काव्य संकलन "मेरे प्रभु " से तीसरी कविता ----- --
मेरे प्रभु ...
बियावान जंगल है ये जीवन ... और अँधा हूँ मैं ..
कभी टकराता हूँ काम और क्रोध के विशाल वृक्ष से ...
तो कभी घायल करते हैं मुझे तृष्णा और मृग मारीचिका के कांटे !
मेरे प्रभु ...
बतलाओ मुझे ... राह दिखाओ मुझे ..
क्या करूँ ...कहाँ जाऊं मैं ..
स्वार्थ , अहम् और नश्वर रिश्तों के कसे हुए फंदे हैं ..
कैसे इनसे स्वयं को मुक्त कर पाऊँ मैं !
मेरे प्रभु ...
मिल जाए प्रकाश की एक किरण ...
तो तोड़ दूं इन बेड़ियों को ... और पा लूं इस घोर अन्धकार से मुक्ति ..
दूर चला जाऊं इस बियावान जंगल से ..
पहुँच जाऊं स्मृति के स्वतंत्र आसमान में ..
जहां सिर्फ बोध हो .. प्रकाश हो ... सूर्य हो ..!
मेरे प्रभु ...
क्या तुम मेरे प्रकाश पुंज बनोगे ..
क्या बाहर निकालोगे मुझे इस तामस और क्लेश से ..
मेरे प्रभु ...
सुन लो मेरी पुकार ..
खंडित हो रहा हूँ मैं ... मर रहा हूँ मैं ..
तेरी कृपा की एक किरण ... और बदल जाऊंगा मैं ... बदल जाएगा सब कुछ ..
तेरा एक अंश मात्र देगा .. मुझे नया जीवन !
मेरे प्रभु ...
कृपा करो मुझ निर्बल पर ... अपने ही इस अशक्त अंश पर
निकट बुलाओ मुझे ... और नहीं भाता ये अन्धकार अब ..
होश में लाओ मुझे ... और नहीं सोया जाता अब !!
***** PANKAJ K. SINGH
5 comments:
गजब की रचना
पंक्तियाँ सुंदर असरदार बन पड़ी हैं
मेरे प्रभु अति उत्तम
सुंदर श्रंखला के लिए धन्यवाद
श्यामकांत
bahut sundar bhav vibhor kar dene wali rachna
pranam swikaren
मेरे प्रभु अदभुत श्रंखला है भैया....
एक निर्विकार और निष्कपट मन से ही ऐसी भावनाएं निकल सकती हैं....
बहुत सुन्दर सचमुच भैया.....
प्रिय पंकज
निकट बुलाओ मुझे ... और नहीं भाता ये अन्धकार अब ..
होश में लाओ मुझे ... और नहीं सोया जाता अब !!
तुम्हारी ये कवितायेँ न केवल पठनीय हैं बल्कि अनुसरणीय भी हैं..... दिल की सच्ची बात जो कहनी चाहिए बिना लाग लपेट के, वो तुमने कही है. हमें अपना आचार व्यवहार खुद समझना चाहिए तभी जीवन में संतुष्टि मिल सकेगी...... आगे भी इन्तिज़ार रहेगा.... !!!!!!
PK
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