अचलगंज की कुछ भूली बिसरी कहानियों और घटनाओं को मैंने कुछ दिन पहले अचलगंज की सुनहरी यादें -1 के नाम से प्रस्तुत किया था...आज उन्ही यादों का दूसरा अंक आपके सामने परोस रहा हूँ....स्वाद लीजिये और अपने भावों से अवगत भी कराईये.....!
अचलगंज में कक्षा 6 से कक्षा 8 तक की शिक्षा , पण्डित अवध बिहारी जू0हा0 स्कूल में प्राप्त की। यह विद्यालय कई अर्थो में मेरे जीवन के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। कक्षा 6 से ही ‘प्रथम’ आने की ललक ने सहपाठी परमेश्वार के साथ मित्रवत प्रतिद्वन्दिता का आरम्भ किया। हुआ यह कि परमेश्वर भी मेरी कक्षा में ही था और वह भी पढ़ने में मेधावी था। उन दिनों त्रैमासिक, अर्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाएं हुआ करती थीं। इस प्रकार साल भर में तीन अवसर ऐसे आते थे कि जब परमेष्वर और मेरे बीच ‘एक्ज़ाम वार’ चला करता था। इस ‘वार’ में हमारे अन्य सहपाठी तो रूचि लेते ही थे, हमारे शिक्षकों में भी दिलचस्पी रहती थी कि इस एक्ज़ाम में मैं फर्स्ट आऊंगा या परमेश्वर । बहरहाल कक्षा 6 से कक्षा 8 तक कुल मिलाकर नौ परीक्षाएं हुई और हर बार कभी मैं तो कभी परमेश्वर फर्स्ट और सेकेण्ड आते रहे। मत्वपूर्ण बात यह रही कि कक्षा 8 की परीक्षा उन दिनों डिस्ट्रिक्ट बोर्ड लेता था। बोर्ड की परीक्षाओं का उन दिनों बड़ा खौफ रहता था। इस परीक्षा में विद्यालयों के केन्द्र भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाते थे। हमारे विद्यालय को समीपवर्ती ग्राम ‘इटौली’ में भेजा गया था। इस प्रतिष्ठित परीक्षा में मैं विद्यालय में तो प्रथम आया ही समूचे जनपद की जो मेरिट लिस्ट बनी थी उसमें भी मैं जिले स्तर पर सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्रों में शामिल था। जब समाचार-पत्रों में इस रिजल्ट का प्रकाशन हुआ तो मुझे तो ख़ुशी थी ही मेरे पापा को जो ख़ुशी हुई वह मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। सच तो यह है कि पढ़ाई के प्रति ललक पैदा करने में सबसे बड़ा योगदान उन्हीं का था। पुलिस की सख्त ड्यूटी से जब वे देर रात घर वापस आते तो मुझे जगाते और रात में लालटेन की रोशनी में (उन दिनों अचलगंज में विद्युत आपूर्ति न के बराबर थी) मुझे गणित और अन्य विशय पढ़ाते। कभी-कभी वे मुझे ‘कॉनवाय ड्यूटी’ में साथ ले जाते और ‘बदरका’ पोस्ट पर मुझे गणित पढ़ाते। एक ओर मैं गणित के सवालों में उलझा रहता था, दूसरी ओर वे अपनी केस डॉयरी पूरी करते। फिर लौटता हूँ अपने स्कूली जीवन पर। इस दौरान श्री रामसजीवन यादव जैसे शिक्षक के योगदान को मैं नही भूल सकता जिन्होंने मुझे और पंकज को सातवीं और आठवीं कक्षा में अंग्रेजी पढ़ाई। आठवीं में मेरिट लिस्ट में आने के बाद मैंने ‘आदर्श इन्टर कॉलेज’ अचलगंज में दाखिला लिया। दाखिले से पूर्व कॉलेज के ‘इन्ट्रेंस टेस्ट’ में भी मैं टॉप पर रहा।
उधर पंकज भी कक्षा 5 में टॉप पर रहे। पंकज की पेन्टिंग और स्केचिंग स्कूल में बड़ी मशहूर थी। पंकज के बारे में यह कहा जाता था कि वे किसी भी आदमी की शक्ल को हूबहू पेंसिल से कागज पर उतार सकते थे। जौनी ने स्कूल जाते ही ‘पूत के पॉव पालने में दिखने’ वाली कहावत चरितार्थ करना आरम्भ कर दिया। उन्हें स्कूल ले जाने में बकायदा ‘बल प्रयोग’ करना पड़ता था। स्कूल न जाने की शायद उन्होंने कसम खा रखी थी और जब किसी दिन वे स्कूल चले भी जाते थे तो शाम को स्कूल से उनके ‘साहसी कारनामों’ के विषय में कोई न कोई नोटिस आ जाती थी।
मैंने कक्षा 9 आदर्श इन्टर कॉलेज से किया, यहाँ नये शिक्षक और नये दोस्त मिले। शिक्षकों में मैं श्री वीरेन्द्र सिंह यादव का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने साइंस और गणित में मुझे उन दिनों से ही रूचि पैदा कर दी। मित्रों में यहाँ पर ललित, हरिओम, शिव प्रसाद तथा श्याम सिंह यादव जैसे दोस्त बने। कक्षा 9 के बाद पापा का स्थानान्तरण लखीमपुर खीरी हो गया। 1988 में अचलगंज छोड़ कर हम लोग लखीमपुर खीरी आ गये।अचलगंज में ही कुछ लोगों से रिश्ते बहुत प्रगाढ़ हुए जिनसे अब तक सिलसिला कायम है। इस संदर्भ में सबसे पहले शांति आन्टी का नाम लेना चाहूँगा। वे स्वास्थ्य विभाग में थीं। उन्होंने भी किराये पर मकान उसी मकान में लिया था, जहाँ पर हम लोग रह रहे थे। उन दिनों वे सिंगिल थी, पापा को उन्होंने 'भईया' कहना शुरू किया। धीरे-धीरे सम्बन्ध गाढ़े होते गये और आज भी शांति आन्टी से रिश्ते कायम हैं। इसी अपार्टमेन्ट में एस0डी0 शर्मा से भी सम्बन्ध बने वे कृषि विभाग में थे। उनकी हैन्ड राइटिंग से मैं बहुत प्रभावित था। मैं उनकी हैंड राइटिंग की नकल किया करता था। 1988 में अचलगंज छोड़ने के बाद लगभग 15 वर्ष बाद उनसे अचानक मोहनलालगंज में मुलाकात हुई, जहाँ मैं पी0सी0एस0 प्रोबेशनर के रूप में मोहनलालगंज ब्लाक में बी0डी0ओ0 के पद पर कार्यरत था और श्री शर्मा उसी ब्लोक में ‘सीड स्टोर इंचार्ज’ थे। यह मुलाकात भी अपने आप में बहुत रोचक है, जिसका वर्णन मैं अलग से करूंगा। कुछ मित्रों और शिक्षकों से भी बाद में मुलाकातें हुई जिनमें परमेश्वर, अमित, वीरेन्द्र सिंह, कमल कुमार पाण्डेय के नाम याद आ रहे हैं।
अचलगंज में कक्षा 6 से कक्षा 8 तक की शिक्षा , पण्डित अवध बिहारी जू0हा0 स्कूल में प्राप्त की। यह विद्यालय कई अर्थो में मेरे जीवन के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। कक्षा 6 से ही ‘प्रथम’ आने की ललक ने सहपाठी परमेश्वार के साथ मित्रवत प्रतिद्वन्दिता का आरम्भ किया। हुआ यह कि परमेश्वर भी मेरी कक्षा में ही था और वह भी पढ़ने में मेधावी था। उन दिनों त्रैमासिक, अर्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाएं हुआ करती थीं। इस प्रकार साल भर में तीन अवसर ऐसे आते थे कि जब परमेष्वर और मेरे बीच ‘एक्ज़ाम वार’ चला करता था। इस ‘वार’ में हमारे अन्य सहपाठी तो रूचि लेते ही थे, हमारे शिक्षकों में भी दिलचस्पी रहती थी कि इस एक्ज़ाम में मैं फर्स्ट आऊंगा या परमेश्वर । बहरहाल कक्षा 6 से कक्षा 8 तक कुल मिलाकर नौ परीक्षाएं हुई और हर बार कभी मैं तो कभी परमेश्वर फर्स्ट और सेकेण्ड आते रहे। मत्वपूर्ण बात यह रही कि कक्षा 8 की परीक्षा उन दिनों डिस्ट्रिक्ट बोर्ड लेता था। बोर्ड की परीक्षाओं का उन दिनों बड़ा खौफ रहता था। इस परीक्षा में विद्यालयों के केन्द्र भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाते थे। हमारे विद्यालय को समीपवर्ती ग्राम ‘इटौली’ में भेजा गया था। इस प्रतिष्ठित परीक्षा में मैं विद्यालय में तो प्रथम आया ही समूचे जनपद की जो मेरिट लिस्ट बनी थी उसमें भी मैं जिले स्तर पर सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्रों में शामिल था। जब समाचार-पत्रों में इस रिजल्ट का प्रकाशन हुआ तो मुझे तो ख़ुशी थी ही मेरे पापा को जो ख़ुशी हुई वह मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। सच तो यह है कि पढ़ाई के प्रति ललक पैदा करने में सबसे बड़ा योगदान उन्हीं का था। पुलिस की सख्त ड्यूटी से जब वे देर रात घर वापस आते तो मुझे जगाते और रात में लालटेन की रोशनी में (उन दिनों अचलगंज में विद्युत आपूर्ति न के बराबर थी) मुझे गणित और अन्य विशय पढ़ाते। कभी-कभी वे मुझे ‘कॉनवाय ड्यूटी’ में साथ ले जाते और ‘बदरका’ पोस्ट पर मुझे गणित पढ़ाते। एक ओर मैं गणित के सवालों में उलझा रहता था, दूसरी ओर वे अपनी केस डॉयरी पूरी करते। फिर लौटता हूँ अपने स्कूली जीवन पर। इस दौरान श्री रामसजीवन यादव जैसे शिक्षक के योगदान को मैं नही भूल सकता जिन्होंने मुझे और पंकज को सातवीं और आठवीं कक्षा में अंग्रेजी पढ़ाई। आठवीं में मेरिट लिस्ट में आने के बाद मैंने ‘आदर्श इन्टर कॉलेज’ अचलगंज में दाखिला लिया। दाखिले से पूर्व कॉलेज के ‘इन्ट्रेंस टेस्ट’ में भी मैं टॉप पर रहा।
उधर पंकज भी कक्षा 5 में टॉप पर रहे। पंकज की पेन्टिंग और स्केचिंग स्कूल में बड़ी मशहूर थी। पंकज के बारे में यह कहा जाता था कि वे किसी भी आदमी की शक्ल को हूबहू पेंसिल से कागज पर उतार सकते थे। जौनी ने स्कूल जाते ही ‘पूत के पॉव पालने में दिखने’ वाली कहावत चरितार्थ करना आरम्भ कर दिया। उन्हें स्कूल ले जाने में बकायदा ‘बल प्रयोग’ करना पड़ता था। स्कूल न जाने की शायद उन्होंने कसम खा रखी थी और जब किसी दिन वे स्कूल चले भी जाते थे तो शाम को स्कूल से उनके ‘साहसी कारनामों’ के विषय में कोई न कोई नोटिस आ जाती थी।
मैंने कक्षा 9 आदर्श इन्टर कॉलेज से किया, यहाँ नये शिक्षक और नये दोस्त मिले। शिक्षकों में मैं श्री वीरेन्द्र सिंह यादव का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने साइंस और गणित में मुझे उन दिनों से ही रूचि पैदा कर दी। मित्रों में यहाँ पर ललित, हरिओम, शिव प्रसाद तथा श्याम सिंह यादव जैसे दोस्त बने। कक्षा 9 के बाद पापा का स्थानान्तरण लखीमपुर खीरी हो गया। 1988 में अचलगंज छोड़ कर हम लोग लखीमपुर खीरी आ गये।अचलगंज में ही कुछ लोगों से रिश्ते बहुत प्रगाढ़ हुए जिनसे अब तक सिलसिला कायम है। इस संदर्भ में सबसे पहले शांति आन्टी का नाम लेना चाहूँगा। वे स्वास्थ्य विभाग में थीं। उन्होंने भी किराये पर मकान उसी मकान में लिया था, जहाँ पर हम लोग रह रहे थे। उन दिनों वे सिंगिल थी, पापा को उन्होंने 'भईया' कहना शुरू किया। धीरे-धीरे सम्बन्ध गाढ़े होते गये और आज भी शांति आन्टी से रिश्ते कायम हैं। इसी अपार्टमेन्ट में एस0डी0 शर्मा से भी सम्बन्ध बने वे कृषि विभाग में थे। उनकी हैन्ड राइटिंग से मैं बहुत प्रभावित था। मैं उनकी हैंड राइटिंग की नकल किया करता था। 1988 में अचलगंज छोड़ने के बाद लगभग 15 वर्ष बाद उनसे अचानक मोहनलालगंज में मुलाकात हुई, जहाँ मैं पी0सी0एस0 प्रोबेशनर के रूप में मोहनलालगंज ब्लाक में बी0डी0ओ0 के पद पर कार्यरत था और श्री शर्मा उसी ब्लोक में ‘सीड स्टोर इंचार्ज’ थे। यह मुलाकात भी अपने आप में बहुत रोचक है, जिसका वर्णन मैं अलग से करूंगा। कुछ मित्रों और शिक्षकों से भी बाद में मुलाकातें हुई जिनमें परमेश्वर, अमित, वीरेन्द्र सिंह, कमल कुमार पाण्डेय के नाम याद आ रहे हैं।
*****PK
3 comments:
pranam bhaiya...
very touching & imotional jouney of lovely old days . achalganj is really a holy place for us .
बहुत खूब....सुंदर लिखा भैया...पढ़ कर दिल खुश हो गया
भैया बहुत सुन्दर लिखा
मजा अगया दिल को छुने वाली पोस्ट
प्रणाम स्वीकारें
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