वर्ष १९८९ एक नयी शुरुआत लेकर आया... इस वर्ष सिंह सदन परिवार ने कई वर्षों के अंतराल के बाद अपनी मात्रभूमि मैनपुरी की ओर रुख किया !
...यहाँ भी सीमित संसाधनों के साथ हमारे परिवार का संघर्ष जारी रहा ! हम चारो भाई शिक्षा प्राप्त कर रहे थे ...और पिता जी की सीमित तनख्वाह में बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पाता था ! माँ और भैया ही थे जो इन विषम परिस्थितियों में भी हमारा मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ाये रखते थे ! यही दोनों परिवार को दिशा दे रहे थे ...बाकी हम तीन छोटे भाई मूकदर्शक ही थे !
किराये के मकान में कठोर समय भी हम सभी एक बेहतर भविष्य की आस में गुजार रहे थे ! भैया ने इस वर्ष ''हाई स्कूल'' बोर्ड परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी प्राप्त की ! यही वह समय था जब मेरे भीतर एक बेचैनी ने जन्म लेना प्रारंभ किया... मैं अक्सर सोचता कि क्यों हमने जन्म लिया है ...इसका मकसद क्या है ...
क्या साधारण जीवन जीकर,औपचारिकता निभाकर हम मर जायेंगे ? मैं एकांत में प्रार्थना करता.. कि मेरे और मेरे भाइयों के जीवन को मकसद दे.. सार्थकता दे.. हमारे द्वारा जनकल्याण के कार्य हो सके... इस लायक ईश्वर हमें बनाये ! यह प्रार्थना मैं आज भी करता हूँ ..और कदाचित म्रत्यु पर्यंत करता ही रहूँगा ! यह भी पूर्ण विश्वास है कि यह प्रार्थना सफल होगी !
* * * * * PANKAJ K. SINGH
1 comment:
सही कहा भैया...बस भगवान की कृपा था....शायद इस जमीन पर वो हमसे कोई बड़ा काम कराना चाहता है
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