आंगनबाड़ी Vol. 4
संवरे महल हों या तिनको का घर.......
फर्क तो नजरों का है ....
जिन्दगी की खातिर, एक छत का साया काफी है....
जो इस जनम में पाए, क्या आगे भी मिलेंगे........
ये रिश्ते कितने सच्चे लगते हैं....
हर बार जीने की खातिर, अपनों का होना काफी है......
तुमने जाना नहीं, सच झूठ में तुलती रही मैं......
कई आंसू मेरी आँखों से ढुलके थे ....
सुलझे घरबार की खातिर, मोहब्बत का होना काफी है.....
कभी दूर से ही, जो तुम मुझको आवाज देते......
बेरंग मेरी दुनिया, फिर धानी हो जाती....
कलियाँ खिलने की खातिर, सूरज का उगना काफी है.....
मैं वहीँ हूँ रहूंगी वहीँ, तुम मुझे ढूंढ लेना......
वक़्त बेवक्त यादें सताने लगती हैं....
मंजिलें तय करने की खातिर, हाथों का जुड़ना काफी है......
4 comments:
umda likha bitiya wah..
kuch holi par likho
lajabab bitiya in panktiyon me tumne jan dal di hai
tumhare andar ek behtrin lekhak chupa baitha hai use bahar ane do
aur man ke dwand ko kagaz par utarne do
mai kahata hun tum acchi lekhak banogi
i proud of you ....!
तुमने जाना नहीं, सच झूठ में तुलती रही मैं......
कई आंसू मेरी आँखों से ढुलके थे ....
सुलझे घरबार की खातिर, मोहब्बत का होना काफी है.....
कभी दूर से ही, जो तुम मुझको आवाज देते......
बेरंग मेरी दुनिया, फिर धानी हो जाती....
कलियाँ खिलने की खातिर, सूरज का उगना काफी है.....
फिर से कमाल का ह्रदय स्पर्शी लिख डाला है इस प्यारी कुड़ी ने ! समझ नहीं आता इस लड़की को क्या दाद दूं ! सिंह सदन के लिए ही बनी है ये !...
**** PANKAJ K. SINGH
bahut hi accha likha aapne neha...
hamesha ki tarah
bahut-2 badhai.....
Post a Comment