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Friday, March 23, 2012

वाबस्ता से ----

                                               
मेरी पसंद .....

volume ----2 

                                 वाबस्ता से अपनी पसंद के दस और शेर आपकी नज़र कर रहा हूँ .. इस उम्मीद के साथ की वाबस्ता की तलब आपके दिल दिमाग में और गहरी घर कर चुकी होगी .. आपकी तड़प की आग को कुछ और हवा देते हैं इन बेशकीमती नायाब शेरों से ... आप खुद महसूस कीजिये की ये शेर एक ऐसे युवा ने लिखे हैं जिसकी मुख़्तसर सी जिंदगी की सोच और समझ में कितनी गहराई है की कई जन्म भी हम ले लें तो भी शायद इस अहसास के आधे तक भी न पहुँच पायें ... नज़र डालिए .. तब ही यकीं करें तो बेहतर ....आपका
           ---------पंकज के . सिंह ( संपादक )

वाबस्ता  से ----
                        
                        (१)

पनपते हैं यहाँ रिश्ते हिजाबों एहतियातों में ,
बहुत बेबाक होते हैं तो रिश्ते टूट जाते हैं !

                         (२)

यही इक आखिरी सच है जो हर रिश्ते पे चस्पां है ,
जरुरत के समय अक्सर भरोसे टूट जाते हैं !

                          (३)

कहीं चुभता है मखमल भी बदन में ,
कहीं फुटपाथ बिस्तर हो गया है !

                          (४)

सभी को है ये धोका हम पले हैं शादमानी में ,
मगर ये उम्र गुजरी है ग़मों की पासबानी में !

                          (५)

उगेगा खौफ ही आँखों में अब तो ,
सिवा -ए- मौत कुछ बोया नहीं है !

                           (६)

मुझे भी ख्वाब होना था उसी का ,
मेरी किस्मत की वो सोया नहीं है !

                             (७)

मैं इक सादा वरक अकेला ,
बंधने को ज़ुजदान बहुत हैं !

                              (८)

इश्क ही नेमत , इश्क खुदाई ,
पर इसमें नुक्सान बहुत हैं !

                              (९)

मेरे मुंह पर मेरे जैसी उसके मुंह पर उसके जैसी ,
रंग बदलती इस दुनिया में सब कुछ है किरदार नहीं !

                               (१०)

इक तुम ही मेरे मोहसिन बदले हुए नहीं हो ,
जब से निजाम बदला बदली हुयी हवा है !


****** PANKAJ K. SINGH

2 comments:

Pushpendra Singh "Pushp" said...

wah bhaiya
besh kimti sher

Anonymous said...

again thanx and love to Pankaj....

PK