लीजिये मैं भी हाज़िर हूँ......
इससे पहले कि मैं सिंह सदन के ब्लॉग पर "घर" के बारे में कुछ लिखूं .....शुरुआत अपनी एक नज़्म से कर रही हूँ.....यह नज़्म सिंह सदन के हरेक सदस्य के नाम समर्पित है.
आड़ी -तिरछी
रेखाओं के हेर फेर से
कितनी शक्लें
बन जाती हैं.
कुछ इनमें
जानी पहचानी सी लगती हैं,
इन शक्लों से ही तो
मेरी जीस्त सँवरती है
बेहतर होता
सबको ये सारी सूरतें
अपनी लगतीं
और
दुनिया आधी अधूरी नहीं पूरी अपनी सी लगती.
*****अंजू
इससे पहले कि मैं सिंह सदन के ब्लॉग पर "घर" के बारे में कुछ लिखूं .....शुरुआत अपनी एक नज़्म से कर रही हूँ.....यह नज़्म सिंह सदन के हरेक सदस्य के नाम समर्पित है.
आड़ी -तिरछी
रेखाओं के हेर फेर से
कितनी शक्लें
बन जाती हैं.
कुछ इनमें
जानी पहचानी सी लगती हैं,
इन शक्लों से ही तो
मेरी जीस्त सँवरती है
बेहतर होता
सबको ये सारी सूरतें
अपनी लगतीं
और
दुनिया आधी अधूरी नहीं पूरी अपनी सी लगती.
*****अंजू
3 comments:
वाह भाभी कमाल कर दिया ...........
आप से ऐसी ही जोरदार दिल को छू जाने वाली पोस्ट की उम्मीद थी
मुझे मालूम है आप बहुत अच्छी लेखक है
में उस लेखक को बहार लाना चाहता हूँ |
क्योंकि एक निर्मल ह्रदय इन्सान ही इतनी खुबसूरत रचना कर सकता है |
इस कविता के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ...........
और आप के चरणों में मेरा सत सत प्रणाम
सुभान अल्लाह ... माशा अल्लाह ... आप आये बहार आई !
भाभी ... मैं आपका स्वागत करता हूँ ... इस्तकबाल करता हूँ ... एक निहायत ही खूबसूरत .. और संवेदनशील रचना के साथ आपका पदार्पण वाकई ढेरों खुशियाँ लेकर आया है ! !
सम्मान सहित ...पंकज के. सिंह !
bahut khub bhabhi...aap ke bager bhi ye blog adhura hai.
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