"........मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं,
तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर कर दे !.................."
कन्हैया लाल नंदन ने यह शेर जिस भी परिस्थिति में लिखा हो....मगर "सिंह सदन" के लिए यह मुकम्मल शेर है. रिश्ते सिर्फ संबोधन के लिए ही नहीं होते.....वे दरअसल जीने के लिए होते है......हर आदमी कभी किसी देहलीज़ पर भाई है तो किसी दर पर पति....हर औरत कहीं बहन है तो कहीं माँ......इन्ही रिश्तों में रची बसी कायनात को एक छत के अन्दर जिए जाने की कवायद ही है घर......."सिंह सदन" भी इसी कवायद का एक हिस्सा है........."सिंह सदन " से जुड़े हर एक शख्स और हर एक गतिविधि से परिचय करने के लिए ही ब्लॉग का सहारा लिया गया है ताकि जो भी लिखा जाए वो दिल से लिखा जाये.....और दिल से ही पढ़ा भी जाए.......!
व्यक्तित्व विश्लेषण में जांच- परख टीम के मूल्यांकन के बाद अभी तक जिन महानुभावों का परिक्षण हो चूका है उनमे श्रद्धेय बड़े मामा अभी तक नंबर वन पर हैं.....! तस्वीर पूरी श्रद्धा के साथ पेस्ट कर रहा हूँ....!
1 comment:
परम आदरणीय भैया
आपके श्रद्धा भाव के इस जजवे
को मेरा सलाम
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