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Thursday, February 23, 2012

आज के इस कॉलम में पंकज के . सिंह एक नयी शुरुआत के रूप में पेश कर रहे हैं अपने काव्य संग्रह " मेरे प्रभु'' से चुनी हुयी कुछ ख़ास कवितायें ! इसी क्रम में आज पहली कविता पेश है ! इन कविताओं का काव्य तकनीक से बहुत कुछ लेना - देना नहीं है ! ये कवितायें शुद्ध रूप से एक आत्मा का संवाद मात्र हैं और एक विशेष आध्यात्मिक मनोदशा में वर्ष 1999- 2000 के मध्य लिखी गयी थीं ! ...... EDITOR



स्ट्रेट ड्राइव- ---

VOLUME-- 12

                         मेरे प्रभु .... 



मेरे प्रभु .... 
अहंकार हो तो भी आकांक्षा है .. ''बुद्ध'' बनने की !
अज्ञान हो तो भी  उत्सुकता है ... कृष्ण बनने की !
भ्रम हो तो भी चाहत है .... भीष्म बनने की !



मेरे प्रभु .... 
दिखा मार्ग ... हरण कर मेरे कलुष का ,
मिले ''हर्ष'' सा आचरण , ''राम'' सा गौरव , ''यीशु'' सा त्याग , ''महावीर'' सा ध्यान !


मेरे प्रभु ....
तेरी कृपा की एक बूँद भी... जो गिरे इस बंजर  जीवन में , 
तो मैं - मैं ना रहूँ .... तेरा ही अंश हो जाऊं .. तुझ में ही समा जाऊं ,
मुक्ति मिले व्यर्थ के संघर्ष से ... अहंकार के गर्जन से ... कोरे स्वार्थ के सिंघनाद से !


मेरे प्रभु ....
मिले जो तेरे प्रेम की एक बूँद .....  आशीष का तेरा एक स्पर्श ,
तो मिटे जीवन की श्री हीनता ... अज्ञान का अन्धकार ... काम - क्रोध का झंझावात ! 



मेरे प्रभु ....
चित्त हो स्थिर तुझमे ... दूर हो बाधाएं तेरे -मेरे मध्य की !
दे ऐसी मुक्ति ... जिससे जीवन मिले !
दे ऐसी समाधि ...जिससे जीवन मिले !! 


***** PANKAJ K. SINGH 

4 comments:

Pushpendra Singh "Pushp" said...

परम श्रधेय भइया
उम्दा रचना शब्द शब्द बोल रहा है
भाव पक्ष बहुत ही मजबूत है
और इस तरह की रचना कोई निष्पाप एवं निर्मल मन
ही कर सकता है |
दंडवत प्रणाम स्वीकारें

Anonymous said...

"दिल से दिल की बात हुयी बिन चिट्ठी बिन तार.........!"

ये कवितायेँ दिल की आत्मा की आवाज़ हैं........ मन निर्मल हो तभी ये आवाजें निकलती हैं........
बहुत भावपूर्ण रचनाएँ.

PK

Anonymous said...

Ending is awesome...last lines are heart touching...keep going...
@bhupendra sharma@

sandeep singh said...

baakayi me bahut acchi kabita he mama ji kafi gahrai me dub kar likha he aapne