प्रिय मित्रो
हालाँकि आज मेरा दिन नहीं है किन्तु कुछ लेखक व्यस्ताओं के कारण उपस्थित नहीं हो सके इस लिए
आप आज राग दरबार का नया volume पढ़े और सिंह सदन के साथ इंजॉय करें .....!
जब भी लोग बड़े होते है |
ऊँचे उनके सर होते है ||
कितनी भी आवाज़ लगाओ |
शीशे के सब घर होते है ||
सच्चाई की कीमत है ये |
लोग जो अब बेघर होते है ||
खौफ जदा मंजर ही एसा |
आँखों में भी डर होते है ||
जिन्दा होकर मरे हुए है |
वो जो किसी के भर होते है ||
पुष्पेन्द्र सिंह "पुष्प"
राग दरबार – vol-3
5 comments:
FANTASTIC WRITING ... I AM PROUD OF YOU.. MY SWEET HEART
****** PANKAJ K. SINGH
आपकी ग़ज़ल लगातार निखर रही है..... इंशा अल्लाह अब तो मामला दिन ब दिन और भी कामयाब होता जा रहा है......
मतला ता मक्ता ग़ज़ल धारदार है....
इस शेर पर खास दाद ......
खौफ जदा मंजर ही एसा |
आँखों में भी डर होते है ||
PK
हौसलाअफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
प्रणाम....स्वीकारें
umda likha
hirdesh
जिन्दा होकर मरे हुए है |
वो जो किसी के भर होते है ||
sacchi baat....chacha ji.
bahut umda likha aapne
sachin singh
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