नया साल आया है
खुशियाँ भर लाया है
सारे महीनों में
चैत्र माह बड़ा लगे
धूप है सताने लगी
प्यासा अब घड़ा लगे
बागों में देखो
अमुआ बौराया है
नया साल आया है
खुशियाँ भर लाया है |
मीठी अब लगने लगी
नीबू की डाली है
खेतों में झूम रही
गेंहूँ की बाली है
भैस है, हफाने लगी
बछड़ा मुस्काया है
नया साल आया है
खुशियाँ भर लाया है |
लू के थपेडों की
आहट सी आने लगी
अरहर के खेतों से
तितलियाँ भी जाने लगी
कलियों पे बैठा
भंवरा गुनगुनाया है
नया साल आया है
खुशियाँ भर लाया है |
दिन को पुरवैया
गर्मी बढ़ाये है
रातों को ठंडी
चादर बिछाये है
फसलें घर लाया है
किसान मुस्कराया है
नया साल आया है
खुशियाँ भर लाया है |
Psingh "pushp"
3 comments:
मेरे प्रिय भाई पुष्प जी आपकी रचना अत्यंत उच्च कोटि की है
जितनी तारीफ़ की जाये कम है
उम्मीद है साल के अंत तक कोई सुखद समाचार मिले बॉलीवुड से
नहीं तो अपना काम है लिखते रहना ,वो जारी रहेगा
खैर ये साल हम लोगों के लिए सही जा रहा है
तो इस बावत उम्मीद तो है ही !!!!!!!!
तू नदी है ,किनारा तेरा हम हैं !
,बिन तेरे हम तो !पूरे से जरा सा कम हैं !!(राशिद अली )
श्यामकांत
well done ... superb
**** pankaj k. singh
दिन को पुरवैया
गर्मी बढ़ाये है
रातों को ठंडी
चादर बिछाये है
फसलें घर लाया है
किसान मुस्कराया है
नया साल आया है
खुशियाँ भर लाया है |
नए संवत पर यह कविता खेत- खलिहान से जोड़ने में बहुत ही कारगर है. पुराने दिन याद आ गए.... गेंहू कटना और दाना निकाल कर रास मिलना और उससे कप्तान की दूकान से कम्पट- दालमोठ लेना .....! ये यादें भी कम नहीं होतीं....!!!!!!
PK
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