..... मुझसे बुरा न कोय !
बात बचपन के दिनों की है .... बात बांगरमऊ ( उन्नाव ) की है !
... यहीं से मैंने स्कूल जाना शुरू किया था ! ८० के दशक में यह जगह छोटी सी थी पर '' हमारा '' दाखिला यहाँ के सबसे अच्छे स्कूल में कराया गया .. ''हमारा'' यानि मैं और भैया !
बचपन में ...तब स्कूल मेरे लिए ''सजा'' की तरह होता था ! हर सुबह स्कूल से बचने के लिए नए- नए बहाने सोचता था.... पर बच न पाता था .... कारण भैया जो मुझसे तीन क्लास आगे थे ... उन्हें स्कूल जाने में कोई दिक्कत न थी... और हम दोनों जब पैदल ही स्कूल जाते थे .... तो मैं एक अनुयायी की भांति उनके पीछे - पीछे चलता जाता था.... और बेमन से कब स्कूल पहुँच जाता.... ये तो पहुँच कर ही पता चलता !
यहीं स्कूल में .... मेरे पहले ही वर्ष में एक घटना घटी ! मेरी एक टीचर जो मेरा काफी ध्यान रखती थीं ... वे भैया की भी टीचर थीं ! उन्होंने मुझे एक दिन भैया की क्लास में बुलाया .. भैया के क्लास के कुछ शरारती लड़कों ने उन टीचर महोदया से भैया की झूठी शिकायत की थी ... कि भैया फालतू लड़कों के साथ कंचे खेलते हैं ... इसी की पुष्टि के लिए टीचर ने मुझे बुला भेजा था !
टीचर ने बीच क्लास में खड़ा कर मुझसे पूछा कि क्या यह शिकायत सही है ?.. और मैंने भी झूठ बोल दिया ... '' हाँ '' ...इसके बाद भैया को डांट भी पड़ी ... और सजा भी मिली ! एक निरपराध अबोध को मेरी आँखों के सामने अपराधी ठहराया गया !
ज़िन्दगी में मैंने बहुत सी गलतियां ... ज्यादतियां की हैं ... पर यह एक ऐसा ''जघन्य '' अपराध मुझसे हो गया जिसके लिए मैं आज भी शर्मिंदा होता हूँ .. रोता हूँ .. और पश्चाताप की आग में जलता हूँ ... इसलिए और ज्यादा जलता हूँ क्योंकि इतनी बड़ी घटना के बाद भी भैया ने मुझे तत्काल माफ़ कर दिया था .. और कहीं इसकी चर्चा तक नहीं की थी .. न ही नाराज़ हुए ... न ही डांटा ... और न ही कुछ पूंछा ! स्कूल ख़त्म होने के बाद उसी स्नेह से अपने साथ पैदल मुझे घर ले गए !
... भैया हो सके तो मुझे माफ़ कर देना ! !
* * * * * PANKAJ K. SINGH
5 comments:
भैया कितनी सच्चाई है आपके शब्दों में..............
मन को छू लिया आपने............
ये बड़े भैया की आदर्शवादिता की और मिसाल है .........
तो आप जीवन को सच्चाई से जीने की प्रेरणा देते हैं .
preshan na ho bhaiya...bade bhaiya se bolonga ki aap ko maaf kar den.
पश्चाताप के आंसू अंतरात्मा को भिगो देते हैं भैया .......
अपनी गलती स्वीकारना सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू होता है.....
इस से आप बड़े भैया के और करीब आ जाओगे.
गलतियाँ सभी से होती हैं, अब समय आ गया है कि हम भी अपनी गलतियां स्वीकार लें आपके बाद इसका अनुकरण मैं करूँगा !
भइया बहुत ही उम्दा लिखा अपने
आपकी यह पोस्ट पढ़ कर दिल भरी और
ऑंखें नाम हो गयी
भैया आपके निर्मल मन से लिखी गंगा जल की तरह पवित्र
यह पोस्ट बेमिसाल है .....
बड़े भइया तो देवता है उनके बारे में तो कहना ही क्या ................
"हर शब्द जहाँ छोटे लगते
है फक्र वो मेरे भाई लगते "
आपको और बड़े भैया को कोटि कोटि प्रणाम
हा....हा.....हा.....यह घटना बहुत मजेदार है......!
बचपन के ये दिलचस्प वाकये जीवन के रंगों को और गहरा कर देते हैं....बहरहाल एक भूली बिसरी घटना को फिर से ताज़ा करने का मौका मिल गया.....!
मज़ेदार पोस्ट के लिए दिल से स्नेह.....!
*****PK
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