"........मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं,
तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर कर दे !.................."
कन्हैया लाल नंदन ने यह शेर जिस भी परिस्थिति में लिखा हो....मगर "सिंह सदन" के लिए यह मुकम्मल शेर है. रिश्ते सिर्फ संबोधन के लिए ही नहीं होते.....वे दरअसल जीने के लिए होते है......हर आदमी कभी किसी देहलीज़ पर भाई है तो किसी दर पर पति....हर औरत कहीं बहन है तो कहीं माँ......इन्ही रिश्तों में रची बसी कायनात को एक छत के अन्दर जिए जाने की कवायद ही है घर......."सिंह सदन" भी इसी कवायद का एक हिस्सा है........."सिंह सदन " से जुड़े हर एक शख्स और हर एक गतिविधि से परिचय करने के लिए ही ब्लॉग का सहारा लिया गया है ताकि जो भी लिखा जाए वो दिल से लिखा जाये.....और दिल से ही पढ़ा भी जाए.......!
8 comments:
वाह ... इसका ही तो हम सब को इंतज़ार था ... बधाइयाँ जी बधाइयाँ ... साथ साथ बहुत बहुत शुभकामनायें !
BETA ... LOOKING GREAT .. I M PROUD OF U ... GOD BLESS U
aakhen bhar aayin..khub trkki karo..hirdesh
aapki safalta ka sury sada jagmagata rahe.
really, kya se kya ho gaya !!!!
beta..
i m missing u.
wah dear kaya bat hai
very smart
congratulation bhai
wah shyam kant ji,
mja aa gya kya khub lg rhe ho.
really great
chintu
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