गुलज़ार साहब फ़िल्मी दुनिया की वो अज़ीम शख्सियत हैं जिन्होंने फिल्म और साहित्य के बीच एक पुल की तरह काम किया है.....! उनकी कृतियाँ जितनी फ़िल्मी कैनवास पर हिट हैं, कमोबेश उतनी ही साहित्यिक अर्श पर भी.....! जब से होश संभाला तब से ही उनके " मोरा गोरा अंग लई ले" का फैन/ शागिर्द हो गया और यह शागिर्दगी वो है जो आज के " बीडी जलई ले" तक जारी है। अपने ब्लॉग पर गुलज़ार साहब के ऊपर कुछ लिखने की हिमाकत की है...मैं चाहता हूँ कि वक्त मिले तो पढ़ के देखिये.....शायद अच्छा लगे.
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***** PK
1 comment:
बहुत खूब भैया उनके बारे में अपने ऐसा लिखा है कि......बस बार-बार दाद देने का मन कर रहा है....हजरत अमीर खुसरो के बाद गुलज़ार जी सबसे ज्यादा क्रिएटिव लगते है....सुंदर पोस्ट के लिए दिलशुभकामनायें
HIRDESH
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