आज में तार्रुफ़ करने जा रहा हूँ ..... एक इसे शख्स का जो दया ,दान, धर्म की मूर्ति है .... जी हाँ ....में बात कर रहा हूँ .... परम आदरणीय श्रधेय ..... " प्रमोद रत्न " जी की !
प्रमोद भैया .... हम सभी भाइयों में सबसे बड़े है ...... और " बडप्पन " उनमे कूट कूट कर भरा है !....... उनका जन्म आज से यही कोई चार दशक पहले " मेदेपुर " गाँव में हुआ .............बचपन से ही वह पूरे घर के लाडले रहे .... तब से आज तक वे सभी केदिलों पर राज कर रहे है ...........वे घर ही नहीं पूरे गाँव के चहीते है उनहोंने सामाजिक व् आर्थिक परिस्थियों का डट कर सामना किया
मुझे आज भी याद है .... जब भइया इंटर में थे .... तो कड़ाके कि शर्द रातों में ... " पी . आर . डी . " कि ड्यूटी किया करते थे .... स्नातक करने के बाद उनहोंने " सहारा इण्डिया " में काम किया एवं अपना स्कूल भी चलाया ..........एक " कर्मठ पुरुष " जितना संघर्ष कर सकता है किया ! ......मगर इन सब के बजूद हमेशा खुश रहे ...............मुझे अच्छी तरह याद है बचपन में भइया हमें साईकिल से " नुमाइश " दिखाने ले जाया करते थे ......और खुले असमान के नीचे ..... दोनों भाई बैठ कर रात गुजरा करते थे
भइया का संघर्ष जारी रहा .... और उन्हें सन २००० में " विशिष्ट बी. टी .सी . " के तहत अध्यापक की नोकरी मिली .... आज वे जूनियर हाई स्कूल में अधयापक है
एसा कम ही देखा जाता है .........कि किसी इन्सान का कोई विरोधी न हो .... मगर हमारे भइया एसे ही ......अदभुत इन्सान है ! ......पूरा गाँव क्षेत्र उनको सम्मान और प्रेम देता है ! शायद ही एसा कोई सामाजिक कार्य हो ..... जिसमे भइया उपस्थित न होते हों ........... उनकी राय अवश्य ली जाती है
वह एसे उदार ह्रदयी और दानी पुरुष है....... कि कोई अगर उनसे कुछ मांग दे .... तो बाहने या ना का तो प्रश्न ही नहीं उठता......पिताजी को भइया पर बेहद फक्र है वे उन्हें .........महात्मा की संज्ञा देते है ... और सच भी है ... वे किसी महापुरुष से कम नहीं है
भइया एक " हास्य कवी " भी है .... उनकी कवितायेँ हम सभी भाई बहुत चाव से सुनते है भइया कभी कोई टेंशन ना तो लेते है ... और नहीं देते है ! वे कभी समस्याओं में नहीं घिरते ! कोई उनसे कुछ कहता भी है ... तो हंस कर टाल देते है
हमारे बड़े भइया पूज्यनीय श्री पवन जी .... इन्हें अपना गुरु मानते है ........और महापुरुष की संज्ञा देते है ....इस ज़माने में भइया जैसे महापुरुष विरले ही पैदा होते है ...... हर रिश्ते को उन्होंने बड़ी संजीदगी से जिया है ! ....परिवार व रिश्तेदरियों में वह अपनी भूमिका बखूबी निभाते है .... आज में जो भी कुछु हूँ ... उनकी बरसों की तपस्या ....और उनके आशीर्वाद का नतीजा है
मै एसे महापुरुष को सैकड़ों बार नमन करता हूँ ......................
तारुफ़ के लिए पुष्पेन्द्र सिंह
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