धोयहू सौ बार के काजर होय न स्वेत
अरे लल्लू कहाँ चल दीये सुबह -सुबह धोती लपेट के ,कही नही मिर्जा भाई में बच्चे को मदरसा छोड़ने जा रहा था,तनिक रुकीये कुछ बात करनी थी आपसे,मुझसे अरे जिसकी किस्मत पत्थर से पारस होने बाली होवो अब हमें क्या जाने ,एं …………… पत्थर से पारस ,ई का होत है मेरा मतलब है कि आपका लड़का प्रधानी का चुनाव लड़ने जा रहा है अगर वो जीत गया तो सारी रवडी मिलेगी तो आपको ही,
मिर्जा (मूछों पर ताव देकर )- हाँ सो तो है ,अरे भाई लल्लू तुम क्यों नहीं अपने लड़के को खड़ा कर देते आखिर उसने भी पुरे जिले में तो अपना नाम चला रखा है (ये सुनकर लल्लू ने चमकती तोंद पर हाथ फिराया और हुकुम का देहला फेंका ) खुदा बचाए इस गंदे दलदल से जहाँ न अपनों की फ़िक्र रहती है न समाज की , हमारे खानदान में तो सबने मेहनत की रोटी खाई है और ईमानदारी की डकार ली है,बाहर की बैंक तो छोडो घर की गुल्लक में तक पैसे जमा नही किये है और क्या रखा है इस राजनीत के गंदे दलदल में चंद पैसों के लिए कभी इधर तो कभी उधर ,फर्श पर रखे घड़े के जैसे इधर -उधर लुढ़कने के कायल नही है हम लोग,लल्लू का गरम तेवर देखकर मिर्जा वहां से तुरंत छुमंतर हो लिया ,अरे कहा जा रिया है लल्लू ,बदनामी का कोट पहनकर हमें इज्जत्दारी का पाठ पढाएंगे, हुंह …..............
तभी उधर से आ रहे सुरेश ने लल्लू की तोंद पर तीन बार तबला बजाया, अरे ये सुबह -सुबह किसको जली–भुनी कह रहे हो , क्या बताऊ सुरेश भईये मिर्जा ने इस बार अपने लौंडे को प्रधानी के चुनाव पर खड़ा किया है इसलिए मूंछों पर सवा नौ बजाकर मुझे इज्जतदारी का पाठ पढ़ा रहा था,अरे कल का लौंडा जो मौहल्ले में बरेठिया के नाम से जाना जाता था और आज जब वो चांदी का जूता मारके प्रधानी का टिकट पा गया तो पिता जी कि मूछें सवा नौ से दश-दश बजा रही है लौंडा चुनाव के वक्त हाथ जोड़े फिरता है और बाद में इन्ही हाथों से ऐन- गेन काम करके घपले बाजी करता है ,अपने कारनामो के चलते सात जगहों से धकियाकर निकला गया है,और इसका बाप [मिर्जा ] मेरे साथ चप्पलों की दुकान लगता था और जिस दिन जेब ठंडी होती थी तो उस दिन उन्ही चप्पलों को थोक मे बेचकर किसी भी तरह दारु के पैसे निकला करता था ,इसके दद्दा घर - घर सत्यनारायण की कथा किया करते थे और आज जब पोता चुनाव लड़ने जा रहा है तो ये भी याद नहीं होगा कि लीलावती कलावती की कौन थी अरे इसके खान -दान के हींग-जीरे से मे बाकिफ हूँ,दश हिरन मारके हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाने आया था हुन्ह............ सुरेश – अब छोडो भी अरे जब वो ही नहीं है यहाँ तो क्यों खाम -खाम अपनी जुबान गरम कर रहे हो
लल्लू - ठीक ही कहा भाई तुमने चलो चलते है ,राम - राम भैया कुछ दिनों बाद जब चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे ,प्रतिदिन की तरह लल्लू अपने काम पर जा रहे थे तभी रास्ते मे मीयां मिर्जा मिल जाते है ,अरे मिर्जा कहाँ सरपट भागे जा रहे हो ,जरा रुकीये ये चेहरे की धुल क्यों उडी हुई है सब खैरीयत तो है ,
(ये सुनकर मिर्जा की आँखें भर आती है और फूट - फूट कर रोने लगता है)
कुछ भी खैरियत नहीं है ,क्या बताऊँ लल्लू भी मैंने अपने बेटे की काली करतूतों को छिपाने के लिए उसे प्रधानी का चुनाव लडवाया सोचा था इसके जीत जाने पर ये उल्टे सीधे काम करना छोड़ देगा ,और इसकी हरकतों पर भी पर्दा डल जाएगा ,और इसी आस मे मैंने अपना सारा पैसा उसको दे दिया , और जब उसको पता लगा कि वह चुनाव हार गया तो वो मेरा सारा पैसा लेकर भाग गया ,आज में किसी को मुंह दिखाने के काविल नहीं रहा मेरा सब कुछ चला गया ,मैंने अपने ऊपर बहुत घमंड किया है,मुझे माफ़ कर दो लल्लू भाई, मुझे माफ़ कर दो , ये देखकर लल्लू का ह्रदय द्रवित हो जाता है - व्यक्ति को चाहे कितना भी ऊंचा पद मिल जाए कभी भी अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए,और किसी भी व्यक्ति को अपने से छोटा नही समझना चाहिए,आज यदि तुम्हारा लड़का इस गाँव का मुखिया बन जाता तो वो इस गाँव के ग़रीबों का भी पैसा लेकर भाग जाता, समझे किसी ने सच ही कहा है कि [ धोयाहू सौ बार के काजर होय न स्वेत ] – नीच मनुस्य की नीचता कभी नही जाती
"दिलीप कुमार"
मिर्जा (मूछों पर ताव देकर )- हाँ सो तो है ,अरे भाई लल्लू तुम क्यों नहीं अपने लड़के को खड़ा कर देते आखिर उसने भी पुरे जिले में तो अपना नाम चला रखा है (ये सुनकर लल्लू ने चमकती तोंद पर हाथ फिराया और हुकुम का देहला फेंका ) खुदा बचाए इस गंदे दलदल से जहाँ न अपनों की फ़िक्र रहती है न समाज की , हमारे खानदान में तो सबने मेहनत की रोटी खाई है और ईमानदारी की डकार ली है,बाहर की बैंक तो छोडो घर की गुल्लक में तक पैसे जमा नही किये है और क्या रखा है इस राजनीत के गंदे दलदल में चंद पैसों के लिए कभी इधर तो कभी उधर ,फर्श पर रखे घड़े के जैसे इधर -उधर लुढ़कने के कायल नही है हम लोग,लल्लू का गरम तेवर देखकर मिर्जा वहां से तुरंत छुमंतर हो लिया ,अरे कहा जा रिया है लल्लू ,बदनामी का कोट पहनकर हमें इज्जत्दारी का पाठ पढाएंगे, हुंह …..............
तभी उधर से आ रहे सुरेश ने लल्लू की तोंद पर तीन बार तबला बजाया, अरे ये सुबह -सुबह किसको जली–भुनी कह रहे हो , क्या बताऊ सुरेश भईये मिर्जा ने इस बार अपने लौंडे को प्रधानी के चुनाव पर खड़ा किया है इसलिए मूंछों पर सवा नौ बजाकर मुझे इज्जतदारी का पाठ पढ़ा रहा था,अरे कल का लौंडा जो मौहल्ले में बरेठिया के नाम से जाना जाता था और आज जब वो चांदी का जूता मारके प्रधानी का टिकट पा गया तो पिता जी कि मूछें सवा नौ से दश-दश बजा रही है लौंडा चुनाव के वक्त हाथ जोड़े फिरता है और बाद में इन्ही हाथों से ऐन- गेन काम करके घपले बाजी करता है ,अपने कारनामो के चलते सात जगहों से धकियाकर निकला गया है,और इसका बाप [मिर्जा ] मेरे साथ चप्पलों की दुकान लगता था और जिस दिन जेब ठंडी होती थी तो उस दिन उन्ही चप्पलों को थोक मे बेचकर किसी भी तरह दारु के पैसे निकला करता था ,इसके दद्दा घर - घर सत्यनारायण की कथा किया करते थे और आज जब पोता चुनाव लड़ने जा रहा है तो ये भी याद नहीं होगा कि लीलावती कलावती की कौन थी अरे इसके खान -दान के हींग-जीरे से मे बाकिफ हूँ,दश हिरन मारके हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाने आया था हुन्ह............ सुरेश – अब छोडो भी अरे जब वो ही नहीं है यहाँ तो क्यों खाम -खाम अपनी जुबान गरम कर रहे हो
लल्लू - ठीक ही कहा भाई तुमने चलो चलते है ,राम - राम भैया कुछ दिनों बाद जब चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे ,प्रतिदिन की तरह लल्लू अपने काम पर जा रहे थे तभी रास्ते मे मीयां मिर्जा मिल जाते है ,अरे मिर्जा कहाँ सरपट भागे जा रहे हो ,जरा रुकीये ये चेहरे की धुल क्यों उडी हुई है सब खैरीयत तो है ,
(ये सुनकर मिर्जा की आँखें भर आती है और फूट - फूट कर रोने लगता है)
कुछ भी खैरियत नहीं है ,क्या बताऊँ लल्लू भी मैंने अपने बेटे की काली करतूतों को छिपाने के लिए उसे प्रधानी का चुनाव लडवाया सोचा था इसके जीत जाने पर ये उल्टे सीधे काम करना छोड़ देगा ,और इसकी हरकतों पर भी पर्दा डल जाएगा ,और इसी आस मे मैंने अपना सारा पैसा उसको दे दिया , और जब उसको पता लगा कि वह चुनाव हार गया तो वो मेरा सारा पैसा लेकर भाग गया ,आज में किसी को मुंह दिखाने के काविल नहीं रहा मेरा सब कुछ चला गया ,मैंने अपने ऊपर बहुत घमंड किया है,मुझे माफ़ कर दो लल्लू भाई, मुझे माफ़ कर दो , ये देखकर लल्लू का ह्रदय द्रवित हो जाता है - व्यक्ति को चाहे कितना भी ऊंचा पद मिल जाए कभी भी अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए,और किसी भी व्यक्ति को अपने से छोटा नही समझना चाहिए,आज यदि तुम्हारा लड़का इस गाँव का मुखिया बन जाता तो वो इस गाँव के ग़रीबों का भी पैसा लेकर भाग जाता, समझे किसी ने सच ही कहा है कि [ धोयाहू सौ बार के काजर होय न स्वेत ] – नीच मनुस्य की नीचता कभी नही जाती
"दिलीप कुमार"
5 comments:
ये सब छोड़ के पढाई पर ध्यान दो..ठीक महनत की ही...जहां जरुरत है वहां भी करो hirdesh
दिलीप
भाई वाह क्या कहानी लिखी है..... विश्वास ही नहीं हो रहा इतनी गत्यात्मक और प्रभावशाली कहानी तुम लिख सकते हो..... मगर मानना तो पड़ेगा क्या किरदार चुने हैं और क्या प्लाट है कहानी का...... छुपे रुस्तम हो तुम. बधाई.
***(Take care of Jhony mama's advise also )
PK
great story... well done
---- pankaj k. singh
bahut sundar kahani
badhai ke patr ho
congra.....
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