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Wednesday, October 30, 2013

कृष 3 के इस गीत के सहारे पेट्रा की सैर



  कृष 3 के एक गाने ने इतिहास के पन्नो में दबे जॉर्डन के ऐतिहासिक शहर पेट्रा की याद ताज़ा कर दी है। दुनिया के सात अजूबों में शुमार ये शहर इस फ़िल्म के गाने से याद आ गया। इस फ़िल्म का एक गीत है दिल तू ही बता ....इस फ़िल्म को पेट्रा में फिल्माया गया है .बेहद खूबसूरत ढंग से. ऋतिक रोशन भी इस गाने में  बेहद खूबसूरत नज़र आ रहे  हैं.

जॉर्डन का पेट्रा  शहर जहाँ पहली बार अरबी लिपि लिखी गयी .जहाँ मेसोपोटामिया सभ्यता ने अंगड़ाई ली . चूने और बलुई पत्थर पर बसा एक शानदार शहर . 312 ईसा पूर्व बसाया गया यह शहर किसी रहस्य से कम नहीं है.रेगिस्तानी तुफानो के बीच ये इतिहासिक शहर आज भी शान से खड़ा है और जॉर्डन की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाये रखने में मदद कर रहा है। पेट्रा शहर एक डोरा नाम कीपहाड़ी पर बसा हुआ है .

इस गीत में झीले भी दिखाई दे रही है.जो इस शहर की खास पहचान है .यही नहीं उस ज़माने में पेट्रा में रहने वालों के पास जल निकासी और आपूर्ति की बेहद उन्नत तकनीक थी . ये तकनीक यहाँ के लोगों ने कैसे विकसित की इस पर आज तक रहस्य बरक़रार है. इस पुराने शहर का भारत से नाता था .यहाँ के व्यापारी भारत आते जाते रहते थे .कृष के इस गीत को देखकर एक बार फिर इस मायावी शहर को जानने और पढ़ने की ललक हुयी। रहस्य.रोमांच. उन्नत तकनीक और विकसित सभ्यता से भरे पेट्रा के अवशेष अब देखने की चीज़ भर रह गए है.लेकिन एक सवाल कि आखिर इतनी भरी पूरी सभ्यताएं कैसे नष्ट हो गयीं। क्या विकसित सभ्यतायों का यही हश्र होता है? 

ह्रदेश सिंह

Wednesday, September 25, 2013



   मामा ने हरी नाम को सार्थक कर दिया




छोटे मामा बेहद प्रगतिशील थे. उस ज़माने मे जब संचार के साधन आज की तरह इतने विकसित नहीं थे. लोग देश दुनिया की जानकारी के लिए शहर का रुख करते थे लेकिन हम गाँव की तरफ भागते थे. बजह थी मामा. जिनको लोग हरी ...वैधजी ...और डायरेक्टर साब के नाम से पुकारते थे
दर्शन ...तर्क शास्त्र ...नाट्य ...संगीत ...चिकित्सा ...विज्ञान ...फिल्म ..राजनीति  और साहित्य जैसी तमाम क्षेत्रों मे उनका बड़ा दखल था ...श्रीमद्भागवत गीता और श्री रामचरित मानस  पर तो जैसे मामा ने पी एच डी की हो ...उनकी पैदाइश मेदेपुर की थी .मैनपुरी का बेहद छोटा गाँव .आवादी यही कोई हज़ार बारहा सौ की होगी .मामा चाहते तो अधिकारी बन सकते थे ...पुराने ज़माने के पढ़े लिखे थे .उस समय नौकरी के लिए आज की तरह मारा मारी नहीं होती थी ...तहसीलदार की नौकरी नहीं की ...नाना ने सिफारिश कर मास्टरी की नौकरी दिलवा दी... लेकिन मामा का मन नहीं लगा ...वह तो गाँव के सेवा करना चाहते थे ...अनपढ़ ..शोषित ...बीमारों की सेवा करना चाहते थे ....मामा ने किया भी ...डॉक्टरी सीखी ...लोगों का इलाज करना शुरू किया ..अन्धविश्वास और अशिक्षा मे जकड़े गाँव को कैसे मुक्त कराया जाये इस पर हमेशा उनका चिंतन जारी रहता .ग्रीक के दार्शनिको के तरह बंद कच्चे कमरे मे दीये की लौ को घंटो निहारते जैसे वे दूसरी दुनिया के लोगो से सम्पर्क कर गाँव की दिक्कतों का हल निकाल रहे हो ..उन्हें हल मिला भी ...
मामा रेडियो लाये .मेदेपुर का पहला रेडियो था ये .अब गाँव के लोगों को दुनिया की खबरे मिलने लगीं ...सरकार क्या कर रही लोगो को पता चलने लगा ....अब मामा को लोगों को जागरूक बनाना था ...उन्होंने गाँव में रामलीला का मंचन शुरू किया ..रामलीला को मामा निर्देशित करते थे .रामलीला मंचन के पीछे ग्रामीणों का नैतिक स्तर उठाना था ...इस रामलीला मे बाहरी कलाकारों नहीं बुलाया जाता था गाँव के युवा इसमें भाग लेते थे ...मामा के घर का बड़ा आँगन जिसे हमसब लोग आबादी कहते थे रामलीला का अभ्यास किया जाता था .. पूरा गाँव इस अभ्यास को देखने आता ..मामा के प्रयोग असर दिखा रहे थे गाँव तरक्की कर रहा था ...मेदेपुर आदर्श गाँव बन रहा था गाँव की लड़कियां स्कूल जा रही थीं ...मामा ने जो सोचा वो कर दिखाया उन्होंने हरी नाम को सार्थक कर दिया था ....भगवान् हरी भी तो ऐसा ही करते थे भटके हुए लोगों को राह दिखाते थे ....मामा कहा करते थे आत्मा अजर अमर है देह नष्ट हो सकती है आत्मा नहीं . मामा आपकी बात कितनी सच लगती है ....

हृदेश सिंह

Wednesday, August 21, 2013

"हरीकृष्ण"...... बल्कि स्व0 हरीकृष्ण.........।


....... हमें छोड़ के ये सब क्यो छोड़ गए हो....?

अभी तक दिमाग से 16/1 7  अगस्त की वह रात निकल नहीं रही जब अचानक रात करीब 01 बजे मेरा फोन बजा . फोन उठाया, दूसरी तरफ मम्मी थीं........बदहवासी में बोली - "छोटे मामा की तबीयत खराब है......सांस लेने  में तकलीफ हो रही है, हम लोग ईसन नदी के पुल के पास हैं, प्रमोद डॉक्टर की तलाश में गए हैं......." उन्होंने ये साड़ी बात रुंधे गले से एक ही सांस में कह डालीं .मैं समझ गया कि वाकई हाल मुश्किल हैं . मैंने मम्मी से कहा ‘‘मेरी बात कराओं।‘‘ मम्मी ने फोन मामा को दिया। मामा बोले - ‘‘ बेटा बात करने में तकलीफ हो रही है‘‘। मैं उनकी आवाज से समझ गया कि उनकी हालत नाजुक है। मैं रात में ही निकल पड़ा। फर्रूखाबाद से मैनपुरी का रास्ता लगभग एक-सवा घण्टे का है.....रास्ते भर मैं चीजें मैनेज करता रहा। कभी सी0एम0ओ0 को फोन लगाकर उससे तत्काल इलाज करने की दरख्वास्त की तो कभी जोनी को जगाकर व्यवस्था करने को कहा.....मगर ये सब उपाय दस मिनट के अन्तराल में ही बेमानी साबित हो गए। 

‘‘मामा नहीं रहे .....‘‘ यह वाक्य जब मम्मी ने बोला तो लगा कि सिंह सदन के हिस्से का एक दैरीव्यमान सितारा बुझ गया।

हरीकृष्ण ... अब स्व0 हरीकृष्ण हो गए थे। वैद्य जी, चच्चू, डाइरेक्टर साहब, डॉ  साहब, मामा और फिर छोटे.....जाने कितने सम्बोधन उनके खाते में थे। हम सब अपनी सहूलियत से उन्हें सम्बोधित करते थे। जब से हम लोगों ने होश संभाला तब से छोटे मामा हमारे लिये एक बौद्धिक प्रकाश पुंज की तरह थे। मेदेपुर जैसे नितान्त छोटे से गांव में पहले शख्स थे जिसने ‘सूचना और ज्ञान‘ की शक्ति को समझा। जाने कहां-कहां से सोवियत संघ, नवनीत, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी नामचीन पत्रिकाओं से लेकर बाजारू साहित्य का एक बड़ा संकलन चैपाल में रहता था। पौराणिक साहित्य का संकलन तो हमारे घर में पूर्व से ही चला आ रहा था। रेडियो, घड़ी, टेप रिकार्डर जैसे तत्कालीन गैजेट भी उनके पास रहा करते थे। यह उनकी जिजीविषा और उत्कंठा का ही परिणाम था कि वे इतिहस, स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य, खेल, राजनीति, कूटनीति, संगीत, कला जैसे विविध विषयों पर भरपूर जानकारी रखते और हमारी पीढ़ी को अवगत कराते । मुझे आज भी आश्चर्य होता था कि कैसे उन्होंने आयुर्वेद और ऐलोपैथ के क्षेत्र में स्वाध्याय और अनुभव से अपना लोहा मनवाया। कोई मान्यता प्राप्त डिग्री उनके खाते में नहीं थी किन्तु उनके इलाज के मुरीद आस पास के गांवों में सहजता से मिल जाते हैं। छोटे मामा ने गांव में रामायण के मंचन की परम्परा डाली। छन्दबद्ध संवाद के माध्यम से लगभग पन्द्रह दिन चलने वाली इस रामायण के मंचन ने उन्हें एक निर्देशक  के रूप में स्थापित किया, वे ‘डाइरेक्टर सा'ब ‘ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। इसके अलावा सूचनाएं/जानकारी एकत्र करने का जुनून और वाद-विवाद-बहस की परम्परा को जन्म देने के लिए उन्हें श्रेय दिया जाना चाहिए।

1995 के आस-पास बच्चन की मधुशाला के छन्दों की रिकार्डिंग के लिए मैंने और पंकज ने उनकी आवाज में कई छंद रिकार्ड किए। अब वह रिकार्ड तो गुम हो गया है किन्तु उनकी प्रस्तुति का तरीका आज तक मैं विस्तृत नहीं कर सका।

बहुत कुछ लिखने को है... मगर सब कुछ थम सा गया है, उनके जाने के बाद। अन्याय हुआ है हमारे साथ। कुछ दिन उन्हें और ठहरना चाहिए था। मगर नियति से न कोई लड़ सका है न लड़ पाना संभव है।

बहुत कुछ छोड़ गए हो मामा आप हम सब के लिए ...लेकिन हमें छोड़ के ये सब क्यो छोड़ गए हो....?

***** PK

Tuesday, August 20, 2013

मेरे मामा ....

मामा अपने समय से कई गुना आगे थे
वे इतिहास, राजनीति, धर्म, साहित्य, संगीत के जोरदार वक्ता थे.
इन विषयों पर उनकी जानकारी अत्यंत गहरी थी
वे विषयों पर गहन चर्चाएँ करते थे
जिस पक्ष  को वे सकारात्मक तौर पर पेश करते थे
निश्चय ही कई बार उसी का वे पुरजोर विरोध भी प्रस्तुत कर देते थे
वे कभी किसी निश्चित धारणा से नहीं जुड़े
वे कभी तो अज्ञेयवादी  तो कभी छडभंगुरवादी नज़र आये
सच्चाई तो ये है की वे विचारधाराओं के जादूगर थे
जहाँ तक धर्म का प्रश्न है वे महिमा मंडन और खंडन दोनों के पछधर थे
 वे हमारे लिए एक खगोलीय पहेली के समान थे
जिनको  हल करना  शायद हम से परे हो
पर एक बात तय है आप हमारे लिए बापू जी से कम नहीं थे
चरण स्पर्श

श्यामकांत

Monday, August 19, 2013


प्यारे मामा श्री हरी कृष्ण जी की याद में 
                                         
                                          ये जीवन कुछ अजीब सा है। 


ये जीवन कुछ अजीब सा है।
 थोडा सा ज्ञान  सिखाता है और ढेर सारा रह जाता है ,
थोडा सा ही वक्त अपनों को दे पाते  हैं और ढेर सारा वक्त ये रोजी- रोटी ले जाती है ,
झगड़ों और क्लेश में पूरा जीवन हम गवां देते हैं और रोते तब हैं जब पूरा इंसान ही हमसे दूर चला जाता है ,
अंधी राह पर दौड़ते जाते हैं और पलट कर देखते हैं तो मुट्ठी में रेत भर  तक शेष  नहीं रह जाती है,
जिन चीज़ों के लिए दीवानों की तरह पागल रहते हैं एक झटके में वो हमसे दूर हो जाती हैं...  उनके होने न होने के कोई मायने तक नहीं रह जाते हैं !
एक ही पल में सब मंज़र बदल जाता है लेकिन उस पल की आहट  पूरी जिंदगी सुनाई नहीं देती !
हर बार वही गलतियाँ ,  हर बार वही अफ़सोस  पर कुछ नहीं बदलता कुछ् नहीं सुधरता !
हर अपने को गंवाने के साथ हम अपने शरीर  का एक - एक अंग गंवाते चलते हैं,,
आओ इसे कुछ् रोकें  कुछ सुधारें जो बचे हैं उनके साथ कुछ् यादगार पल बिता ले 
गुजर रहा हर पल लौट के न आएगा . जाने वाला वो "अपना " फिर बुलाने पर भी लौट के न आएगा !

**** PANKAJ K. SINGH



प्यारे मामा..... WE ARE MISSING YOU LOT ,,,

WHY YOU LEFT SO EARLY ...
NOTHING SEEMS GOOD WITHOUT YOU ....




***** PANKAJ K.SINGH
                              श्रद्धांजलि 
             
                           प्यारे मामा श्री हरी कृष्ण जी...... 
                                 
          एक   विलक्षण निर्दोष दीनबन्धु  की असमय  विदाई  ...         

                                   एक झटके में लगा  मानो  वक्त  रुक गया है.. ..  और जिंदगी का एक खूबसूरत अध्याय समाप्त हो गया है ! ...... "सिंह सदन" के अतिप्रिय और हम भाईओं  के दुलारे हमारे छोटे  मामा  श्री हरी कृष्ण जी हमारे बीच नहीं रहे ! अचानक ही ईश्वर  ने उन्हें अपने पास बुला लिया और एक झटके में हमारे प्यारे मामा हमसे बहुत दूर चले गए !
                                      रह - रह के दिल से एक हूक  सी उठती है कि काश कुछ् वक्त और मिल जाता तो सब कुछ छोड़ - छाड़ के अपने छोटे  मामा , प्यारे मामा श्री हरी कृष्ण जी के साथ एक लम्बी चर्चा में खो जाते और उनके निश्छल और निर्विकार शब्दों को शहद की तरह अपने कानो में पिघल जाने देते  !आज जिंदगी के छोटे होने का फिर अहसास हुआ है .... लग रहा है जैसे हमारा सब कुछ छीन लिया गया है चारों तरफ उदासी है. कुहासा है रुदन और क्रंदन है !  
                                       प्यारे मामा श्री हरी कृष्ण जी एक  नायब प्रतिभाशाली व्यक्ति थे ! उत्तर प्रदेश के  मैनपुरी जिले के एक  छोटे से गाँव मेदेपुर में उनका जन्म १९५३ में हुआ था ! उन्होंने आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की और अपने पुरे जीवन को निर्धनों और ग्रामीणों  की सेवा में लगा दिया ! चिकित्सक का जीवन उनके लिए एक मिशन था ना कि  कैरियर !
                                         उन्होंने निर्धनों और ग्रामीणों से इलाज का कभी शुल्क न लिया बीमार और उनके परिजन कई बार स्वयं ही बहुत जोर जबरदस्ती कर उन्हें कुछ सहयोग राशी दे देते थे जिसे वे बड़े संकोच के साथ लेते थे ! मैंने अपने जीवन में ऐसा विलक्षण निर्दोष दीनबन्धु दूसरा नहीं देखा !
                                          छोटे  मामा , प्यारे मामा श्री हरी कृष्ण जी एक निपट कर्मयोगी थे सुबह ब्रह्ममुहूर्त ४ बजे उठने से लेकर रात १०.३० बजे सोने तक वे निरंतर एक कर्मयोगी  की भांति अपने कर्त्तव्य निर्वहन  में रत रहते थे ! उन्हें न ही कोई महत्वाकांक्षा थी और न ही कोई लालच जैसे दुनियावी गन्दगी और क्लेशों ने उनको छुआ तक न था सीमित आवश्यकताओं के साथ उन्होंने बिना किसी को दुःख दिए अपना जीवन संयम और कर्मठता के कड़े अनुशाशन में गुज़ारा !
                                          हम जैसी नयी पीढ़ी के लिए तो वे सदैव एक मार्गदर्शी ही रहे ! भैया और मैं उनके सबसे बड़े फैन थे और हम दोनों ने उनको बचपन से ही अपना बौद्धिक साथी माना था उनसे हमारा वार्तालाप  लम्बा , सुरुचिपूर्ण और गंभीर विषयों पर रहता था ! वे एक गज़ब के वक्ता ,मंच संचालक और  प्रकांड रंगकर्मी थे उन्होंने मेदेपुर  की रामलीला के मंचन को अमर बना डाला चार दशक तक मेदेपुर  की रामलीला रंगकर्म की थाती रही जो आज इतिहास की धरोहर है ! उनका सुरुचिपूर्ण और गंभीर मंच संचालन देखते ही बनता था !
                                          ..... प्यारे मामा श्री हरी कृष्ण जी का  जाना एक अपूर्णीय पारिवारिक ,सामाजिक ,क्षेत्रीय और पौराणिक -साहित्यिक-सांस्कृतिक  क्षति है जिससे हम शायद कभी उबार नहीं पायेंगे... आपके जाने के बाद हम समझ पा रहे हैं छोटे  मामा , प्यारे मामा श्री हरी कृष्ण जी  कि  आप क्या थे.....  हम  आपसे बहुत कुछ् पाने से  रह गए अब कोई नहीं है जिससे हम इतना सारा शास्त्रार्थ कर पायेंगे आप अपने साथ वैचारिकता का एक पूरा युग ले गए हैं !  

*****PANKAJ K. SINGH                                           

Sunday, May 26, 2013


मै तुम्हारी किताब ले जा रही हूँ ...



खे कर सीधे घर पहुंचा। जूते उतर कर उठा ही था कि  अम्मा का चेहरा समाने गया।क्या है ... अम्मा,   मैंने अम्मा से पूछा। अम्मा ने  दाहिने हाथ को आगे किया और एक किताब मेरे हाथों में  थमा दी ....ये तो मेरी ओलम की किताब है अम्मा। अम्मा ने कहा जानती हूँ ... अम्मा ने इधर उधर देखा। मेने कहा क्या देख रही हो अम्मा। अम्मा बोली मुझे पढना है ... मैंने उनकी और देखा।।क्यों क्या करोगी पढ़ कर ... अम्मा ने कहा अपना नाम लिखना सीखना है .....अम्मा ने मेरा हाथ पकड़ा और जीने की सीढियों पर बैठने को कहा ....अम्मा ने किताब का पहला पन्ना खोला,,,पढ़ना शुरू किया। इस तरह से अम्मा के पढने का सिलसिला शुरू हुआ ....दोपहर मे जब सब लोग सो जाते अम्मा मेरी किताब लेकर मेरे पास आजाती ....मैं उन्हें पढाता। अम्मा का हाथ पकड़कर लिखना सिखाता  ....अम्मा बड़ी तेजी से लिखना   पढ़ना सीख रहीं थी।

सुबह अख़बार आता तो अम्मा अखबार की मोटी हैडिंग को पड़ने की कोशिश करती ... मुझे भी अम्मा को पढ़ते देख ख़ुशी होती। एक दिन रात को पापा ने मम्मी से कहा छुट्टी मिल गयी है ...कल सुबह अम्मा को गाँव छोड़ आऊंगा। जब ये बात मुझे पता चली की अम्मा जा रही है तो मुझे दुःख हुआ ...रात मैं अम्मा के पास ही सोया ....अम्मा से पूछा तुम जा रही हो ...अम्मा ने कहा हां जाना पड़ेगा ... मेने कहा तुम जाओ अम्मा ... मम्मी  मारेगी तो कौन बचाएगा ...मम्मी मुझे जब भी शैतानी करने पर मारती तो अम्मा दीवार बनकर मेरे सामने आजाती। अम्मा के गाँव जाने का मुझे अफ़सोस था ...लेकिन अम्मा को जाना ही था .. उन्हें काफी दिन जो हो गए थे,,,सुबह हुयी अम्मा ने अपना सामान एक बैग मैं रखे फिर मेरे पास आयीं और धीरे से मेरे कान के पास कर कहा ....मै तुम्हारी किताब ले जा रही हूँ ...मैंने कहा ले जाओ अम्मा ...अम्मा ने मेरे हाथ चूमे और कहा जल्दी ही वापस आउंगी ...अम्मा ने कुछ सिक्के मुझे चलते समय दिए कहा तुम दूसरी किताब ले लेना ...अम्मा पापा के साथ चल दी ....अम्मा अब सड़क पर थी मै छत के मुंडेर से उन्हें जाते हुए देखा रहा था। उस दिन मैं अम्मा के ही बारे मे सोचता रहा।

मई आगयी। स्कूल की छुट्टी हो गयीं।।मेने घर मैं जिद की ...मुझे अम्मा के पास जाना है ...एक दिन मम्मी ने कहा पापा को छुट्टी मिल गयी है ... तुम गाँव चले जाओ। पापा के साथ गाँव पहुंचा ...अम्मा दरवाजे पर ही थी मेने अम्मा के पैर छुए  अम्मा हाथ पकड़ कर अन्दर ले गयीं।।अम्मा ने बहुत प्यार किया खूब सारा खाना खिलाया ...अम्मा ने कहा मेने लिखना  भी सिख लिया है ... अम्मा ने चूल्हे से कोयले का एक टुकड़ा निकला और गेहूं से भरे मिटटी के कुठले पर लिखना शुरू किया ...अम्मा ने कहा देखो मैंने अपना नाम लिखना सीख लिया है .....उस पर लिखा था चमेली देवी ,,,मैंने अम्मा से पूछा ये तुम्हारा नाम है .....अम्मा ने कहा हाँ ...उस दिन पहली बार मालूम हुआ की अम्मा का नाम चमेली देवी है ...उस नाम की खुशबु आज भी मेरे जेहन मैं महक रही है .....सत्तर की अम्मा ने करिश्मा कर दिया था ...अब वो दस्तखत करना सीख गयीं थी ....मेरी अम्मा अनपढ़ नहीं थी ....ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी ....शायद अम्मा की भी।

हृदेश सिंह