मैं दिलीप कुमार, सिंह सदन के ब्लॉग पर पहली बार उपस्थित हो रहा हूँ । सर्वप्रथम, मैं अपने सभी मामा जी प्रणाम करता हूँ । अब मैं आपको सिंह सदन से जुडी ऐसी सुनहरी यादों की ओर ले जाऊँगा जो आपको गुदगुदाएंगी और हंसा - हंसाकर लोट पोट कर देंगी ।
अब बात करते हैं सिंह सदन से जुडी सुनहरी यादों की । जिस तरह से यहाँ का प्रत्येक व्यक्ति हर क्षेत्र में आगे है । यहाँ छोटे से लेकर बड़े तक IAS, PCS , चीफ एडिटर , IT Professional या डॉक्टर ही क्यों ना हो । कोई भी व्यक्ति किसी महफ़िल में है तो समा बाँध देता है ।
अगर हमारे यहाँ किसी भी प्रोग्राम में यदि एक व्यक्ति मौजूद नहीं हो पा रहा है तो वो आने के लिए सबसे पहले ये पूछेगा "कौन - कौन आ रहा है प्रोग्राम में ?" अगर सभी आ रहे हों तो वो अपने आपको खुद रोक नहीं पता है शामिल होने में । हमारे यहाँ छोटी कथा से लेकर वैवाहिक कार्यक्रम तक सारे कार्यक्रमों में यदि प्रत्येक सदस्य मौजूद है, तो कार्यक्रम में चार चाँद लग जाते हैं । हमारे यहाँ देखा जाये तो मौज सभी की ली जाती है ।
अब एक नज़र डालते हैं सिंह सदन की एक यादगार शादी की :-
अभी कुछ साल पहले हमारे रिंकू मामा जी की शादी थी तो वहां पर किसी आपत्तिजनक स्थिति के कारण बारात जाना बहुत मुश्किल पड़ गया था । तो जब बच्चो ने कहा कि पापा हम भी चलेंगे । तो हमारे बड़े और छोटे नाना जी से पूछा गया क्या बच्चे भी बारात में चलेंगे । तो छोटे नाना जी ने कहा "नाय - नाय बच्चा नाय जाय्ये बराइत पिटिए " हा हा हा ..... । इस बात को लेकर हम सभी लोग बहुत हसे । आगे चलकर हमारे दोनों नाना जी छोटे - छोटे पत्थर ढूँढ रहे थे । जो मुश्किल में इनके काम आयें , तो पिताजी ने कहा " अच्छे - अच्छे छांटियो जो ज्यादा दूर जाये।" तब तक छोटे नाना जी बड़ा पत्थर ले आये और कहते हैं, "उरे जू कैसे फिकिये " हा हा हा । आगे चलकर सारे पत्थर बस में भर लिए गए और बस चल पड़ी । जैसे ही ड्राईवर ने ब्रेक लगायी सारे पत्थर आगे आ गए । चलती बस में पत्थर आगे पीछे हो रहे थे । उसी बस में थे हमारे चहेते ज्ञान सिंह जीजा जी और जोनी मामा । तो ज्ञान सिंह पथ्थरों कि वजह से सीट पर पैर रखे थे तो जोनी मामा जी ने कहा "अरे जीजा ! निचे पैर धर लेयो ।"
ज्ञान सिंह :- हम नाए भाई साहब ।
जोनी मामा :- क्यों ?
ज्ञान सिंह :- हम निचे पैर नहि धरते,
निचे तो रोरा चलते
इस बात का हम लोगों ने बहुत मजाक बनाया ,
अब बात करते हैं ऐसी ही एक यादगार शादी की - जोनी मामा की शादी की
सुबह 6 : 30 पर हम सभी लोग सो रहे थे तभी एक गाडी आई उसमे थे MR . IAS (बड़े मामा जी) तब उन्हें देखकर लगा अब वो व्यक्ति आ गए हैं जिनके बिना सिंह सदन अभी तक खाली था । उनके आते ही लग रहा था की अब कोई काम मुश्किल नहीं है , वो धीरे - धीरे सारे कम देख रहे थे तभी मामा जी ने कहा "यार दिलीप ! क्यों न सभी के नाम रख दिए जाएँ जैसे मैं घर को चला रहा हू तो मेरा नाम जन्नेटर " इस बात को सुन कर मई बहुत हँसा तब मैंने कहा "इस हिसाब से प्रमोद मामा रोयल एनफील्ड हुए " फिर कुछ देर बाद सभी लोग एक कमरे में बैठे थे मैं श्यामू मामा , संदीप भैया , बबलू मामा , टिंकू मामा और सभी सदस्य । तभी बड़े मामा जी का अर्दली आया उसकी सफ़ेद ड्रेस पर लाल दाग पड़ा था । तो श्यामू मामा ने कहा अरे भाई साहब ये लाल दाग किसका है ? अर्दली :- अरे भैय्या ये वो मैं पान खा रहा था तो इसका वो होता है वो लाल -लाल सा, अरे यार वो जो मुह में भर जाता है । बबलू मामा :- का बू पिलान्दा । अर्दली : - हाँ हाँ वूई पिलान्दा ।
हा हा हा
तभी शाम को सभी लोग इकठ्ठा हुए और पहेलियो का दौर चला । और जब बात आई पहेली की तो पंकज मामा जी ने शुरुआत की पहली पहेली -
"ठंडक भी देती है , विचार भी देती है ।
और माहौल बिगड़ जाये तो टूट भी जाती ।"
इस पहेली को सुनकर लगा की सिंह सदन का प्रत्येक व्यक्ति जो देखने में ठोस लगता है उतना ही अन्दर से मुलायम भी है । पहली बार मैंने पंकज मामा जी को हस्ते हुए देखा था । इस पहेली ने तो हसने पर मजबूर कर दिया था । तो जब पहेलियों का दौर चला तो हमारे बड़े मामा जी भी कहाँ रुकने वाले थे , तो उन्होंने कहा की "मैं तो देख रही थी पेड़ों और संजा हुई गयी तौऊ तुम नाय आये"
पंकज मामा जी :- तौ कहाँ चाँद टुरवाआये
आगे चलकर बड़े मामा जी ने फिर पहेली बनायीं फिर और कहा - वो जा रहे थे किसी काम से तौ ले पीछे से आवाज़ आई अरे गुसाई तुमाई टेर मची
तीसरी पहेली पंकज मामा जी :- ना मैं किसी की सास हूँ , ना मैं किसी की सहेली
जिधर मर्ज़ी आये जाती हूँ जिधर मर्ज़ी आती
उस दिन सभी पहेलियों को सुनकर हम सभी लोग बहुत खुश हुए । उस दिन लग सिंह सदन परिवार में ऐसा लग रहा था की सभी के आने से परिवार में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी थी मैं फिर उसी दिन की जल्द से जल्द आने की कामना करताहूँ ।
मैं बहुत धन्य हूँ जो मुझे ऐसे लोग मिले । मै भगवान् से प्रार्थना करता हूँ । यह परिवार इसी तरह से आसमान की उचाईयों को छूता रहे
धन्यवाद...................
दिलीप कुमार सिंह..........
Saturday, July 3, 2010
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5 comments:
my loving nephew DILIP...
huge 6 on very first delivery. great job . well done . you deserve the post of INCHARGE , SATIRE SECTION . I will recommend it to the steering committe.
जबरदस्त लिखा दिलीप वास्तव में मज़ा आ गया............
तुमसे ये ही उम्मीद थी...............
हमारे ब्लॉग को तुम्हारे जैसे होनहार की ही जरूरत थी .......
लिखते रहो और गजब करते रहो...........
बहुत सुन्दर.......पुरानी यादों को ताज़ा कर दिया दिलीप ने....बहुत ही उम्दा. स्मरण शक्ति की दाद देनी होगी दिलीप की जो उन्होंने बेसाख्ता से पलों को अपने जेहन में बनाये रखा और मौका मिलते ही अल्फाजों में पिरोकर पेश कर दिया....आगे भी इसी तरह की पोस्ट का इन्तिज़ार रहेगा. सिलसिला बनाये रखना ज़ुरूरी है.
*****PK
हा..हा...हा...हा...हंसी नहीं रुक रही है...ज्ञान सिंह को आने दो...बाल उपर कर के माथा चूमने का मन कर रहा है..छोटे मामा ने क्या दामाद पाया है... हा..हा..हा...
प्रिय दिलीप ............
ब्लॉग पर पदार्पण करने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ...........
आपका लेख पढ़ा, अच्छा लगा.....................
पुरानी यादें ताज़ा हो गयी और कुछ नए और रोचक संस्मरण जानने को मिले
ऐसे ही लिखते रहिये,................
शुभकामनाये .....................
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