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Thursday, February 9, 2012


प्रिय मित्रो  


हालाँकि आज मेरा दिन नहीं है किन्तु कुछ लेखक व्यस्ताओं के कारण उपस्थित नहीं हो सके इस लिए
आप आज राग दरबार का नया volume पढ़े और सिंह सदन के साथ इंजॉय करें .....!

 
जब भी लोग बड़े होते है |
ऊँचे उनके सर होते है ||


कितनी भी आवाज़ लगाओ |
शीशे के सब घर होते है ||


सच्चाई की कीमत है ये |
लोग जो अब बेघर होते है ||


खौफ जदा मंजर ही एसा |
आँखों में भी डर होते है || 


जिन्दा होकर मरे हुए है |
वो जो किसी के भर होते है  ||

                                       पुष्पेन्द्र सिंह "पुष्प"



राग दरबार – vol-3

5 comments:

Anonymous said...

FANTASTIC WRITING ... I AM PROUD OF YOU.. MY SWEET HEART
****** PANKAJ K. SINGH

Anonymous said...

आपकी ग़ज़ल लगातार निखर रही है..... इंशा अल्लाह अब तो मामला दिन ब दिन और भी कामयाब होता जा रहा है......
मतला ता मक्ता ग़ज़ल धारदार है....
इस शेर पर खास दाद ......

खौफ जदा मंजर ही एसा |
आँखों में भी डर होते है ||

PK

Pushpendra Singh "Pushp" said...

हौसलाअफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
प्रणाम....स्वीकारें

Anonymous said...

umda likha

hirdesh

sachin singh said...

जिन्दा होकर मरे हुए है |
वो जो किसी के भर होते है ||

sacchi baat....chacha ji.
bahut umda likha aapne

sachin singh