यूँ तो उनके बारे में कई सारे पोस्ट लिखे जा चुके है लेकिन में उनका तारुफ़ किचन किंग के रूप में कराना चाहूँगा वे साक्षत "माँ अन्नपूर्णा है
जी हाँ में बात कर रहा हूँ अपनी बुआ जी व सिंह सदन की मुखिया ब्लॉग अध्यक्ष शीला देवी की वे अतुलनीय है साध्वी है सत्कर्मी है ये उन्ही की मेहनत और इश्वर की कृपा है
की सिंह सदन आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया है सिंह सदन का हर शख्श कोई न कोई प्रतिभा रखता है इन सब की प्रतिभा के पीछे किसी न किसी तरह हमारी बुआ जी का ही हाथ है
वे एक संघर्ष शील महिला है वे इस सिंह सदन की नाव को कहाँ से खे कर लायीं है वे ही समझ सकती है इस नाव ने पता नहीं कितने ही तूफानों का सामना किया हो लेकिन कभी
डरी नहीं मनो उनहोंने तय कर लिया था की वे इस सिंह सदन को इस मुकाम पर ला कर रहेंगीं ...............पर में तो उन्हें किचन किग बताना चाह रहा था पर क्या करूँ उनके बारे में तो कुछ भी लिखा जा सकता है खैर में पॉइंट पर आता हूँ बुआ जी जितनी अच्छी इन्सान है उतनी ही अच्छी गृहणी भी है वे जब किचन में घुसतीं है तो मानों सारी चीजें स्वेंम व्यवस्थित हो गयीं हो और खान इतनी जल्दी तैयार हो जाता है की पूछो मत.............. मुझे आज भी याद है जब हम लोग छोटे थे तो जोनी के बहुत सारे दोस्त घर पर आते थे बुआ जी उन को भी बड़े ही प्यार से खान खिलाती थीं जब मूली और आलू के पराठे बनते तो सभी को इंतजार रहता था और जोनी के दोस्त पूछते रहते थे कि कब दावत है जिस दिन मूली के पराठे बनते उस दिन सभी एकत्र होते और सभी बड़े ही चाव के साथ खाते बुआ जी बनाते बनाते थक जाती पर कभी उफ़ नहीं करतीं .......................दरसल उनके बनाये पराठे इतने स्वादिष्ट होते कि कोई एक बार खा कर वो स्वाद भूल नहीं पता और खिचा चला आता बुआ जी कुछ भी बनादे उसमे बेहद स्वाद होता है..............मुझे तोरई की शब्जी बिलकुल पसंद नहीं थी जब से उनके हाथ की तोरई खाई है....................... स्वाद नहीं भुला और आज तक खा रहा हूँ ..............जोनी जोकि हमारे घर में सबसे ज्यादा स्वादिष्ट खाना खाने के शौक़ीन है वे अच्छे से अछे खाने में कमी निकाल सकते है वे भी बुआ जी के खाने के दीवाने है उनका बनाया कटहल उन्हें बेहद पसंद है.......................... में तो उनके खाने का जबरदस्त फेन हूँ
बुआ जी के खाने में तो स्वाद है ही पर उनके हाथों में जादू भी है उनके हाथ का खाना जिसने भी खा लिया आज वो अच्छे ओहदे पर पहुँच गया ये सभी मानते है उनके बनाये खाने को लोग अवश्य ही खाते है ........................उस खाने में प्यार और अपनत्व कि अनुभूति होती है
परम आदरनीय बड़े भैया भी बुआ जी(मम्मी) के खाने के जबरदस्त फेन है
वे पूरे सिंह सदन की किचन
(पिंटू)
Wednesday, July 28, 2010
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1 comment:
बिलकुल सही कहा तुमने...मम्मी के हाथ का बना खाना आज भी याद आता है...अरहर की दाल हो या मट्ठा के आलू.... आलू के पराठे हों या दीवाली पर बनने वाले रसगुल्ले.....सब कुछ अनोखा स्वाद देता था...इधर अरसा हुआ है उनके हाथ का कुछ खाए हुए....! तुम्हारे लेख के पढने के बाद जी कर रहा है कि मम्मी से कहूं कि बहुत दिन हो गए मम्मी...चलो आज मेथी की सब्जी बनाओ...या ऐसा करो मूली की भुजिया भी बना लो.....! ........यम यम चपर....चपर....!
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