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Tuesday, May 25, 2010




सफर बांसगावं का.....

कु अधिकारी ऐसे होते हैं जो जनता के दिल से उतर जाते है...कुछ ऐसे भी होते हैं जो जनता के दिल में उतर जाते है...पवन भैया जनता के दिल में बसे हुए है....इस बात का अहसास २४ मई २०१० को मुझे तब हुआ जब में उनके साथ पहली बार बांसगावं पहुंचा....बांसगावं गोरखपुर की सबसे चर्चित और प्रदेश के सबसे बड़ी तहसील है.आई.ए.एस. की ट्रेनिग के दौरान ही उनको इस तहसील की जिम्मेदारी सौंपी गयी.



बांसगावं गोरखपूर की सबसे चर्चित...प्रशासनिक तौर पर कहें तो जिले की एक बिगडेल तहसील है ....इस तहसील में जाने पर मुझे पता चला की इस तहसील से कई नामबर राजनेता और माफियाँ का नाम जुड़ा है. इस तहसील का चार्ज लेने के बाद भैया ने तहसील स्तर पर कई यादगार काम किये ऐसा वहाँ की जनता ने मुझे बताया.



२४ मई को भैया का इस तहसील में बतौर एसडीएम आखिरी दिन था . आज वे इस तहसील का चार्ज छोड़ने आये थे...इस बात की जानकारी कुछ लोगों को ही थी लेकिन जैसे ही लोगों की मालूम हुआ की एसडीएम साहब चार्ज छोड़ कर जा रहे है ...लोग तहसील की और रुख करने लगे. देखते ही देखते भैया का ऑफिस लोगों की भीड़ से भरने लगा.जितनी भीड़ ऑफिस में थी उसकी चार गुनी भीड़ बाहर थी.नेता, इलाके के सभ्रांत नागरिक, किसान और तहसील का छोटा-बड़ा हर कर्मचारी उनसे मिलने आ रहा था. किसी अधिकारी की विदाई के समय के साथ मेरा ये पहला अनुभव था.



भीड़ में यही चर्चा थी की ''साहब ने ई तहसील को चम्कादीन " उनकी बात का मजमून यही था की एसडीएम के तौर पर उनका जनता से बेहद संवेदनशील और दिली रिश्ता था। भैया ने इस तहसील में अवेध कब्ज़े हटवाए.अराजक तत्त्वों को जेल भेजा..जनता की समस्या को निपटाया...इस तहसील में रहते हुए उन्होंने एक काम ऐसा किया जो इतिहास बन गया....सोहगौरा ताम्र पाषण बस्ती को फिर से पूरी दुनिया के सामने ला कर अपनी कुशल प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया.



देश भर की मीडिया ने उनके इस प्रयास को प्रमुखता से प्रसारित और प्रकाशित किया..लोगों से मिलने के बाद भइया ऑफिस से बहार निकल कर तहसील कोर्ट के बहार आगये.बहार लोगों की भीड़ देख कर वे थोड़े से भावुक होने लगे तो इसे तोड़ने के लिए मुझे कुछ दिखाने का इशारा किया...तहसील की एक दीवार पर उनका इशारा रुका...दीवार पर १९०५ लिखा था...भैया ने बताया कि १९०५ में अंग्रेजों ने इस तहसील को बनवाया था.....अब ये जर्जर नजर आने लगी है..भैया ने जानकारी दी कि इस तहसील को संरक्षित करने का एक प्रस्ताव उनके द्वारा शासन को भेजा जा चूका है...मुझे उनकी क़ाबलियत और दूरदर्शिता पर नाज़ हुआ.



लोगों की भीड़ लगातार बड रही थी...भैया बार बार चलने की कोसिस करते लोग उन्हें रोक लेते.आखिर में भैया ने एक नजर में पूरी तहसील को नजरों में भरने के बाद लोगो से चलने की अपील की...लोग भावुक होने लगे..इस दौरान भैया गाड़ी में बैठ गए..ड्राइवर को चलने का इशारा किया...गाड़ी चलने लगी...मैंने अपनी कर के शीशे से देखा की तहसील की जनता हाथ हिला रही थी....अलविदा कहने के लिए नहीं..... वे दुआ कर रहे थे अपने साहब को हमेशा दिल में बसाये रखने की.....


इस बारे में "आज" की एक रिपोर्ट देखने लायक है........!

***हृदेश सिंह

3 comments:

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत सुन्दर ह्रदेश जी
भैया ऐसी शख्शियत है कि उनके लिए शब्द नहीं बने
सिर्फ दिल ही समझ सकता है |
वे क्या कर सकते है ये हम लोगों
की समझ से भी परे है |
वे युगपुरुष है ................अवतारी है |
मै उन्हें बारम्बार प्रणाम करता हूँ |

SINGHSADAN said...

Thanx jony
you described the Bansgaon very well..... in fact u came for a short period in bansgaon but in that period u really understood the nature of this historical tahsil. Before me, in this tahsil there had been so many IAS officer and they made a remarkable impression....so there was a pressure on me to do something memorable. I performed here at the level of my best...let the public decide about that what i done.
Thanx again for a motivating article.....!
PK

pankaj said...

dear jony ..

you written very well . bhaiya is a great administrator . in fact he is a great human being that's why he is trustworthy officer for the public . it's just begining you will see very soon that bhaiya's skill & working style will automatically establihed him as an '' indian idol ''. we are really proud of him . thanks to god who gave us such a greatest brother of this universe .