकिन मैं उनके प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कई बार असफल हुयी हूँ। अपने बेबाक बोलने की आदत के चलते मुझसे कई बार उनकी उपेक्षा हुयी है। लेकिन उन्होंने हमेशा मुझे माफ़ कर दिया । उनका स्नेह आज भी मेरे लिए पहले की तरह है ........ निस्वार्थ .......पवित्र........ अविरल.........आदर्श ।
हालाँकि ये बातें काफी पुरानी हैं । तब मै छोटी थी और नासमझ भी । पर गलतियाँ तो मैंने की हीं. इसके लिए मै उम्र या अवस्था का बहाना नहीं ले सकती। मै ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ की वो मुझसे अब कोई अपराध न होने दें। मुझे सत्कर्म ,सदाचार ,सदभावना की ओर प्रेरित करे । मेरे मम्मी पापा को दीर्घायु करे और उनके सभी शारीरिक कष्टों को हर ले । मुझे इस काबिल बनाये कि मै उन्हें जीवन के सभी सुख दे सकूँ ........संतुष्टी दे सकूँ ................. वास्तव में पापा मैं आपके प्रति अपने लगाव को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती .............................
***BITIYA***
5 comments:
सच कहा बिटिया अंकल जी
वाकई बहुत मेहनती और जिंदादिल इन्सान है उन्हों ने न सिर्फ अपने या अपने परिवार के लिए किया है बल्कि समाज को भी बहुत कुछ दिया है | आंटी जी के बारे में क्या
कहूँ वे तो साक्षत देवी स्वरुपा है.......
में उन्हें प्रणाम करता हूँ
क्या शानदार लिखा बिटिया....इनाम देने का मन कर रहा है
प्रिय बिटिया ..
तुम्हारा लेख बेहद संवेदनशील है ... इससे तुम्हारे ह्रदय की भावुकता और समझदारी का एहसास होता है ..मैं यह तो नहीं जानता कि तुमने जीवन से क्या - क्या सपने पाल रखे हैं ...और कामयाबी और सफलता के मायने तुम्हारे लिए क्या हैं.. पर भौतिक सफलताओं की ''सीमायें'' होती हैं ..यह ज्यादा कुछ साबित नहीं करतीं !
... एक नेकदिल इंसान मात्र बन कर जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाता है ... और इस पैमाने पर मेरी नज़र में तुम बहुत कामयाब हो !!
बहुत सही लिखा .........
सुन्दर लेखनी ....
गुड वैरी गुड
बिटिया,
......तुम्हे तो ढंग से याद भी नहीं होगा तब तुम बहुत छोटी थीं.....अंकल मेरे लिए आदर्श रहे हैं....! 1992 के बाद से आज तक अंकल से मेरे रिश्ते बहुत करीबी रहे हैं.....कई घटनाएं ऐसी हैं की जो तुम्हे भी नहीं मालूम होगी.....! जब अंकल ने गाँव में मकान बनबाया था तो मैं वहां गया था तब उनकी शख्सियत का अंदाजा मुझे हुआ था.....जब अंकल के बड़े भाई यानि तुम्हारे ताऊ जी छत से गिरे थे तो अंकल ने जिस तरह उनकी सेवा की थी, वो दृश्य अभी तक मेरे आँखों के सामने है. अपनी माँ- पिताजी की भी जिस तरह उन्होंने सेवा की...उसकी तो मिसाल दी जा सकती है. अपनी बीमारी के बावजूद आंटी की तबियत की देखभाल करने में उनकी निष्ठां तारीफ के काबिल है....! तुम्हारे लेख के बाद मेरा जी कर रहा है मैं उन पर एक विस्तृत लेख लिखूं.....! जीवन में जिन व्यक्तियों से मैं बहुत प्रभावित हूँ यकीं मानो अंकल उनमे से एक हैं.......!
*****PK
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