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Tuesday, February 28, 2012

आज के इस कॉलम में पंकज के . सिंह एक नयी शुरुआत के रूप में पेश कर रहे हैं अपने काव्य संग्रह " मेरे प्रभु'' से चुनी हुयी कुछ ख़ास कवितायें ! इसी क्रम में आज दूसरी कविता पेश है ! इन कविताओं का काव्य तकनीक से बहुत कुछ लेना - देना नहीं है ! ये कवितायें शुद्ध रूप से एक आत्मा का संवाद मात्र हैं और एक विशेष आध्यात्मिक मनोदशा में लिखी गयी हैं ! ...... EDITOR


स्ट्रेट ड्राइव

VOLUME  --- 13

मेरे प्रभु ...

कर ऐसा उपकार ..

मेरे प्रभु ...
मेरा ही मन ... बाधक मेरे उत्थान में ..
मेरा ही मनन .. धकेले मुझे अन्धकार में ..
मेरा ही कर्म ... बनाये मुझे अपयश का भागी ..
मेरा ही मर्म ...    बनाये मुझे निष्ठुर ..!

मेरे प्रभु ...
कैसे मुक्त हो सकूँ "स्व" से ..  मानसिक संताप से ...
कैसे निकल सकूं इस कलुष से ... व्यर्थ के संघर्ष से ... साध्य के भटकाव से .. !

मेरे प्रभु ...
होता जा रहा हूँ ..नित दूर तुझसे ...
मेरे ही पाप कर्म ...चिपटे हैं मुझसे ...
क्रंदन और विलाप ... बन गए हैं जीवन के अंश ..
तामस और कलुष बन गए हैं आत्मा के दंश ...!

मेरे प्रभु ...
मिल जाए मुक्ति... इस अहंकार और लोभ के घातक मिश्रण से ...
हो सकूं ..निर्विकार , निश्छल और निष्पाप ..
दूर हो जीवन का संताप ..
कर ऐसा उपकार ...कर ऐसा उपकार ...कर ऐसा उपकार ...!!

***** PANKAJ K. SINGH
 

1 comment:

Pushpendra Singh "Pushp" said...

bahut sundar bhav liye hai
ye rachan
jivan ka sar hai ye
pranam swikaren