राग दरबार – vol -5
प्रिय पाठकों
आप सभी रहनुमाओ के लिए संजीदगी के साथ पेश है ये नज़म उम्मीद है अप सभी को पसंद आयेगी |
कभी किसी रोज़ आकार देखो
मेरे उस कमरे का आलम
सारा सामान बिखरा पड़ा है
और कॉफ़ी का वो कप जो
तुम्हारे दुप्पटे के झोके से
गिर कर टूट गया था
आज भी उस में से सोंधी सोंधी
सी खुशबू आती है
उस किताब के पन्ने
जिस पर तुम्हारी मखमली उँगलियों
शरारत कर रहीं थी
उस दिन से बदले नहीं है
और तुमने जो खिड़की खोल कर
शर्द हवा को आमंत्रण दिया था
तुम्हारी जुल्फों से उलझती
अटखेलियाँ करती हुई वो हवा
आज भी आ रही है
वो ख़त जो तुम लौटा गए थे
उस रोज मुझे
उड़ कर मेरे जिस्म से
चिपक जाते है
और तुम्हारी मजबूरियों की
कहानी सुनाते है
जो तुम जाते वक्त नहीं कह सके थे
कभी किसी रोज़ आकार देखो
मै कितना तन्हा हूँ ............|
Pushpendra singh (pushp)
Pushpendra singh (pushp)
1 comment:
splendid writing.. very touching .. full of heart .. lovely .. i m really proud of you PINTU. you are the real talent of SINGH SADAN . you are the pride of SINGH SADAN .
***** PANKAJ K. SINGH
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