"........मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं,
तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर कर दे !.................."
कन्हैया लाल नंदन ने यह शेर जिस भी परिस्थिति में लिखा हो....मगर "सिंह सदन" के लिए यह मुकम्मल शेर है. रिश्ते सिर्फ संबोधन के लिए ही नहीं होते.....वे दरअसल जीने के लिए होते है......हर आदमी कभी किसी देहलीज़ पर भाई है तो किसी दर पर पति....हर औरत कहीं बहन है तो कहीं माँ......इन्ही रिश्तों में रची बसी कायनात को एक छत के अन्दर जिए जाने की कवायद ही है घर......."सिंह सदन" भी इसी कवायद का एक हिस्सा है........."सिंह सदन " से जुड़े हर एक शख्स और हर एक गतिविधि से परिचय करने के लिए ही ब्लॉग का सहारा लिया गया है ताकि जो भी लिखा जाए वो दिल से लिखा जाये.....और दिल से ही पढ़ा भी जाए.......!
क्या ये बदायूं वाला ककोड़ा का मेला है? शायद हम निर्वाचन के दोरान यहाँ गए थे. बहुत बढ़िया! तस्वीरों को देखकर लगता है की यहाँ बहुत ही मजा आया होगा. हमें भी बता देते जनाब हम भी आपके साथ थोड़ी सी मस्ती कर लेते.
3 comments:
क्या बात है .... खूब मस्ती की गई है .... तस्वीरे गवाह है !
क्या ये बदायूं वाला ककोड़ा का मेला है? शायद हम निर्वाचन के दोरान यहाँ गए थे. बहुत बढ़िया! तस्वीरों को देखकर लगता है की यहाँ बहुत ही मजा आया होगा. हमें भी बता देते जनाब हम भी आपके साथ थोड़ी सी मस्ती कर लेते.
bahut hi sundar tasviren
badhai........
Post a Comment