...... देख मुसाफिर जाने वाले ये है मेरा सिंहसदन
मत रोकना मत टोकना, आगे बढते इसके कदम
मत देख तू द्वेष निगाहों से ...............
द्वेषी भी आये अपने पैरों से, इसीलिए कुछ बात है
कुछ तो खास है कुछ तो खास है............
मत गँवा तू प्रसंग प्रसन्नता का
मत हो शिकार अभिमानता का
परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, परिहास हमारे साथ है
इसीलिए कुछ बात है ......................
कुछ तो खास है.......... कुछ तो खास है ......................
सुबह सुबह जब सूरज आकर धूप की चादर फैलाता है
इस इमारत पर प्रकाश डालकर अपने ऊपर इठलाता है
यहाँ के सभी सदस्यों में तकल्लुफ की एक बात है
कुछ तो खास है......... कुछ तो खास है .................
जाने वाले ए मुसाफिर नफरत का भेदभाव छोड़ दे
ये है मेरा सिंह सदन इससे तू कुछ सीख ले
चार बादशाहों की सल्तनत है यह
इसीलिए बढते कदमो में जरूर कोई बात है
कुछ तो खास है ............कुछ तो खास है ...............
सिंह सदन की आवाज ...........................
पृथ्वी पर खड़ी इमारत हू मै
मेरे यौवन को बढने देना
मेरी इच्छा है जीने की, जीने देना
जी भर के मुझको धूप रुपहली पीने देना
शाम सवेरे के रंगों में रंगने देना
मस्त हवा के हिलोरों में हसने देना
मुझे जीने देना.....................
मुझे जीने देना ...................
दिलीप कुमार
6 comments:
dear dilip ..
shaabaash.. jeete raho ... aage badho...
dear dilip ..
shaabaash... jite raho..
ऐसा लगा कि जैसे आतिफ असलम का कोई गाना सुन रहे हों....अच्छे ख़यालात हैं.....!प्रयास तारीफ़ के काबिल है..... रचना को परिष्कृत किये जाने की आवश्यकता है....!
*****PK
bahut achha....
sundar likha lage raho beta...........
Are bhanje shri,
Kya bat hai tum to to kamal dhate ja rhe,bhut achcha,gud luck
Chintoo
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