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Friday, December 31, 2010

नए साल का पहला जाम....आपके नाम !!!


वर्ष 2010 बीत गया........... 2010 को अलविदा कहते वक्त अचानक पूरा बरस आंखों के सामने तैरता दिखाई पड़ रहा है। ‘सिंह-सदन‘ के लिए ये साल कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। ब्लॉग पर ‘सिंह-सदन‘ पर धमाकेदार पर्दार्पण, मैनपुरी नुमाइश में जोनी के संयोजकत्व में आयोजित युवा महोत्सव, पंकज की उपायुक्त के पद पर प्रोन्नति, घर में ‘जानशीं ‘ का आगमन, अक्षत को चोट लगना , आदरणीय अम्मा की आंख का सफल आपरेशन, अक्षत का जन्मदिन समारोह, 'सिंह-सदन' टीम का कुशीनगर गोरखपुर भ्रमण, युवा ब्रिग्रेड का ककोड़ा मेला भ्रमण, सिंह-सदर एक्सटेंशन में आण्टी की तबियत खराब होना, सिंह सदन प्रोडक्शन की कुछ फिल्मों का प्रदर्शन के लिए तैयार होना इस वर्ष की महत्वपूर्ण घटनाएं रहीं......... बहरहाल आईए डालते हैं वर्ष 2010 की महत्वपूर्ण घटनाओं पर..........!


सबसे पहले अम्मा की बात.......! 80 से ज्यादा बसंत देख चुकीं ‘अम्मा‘ के लिए उनकी आंखे अब परेशानी का सबब बन चुकी हैं। उनकी दायीं आंख एक मुद्दत से बगैर रोशनी के बेमतलब सी हो गई थी, दिसंबर माह में उनका सफल आपरेशन हुआ और अब वे अपनी आंख से पूर्णतया देख-महसूस कर पा रही हैं.

इस आपरेशन का क्रेडिट अंजू को जाता है जिन्होने एक ‘नर्स‘ की तरह पिचले दिनों अम्मा की देखभाल की। दिन में 16 बार अलग अलग ड्रोप्स आंखों में नियमित अन्तराल पर डालने और समय से दवा खिलाने के लिए वे बधाई की पात्र हैं, उनके सहयोग के लिए अम्मा की सेवा में लगे डॉ0 उमा भी बधाई के पात्र हैं.


यह साल ‘सिंह-सदन‘ के लिए आयोजनों का वर्ष रहा। फरवरी माह में मैनपुरी नुमाइश में जोनी के संयोजकत्व में ‘युवा महोत्सव‘ ने धूम मचाई. मैनपुरी में इस ‘टैलेण्ट शो ‘ ने युवा प्रतिभाओं को एक नया रास्ता दिया. इस शो में मुंबई-दिल्ली-लखनऊ के प्रतिष्ठित युवा कलाकारों और स्थानीय कलाकारों ने रंगारंग कार्यक्रम पेश कर समां बांध दिया. दूसरा बड़ा आयोजन हृदेश की नयनाभिराम शादी रही. यह शादी ‘ग्रांड-शो‘ सिद्ध हुई. दो हजार बारातियों वाली इस बारात में मैनपुरी के लगभग समस्त प्रतिष्ठित लोग शामिल रहे. जोनी की शादी के अलावा रंजीत की शादी भी ‘सिंह-सदन‘ के खाते में जुड़ी. पंजाबी लुक वाले ‘रंजीत‘ की शादी भी धूम-धाम से हुई. जोनी और रंजीत की शादियों के कारण ‘सिंह-सदन‘ में ढोल और तासों का दौर चलता रहा.


पंकज के लिए भी ये साल उपलब्धियों वाला रहा. अब वे सहा.आयुक्त से उपायुक्त बन गए हैं. गाजीपुर से नोएडा पहुँचाने की उनकी उपलब्धि पर ‘सिंह-सदन‘ का सलाम.पंकज के लखनऊ स्थित आवास पर 'अक्षत' (अपने पिंटू के सुपुत्र....) का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया. इस आयोजन में ‘सिंह-सदन‘ कोर कमेटी की बैठक भी हुई जिसमें कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए. इस बैठक में मम्मी, अंजू, प्रिया, बिटिया, पंकज, जोनी, श्यामू, पिंटू, डा0 उमा आदि उपस्थित रहे। पंकज ने इस आयोजन को स्मरणीय बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, बेहतरीन आयोजन के लिए पंकज को फुल मार्क्स.

सिंह सदन के सदस्यों के स्वास्थय के लिहाज से यह बरस औसत रहा. यद्यपि अक्षत को चोट लगना इस साल की बड़ी घटना थी किन्तु इस चोट को जल्दी ही रिकवर कर लिया गया. सिंह सदन एक्सटेंशन में ‘आण्टी‘ का आपरेशन और दिसंबर के अंतिम दिनों में उनका स्वास्थय गड़बडाने की खबर कष्टकारी रही. ईश्वर से कामना है कि वे जल्दी स्वस्थ हों........!

‘सिंह-सदन‘ टीम ने इस बार गोरखपुर- कुशी नगर- ककोडा मेले का भ्रमण किया। गोरखपुर के वाटर फाउन्टेन के बाद महात्मा बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर की यादगार यात्राएं रहीं. बद्युन के ऐतिहासिक ककोडा मेले में ‘युवा बिग्रेड‘ की धमा चैकड़ी आनन्ददायक रही. गंगा जी के किनारे शामियाने में बिताई गईं वे चन्द रातें यादों में हमेशा -हमेशा के लिए कैद हो गई. इन यात्राओं में चिन्टू, मयंक, प्रमोद रत्न, पंकज, जोनी, अंजू, प्रिया, ईशिका का-लीची, संदीप, श्यामू आदि शामिल रहे.


‘सिंह-सदन‘ के लिए फिल्म प्रोडक्सन से जुड़े विभिन्न सदस्यों के लिए यह बरस काफी ‘क्रिएटिव‘ रहा। प्रोडक्सन से जुड़े श्यामकांत , चिंटू, बिटिया, जोनी, दिलीप, संदीप, जोनी (अजीत), सपना ने ‘वसीयत‘ और ‘यती‘ नाम फिल्मों का निर्माण-प्रदर्शन किया. प्रोडक्सन से जुड़े सूत्र बताते हैं कि फिलहाल ‘डॉन‘ और ‘डार्क नाइट‘ फ्लोर पर हैं,जो अगले वर्ष प्रदर्शित होंगी.


यह वर्ष रचनात्मकता का वर्ष सिद्ध हुआ। ‘सिंह सदन‘ के लिए ये साल ‘ब्लॉग वर्ष‘ रहा. अप्रैल में ब्लॉग की शुरुआत हुई और महज 8 महीनों में 150 से अधिक पोस्ट इस ब्लॉग पर प्रकाशित हुईं जो सिंह सदन के रचनात्मक लेखन की सक्रियता का प्रतीक रहा. रचनात्मकता के संदर्भ में हाइकू 2009 में मेरी पांच रचनाएं शामिल की गई जबकि उर्दू मैग्जीन ‘शायर ‘ में हृदेष का एक लेख प्रकाशित हुआ. एटा में आयोजित वाद विवाद प्रतियोगिता में बिटिया को विशिष्ट सम्मान मिलना महत्वपूर्ण उपलब्धि रही. पिन्टू, संदीप का रचनात्मक लेखन ब्लॉग के लिए संग्रहणीय रहा. पिन्टू के गीतों ने तो मन मोह लिया.......!


इस खाकसार के हिस्से में इस बरस ‘वियतनाम-सिंगापुर‘ की यात्राएं रहीं। गोरखपुर के बाद बदायूं का सफर काफी उपलब्धियों वाला रहा. 'वर्टिगो' की वजह से मसूरी में मेरा स्वास्थय गड़बड़ रहा, लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ सामान्य हो गया. इस दौरान पंकज, डा0 उमा व ‘सिंह-सदन‘ की ओर से मुझे जो संबल मिला उसके लिए समस्त परिजनों को कोटिश: धन्यवाद.


वर्ष की महत्वपूर्ण उपलब्धि ‘जानशीं‘ का आगमन रहा. ‘प्रिया-जोनी‘ को इस उपलब्धि पर बधाई. अभी ‘जानशीं‘ का औपचारिक नामकरण नहीं किया गया है, शीघ्र ही धूम धडाक़ो वाला आयोजन प्रस्तावित है.
फ्रांसीसी पग ‘प्रिंसी‘ का सिंह सदन से जुड़ना एक नई घटना थी। दीपावली पर मैनपुरी से ‘प्रिंसी‘ का नाटकीय तरीके से अपहृत होना तथा वापसी होना भी हमेशा स्मरणीय रहेगा. युवा बिग्रेड को लेकर यह साल उतना सुखद नहीं रहा. उम्मीद है कि वर्ष 2011 इन युवाओं की सफलता की नई इबारत लिखेगा......!


गत वर्ष का लेखा जोखा संक्षिप्त में आपके सामने है.....अगर कोई महत्वपूर्ण घटना छूट गयी हो तो ब्लॉग पर अवश्य लिखें...... !


हमारी ओर से सिंह सदन के सभी सदस्यों को आगत वर्ष की हार्दिक बधाईयाँ.......!!!!!
शुभ नव वर्ष 2011


*****PK

Saturday, December 25, 2010

SINGH SADAN ANNUAL AWARDS - 2010


...समय का पहिया तो कभी रुकता ही नहीं है ! आहिस्ता -आहिस्ता एक और वर्ष समाप्त होने ही वाला है... इस अवसर को सेलेब्रेट करते हुए ''सिंह सदन एनुअल अवार्ड'' के लिए तैयारियां पूरी हो चुकी हैं !

सभी सदस्यों को TOTAL 27 केटेगरी में वोटिंग के लिए आमंत्रित किया जा रहा है !इन वोटिंग्स के आधार पर ही अवार्ड तय होंगे प्रत्येक केटेगरी में प्रत्येक सदस्य को अपनी पसंद के 2-2 नोमिनेसन देने होंगे ... तो शुरु हो जाइये और इन केटेगरिस में अपने वोट कास्ट कीजिये....

1.SINGH SADAN PERSONALITY OF THE YEAR 2010 (MALE)
2.SINGH SADAN PERSONALITY OF THE YEAR 2010 (FEMALE)
3. MOST POPULAR PERSONALITY OF THE YEAR
4.EVENT MANAGER OF THE YEAR
5.GREAT ACHIEVER OF THE YEAR
6.CRUSADER OF THE YEAR
7.BEST BLOG WRITER OF THE YEAR
8.BEST BLOG ARTICLE OF THE YEAR
9.PEACEMAKER AMONG FAMILY OF THE YEAR
10.DEDICATED PERSONALITY OF THE YEAR
11.SPRITUAL PERSONALITY OF THE YEAR
12.MOST STYLISH PERSONALITY OF THE YEAR(MALE)
13..MOST STYLISH PERSONALITY OF THE YEAR(FEMALE)
14. JUNIOR PERSONALITY OF THE YEAR
15. MOST DESIRABLE PERSONALITY OF THE YEAR
16.BEST STUDENT OF THE YEAR
17. BEST COOK OF THE YEAR
18.BEST INTERIOR DECORETOR OF THE YEAR
19.BEST HOME MAKER OF THE YEAR
20. BEST PROFESSIONAL OF THE YEAR
21. HONEST PERSONALITY OF THE YEAR
22. BEST ARTISTIC PERSONALITY OF THE YEAR
23. BEST TECHNOCRAT PERSONALITY OF THE YEAR
24. BEST ADMINISTRATOR OF THE YEAR
25. BEST SOCIAL ACTIVIST OF THE YEAR
26. BEST DISCIPLINED PERSONALITY OF THE YEAR
27. BEST HOSPITALITY AWARD

.....so please rush your entries by 27th of december 2010. every entry has a surprise gift hamper . A VERY HAPPY NEW YEAR 2011 TO ALL OF YOU .

***** PANKAJ K. SINGH

Friday, December 24, 2010


पहेली 3 में आप सभी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया धन्यवाद...... ! आप सब की प्रतिभागिता ने दिखा दिया कि आप लोग ब्लॉग से कटे नहीं हैं....बस व्यस्तता कि वज़ह से ज़रूर कुछ दूरी आ जाती है.......अभी भी ब्लॉग के प्रति आप सब के मन में वही लगाव है।


पहेली 3 में छुपा हुआ चेहरा रिंकू का था.......सही उत्तर देने के लिए पिंटू और श्यामू को पूरे अंक। पंकज ,उमारमन और जोनी को फिर से कोशिश करनी होगी.


हाजरीन फिलहाल पहेली 4 का हल आपको देना है.....


वैसे तो सिंह सदन में कोई सदस्य कभी पीठ नहीं दिखाता है......लेकिन फिर भी इस तस्वीर में हमारे किसी सम्मानित सदस्य का पीठ का हिस्सा आपके सामने है......बताईये ये कौन है ???????

Monday, December 20, 2010

''जानशीन'' टास्क...


''जानशीन'' के नामकरण का टास्क सिंह सदन के सदस्यों को पेशेनज़र किया गया था... लगता है सभी सदस्य काफी होम वर्क कर रहे हैं ! निश्चय ही आप सभी कुछ चमत्कृत कर देने वाले नाम जल्दी ही पेश करेंगे ! बहरहाल इस टास्क को गति देते हुए इधर मैंने कुछ रिसर्च किया ...और ये चंद नाम मुझे काफी पसंद आये ...जिन्हें आपसभी के विचार हेतु रख रहा हूँ ! मैंने इन्हें alphabetically list किया है... तथा इन नामों के अर्थ को भी स्पष्ट कर दिया है... ताकि आपको सुविधा हो!

.... वैसे मुझे साहित्यिक -सांस्कृतिक और एतिहासिक लम्बे नाम ही ज्यादा प्रिय लगते हैं!

... यह नाम आपको कैसे लगे ..यह मैं अवश्य जानना चाहूँगा !

Asavari .... name of a raaga in our Indian music
Ashlesha .... name of a nakshatra
Anarghya .... priceless
Bani .... Goddess Saraswati
Bhavya .... grand, splendid, Goddess Parvati
Chitragandha .... a fragrant material
Damini .... lightning
Ekaparnika .... Goddess Durga
Gargi .... name of a learned woman, Goddes Durga
Mrinalini .... lotus
Nivedita .... one dedicated to service of god
Priyanvada .... one who speaks nicely
Tista .... a tributary of Ganga river located in North India
Yamini .... night

***** PANKAJ K. SINGH

पहेली 3


पहेली 1 व 2 में सिंह सदन के सदस्यों ने अपार उत्साह के साथ भाग लिया जो इस श्रंखला के सुखद भविष्य का संकेत है...... वैसे पहेली 2 थोड़ी कठिन थी लेकिन पहेली 2 और 1 को एक साथ मिला कर जब 'क्लू' दिया गया तो आप सबने पहचान लिया........ आप सब ने सही पहचाना तस्वीरें राकेश चंद और ज्ञान सिंह की ही थीं।


सही उत्तर देने के लिए पिंटू श्यामकांत, टिंकू ,संदीप, जोनी, उमारमन और लालू को बधाई... इन सभी को मिलेंगे वार्षिकोत्सव में नकद पुरूस्कार।


पहेली 3 हाज़िर है बताइए ये किस शख्स का चेहरा है.......??????

Friday, December 17, 2010

"जानशीं" ..आने का जश्न !


सिंह सदन को एक और नया "जानशीन" मिल गया है... इनका नाम मैं चाह कर भी आपको नहीं बता सकता ...क्योंकि अभी यह तय नहीं है ! "कोर कमेटी" की अगली वार्षिक बैठक में इस बहुप्रतीक्षित नाम की घोषणा कर दी जाएगी ..... तब तक जो मन चाहे बुलाइए ...और मज़ा लीजिये !

जोनी और प्रिया को बधाई.... उन्हें इस बात की सराहना मिलनी चाहिए कि उन्होंने "सिंह सदन" को एक सरस्वती दी! यह भी एक सुखद संयोग ही है कि १४ दिसंबर को अब सिंह सदन में दो परियों के आगमन के रूप में मनाया जायेगा ! दोहरी खुशियों का प्रतीक होगा ...अब १४ दिसंबर !

सिंह सदन सदस्यों के लिए एक टास्क भी आ गया ....सभी को तीन दिन के भीतर ५-५ अच्छे अर्थपूर्ण नाम सुझाने हैं... ताकि जानशीन को एक भाग्यशाली नाम दिया जा सके ...तो लग जाइये और कुछ बेहतरीन सार्थक - सुन्दर नाम पेश कीजिये ! जिसका नाम अंतिम रूप से चुना जायेगा ...उसे मिलेगा मनचाहा पुरस्कार... पुन: बधाई !!

*****PANKAJ K. SINGH

Thursday, December 16, 2010

लड़की है या कोई जादू

14 दिसम्बर 2010 की रात जिंदिगी की खुबसुरत रात बन गयी.... तीरगी को चीरती एक आवाज़ के साथ ठीक 10 बज कर 5 मिनट पर मैंने अपनी बेटी का दीदार किया.इस शानदार पल को बयान करना बेहद मुश्किल है..बस इस अहसास को
एक लम्बी सी सांस के साथ मुख़्तसर कर उसे देखने लगा.सफेद कपड़ों में लिपटी.
मासूमियत
से भरी...नूर से लिपटे चेहरे में ऐसा तिलिस्म जिसे देख कर बस देखता रह गया...यही हाल अस्पताल कमोबेश हर देखने वाले का था...लम्बे मखमली काले बाल...सुंदर लम्बी मचलती उंगलियाँ...जैसे अभी से आसमान छुने को बेताब हैं...सुर्ख गुलाबी होंठ...बड़ी बड़ी दो काली आँखें.... और एक मुस्कान.जैसे वो कोई जादू चला रही है.
बेटी की आने की खबर पूरे शहर में जंगल में आग तरह फ़ैल गयी.हर मिलने वाला अस्पताल में उसकी एक झलक पाना चाहता था.दादी..उषा दीदी.गीता दीदी. प्रमोद भैया.भाभी नाना ताराचंद.नानी..मौसी.रूचि..रूबी..मामा.सोनू.बुआ.नेहा.संदीप..दिलीप.चिंटू.श्यामू.बिट्टू..गुल्लू..विक्रम हर कोई उसे देख देख कर बेहद खुश हो रहा था.लोग हँसते जा रहे थे..उसे देखते जारहे थे.इस मासूम ने जैसे सब को बच्चा बना दिया हो.उसकी एक एक अदा के मायेने निकले जा रहे थे...अब वो ये कर रही है ....अब वो हाथ चला रही ....उफ़ न जाने कितनी बातें....बिटिया तो पागल सी हो गयी...और उसने मेचिंग शुरू कर दी...आँख मेरी जैसी....उंगलियाँ प्रिया जैसी...और ना जाने क्या क्या...इधर बड़े भैया को फोरन फोन से बेटी की आने की खबर दी...वो भी बेहद खुश हो गए..इशी लीची और भाभी...पंकज भैया भी उसके आने की खबर पर झूम उठे...अगले दिन कानपूर से पिंटू ने भी बधाई दी...इस मामले में गुन्नू ने अपने ही अंदाज़ में बहिन के आने के ख़ुशी ज़हीर की. अस्पताल से घर पहुंचा तो चिंटू ने बताया की उसके लिए एक रिश्ता भी आ गया है.घर के बड़ों ने कहा कि बिटिया भाग्शाली है...जिसे इतने सारे चाचा मिले..जो अभी से उसकी इतनी फ़िक्र कर रहे है.

पड़ोस के लोगों ने ये कह कर मुझे बधाई दी..की घर में लक्ष्मी आई है...लेकिन मेरी नजर में वो सरस्वती है.उधर पापा के फोन ने प्रिया की ख़ुशी में इजाफा कर दिया. फोन पर उन्होंने प्रिया को ढेरों बधाई दी...मेरी ख्वाहिश है की उसे हर किसी का प्यार-स्नेह और आशीर्वाद मिले. वो इसकी अहमियत समझ सके ऐसी होशियारी और नेकदिली मिलें... बाकि उसे जीतने भी रिश्ते तोहफे में पैदा होते ही मिले हैं..उसे सम्भाल के रख सके भगवान उसे ऐसी सोच और समझ दे....

**हृदेश सिंह***

Wednesday, December 15, 2010

मेरे घर आयी एक नन्ही परी....!


लो भई हम भी बड़े बूढों की जमात में शामिल हो गए ....... अरे ताऊ जो बन गए. कल शाम को जब लीची का पाचंवा बर्थडे केक कटा जा रहा था....तभी अचानक 'सिंह सदन' के आंगन में एक और किलकारी गूंजने लगी.....! देखा तो पता चला कि एक नन्ही परी को कोई फ़रिश्ता हमारी प्रिय बहू प्रिया के हाथो में गिफ्ट करके दबे पाँव वापस चला गया....! अभी हमने देखा तो नहीं पर सुना है कि नन्ही परी के स्वागत में के सभी परिजन उल्लास के साथ उठ खड़े हुए.....क्या श्यामू, संदीप, मम्मी,उषा दीदी, दिलीप,बिटिया......प्रमोद भैया....ताराचंद जी का परिवार !!!! क्या कहने....सभी को बधाई....जोनी को विशेष रूप से जो अब लड़कपन की दहलीज लांघते हुए सीधे बाप बन गए हैं...... ! सचमुच जोनी तुम तो काफी बड़े हो गए.....! अन्नही परी के आने की सभी को बधाई.....किसी के लिए वो बहन है, किसी के लिए बेटी तो किसी के लिए नातिन ....मतलब सबने उस नयी नवेली परी से अपने रिश्ते जोड़ लिए हैं.....अब जल्दी ही जश्न होगा उस नयी परी के आगमन की खुशी में.....!!!!!
हमारे लब तो फिलहाल यही जुमला बार बार दोहरा रहे हैं... "मेरे घर आयी एक नन्ही परी, चांदनी के हसीं रथ पे सवार......!"

Tuesday, December 14, 2010

हैप्पी बर्थडे .............लीची

भोली सी सूरत की रानी |

करतीं है अपनी मनमानी ||

चेहरे पर चंदा सा नूर |

करें शरारत ये भरपूर ||

आओ इनसे तुम्हें मिलाएं |

इनका प्यारा नाम बताएं ||

सिंह सदन की राज दुलारी |

हैप्पी बर्थडे...... लीची प्यारी ||

लीची दीदी हैप्पी बर्थडे..................अक्षत

प्यारी........."लीची" जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें तुम यूँ ही हंसती और मुस्कराती रहो बधाइयाँ ..........

Monday, December 13, 2010

पहेली 2 हाज़िर है.....!




....... बहरहाल पहेली 1 को लेकर तीन उत्तर आये। अफ़सोस कि तीनों ही उत्तर गलत थे....कोई बात नहीं एक मौका और देते हैं.....!!!



एक 'क्लू' देते हैं.............पहेली 1 और पहेली २ के उत्तरों में अद्भुत समानता है....




इन पहेलियों में जिन दो शख्सों के चेहरे के अंश दिखाए गए हैं वे आपस में 'साढू' हैं......!!!!




अब तो पहेली हो गयी आसान.....!!!!



भेजिए अपने उत्तर तुरंत.....और हाँ सही उत्तर उसी का माना जायेगा जो दोनों पहेलियों के सही उत्तर देगा तो शुरू करो जवाब देना.

Thursday, December 9, 2010

नया साल आने को है ...


इधर नॉएडा में सरकारी काम काज की व्यस्तता के कारण मैं काफी समय से आप प्रियजनों से ब्लॉग पर मुखातिब ना हो सका... इस के लिए माफ़ी चाहता हूँ ! उम्मीद है कि दिसंबर और जनवरी के आगामी सर्द माह सिंह सदन के लिए काफी सरगर्मियों भरे रहेंगे !

दिसंबर के आखिर में या जनवरी के शुरू में सिंह सदन "वार्षिक महोत्सव" की घोषणा होगी ! मकर संक्रांति पर तो कार्यक्रम कई वर्षों से तय हैं ही ! इधर सिंह सदन में एक नए सदस्य का आगमन भी हो गया है... ब्लॉग पर भी सक्रियता को नए ढंग से शुरू करने का यह सही समय है !इधर ब्लॉग पर पहेली बहुत अच्छी आई हैं .. नए लेखकों की लेखनी भी कुछ हरकत में आती दिख रही है !

''महाकवि'' दिलीप कुमार की कविताओं ने तो जैसे पुरे साहित्य जगत को ही हिला कर रख दिया है! देश- विदेश के सभी भाषाओं के साहित्यकार आपात बैठके कर रहे हैं ...और स्थिति को समझने का प्रयास कर रहे हैं ! दिलीप की बढती लोकप्रियता को देखते हुए हम ने भी उनका ''काव्य संघ्रह'' प्रकाशित करने का निर्णय लिया है ..दिलीप को वाकई बधाई !

ईश्वर से यही प्रार्थना है ..कि नया वर्ष सभी सदस्यों के जीवन के लिए मंगलमय.. और कल्याणकारी हो .. आमीन !!

***** PANKAJ K. SINGH

Wednesday, December 8, 2010

नए साज़ छेड़ो....तराने सुनाओ!!!!




भाई आप लोग कहाँ हैं......!!!!!! कोई अता पता नहीं... ब्लॉग पर सन्नाटा पसरा है और आप लोगों की तन्द्रा टूट नहीं रही है ....!!! पंकज , पिंटू और जोनी की ख़ामोशी खल रही है.....नए साज़ छेड़ो, तराने सुनाओ. दिलीप ने कविताओं की तान छेड़ी है..... अच्छा लग रहा है. इधर चिंटू, बिटिया, टिंकू,दिलीप और श्यामू भी सीन से गायब हैं....... न कोई रचना न संस्मरण..न फोटो न तस्वीरें...क्या सिंह सदन में रचनात्मकता का अकाल पड़ गया है. लग रहा है आप सब भी वक्त से पार नहीं पा रहे हैं.......!!!!! आप सब जिस चीज के लिए जाने जाते हैं उसे यूँ जाया न होने दें.......रचनातमक सक्रियता बनाये रखें.........!!!!! ब्लॉग पर आप सबकी सक्रियता अपेक्षित है....!


विशेष सूचना -------- प्रिय पंकज के सुझाव को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2011 का सिंह सदन कलेंडर प्रकाशित होने जा रहा है.......कृपया अपने जन्मदिन, एनिवर्सरी या और कोई विशेष तिथियों को तत्काल पिंटू के पास पहुंचा दें ताकि कलेंडर में ये सब तिथियाँ प्रकाशित हो सकें.....कलेंडर के लिए रोचक तस्वीरें भी आमंत्रित हैं जिसके लिए जोनी के पास भेजी जा सकती हैं. उम्मीद है आप सब सक्रिय हो जायेंगे.......!!!!!


आभार

PK

Saturday, December 4, 2010

मेरी नज़र का एक मेमना......


सर्वप्रथम ब्लॉग पर सभी सदस्यों को मेरा नमस्कार
मै दिलीप कुमार आपके सामने उपस्थित हो रहा हूँ अपनी पोस्ट - मेरी नज़र का एक मेमना को लेकर इसमें त्रुटियाँ हों तो मुझे माफ़ करें.....................


मेरी नज़र का एक मेमना
देख कर ना था मै तूसना
उसकी नज़रों ने मुझे देखकर

किया है एक बार तूठना

ह्रदय में एक तृषा हुयी - और आवाज़ लगायी
हे मनुष्य ! मत हो निराश
वो है तुझसे पूर्ण तूसना
मेरी नज़र का एक मेमना

देखा था ना मैंने कभी उसे
इन ऊंची - नीची गलियारों में
था वो एक राहगीर नया

उन अनजानी पतवारों में
न था लौकिक भय उसे
ज़माने के उन अत्याचारों से
बस था उसे अहंकार ईतना
कि वो है एक स्वंतत्र मेमना
वह था मेरी नज़र का एक मेमना


मेरे ह्रदय ने बस इतना सोचा
है वो एक यतीम मेमना
बस फिर क्या था दो पल के लिए
आँखें हुयी नम मेमना
उसने अपनी हरकतों से

मुझसे बस इतना कहा

हे मनुष्य ! मत हो निराश - ख़त्म हुआ मेरा बंधन

मै हूँ तुझसे पूर्ण तूसना
ऐसा
था वह मेरी नज़र का एक मेमना


Dileep

Thursday, December 2, 2010

हैप्पी बर्थडे जोनी.....!




आज अपने प्यारे दुलारे जोनी का जन्मदिन है.....जोनी को हैप्पी बर्थडे....!!!!!!



सिंह सदन के हरेक सदस्य की और से जोनी को बहुत बहुत प्यार शुभकामनायें आशीर्वाद स्नेह....कि वे ऐसे ही ताउम्र हँसते मुस्कुराते रहें.

पहेली - 1


प्रिय बंधुओं
लम्बे समय से अपने होम ब्लॉग पर बंद पड़ी पहेली प्रतियोगिता को फिर से शुरू कर रहा हूँ.....बीच में प्रिय पिंटू ने पहेली को चलाने का प्रयास किया भी था मगर किसी कारणवश ये कोशिश परवान न चढ़ सकी..... इस बार मैं फिर से प्रतियोगिता शुरू कर रहा हूँ सो नए रंग रूप में प्रतियोगिता फिर से हाज़िर है. इस प्रतियोगिता को शुक्रवार को लगाया जायेगा और रविवार तक उत्तर आमंत्रित किये जायेंगे......!!!!


देख कर बताईये कि ये आँखें किस शख्स की हैं......!!!!!!

Saturday, November 13, 2010

साप्ताहिक कॉलम


दिल की बातें .. दिल ही जाने
दिल से...
...आज एक लम्बे अरसे के बाद ब्लॉग पर अपने प्रियजनों का हाल जाना ! यूँ तो सभी से बात -मुलाकात होती ही रहती है पर ब्लॉग पर पढने से एक अलग किस्म की आत्मीयता और खुशी महसूस होती है ! पिछले तीन महीनो में हम सभी भाइयों की अलग- अलग व्यस्तताओं की वज़ह से ब्लॉग पर लेखन एकदम से रुक सा गया था ! ब्लॉग पर लिखना - पढना एक उम्दा एहसास है जिसे हम सदैव जारी रखना चाहते हैं ! होम ब्लॉग को शुरू हुए सात माह का समय भी सफलता पूर्वक पूरा हो गया है ...हाँ यह अवश्य है कि स्ट्राइक रेट विगत तीन माह में ३० पोस्ट प्रतिमाह के शानदार औसत से गिर कर २१ पोस्ट प्रति माह पर आ खड़ा हुआ है ! बहरहाल यह चिंता का बड़ा विषय नहीं है ...आशा है कि सिंह सदन के दिग्गज लेखक शीघ्र ही कुछ बेहतरीन रचनाएँ पेश करेंगे !

अत्त दीपो भव:

वैसे मुझे सिंह सदन की यूथ ब्रिगेड से वाकई निराशा हुयी है.. नए खून से मुझे कुछ शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी जिससे हम वरिष्ठों के कंधे कुछ हल्के होते और सिंह सदन के गौरव में अविवृद्धी होती ! खैर भाग्य से अधिक किसी को कुछ मिलता नहीं है ! कठोर समय ही व्यक्ति का सही इम्तहान लेता है ! निष्काम कर्म ही हमारी थाती है परिणाम हमारी सामर्थ्य में नहीं है ! जीवन बहुत छोटा है ...कीमती है ! इस दिवाली विशेष रूप से प्रिय शम्मी से मिलना और बात करना चाहता था ...पर संयोग ही ना बन सका!

प्रिय श्यामू ध्यान रखो ..मृत्यु शास्वत है ..निष्काम योगी अपने दोषरहित आचरण के कारण सदैव स्मरणीय होते हैं ! वे ही सही मायनों में जीवन को जीते और जीवनोंपरांत अमरत्व को प्राप्त होते हैं ...अतः पूर्ण आनंद के साथ कर्म करो और जीवन में कभी उन्हें कष्ट मत पहुँचाओ जो तुम्हे स्नेह करते हैं ! मिथ्या आचरण ,भ्रष्ट वार्तालाप, दोषारोपण कायरों के अस्त्र होते हैं ! गुजरा हुआ एक भी क्षण लौट कर नहीं आ सकता और आत्मा से बढ़ कर कोई आइना नहीं होता ! व्यक्ति के हर भाग्य और दुर्भाग्य का उत्तरदायी सिर्फ और सिर्फ वही व्यक्ति होता है ! दुर्भाग्य भी एक प्रकार का वरदान ही है ..क्योंकि इससे संचित कर्मो का प्रायश्चित होता है जो जाने- अनजाने हमसे होते ही रहते हैं! इस छोटी सी जिंदगी को क्या हमें मिथ्या आचरण, दोषारोपण में गंवाना है या कुछ रचनात्मक- सकारात्मक करना है ...इसका फैसला हमें ही करना है ... और सही विकल्प भी बस एक ही है !

आप सभी का जीवन दीपों की तरह उज्जवल और प्रकाशवान हो.. यही मेरी प्रार्थना है !!

***** PANKAJ K. SINGH

Monday, November 8, 2010

खुशियों के दीप जल उठे.....!!!!

दीपावली का त्योहार......... यानी -पटाखे -खील-बतासे का त्योहार.......!


इस त्योहार को मैनपुरी अपने घर पर मनाने का अपना एक अलग ही अनुभव होता है ,लेकिन सरकारी मजबूरियॉ जब आड़े आ जाती हैं तो यह त्योहार घर पर नहीं मना पाते हैं। इस दीपावली पर भी ऐसा ही हुआ, दीपावली की रात बदायूं में ही रहे, मगर दीपावली का अगले दिन हम बदायूं से मैंनपुरी चले गए, मैनपुरी जाने का उत्साह दिला-दिमाग पर इस कदर हावी था कि दीपावली की देर रात्रि तक जगने के बावजूद हम सुबह 5.00 बजे ही बदायूं से मैनपुरी चल दिए. तीन घण्टे की यात्रा के बाद मैंनपुरी पहुँचते ही हम पर ‘‘ सिह - सदन‘‘ वाला रंग चढ़ गया.




दस बजे मैंनपुरी पहुँचने के बाद हम सब अर्थात इशी -लीची -प्रिंसी- अंजू- पंकज-मम्मी- प्रिया-जोनी के साथ के साथ बैठे, खूब जमकर खील-मिठाई खाई गई. इसके बाद मैं अपने दोस्तों से मिलने-बैंठने निकल गया. मित्रों में विक्रान्त-गोयल -नन्दू से मिलना -बैठना हमेशा की तरह मजेदार रहा .


सांय हम लोग प्रिया के घर और जोनी की ससुराल में ‘ डिनर‘ पर आमंत्रित थे, सो वहॉ जमकर दिवाली के व्यंजनों का स्वाद लिया गया . देर रात्रि जब प्रिया के पापा बाबू ताराचंद जी के घर से लौटे तो सीधे गाड़ियों का रूख नगला रते की ओर किया गया जहॉ फौजी राकेश चन्द्र "जीजा" हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे , ऊषा दीदी और राकेश जीजा के घर जाकर दीपावली का जश्न मनाना और और उनके घर पर बैठकर स्वादिष्ट मिठाईयों को जमकर खाने का आनन्द ही कुछ और था, पंकज ने और हमने यहॉ देशी-घरेलू मिठाईयों का जायका लिया तो अंजू ने दही- बड़े का स्वाद लिया . रात्रि में फिर एक बार यार दोस्तों के साथ दीवाली का माहौल बना.....देर तक हम लोग दीवाली मानते रहे.

अगले दिन मेदेपुर जाने का कार्यक्रम था। सुबह से ही हर्षोल्लास का माहौल था...... वज़ह स्पष्ट थी मेदेपुर भ्रमण कार्यक्रम हमेशा ही बहुत मजेदार होता है....इस बार तो ये कार्यक्रम और भी मजेदार होने की उम्मीद थी क्योंकि पिंटू, रिंकू,भारती, बाला अपने अपने परिवारों के साथ एक दिन पहले ही गाँव पहुँच गए थे......मैनपुरी से राकेश जीजा, उषा दीदी, गीता दीदी, राजेश प्रकाश जी ........ कानपुर से दामोदर भाई, मेरठ से मलखान सिंह परिवार भी पहुँच रहे थे. गाँव में लवली मामा, प्रमोद भैया, डॉ रमण , अम्मा, वैद्य जी और बड़े के साथ साथ भाभियाँ-मामियां तो पहले से ही हमारी आगवानी के लिए तैयार बैठे थे.......! जब हम नियत समय 11 बजे गाँव पहुंचे तो न केवल परिजनों बल्कि ग्रामवासियों में भी अपूर्व उत्साह था. मैं ,पंकज, अंजू, जोनी, मम्मी और सभी छोटे-बड़े बच्चे जब हम गाँव पहुंचे तो यहाँ हमारे घर पर उत्सव जैसा माहौल था.........! अम्मा दौड़ दौड़ कर अपनी बहुओं को आवश्यक निर्देश दे रही थीं कि क्या खाना बनना है..... क्या तैयारी होनी है.....इत्यादि इत्यादि!!!



भैया दूज की आवश्यक रस्में निभाने के बाद हंसी ठहाकों के बीच खाना खाने- खिलने का कार्यक्रम शुरू हुआ तो लगा कि कोई "लंगर" चल रहा है......कई चूल्हों पर खाना बन रहा था.......मगर खाना एक साथ खाया और परोसा जा रहा था.......कहीं से हाथ की बनी पानी की रोटियां सर्व हो रही थीं तो कहीं से गरम गरम पूरियां भेजी जा रहीं थी.... राजमा, देसी आचार, सलाद, पके आलू,पुलाव,दही,दूध .........और न जाने क्या क्या....!!!! हम लोग जब छककर खा लिए तो एहसास हुआ कि हंसी-ठहाकों के बीच हम लोग सीमा से ज्यादा ही खा चुके थे......देर शाम तक इस माहौल में बेहतरीन पल गुजरने के बाद विदाई के क्षण बहुत भारी लगे मगर वापस तो आना ही था.........!

धीरे-धीरे करके मेहमान विदा हुए। पिन्टू सीधे कानपुर और हम लोग भारी मन से बदायूं विदा हुए। दो दिन का उल्लासमय त्योहार बिताने के बाद हमारा मन कभी बापस होने को नहीं करता मगर विवशताएँ ऐसी होती हैं कि वापसी के अलावा कोई और विकल्प भी तो नहीं होता. बहरहाल एक और शानदार-दीपावली की स्मृतियॉ सहेजे हुए हम मैनपुरी-मेदेपुर से रवाना हुए........!!!



इस बार की दीपावली दो घटनाओं के कारन से भी सदैव स्मृतियों में बनी रहेगी, एक प्रिंसी को खोने-पाने के कारण और दूसरे श्यामू की इस यादगार माहौल में अनुपस्थिति।



प्रिंसी का यह पहला मैनपुरी दौरा था। मैनपुरी में समस्त परिजनों को प्रिंसी का खासा इन्तजार था. प्रिंसी भी जाते ही ‘सिंह सदन‘ में घुल मिल गई, किन्तु दोपहर में ही प्रिंसी का अपहरण हो गया. मोहल्ले का कोई बच्चा प्रिंसी को अकेला खेलता देखकर उठा ले गया जब ईशी-लीची को होश आया कि प्रिंसी कहा है, तो प्रिंसी को गायब हुए लगभग एक घण्टा बीत चुका था. प्रिंसी की खोजबीन शुरू हुई.....देर तक कोई सुराग नहीं लगा...मगर हम सब प्रिंसी को लेकर लगातार प्रयास करते रहे. प्रिंसी के खोने के बाद बरामद करने में जोनी का स्थानीय 'नेटवर्क' ऐसे में बहुत कारगर साबित हुआ. एक घण्टे के अन्दर ही ‘प्रिंसी‘ पुरानी मैंनपुरी से बरामद हो गयी. यद्यपि हम लोग प्रिंसी की बापसी की उम्मीद लगभग छोड़ चुके थे..... ऐसे में जैसे ही प्रिंसी वापस आई तो ‘सिंह सदन‘ में सारे चेहरे खिल उठे. ईशी-लीची-पंकज की नम आखों में खुशी की चमक बापस आ गई. इस पूरे आपरेशन में जिस तरह ‘सिंह सदन‘ के परिजनों ने जुटता दिखाई वह प्रशंसनीय रही.




श्यामू की इस मौंके पर अनुपस्थिति लगातार खलती रही.... इन मौंकों पर श्यामू का अल्हड़पन और चुलबुलापन हमेशा मजा देता है. ज्ञान सिंह,राकेश जीजा से श्यामू का मजाक करना उनके भाव- भंगिमाओं की नकल करना माहौल को और भी आनंदित कर देते हैं,मगर श्यामू की इस बार की अनुपस्थिति ने ज्ञान सिंह- राकेश जीजा की मौजूदगी को भी बेअसर कर दिया. हम सबने श्यामू को मिस किया.....???? सबका प्यारे दुलारे श्यामू की अनुपस्थित इसलिए भी खली क्योंकि अगले साल जब वे ‘प्रशिक्षण‘ पर होंगें तो वैसे भी इन त्योहारों पर नहीं आ पायेगें.....! बहरहाल हम सबने दीपावली को जिस एकता के साथ मनाया वह ‘सिंह सदन‘ की आपसी बंधन को सशक्त बनाने के लिये एक साँझा प्रयास रहा जिसके लिए प्रमोद-भैया,डा0रमन, जोनी,भारती,प्रिया की भूमिका को नहीं भुलाया जा सकता.


Wednesday, October 20, 2010

यारों के यार.....सागर !


अब जबकि यारों के नाम की महफिल सजी हो तो भला सत्येन्द्र सागर को कैसे भूला जा सकता है.....। सत्येन्द्र सागर जिन्हें मैं प्यार से ‘सागर‘ नाम से सम्बोधित करता हूँ।


सागर से मेरा याराना 12-13 साल पुराना है। सामान्यतः ऐसा होता है कि जब उम्र बढने लगती है तो बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिनसे दिली-लगाव हो पाता है। नौकरी में आने के बाद तो भावनात्मक किस्म की मित्रता हो पाना तो और भी असंभव होता है......किन्तु इस मिथक को मेरी और सागर की मित्रता ने तोडा है। हमारी मित्रता नौकरी में आने के बाद शुरू हई। 1999 में जब मेरी पहली पोस्टिंग कानपुर एच0बी0टी0आई0 हुई तो सागर की पोस्टिंग तकनीकी शिक्षा निदेशालय में हुई। एक ही सेवा में होने के कारण मेल-जोल स्वाभाविक था। यह मेल-जोल बहुत जल्दी ही परवान चढ गया। एक महत्वपूर्ण समानता तो यह थी कि सागर और हमने एक ही साथ सेण्ट जॉंस कालेज आगरा से ग्रेजुएसन किया था, इसके अलावा और भी कई समानताएँ हमारे बीच थीं......सो मित्रता बहुत जल्दी भ्रातृत्व में परिवर्तित हो गई। सुबह-शाम साथ रहने लगे.....स्थिति यह थी कि वित्त सेवा में हम 'सागर-पवन' की जोडी के रूप में प्रसिद्ध हो गए। सागर की भी नयी-नयी शादी हुई थी, मैं भी जल्दी ही परिणय सूत्र में बंधा था सो अंजू और सागर की धर्मपत्नी श्रीमती भावना के बीच भी ननद-भौजाई वाला ऐसा रिश्ता कायम हो गया। ये रिश्ता तब से आज तक बदस्तूर कायम है।


दरअसल नौकरी में आने के पूर्व से ही मैं सागर से परिचित था, हालांकि मुलाकात नहीं हुई थी। दरअसल 1997 में ग्रेजुएसन के दौरान भारतीय जीवन बीमा निगम में सहायक विकास अधिकारी के लिए जब परीक्षा हुई तो इत्तफाक से हम-दोनों ने क्वालीफाई किया, सागर ने तो ये नौकरी ज्वाइन भी कर ली और वहीं से तैयारी कर पीस0सी0एस0 परीक्षा में सफलता हासिल की और वित्त सेवा में आ गए। सम्प्रति वे अलीगढ में जिला ग्राम्य विकास प्राधिकरण में वरिष्ठ वित्त अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।


सागर के व्यक्तिगत जीवन के विषय में रोशनी डालना ज़रूरी समझता हूँ .....सत्येन्द्र सागर मूलतः आगरा के निवासी है। दसवीं कक्षा एम0एम0 शैरी से और बारहवीं कक्षा नारायण दास छज्जूमल वैदिक इन्टर कॉलेज से करने के बाद सागर ने सेण्ट जॉस कॉलेज से स्नातक किया। अर्थशास्त्र में रूचि होने के कारण परास्नातक आगरा कॉलेज से अर्थशास्त्र से किया। तीन भाई व एक बहन वाले परिवार में वे सबसे बडे हैं। उनका परिवार पूर्व में संयुक्त परिवार रहा है, सो सागर का खानदान भी ‘सिंह सदन‘ की तरह काफी फैला हुआ है। ‘सिंह-सदन‘ के युवा ब्रिग्रेड के भांति सागर के परिवार में भी युवाओं की बडी संख्या है।


सागर की सबसे अनोखी विशेषता उनका हंसमुख-विनोदी स्वभाव है। हमेशा ‘कूल‘ दिखने वाले सागर को शायद ही कभी गुस्सा आता हो। मैंने अपने जीवन में बहुत कम ऐसे लोग देखे हैं जो इतने जागरूक व अपडेट हों। दुनिया के किसी भी विशय पर उनसे वार्तालाप किया जा सकता है। धर्म- साहित्य- संगीत- कला- राजनीति- अर्थषास्त्र- समाजशास्त्र में जो भी अद्यावधिक होता है, सागर उससे अछूते नहीं रहते। मुझे बौद्धिक बहस-विमर्श करने का जो आनन्द उनके साथ आता है, वह आनन्द मुझे बहुत कम लोगों के साथ आता है। मुझे याद है कि जब मैं सिविल सेवा की परीक्षा दे रहा था तो मैं और सागर दिन-रात एक किये हुए थे.....सागर भी परीक्षा दे रहे थे। हम दोनों के बीच जबरदस्त बौद्धिक विमर्श हुआ करते थे......यह विमर्श परीक्षा में काफी लाभप्रद सिद्ध हुए। मैं उस परीक्षा को उत्तीर्ण कर आई ए एस बना, दुर्भाग्य से सागर उस परीक्षा में सफल नहीं हो सके, लेकिन मेरी इस सफलतामें सागर का योगदान अतुलनीय रहा। सागर ने ‘इन्टरव्यू‘ के दौरान गाजियाबाद में एक सप्ताह रूक कर मुझे मॉक इन्टरव्यू कराने में जो सहयोग किया वह तो अविस्मरणीय है।


सागर के बौद्धिक व्यक्तित्व का तो मैं फैन हूँ ही, उनके विनोदी स्वभाव का मैं उससे भी बडा प्रशंसक हूँ । हरेक बात में ‘हंसी‘ के तत्व खोज लेना और उस पर ठहाका मार कर न केवल स्वयं हंसना बल्कि पूरी महफिल को हंसने पर विवश कर देना, उनके व्यक्तित्व को सहज आकर्षक बनाता है। उम्र को भूलकर बच्चों में बच्चों सी और बुजुर्गो में परिपक्वता की बातें करना सागर की सबसे बडी सहजता है। सागर भले ही दो प्यारे से बच्चों ‘कुणाल-शोभित‘ के पिता हों, किन्तु वे स्वभावतः स्वयं भी बच्चों से कम नहीं। ‘सिंह-सदन‘ के हरेक सदस्य के वे प्यारे हैं.....श्यामू के तो वे पसंदीदा व्यक्ति है। श्यामू की बौद्धिकता और अल्हडपन, सागर के साथ मिलकर दुगुनी हो जाती है।


हमारी दस-बारह साल की मित्रता का ये सफर बहुत भावनात्मक रहा है.......मुझे याद है जब भारत-दर्शन में अंजू को लक्षद्वीप आना था तो सागर ही अंजू को लेकर मेरे पास केरल पहुंचे थे। वैसे भी सागर के साथ मैंने बहुत से ‘विण्टर वैकेसन‘ गुजारे हैं। उनके साथ पर्यटन पर निकलना हमेशा ही मजेदार होता है। लक्षद्वीप, एर्नाकुलम , कौसानी, नैनीताल, गोवा.....इन स्थानों पर सागर के साथ मैंने जो मजा किया है वह मैं कभी भूल नहीं सकता। सागर और मेरी मित्रता की डोर ‘पद-प्रतिष्ठा -अहम‘ आदि से बहुत ऊपर उठी हुई है।


मैं शुक्रगुजार हूँ ईश्वर का जिसने मेरी जिन्दगी में सागर जैसा मित्र दिया जो बहुत सारी खूबियों का मालिक है। ‘सिंह सदन‘ की तरफ से उनका मान सम्मान रखते हुए मैं उनके लिये कहना चाहूँगा .....

वो कौन है क्या है कैसे कोई नजर जाने,
वो अपने आप में छुपने के सब हुनर जाने।

Monday, October 18, 2010

तेरी दोस्ती मेरा प्यार.....संजू !



कुछ लोगों सेसिंह सदनका अत्यन्त भावनात्मक और आत्मीय रिश्ता है। ये वे लोग हैं जिनका जन्म भले हीसिंह सदनमें हुआ हो किन्तु उनका जुडाव इस घर से ऐसा रहा है कि कोई भी आयोजन हो या कोई भी त्यौहार, इनके बिनासिंह सदनअधूरा सा लगता है। इस फेहरिस्त में यूँ तो कई नाम हैं किन्तु इस श्रंखला में आज की शख्सियत है.......संजीव गोयल, जिन्हें हम प्यार से संजू कहकर बुलाते हैं।

अप्रैल 1991........ यही वो महीना था जब संजू से पहली बार मुलाकात हुई। उन दिनों राजा का बाग में शर्मा जी के मकान में हम लोग किराये के मकान में रहते थे........उस मकान में ही संजू का परिवार भी आकर रहने लगा। चूंकि संजू और मैं एक ही स्कूल के छात्र थे, दोनों ही बारहवीं कक्षा में पढते भी थे सो मित्रता होना स्वाभाविक थी.....मित्रता हुई और बड़ी तेजी से मित्रता के इस वृक्ष पर विश्वास-आस्था का अंकुरण-पल्लवन होना प्रारम्भ हो गया।
बाहरवीं के बाद मैं आगरा में सेण्ट जॉस कॉलेज से बी0एस0सी0 करने चला गया, संजू ने भी शिकोहाबाद के नारायण डिग्री कॉलेज में एडमीशन ले लिया। मैं जब भी आगरा से मैनपुरी घर आता तो शिकोहाबाद से संजू को लेते हुये आता और जब आगरा जाता था तो संजू को इधर से साथ लेते हुये जाता..... जब मुलाकातें लगातार हो पाती तो खतो-किताबत चलती रहती। यह खतो-किताबत तब तक चलती रही जब तक कि मोबाइल का दौर शुरू नहीं हुआ.....

बहरहाल पुनः संजू के बारे में कुछ संक्षिप्त सा हवाला देना आवश्यक समझता हूँ संजू के पिता श्री रामेश्वर दयाल विकास खण्ड में सहायक विकास अधिकारी पंचायत के पद से सेवानिवृत्त हुये थे। संजू के पिता का व्यक्तित्व भी अत्यन्त सरल और विनम्र है....सो संजू के व्यक्तित्व में इसकी छाया साफ-साफ देखी जा सकती है। चार भाईयों में तीसरे नंबर पर आने वाले संजू ने 1991 में इण्टर तथा 1995 में स्नातक किया.....तदोपरान्त परास्नातक करने के बाद लेखपाल के पद पर चयनित हुए। लखनऊ जनपद में लेखपाल के पद पर रहते हुये भी बेहतर भविष्य की तैयारी में लगे रहे....इसका फल भी मिला। सम्प्रति वे लोक सेवा आयोग 0प्र0 में समीक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। संजू की जीवन संगिनी के रूप में पूजा का भी अतुलनीय योगदान रहा है।
संजू के बारे में जब मैं सोचता हूँ तो हैरान होता हूँ इक्कीसवीं सदी में भी यह शख्स इतना सीधा सरल है, कि विश्वास ही नहीं होता है। संजू का जीवन दर्शन इतना सीधा-सरल है कि जरा सा तनाव-उपेक्षा भी संजू को परेशान कर देता है।

मुझे वे दिन याद है जब संजू को नौकरी की तलाश थी और संजू यहॉ-वहॉ नौकरियों की तलाश में परीक्षा देने जाया करते थे। चूंकि मेरी नौकरी 1997 में लग गयी चुकी थी, मैं संजू को तयारी करने को कहता तो ये बातें संजू को समझ में नहीं आती थी। वे तो महज़ एक अध्यापक बनने का स्वप्न पाले हुए थे, इस स्वप्न से बहार पाना उनके लिए बहुत मुश्किल था....मैनपुरी से उनका जुड़ाव उन्हें मैनपुरी से चिपके रहने के लिए प्रेरित करता था। 2006 में मैं जब सहायक निदेशक खेल था तो डॉट-डपट कर मैने संजू को लखनऊ में ही रूककर तैयारी करने को कहा..... यह वह वक्त था जब संजूअनिर्णयकी स्थिति में गए। उन्हें मैनपुरी छोडना बहुतकष्ट कर लग रहा था, बहरहाल मेरे दवाब ने उन्हें मैनपुरी छोडने पर विवश किया। अनिच्छा से ही सही मगर संजू ने लखनऊ में रहना आरम्भ किया...... इसका सुपरिणाम भी देखने को मिला। एक वर्ष के ही अन्दरलेखपालके पद पर चयनित हुए, उसी वर्ष उनका विवाहपूजासे हुआ। अगले वर्ष ही वे समीक्षा अधिकारी के पद पर चयनित हो गए।

बहरहाल संजू की इस सफलता को मैं एक ऐसे इन्सान की सफलता के रूप में देखता हूँ जिसका बचपनसामान्यतरीके से बीता है, युवावस्था एकअध्यापकके सपने के रूप में व्यतीत हुई हो।
मेरे विश्वसनीयों की सूची में संजू का नाम काफी ऊपर आता है। संजू और मेरे संबंध यद्यपि मित्र के रूप में शुरू हुए थे मगर संजू अब एक भाई की तरह ही है..... संजू की उम्र मुझसे कुछ महीने-साल ज्यादा होगी किन्तु मैंने हमेशा से संजू को अपने छोटे भाईयों की तरह ही प्यार-स्नेह दिया है। संजू के हरेक सुख-दुख का मैं भागीदार रहा हूँ ........ मुझे संजू के संघर्षों के वे दिन याद हैं जब संजू सुबह से लेकर देर रात्रि तक ट्यूशन पढाकर अपना जीवन यापन कर रहे थे। भोर से वे बच्चों को गणित-विज्ञान का ट्यूशन देते और रात्रि तक यह क्रम निर्बाध रूप से चलता रहता सिंह सदन के कई बच्चों को उन्होने गणित-विज्ञान पढाया है। यह क्रम लगभग दस-बारह साल चला। यह क्रम तभी समाप्त हुआ जब 2006 में मैंने संजू को लखनऊ बुला लिया।लखनऊ अवस्थान के बाद बहुत तेजी से उनके जीवन में परिवर्तन हुए...... कंप्यूटर सहायक के रूप में प्राइवेट नौकरी के एहसास से होते हुए लेखपाल और उसके बाद शादी- बच्चा और तदोपरांत अब समीक्षा अधिकारी।

संजू में बहुत सी खूबियाँ है......अच्छे आदमी होने के साथ साथ वे अच्छे पुत्र- भाई -मित्र-पति-बाप-इन्सान भी हैं.उनकी आवाज़ इतनी मधुर है की मैं जब भी खली होता तो संजू को बुला कर आधे-एक घंटे गाने सुनता.....! इन खूबियों के बावजूद कुछ इंसानी कमियां भी उनके व्यक्तित्व में हैं...........जैसे संजू कीलापरवाहीउसके व्यक्तित्व की सबसे बडी कमी है। कठोर शारीरिक श्रम कर पाना और परेशानी में बहुत जल्दीहिम्मतखो बैठना उनके व्यक्तित्व के दुर्बल पक्ष हैं किन्तु ये दुर्बल पक्ष उनकी इंसानियत-विश्वासनीयता-सरलता-मधुरता के सामने फीके पड जाते हैं।

लगभग बीस साल की इस मित्रता को जब पीछे मुड के देखता हूँ तो अहसास होता है कि इस दौडती-भागती स्वार्थी दुनिया में कोई ऐसा शख्स है जो इन सबसे ऊपर उठा हुआ है और वो मेरा ही नहीं पूरेसिंह सदनका प्यारा है.......संजू।