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Sunday, January 19, 2014


 विश्व  व्यापार  संगठन  में खाद्य सुरक्षा विधेयक 



                                                             हाल ही में ६ दिस 2013 को  इंडोनेसीया में  विस्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय  बैठक विकासशील तथा विकसित देशों  के बीच कुछ अहम् फैसलों  के बीच संपन्न  हुई ,बैठक के कुछ पहलूओं से जाहिर होता है की हम एक  बार फिर  पूंजी राष्ट्रों  की  कूटनीतिक चालों के सामने झुक गए है इस मंत्री स्तरीय  सम्मेल्लन में एक तरफ जहाँ भारत ने अपने हितों को ध्यान में रखते हुए  कृषि  सब्सिडी जारी  रखने की  बात की, वहीं  विकसित राष्ट्रों  ने इस  सब्सिडी का पुरजोर विरोध किया,और साथ ही वे भारत पर यह समझौता  करने  के  लिए  दबाव बना रहे है,कारण है कि इसके पहले  की  विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय  बैठकें बिना  किसी  समझौते  के  संपन्न होती रही  है,यदि यह  बैठक भी बिना किसी  फैसले के संपन्न होती है तो, वैस्विक  कारोबार में  बर्चस्व रखने वाले इस मंच  के अस्तित्व पर प्रस्नचिन्ह  लगना संभव  है 
 विकसित  राष्ट्रों का  कहना  है कि जैसा की विश्व व्यापार संगठन के नियमानुसार कोई भी सदस्य राष्ट्र कृषि उत्पादों पर 10 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी  नही देगा जिससे व्यापार में  संतुलन बना  रहे, लेकिन  भारत सब्सिडी  की सीमा  का उल्लंघन करते हुए अपने  कृषि  उत्पादों  को  कम  कीमत पर जनता को मुहैया करा  रहा  है, जो व्यापार की स्वस्थ  प्रतिस्पर्धा  के  विपरीत  है,अतः विकसित  देशों  का  कहना  है  कि  भारत सरकार कृषि  सब्सिडी  तथा  सस्ता अनाज  देना बंद  करे, जिससे व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े  और  कम्पनीयां  उचित  मुनाफा कमा सकें , 
 ज्ञातव्य  हो कि 1995 में  अमेरिका का व्यापार घाटा 16 अरव डॉलर था. वहीं 2013 में बढ़कर 730 अरब डॉलर  हो गया  है ,कारण है  कि  चीन  एवं अन्य  देशों ने  वैश्विक  व्यापार में अपनी  भूमिका को  सुनिश्चित  किया हैं. अतः इससे  साफ़  जाहिर  है  कि  विकासशील  देशों  के  बाजारों में  पहुंच बनाकर अमेरिका अपने  व्यापार घाटे  को  संतुलित  करने  का  प्रयास कर रहा  है ,
 इसके  अलावा एक तथ्य  यह  और  है कि अमेरिकी जनता भारत की एक चौथाई है , और  वह  45 खरब रूपए  खर्च  कर  अतिरिक्त  पोषण सहायता  कार्यक्रम  चलाकर 470 करोड़  लोगो पर  प्रति  96,280 रूपए  व्यय कर 240 किलो अनाज  मुहैया कराता है, वहीं भारत  77 फीसदी  लोगों को  30 रूपए प्रतिदिन  खर्च  करने  वालों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत  47 करोड़  लोगो पर 1620 रूपए व्यय कर  सालाना  58 किलो सस्ता  अनाज  मुहैया  कराती  हैं, जिससे  विकसित  देशो  को  दिक्कत होना स्वाभाविक है 
,ध्यातव्य हो कि अमेरिका  कृषि पर  सब्सिडी  1995 में 34 अरब  रूपए  थी , वहीं अब बढ़कर  79 अरब रूपए  हो गई  है ,अतः  सभी  देश मिलकर 244 खरब रूपए की  सब्सिडी दे रहे है ,अतः वे चाहते है कि विकासशील  रास्ट्र अपने नागरिकों  को  सब्सिडी  के माध्यम से मदद ना करें , ताकि  विकसित देशों के उत्पादों को विकाशशील देशों में  माकूल वातावरण मिलता  रहे और उनके  बाजारों  पर कब्ज़ा  बना  रहे,

 परिणामतः वार्ता  के अंत में भारत का पक्ष था,  कि हम कृषि उत्पादों में सब्सिडी  ज़ारी  रखेंगे, जबकि  wto  का कहना था,  कि वर्तमान में आप सब्सिडी जारी रखेगे। अतः इससे साफ़ जाहिर है कि भविस्य में  कृषि  सब्सिडी  ख़त्म होने  कि  सम्भावनाओं को  नकारा  नहीं जा सकता ,!



******* ***** DILIP KUMAR 

4 comments:

Anonymous said...

aapne jo lekh lika hai wo pure world me sabse sundar hai meri to khub hansi udaai gayi thi par tera lekh to bilkul bekaar hai naaspeete .

mahrishi lambdeeng

Anonymous said...

kamaal ka likha .par nakal ka maara

sachin

SINGHSADAN said...

is hisaab se upsc ka answer bhi kisi ka mara hua mana jaega, kyoki uske fact bi yojna, kurkshetra, darpan, any kitabon se liye gae hote hai, me to aage bhi aise hii marta rahunga,


haa lekin comment kam aae hai,

Anonymous said...

मौिलकता का आभाव है