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Saturday, March 17, 2012

त्रिवेणी .............

-जब भी दिल उदास होता है ये सोच लेते है
आज फिर कोई दिल दुखा है कही
फिर किसी ख्वाब के सीने में खंजर उतरा है |

- मिलते है जब भी वो कुछ खोये से लगते
लगता है आँखों में जैसे लाखों राज छुपाये है
यार समन्दर से दोस्ती की है |

- वक्त से आगे हमने भी एक रोज निकल कर देखा था
पीछे मुड कर देखा तो अपना कोई नहीं था
चंद सन्नाटे मुझ पर हंस रहे थे |

- जिंदगी खेल है और तमाशा भी है
लोग हंस हंस के मजे लेते है
आदमी नाचता है और नाचता वो है |

- ये कौन सी दुनियां में आगया हूँ मैं
हर चेहरा पक गया है यहाँ
और जुबाँ पर वर्षों से ताले लटके है |

- सर को भिगा के नीबू खा के
सब कुछ कर के देख लिया
यार मुहब्बत का नशा उतरता नहीं है |

- जिंदगी एक नशा है
और मुहब्बत है बोतल
जितना पियो उतनी ही प्यास बढती

Pushpendra "Pushp"

4 comments:

Anonymous said...

DEAR "PUSHP"

I LIKE THIS MOST ..
वक्त से आगे हमने भी एक रोज निकल कर देखा था
पीछे मुड कर देखा तो अपना कोई नहीं था
चंद सन्नाटे मुझ पर हंस रहे थे |

*** PANKAJ K. SINGH

Anonymous said...

ब्लॉग पर आप की उपस्थिति से सब रोशन हो जाता है
लिखते रहो एक न एक दिन हम छा जायेंगे
श्यामकांत

Bitiya said...

मैं तो हमेशा से ही आपकी लेखनी की कायल हूँ भैया....
आप दिल से लिखते हैं इसलिए आपकी रचना दिल को छू जाती है....
त्रिवेणी में भी ये सिलसिला कायम रहा....

Anonymous said...

प्रिय पिंटू,
ग़ज़ल ..... गीत..... और अब त्रिवेणी, लेखन में नित नए आयाम, बहुत बहुत बधाई. शब्दों का सही प्रयोग ही कविता को धारदार बनाता है..... तुम्हारी साड़ी त्रिवेनियाँ इस बात की गवाह हैं की तुममे असीम संभावनाएं हैं......वैसे तो सारी त्रिवेनियाँ अद्भुत हैं.... पर ये तीन तो बहुत ही मोहक हैं....____
वक्त से आगे हमने भी एक रोज निकल कर देखा था
पीछे मुड कर देखा तो अपना कोई नहीं था
चंद सन्नाटे मुझ पर हंस रहे थे |
और


जिंदगी खेल है और तमाशा भी है
लोग हंस हंस के मजे लेते है
आदमी नाचता है और नाचता वो है |
और

सर को भिगा के नीबू खा के
सब कुछ कर के देख लिया
यार मुहब्बत का नशा उतरता नहीं है |

सर को भिगोना और नींबू खाना........ आहा......!!!

PK