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Thursday, May 20, 2010

जिजीविषा के धनी......पुष्पेन्द्र यानी अपने पिंटू !

यूं तो मुझे अपने सारे भाई-बहन बहुत प्यारे हैं। मुझे लगता है कि मेरे भाई बहन जितने हुनरमंद और प्यारे हैं..........दुनिया में शायद ही किसी के हों.............मेरे सारे के सारे भाई-बहन दिल से पवित्र, चेहरे से मासूम, हरकतों से नेक और दिमाग से तीक्ष्ण हैं। गुरूदेव प्रमोद रत्न, स्टाइल आइकॉन पंकज, अल्हड़ जोनी और प्यारे श्यामू के विषय में लिखे जाने के बाद यह अपरिहार्य है कि मैं आपका तआर्रूफ़ अपने परम प्रिय अनुज पुष्पेन्द्र.........न न न पिन्टू से कराऊँ। (पुष्पेन्द्र कुछ औपचारिक सा लगता है.........अनुज के साथ औपचारिकता क्यो ?)
मेरे सामने पिन्टू ने बचपन जिया है, जवानी की अल्हड़ता दिखाई है और अब वे धीर-गम्भीर गृहस्थ की भांति जिम्मेदार पति-पिता-भाई की भूमिका भी निभा रहे हैं। मेरी स्मृतियों में वे दिन अभी भी सजीव हैं कि जब हम गाँव जाया करते थे....... चौपाल के बाहर सर्द रातों में अलाव जलता था अम्मा एक स्थापित सूत्रधार की हैसियत से कहानियां सुनाती थीं, हम सब देर रात तक उन कहानियों को सुनते थे..........और इस कहानी वाचन-श्रवण गतिविधि के समानान्तर एक और गतिविधि चलती रहती थी........वह थी अलाव में आलू भूनने की क्रिया। हम सब बच्चे अपना-अपना आलू अलाव में भूनते थे। उधर अलाव में आलू भूनता था और अलाव के इस ओर अम्मा की कहानियां पकती थीं........।हम सब तो आलू भूनते थे मगर पिन्टू को अलाव मंे आलू की जगह ‘प्याज’ भून कर खाने का शौक था। इस शौक अम्मा को अपनी तरह की आपत्ति थी पर पिन्टू इससे बेखबर होकर अपनी यह विद्रोहात्मक गतिविधि में लगातार संलग्न रहे।
पिन्टू की आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा तो गाँव के प्राइमरी स्कूल में टाट-पट्टी-खड़िया-कटकिन्ना के साथ ही शुरू हुई, पर बाद में जब हम लोग मैनपुरी शिफ्ट हो गये तो पिन्टू ने मैट्रिक और इण्टर यहीं से किया। मेरी नौकरी लगने के बाद जब मेरा स्थानान्तरण कानपुर हुआ तो पिन्टू भी कानपुर आ गए और 12वीं की परीक्षा यहीं से दी..........।
बहरहाल समय गुजरता गया...........पिन्टू ने बी0ए0 किया............... परन्तु पता नही क्यों ऐसा लगता है कि पिन्टू को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास बहुत पहले हो गया था........... अपनी सीमाओं को समझते हुए उन्होंने अपना रास्ता अपनी मंजिल खुद तय की...........। पहले अखबार में लेखन किया पर इस लेखन से जीवन तो चलना नहीं था...........सो शीघ्र ही ‘कम्प्यूटर सेन्टर’ खोला........... यहीं से जीवन का नया अध्याय आरम्भ किया। ‘नेटवर्किंग’ में अपना भविष्य बनाने की मंजिल तय की.............कुछ परेशानियां भी आई मगर पिन्टू की जिजीविषा ने उन परेशानियों को अपने लक्ष्य में आड़े नहीं आने दिया और स्वयं को अपेक्षाकृत इस नये क्षेत्र में स्थापित करके अपने ‘वजूद’ का एहसास दिलाया।पिन्टू की इस लगन को देखकर मुझे हमेशा अच्छा लगता है..........।
मैं जानता हूँ कि एक ऐसे अवसर पर पिन्टू का साथ मै चाह कर भी नही दे पाया जब उसने मुझ पर भरोसा किया............. मगर यह उस समय का सत्य था, मुझे जो उस समय ‘वक्त की मांग’ महसूस हुई थी मैंने वही किया था............. पिन्टू को उस समय ठेस लगी होगी.............पीड़ा हुई होगी..................मुझ पर से विश्वास उठा होगा............. मैं जानता हूँ, मगर यह सब करना शायद उस वक्त आवश्यक था और शायद अपरिहार्य भी........... खैर...........।
गत वर्ष जब मैं उ0प्र0 भ्रमण पर था तो कानपुर प्रवास के दौरान पिन्टू से प्रतिदिन उठना-बैठना होता था। मैने इस दौरान महसूस किया कि पिन्टू का व्यक्तित्व काफी जिम्मेदार और शांत हो गया है। मैंने इस दौरान पिन्टू को प्रोत्साहित किया कि वो गज़ल लेखन में हाथ आजमाए............। मैं पिन्टू की लेखन प्रतिभा से वाकिफ था मुतमईन भी था............... पिन्टू ने अपना ब्लाग http://psinghit.blogspot.com/ बनाया और गज़ल लेखन में हाथ-पैर मारने शुरू कर दिये। विगत सात-आठ महीनों में पिन्टू ने कुछ संजीदा गज़लें लिखी हैं........। पिन्टू को मेरी पत्नी अंजू बहुत चाहती है, उनकी नज़र में वे देवर कम भाई ज्यादा है।पिन्टू की जिजीविषा और लगन का मैं प्रशंसक हूँ।
वे अच्छे लेखक के साथ-साथ अच्छे वक्ता व अभिनेता भी हैं। गाँव की रामलीला में उनके द्वारा निभाए गए किरदार (..........विशेषतया भरत का) विशेष प्रशंसनीय हैं।सम्प्रति पिन्टू कानपुर में एक लब्ध प्रतिष्ठित मेडिकल कालेज में ‘कम्प्यूटर नेटवर्किंग हेड’ हैं। एक शरारती नटखट बच्चे ‘अक्षत’ के वे पिता हैं। एक और अच्छी बात यह है कि पिन्टू ने अपनी धर्मपत्नी अर्थात हमारी बहू को भी घरेलू संस्कारों में ओत-प्रोत कर रखा है।
अंत में पिन्टू को हमारी दिल से स्नेह, प्यार, शुभेच्छाएं............आर्शीवाद कि वे हमेशा उन्नति करें और अपने व्यक्तित्व को निखारते रहें।

4 comments:

Pushpendra Singh "Pushp" said...

परम श्रधेय भइया
इस नाचीज़ को आपने क्या से क्या बना दिया
में आज जो भी हूँ वह सब आपका आशीर्वाद है
पुरानी यादों को ताजा कर दिया आपने
आपके चरणों में बारम्बार नमन
आपका भाई पिन्टू

SINGHSADAN said...

pintoo...
i wrote only that what u r really.....!
Thanx
PK

VOICE OF MAINPURI said...

खूब लिखा भाई....मजा आ गया.पिंटू बचपन में फ़िल्मी हीरो को चिट्टियाँ भी लिखा करते थे.जिसे एक बार पंकज भैया ने जान लिया था और खुद जेकी श्रोफ बन कर पिंटू को खूब मुर्ख बनया.एंठिला के नाम से भी पिंटू को घर में खूब शोहरत मिली...इसमें कोई दो राय नहीं है पिंटू घर में सबसे ज्यादा प्रोग्रेसिव सोच के हैं...सिंह सदन को कंप्यूटर तकनीक से रु-ब-रु कराने में पिंटू का योगदान सबसे उपर है...

pankaj said...

पिंटू मेरे बचपन के सबसे प्रिय व करीबी सखा रहे हैं ! ग्रीष्म कालीन छुट्टियों में जब हम लोग 'मेदेपुर' जाते थे तो पिंटू ही मेरे हमसफ़र.. हमराह.. हमकदम होते थे ! पूरे- पूरे दिन बाग़ में छुपे रहते थे ..कच्चे आम- अमरुद खाते थे.. लैया, चना, टॉफी ही हमारा मेनू थे.. कप्तान की दूकान पर पूरे दिन खरीद दारी होती थी.! शाम होते ही क्रिकेट किट तैयार जबरदस्त मैच ..और उसके बाद उतनी ही जोरदार समीक्षा !
दिन भर पेड़ पर बैठकर फिल्मों पर गहन चर्चाएँ हम दोनों के ख़ास शगल थे.. आहा.. वे भी कितने सुन्दर दिन थे ! कई वर्षों तक पिंटू हमारे साथ ही रहे.. पढ़े.. !
वक्त और जिम्मेदारियों ने हमे कुछ दूर भले किया हो पर पिंटू आज भी मेरे दिल में मेरी आत्मा में बड़ा गहरा बसा है.. या यूँ कहें कि समाया हुआ है !
हमे अपने इस प्रिय अनुज पर नाज़ है.. विश्वास है !

सप्रेम .. पंकज के . सिंह