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Tuesday, July 20, 2010

RETRO PARADE - 1985



आया मौसम दोस्ती का ....

वर्ष1985 का प्रारंभ - अचलगंज (उन्नाव)
वर्ष 1985का समापन - अचलगंज (उन्नाव)

वर्ष 1985 को इस सफ़र की शुरुआत के लिए मैंने इस लिए चुना है .....क्योंकि इसी वर्ष को मैं सही मायनों में अपने चेतन के प्रारंभ होने का वर्ष मान सकता हूँ ! इससे पहले के कतिपय वर्षों के तथ्यों के विषय में कदाचित मैं आपको बहुत अधिकार पूर्वक नहीं बता सकता ! वैसे भी पूज्य भैया इन भूली - बिसरी यादों पर से परदे उठा ही चुके हैं ...और वे मुझसे कहीं अधिक स्म्रतिवान भी हैं ही !

1985 से अध्ययन क्षेत्र में मैं भैया का अनुयायी हो गया ! उनसे तीन क्लास जूनियर होने और हर जगह उनका सहचर होने का धर्म मैं बांगरमऊ (उन्नाव) से आज तक निभाने का प्रयत्न कर रहा हूँ ! ....तो १९८५ में मैं क्लास ३ और भैया क्लास ६ के विद्यार्थी थे ! यहाँ के पंडित अवध बिहारी स्कूल के हम छात्र थे ! भैया जन्मजात टॉपर थे ... तो मैं धीरे - धीरे ही आगे बढ़ पाया !

यह वर्ष मेरे लिए मिले - जुले संघर्ष का वर्ष था ! कई बार मैं पढाई- लिखाई से घबरा भी जाता था .... पर भैया की सुखद मौजूदगी मुझे सदैव हिम्मत देती रही ! शुरू में मैं गणित और अंग्रेजी में कमजोर था ...पर इसी स्कूल में चुनौतियों ने मुझे लड़ने का हौसला और प्रेरणा दी... और मैं भी क्लास का मेधावी छात्र बन गया ! यद्यपि यहाँ मेरे दोस्त कुछ खिलाडी टाइप लड़के ही ज्यादा बने .... इनमे नाटू , सुनील कारपेंटर , अरुण शर्मा , अमित गुप्ता और अवधेश घामड़ प्रमुख थे !

अरुण गुप्ता पढाई में मेरे मुकाबले का छात्र रहा और उससे रैंक संघर्ष कई वर्षों तक जारी रहा ! ख़ास बात यह थी कि स्कूल इस कदर अच्छा लगने लगा ....कि छुट्टियों के दिन भी दोस्तों का किसी न किसी जगह मिलना तय हो जाता ! दोस्तियाँ इस कदर गहरी हो गयीं ...कि यकायक दुश्मनियाँ बढ़ गयीं ! क्लास में भयंकर गुटबाजी हो गयी क्लास दो -फाड़ हो गया ! एक तरफ मैं अपने मित्र देशों यथा अमित अरुण अवधेश सुनील आदि के साथ ...तो दूसरी तरफ नाटू बाजपेयी , अरुण गुप्ता , आशीष तथा कुछ एन. आर. आई. टाइप संसाधन संपन्न लड़कों का ग्रुप !

तय हुआ... कि मात्र शब्द बाणों से कुछ सिद्ध नहीं होगा ....बाहुबल का परीक्षण अपरिहार्य है.... और इसके लिए लंच टाइम में बाकायदा धुआधार फाईटिंग मुकाबला तय हुआ ! नियमित रूप से हर दोपहर लंच में स्कूल का फील्ड कुरुक्षेत्र में तब्दील हो जाता ! लंच समापन की घंटी महाभारत युद्ध की तरह सूर्यास्त की घोषणा होती ! इस फाईटिंग में भयंकर मार होती ....हर प्रकार के अस्त्र जैसे बेल्ट ,हंटर ,चाबुक , रोड ,नुकीले बूट आदि का खुला प्रयोग होता .... और लंच के बाद बाकायदा युद्ध के नतीजों पर चर्चा होती... और अगले दिन के लिए रणनीतियां बनतीं !

अक्सर हमारे घर पर युद्ध की रणनीतिक बैठकें होती .... और जैसा कि होना ही था .... कुछ ही दिनों में इस हिंसक युद्ध की ख़बरें पूरे इलाके में फ़ैल गयीं ....और स्कूल मेनेजमेंट ने इस युद्ध पर प्रतिबन्ध लगा दिया !

इसी वर्ष मेरा और भैया का आकर्षण पढाई के अलावा क्रिकेट और बाल साहित्य की ओर भी बहुत अधिक बढ़ गया था ...जो आगे अनेक वर्षों तक जारी रहा ....या कह सकते हैं कि आज तक बदस्तूर कायम है !

(TO BE CONTINUED...)

*****PANKAJ K. SINGH

2 comments:

SINGHSADAN said...

हाँ हाँ याद आया....स्कूल के इंटरवल में तुम और तुम्हारे साथी फाइटिंग वगैरह करते तो थे.......उस महाभारत में रस्सी-लात- जूता- हंटर- बेल्ट-चाबुक- लकड़ी की डंडियाँ जिन्हें तुम लोग तलवार की तरह इस्तेमाल करते थे.....! याद आ गया.....बड़े मज़े के दिन थे वे भी यार.....! काफी दिनों बाद पोस्ट लिखी मगर एक दम हिट है बास....! आगे की स्मृति-श्रृंखलाओं का बेसब्री से इन्तिज़ार रहेगा.....!
*****PK

VOICE OF MAINPURI said...

सच में बेहद शानदार दिन में थे हम सब....कंचे वाले किस्से और लिख देते तो एक -आध बज्जू और उड़ जाती...