देश के शीर्षस्थ चित्रकार रत्नाकर लाल के साथ पंकज के . सिंह |
"वाबस्ता" से कुछ और शेर ......
आज इस तीसरे वोल्यूम में "वाबस्ता" से कुछ और शेर पेश कर रहा हूँ जो मुझे निहायत ही पसंद हैं.... और अनायास ही बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं ! बिना किसी और तकल्लुफ के आपको सीधे लिए चलता हूँ "वाबस्ता" की गहराइयों में .... इनमे उतरिये और जिंदगी को कुछ बेहतर ढंग से समझिये ---
(१)
अल्लाह कभी हमको भी तौफ़ीक अता कर ,
मंजिल के लिए निकलें तो मंजिल पे रुका जाए !
(२)
दिल जो इज़ाज़त दे तो हाथ मिलाओ तुम ,
बेमतलब के रिश्ते धोना ठीक नहीं !
(३)
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है ,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !
(४)
करे इन्साफ की उम्मीद किससे,
यहाँ मुंसिफ सभी बहरे हुए हैं !
(५)
कौन दिल्ली में ' रखता ' समझे ,
सबका इंग्लिश से सिलसिला देखूं !
***** PANKAJ K. SINGH
2 comments:
bakai bahiay babasta ka sher anutha hai jitana padho utna hi anand
shukriya ke alaawa aur kya kahoon Pintoo aur Pankaj ko.....
PK
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