Vol--2
व्याकुल अधीर चितवन
कब आयेंगे प्रियतम !
थी रैन अकुलाई सी
थोड़ी थी मैं घबरायी सी
कब होगा अपना मिलन
व्याकुल अधीर चितवन l
सागर की वो गहराई थी
भीतर मेरे जो समायी थी
विचलित सपने टूटी नींदें
गुमसुम ह्रदय भीगे नयन
कब आयेंगे प्रियतम !
चिंतित सी मैं रोती रही
बस वक़्त को टोहती रही
क्यों प्रेम में गहरी निशा
कब उगेगा इसमें अरुण
व्याकुल अधीर चितवन ll ........ नेहा सिंह
6 comments:
बहुत ही सुन्दर बिटिया .........
विरह गीत में क्या जान...... डाली है उम्दा
भाव............ हर एक विन्दु पर सही और सुद्रढ़ रचना
है तुम इतना अच्छा काव्य करती हो आज जाना
लिखती रहो ...........|
bhadiya rachna
kamaal ka likha
good
likhte raho
shyamkant
beautiful piece of writing.
my child..
how can you feel & write such things without that kind of experiences.
***** PANKAJ K. SINGH
biraha ki mari rachna tumhari.
aayenge priyatam. hogi puri aash tumahari.likhti raho aisi hi rachna payari.hasti rahe bitiya hamari.
hirdesh singh
Fabulous writing
A GREAT PEICE OF WRITTING WRAPPED
WITH TIMELESS LOVE AND ENDLESS EMOTIONS.
ALL THE BEST.....NEHA
SACHIN SINGH
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