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Monday, August 6, 2012

दोहे ................!


नजरों से नजरें मिलीं गढा प्रेम का गीत |
कोटि जन्म जब पुण्य हों, मिलता मनका मीत ||

 प्रेम का रस सबसे मधुर इससे मधुर न कोई |
जिन पाया इस स्वाद को स्वाद न जाना कोई ||

हंसी ठिठोली दिल्लगी करते हों जब लोग |
समझो दस्तक दे रहा दिल पर प्यार का रोग ||

माया बड़ी न जग बड़ा सबसे बढ़ कर प्यार |
इसके डूबे पार है, बाकी सब मजधार ||

पिया गए परदेश को नैना है अभिराम |
जोगन बाट निहारती सुबह से लेकर शाम ||

जुल्फों में काली घटा दिल मे है तूफान |
खुशबु में जिसकी मदहोशी क्या है उसका नाम ||

सर ऊपर आकाश है आँखों में पाताल |
अधरों पर है मयकशी लट उलझी बेहाल ||

प्रेम प्याला जिन पिया पीवत होवत ज्ञान |
मिट जाता मन का तिमिर, दूर होत अभिमान ||

प्रेमपत्र पढ़ कर हुआ हम को यह अहसास |
इससे बढ़कर जगत में और नहीं कुछ खास ||

प्रेम सुधा बरसात है भीगत मानुष, संत |
प्रेम का ना प्रारब्ध है नहीं है कोई अंत ||

प्रेम का रस तो एक है, अलग अलग है रूप |
प्रेम राग पर थिरकते, बड़े बड़े सुर भूप ||

अपने हित को त्याग कर, जब ले निर्णय कोई |
गलती की सम्भावना रह जाती नहिं कोई ||

 पुष्पेन्द्र “पुष्प”

3 comments:

SINGHSADAN said...

प्रिय पुष्प बहुत ही मनभावन दोहे लिखे हैं.... प्रेम को जो ऊंचाइयां इन दोहों में मिली हैं वे प्रशंसनीय हैं.
नजरों से नजरें मिलीं गढा प्रेम का गीत |
कोटि जन्म जब पुण्य हों, मिलता मनका मीत ||

हंसी ठिठोली दिल्लगी करते हों जब लोग |
समझो दस्तक दे रहा दिल पर प्यार का रोग ||

माया बड़ी न जग बड़ा सबसे बढ़ कर प्यार |
इसके डूबे पार है, बाकी सब मजधार ||

प्रेम प्याला जिन पिया पीवत होवत ज्ञान |
मिट जाता मन का तिमिर, दूर होत अभिमान ||

इन तीन दोहों ने जो जादू किया है वो अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता...... एक दम शानदार धारदार
पिया गए परदेश को नैना है अभिराम |
जोगन बाट निहारती सुबह से लेकर शाम ||


सर ऊपर आकाश है आँखों में पाताल |
अधरों पर है मयकशी लट उलझी बेहाल ||


अपने हित को त्याग कर, जब ले निर्णय कोई |
गलती की सम्भावना रह जाती नहिं कोई ||

कुछ दोहों में हल्की त्रुटियाँ हैं उन्हें इंगित कर रहा हूँ.... एक बार पुन: देख लेना.

प्रेम का रस सबसे मधुर इससे मधुर न कोई |
जिन पाया इस स्वाद को स्वाद न जाना कोई ||

प्रेमपत्र पढ़ कर हुआ हम को यह अहसास |
इससे बढ़कर जगत में और नहीं कुछ खास ||

जुल्फों में काली घटा दिल मे है तूफान |
खुशबु में जिसकी मदहोशी क्या है उसका नाम ||

प्रेम सुधा बरसात है भीगत मानुष, संत |
प्रेम का ना प्रारब्ध है नहीं है कोई अंत ||

प्रेम का रस तो एक है, अलग अलग है रूप |
प्रेम राग पर थिरकते, बड़े बड़े सुर भूप ||

Work is par excellent.... Enjoy Writing.

PK

KATHERIA SAMAJ said...

man gaye guru
kia bat kia bat............

Anonymous said...

badhiya...hirdesh