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Monday, January 23, 2012

पाठकों आज के इस कॉलम में देश के मूर्धन्य प्रशासक ,संवेदनशील शायर और दिग्गज लेखक श्री पवन कुमार आपको सैर करा रहे हैं सिंह सदन के आध्यात्मिक और धार्मिक सफ़र की जो विगत ४ दशकों से भी अधिक समय से पूर्ण श्रद्धा के साथ अनवरत जारी है.... संपादक





'सिंह सदन’ का आध्यात्मिक जुड़ाव
'सिंह सदनका आध्यात्मिक जुड़ाव बहुत पुराना है. लगभग 4 पीढि़यों से यह सिलसिला निरन्तर चला आ रहा है. हमें यह पता है कि 'सिंह सदन' के आध्यात्मिक जुड़ाव  की कहानी परम श्रद्वेय नाना श्री के साथ शुरू  होती है. मेदेपुर ग्राम में प्रत्येक व्यक्ति नानाश्री के व्यक्तित्व से प्रभावित रहा. लोग उन्हें महात्माके नाम से पुकारते थे. वे निरक्षर थे लेकिन भारतीय महाकाव्य जैसे महाभारत ,रामायण, उपनिषद,गीता व पुराणों के विषय में उनकी जानकारी अद्भुत थी. ऐतिहासिक-पौराणिक घटनाओं तथा व्यक्तित्वों के विषय में उनका विष्लेषण नीर-क्षीर विवके युक्त था. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्हें श्रीमद्भगवत गीता के श्लोक  तथा रामचरित मानस की सैकड़ों चैपाईयां कंठस्थ थीं.उनका हाल यह था कि  सामान्य वार्तालाप में भी चैपाईयां और श्लोकों का प्रयोग कर वे अपनी बात कहते थे. जब तक वे इस धरा पर रहे साधुओं संतों से उनका लगाव जुड़ाव रहा. मैनपुरी के चांदेश्वर मंदिर के संतों के साथ संगतें और शाला के बाबा जी के साथ उनकी संगतें उनके देहावसान के बाद भी सिंह सदन के लिए जारी रहीं. 1977-78 में उनका देहावसान हो गया मगर उनके देहावसान  के बाद भी यह क्रम छूटा नहीं. सिंह सदन में उनके बाद इस परंपरा को अम्मा, बडे़ मामा श्रीकृष्ण जी ,मम्मी जी ने इस क्रम को बनाये रखा. नानाजी की तरह ही मामा-मम्मी  को सैकड़ों चैपाईयां व श्लोक याद हैं. 
मुझे अब तक याद है कि गांव की चैपाल में कपड़े के बस्तों में विभिन्न धार्मिक पुस्तकें बड़ी कुशलता के साथ संभाल कर रखी जाती थीं. प्रत्येक सायं कोई एक व्यक्ति पुस्तक का पाठ करता था और ग्राम वासी उसी चैपाल में बैठकर बड़े धार्मिक भाव से उनको सुनते थे. रात में सोते समय चैपाल में आठ-दस चारपाईयां बिछा दी जाती थीं, रात में डिब्बी की मद्धम  रौशनी  में देर रात तक धार्मिक विषयों पर वार्तालाप हुआ करते थे.
        वक्त बदला, इस धार्मिकता में महज विश्वास के बाद तार्किकता बढ़ी....... सिंह सदन के धार्मिक अनुराग को तार्किकता की कसौटी पर लाने का श्रेय वैद्य श्री हरीकृष्ण को जाता है. चूंकि वैद्य जी पहले व्यक्ति थे जो मेदेपुर की परिधि से बाहर निकले. कुछ नयी पत्र-पत्रिकाओं के जरिए अपने ज्ञान को तार्किकता की धार दी लेकिन धार्मिक पुस्तकों में उनका अनुराग परम्परागत रहा. कतिपय पौराणिक चरित्रों के विषय में उनका विष्लेषण भावनात्मक स्तर पर रहा, यथा कर्ण के साथ हुए अन्याय ,कृष्ण का बहुआयामी चरित्र, इन्द का चरित्र, रामकथा, भरत का भातृ प्रेम इत्यादि. विगत दो दशकों से उनके द्वारा रामलीला का निर्देशन  किया जाना उनके धार्मिक अनुराग का सबसे बड़ा उदाहरण है.
        धार्मिक अनुराग का यह सिलसिला हमारी पीढ़ी यानी तीसरी पीढ़ी तक आते-आते और भी विष्लेषणात्मक हो गया. बौद्विकता का प्रभाव बढ़ा लेकिन लगाव अभी भी भावनात्मक है. इस बौद्विकता का ही विस्तार रहा कि हमारी पीढ़ी से सभी भाई बहन व केवल हिन्द बल्कि मुस्लिम ,सिख, क्रिष्चियन ,जैन व बौद्व विचारधाराओं के साथ भी सामंजस्य बिठाया.  बड़े भ्राता श्री  प्रमोद रत्नजी का धार्मिक अनुराग इताना ज्यादा है कि वे नियमित रूप से मन्दिर जाना, व्रत रखने का अनुष्ठान करते हैं . पंकज, जोनी, डॉ उमा, श्यामकांत ,  पिन्टू ,रिंकू भी धार्मिक रूप से काफी प्रतिबद्व है.
        सिंह सदन में किसी भी सुअवसर पर माता शीतला देवी के मन्दिर पर जाने व चढ़ावा चढ़ाने की परम्परा रही है, समस्त विवाहों के दौरान माता शीतला देवी पर परिवार समेत जाना इस बात का उदाहरण है कि सिंह-सदन के गृह प्रवेश  के अवसर पर श्री रामचरित मानस का अखण्ड पाठ इसी क्रम में हुआ. आज भी अम्मा, मम्मी, मामा आज भी  सुबह चार बजे से ही भजन गाकर ईश-स्मरण की परम्परा को विगत तीस वर्षो से निभाया जा रहा है.  सिंह सदन में मन्दिरभी स्थापित किया गया है।
        ’सिंह सदनसुप्रीमो का कथा-प्रेम भी इस मायने में काफी उल्लेखनीय है. महत्वपूर्ण अवसरों पर इनके द्वारा कथाकराने का प्रस्ताव आता ही  रहता है.
 पंकज सिंह द्वारा सांई बाबा की शिरडी यात्रा तथा मेरे द्वारा माता वैष्णों देवी व पुरी के जगनाथ दर्शन  इस क्रम में किये गए है.

नज़रिया के लिए **** PK

4 comments:

Anonymous said...

dear bhaiya ,,
you have just taken us on a beautifull spritual journey of singh sadan . a great standing ovation for you .

***** PANKAJ K. SINGH

Pushpendra Singh "Pushp" said...

आदरणीय भैया
बहुत ही सुन्दर धार्मिक और मार्मिक सफर
के लिए बधाईयाँ
प्रणाम स्वीकारें .............|

SACHIN SINGH said...

वक्त बदला,इस धार्मिकता में महज विश्वास के बाद तार्किकता बढ़ी....सिंह सदन’ का आध्यात्मिक जुड़ाव बहुत पुराना है. लगभग 4 पीढि़यों से यह सिलसिला निरन्तर चला आ रहा है... AUR AAGE BHI CHALTA RAHEGA !!

BEHAD UMDA POST...AISA LAGA ZINDAGI FLASHBACK MEIN CHAL RAHI HAI..!!

CHARAN SPARSH SWEEKARE ...GURU DEV

Anonymous said...

सोलिड भाषा लेख को जमा देता है
ये आप की लेखनी है जो अनायास ही अपनी और खींच लेती है
नमस्कार
श्यामकांत