VOLUME --5
एक रूहानी अहसास ... चंदामामा
''चंदामामा'' बच्चों से लेकर बड़ों तक को समान रूप से भाती है! कई दशकों से नैतिक, चारित्रिक और बौद्धिक शिक्षा प्रदान करने वाली सुन्दर कथा -कहानियों को हमें सुनाती आ रही है हमारी प्यारी पत्रिका ''चंदामामा'' ! मैं आपको बता नहीं सकता की इस प्यारी पत्रिका चंदामामा से मुझे किस हद तक मोहब्बत रही है !
''चंदामामा'' एक... रूप अनेक
५ साल की उम्र से लेकर अब तक चंदामामा के आकर्षण में मैं पूरी तरह डूबा हुआ हूँ ! इसकी मन मोह लेने वाली सुन्दर कथा- कहानियों को पढ़कर ही मेरे जैसे इस देश के करोड़ों बच्चे बढे हुयें हैं!
चंदामामा ने मेरे लिए एक दादा- दादी, नाना- नानी ,शिक्षक और मित्र... मानो सभी भूमिकाएं एक साथ निभा दी !
चंदामामा ने मेरे लिए एक दादा- दादी, नाना- नानी ,शिक्षक और मित्र... मानो सभी भूमिकाएं एक साथ निभा दी !
स्वयं में एक संस्थान है.....
करोड़ों भारतीयों में कई दशकों से नैतिक ,चारित्रिक और बौद्धिक शिक्षा के अंकुर रोपने का कार्य इस महान पत्रिका चंदामामा ने ही किया है! वास्तव में हमारी प्यारी पत्रिका ''चंदामामा'' मात्र एक पत्रिका नहीं है... वरन यह स्वयं में एक संस्थान है ....यूनिवर्सिटी है!
राही तू मत रुक जाना ....
चंदामामा का पहला अंक 1947 में प्रकाशित हुआ था ! इसके संस्थापक संपादक बी नागी रेड्डी थे ..जो साऊथ के जाने माने फिल्म निर्माता भी रहे हैं !
शुरू में यह तमिल और तेलगु में ही प्रकाशित होती थी बाद में १९४९ में चंदामामा कन्नड़ और हिंदी में प्रकाशित होनी शुरू हो गयी !१९५६ तक चंदामामा के मलयालम सिन्धी अंग्रेजी उड़िया गुजरती और मराठी संस्करण भी प्रकाशित होने शुरू हो गए थे !
७० के दशक में चंदामामा के बंगाली ,पंजाबी और असामी संस्करण भी प्रकाशित होने शुरू हो गए थे !
शुरू में यह तमिल और तेलगु में ही प्रकाशित होती थी बाद में १९४९ में चंदामामा कन्नड़ और हिंदी में प्रकाशित होनी शुरू हो गयी !१९५६ तक चंदामामा के मलयालम सिन्धी अंग्रेजी उड़िया गुजरती और मराठी संस्करण भी प्रकाशित होने शुरू हो गए थे !
७० के दशक में चंदामामा के बंगाली ,पंजाबी और असामी संस्करण भी प्रकाशित होने शुरू हो गए थे !
कुछ मुश्किलों का दौर......
१९९८ में मजदुर विवादों के कारण चंदामामा का प्रकाशन रुक गया था जो एक वर्ष बाद पुनः चालू हो गया !अब चंदामामा ने भी वक्त के साथ ताल मेल बिठाते हुए खुद को नए रूप रंग में ढाल लिया है !
नए युग में प्रवेश ....
अब इसे काफी हद तक डिजिटल बना दिया गया है !२००७ में चंदामामा ऑन लाइन भी हो लिया !इसके स्तंभों भी थोडा बहुत बदलाव किया गया है और इसमें आज के बच्चों को ध्यान में रखते हुए विज्ञान और तकनीक के विषयों को भी शामिल कर लिया गया है !
चंदामामा की सबसे बड़ी खासियत .....
चंदामामा की सबसे बड़ी खासियत रही है इसका बेमिसाल चित्रांकन !इसके चित्र इस कदर नयनाभिराम होते हैं की उनसे नज़र हटाना मुश्किल हो जाता है ! आपको कथा के ही युग में पहुंचा देने का कार्य करते हैं ये चित्र!
बेहतरीन भाव भंगिमाएं सुन्दर प्राकृतिक वातावरण एक पवित्रता को मुकम्मल अहसास करा देते हैं चंदामामा के ये मनोहारी चित्र ! प्राचीन भारत के राजाओं ऋषियों और नागरिकों के वस्त्र- आभुसड़ो को बेहद आकर्षक चित्रण चंदामामा के ये मनोहारी चित्र प्रस्तुत करते हैं !
बेहतरीन भाव भंगिमाएं सुन्दर प्राकृतिक वातावरण एक पवित्रता को मुकम्मल अहसास करा देते हैं चंदामामा के ये मनोहारी चित्र ! प्राचीन भारत के राजाओं ऋषियों और नागरिकों के वस्त्र- आभुसड़ो को बेहद आकर्षक चित्रण चंदामामा के ये मनोहारी चित्र प्रस्तुत करते हैं !
चंदामामा की दूसरी सबसे बड़ी खासियत रही है इसकी बेहतरीन सुसंस्कृत भाषा ! इसकी भाषा पढ़कर ही मेरे जैसे लाखों पाठकों ने अपने भाषा ज्ञान को शुद्ध और परिष्कृत किया है !
विक्रम बेताल की कहानियाँ अपने अद्भुत भाषा विन्यास के कारण ही इस युग में भारतीय संस्कृति सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा की अमूल्य धरोहर बनी हुयी हैं !
विक्रम बेताल की कहानियाँ अपने अद्भुत भाषा विन्यास के कारण ही इस युग में भारतीय संस्कृति सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा की अमूल्य धरोहर बनी हुयी हैं !
बेहतरीन स्ट्रेस बस्टर...
आज भी मेरे पास चंदामामा के २०० से ज्यादा अंक सुरक्षित रखे हुए हैं ...जो मुझे एक अनोखे शांत वातावरण में ले जाने का काम करते हैं !आज के इस अंधे भाग- दौड़ वाले युग में चंदामामा करोड़ों पाठकों के लिए बेहतरीन स्ट्रेस बस्टर का काम तो कर ही रही है.... ये हमें हमारी सम्रद्ध भारतीय संस्कृति से भी जोड़े रखती है !
भारतीय संस्कृति- सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा की एक अमूल्य धरोहर...
चंदामामा ने भारतीय संस्कृति सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा के उन्नयन के लिए जो कार्य किया है उसके लिए हम सदैव के लिए चंदामामा के ऋणी रहेंगे !
यह हमारा परम दायित्व है की हम भारतीय संस्कृति- सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा की इस अमूल्य धरोहर को आधुनिकता और उपभोक्तावाद की आंधी से बचा कर रखें अन्यथा हम भारतीय संस्कृति ,सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा के बिखराव के सबसे क्रूर उत्तरदायी सिद्ध होंगे !
यह हमारा परम दायित्व है की हम भारतीय संस्कृति- सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा की इस अमूल्य धरोहर को आधुनिकता और उपभोक्तावाद की आंधी से बचा कर रखें अन्यथा हम भारतीय संस्कृति ,सभ्यता और सुसंस्कृत भाषा के बिखराव के सबसे क्रूर उत्तरदायी सिद्ध होंगे !
* * * * *PANKAJ K.SINGH
3 comments:
bilkucl sach
likha bhaiya chanda mama patrik
vastav me bahut acchi hai..
apki kekhani ko salam
चंदामामा के चित्र और पौराणिक ऐतिहासिक कहानियां अपने आप में अद्भुत हैं..... सौ वर्ष से चंदामामा का जलवा चला आ रहा है तो वो ऐसे ही नहीं है...... यह पोस्ट बहुत ही सुन्दर है जो दिल को छू गयी.....!!!!!
PK
VERY GOOD POST.....CHACHA JI
THANKS FOR SHARING !!
SACHIN SINGH
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